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Tuesday, June 25, 2013

इस विनाश का दोषी कौन है?

गढ़वाल मंडल में पञ्च प्रयाग और चार धाम होने से नदियों किनारे आबादी शुरू से ही रही है. चैनल्स नहीं जानते की असली पहाड़ों में विकास हुआ होता तो लोग अपना घर-बार छोड़ कर सडकों के किनारे न बसते. आपदा बनाम विकास की बहस बिलकुल बेईमानी है. बिना किसी ठोस नीति के अन्धाधुन्ध निर्माण को विकास नहीं कह सकते. 
श्रीनगर से आगे श्रीकोट में मेरी बुआ जी का गाँव था. ४० साल पहले बचपन में जब श्रीकोट जाती थी तो खेतों का विस्तार था. बदरीनाथ जाने वाली रोड से ग्रामीणों का कोई वास्ता नहीं था. सड़क किनारे दुकानदारी करना बहुत बुरा माना जाता था. खेतों के विस्तार के किनारे अलकनंदा इठलाती रहती थी. मेरी बुआ जी के खेतों को श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के लिए सरकार ने अधिग्रहण किया. इस तरह औरों के खेत भी विकास की भेंट चढ़ते गए. माफिया आया तो बड़े-बड़े होटल्स बनने लगे. गंगा किनारे बसा यह सुन्दर गाँव आज मोहल्ल्ला बन गया है. जिसकी तरफ देखने का मन भी नहीं करता. क्या इसके दोषी लोकल्स हैं? सरकारें भी सुविधाजनक स्थान ढूँढती हैं. विश्वविद्यालय, पोलिटेक्निक, हायदल, बड़े-बड़े होटल्स, क्या नहीं है श्रीनगर में. श्रीनगर के आस-पास के गाँव भी कोलोनी बन चुके हैं. ये तो एक शहर का उदाहरण है. इस विनाश का दोषी कौन है?
-कुसुम नौटियाल

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