अब बनेगा बाज़ार समर्थित राष्ट्रपति ?
कौशिक बसु का सुधारों का पिटारा खुलने लगा है। डीजल को बाजार की मर्जी पर छोड़ने के अलावा बीमा और विमानन क्षेत्र में ऴिदेशी निवेशकों की घुसपैठ की खुली छूट देने का इंतजाम हो गया है।लगता है आर्थिक सुधारों के दबाव में दम तोड़ती सरकार ने अब बाजार की मदद के लिए राष्ट्रपति भवन को समर्पित करने का भी बीड़ा उठा लिया है। राष्ट्रपति हो ऐसा,जो बेझिझक बाजार के हित को सुरक्षित रखने के लिए कुछ भी करें! प्रतिभा पाटिल के कार्यकाल में ही कोयला आपूर्ति गारंटी के कोल इंडिया को डिक्री और २ जी स्पेक्ट्रम फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से ब्याख्या मांगने जैसी कार्रवाइयों के जरिये भारत के प्रथम नागरिक के अघोषित कर्तव्यों की नयी फेहरिस्त तैयार हो गयी है। इसी सिलसिले में सैम पित्रौदा का नाम आगामी राष्ट्रपति के लिए प्रस्तावित है। पर जरूरी वोट न हो पाने की वजह से कांग्रेस के लिए यह मंसूबा पूरा करना आसान नहीं दीख रहा। इसी खातिर प्रणव मुखर्जी को मैदान में उतारा जा रहा है जो विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से लेकर विश्व व्यापार संगठन के भरोसे में हैं और राजनीतिक जुगाड़ लगाने में जिनकी कोई सानी नहीं है। इसी के साथ कौशिक बसु जैसे प्रणव टीम के अफसरान की नई भूमिका सामने आने लगी है। भारत की आर्थिक वृद्धि दर 31 दिसंबर 2011 को खत्म क्वॉर्टर में घटकर 6.1 फीसदी रह गई थी। यह पिछले तीन साल में सबसे कम है। इसकी वजह ब्याज दरों में कई बार बढ़ोतरी होने के चलते कंज्यूमर खर्च और इन्वेस्टमेंट में कमी आना है। इकनॉमिक स्लोडाउन की वजह से टैक्स रेवेन्यू में कमी आई है। सब्सिडी और ग्रामीण श्रमिकों के लिए रोजगार गारंटी योजना का खर्च बढ़ गया है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स द्वारा भारत की रेटिंग घटाने के बाद बिकवाली के चलते 27 अप्रैल को समाप्त कारोबारी सप्ताह के दौरान बंबई बाजार (बीएसई) के सेंसेक्स में 187 अंक गिरकर 17187.34 रह गया। बाजार विश्लेषकों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की ओर से निवेश में बढ़ोतरी के बगैर बाजार में गिरावट जारी रह सकती है। एसएंडपी ने भारत में निवेश और आर्थिक विकास दर में कमी व चालू खाते के बढ़ते घाटे के कारण भारत की रेटिंग स्थिर से नकारात्मक कर दी है। इसका असर दलाल स्ट्रीट पर बना रह सकता है। इसके अलावा बजट में घोषित कर अपवंचना रोधी कानून (जीएएआर) की वजह से एफआइआइ हतोत्साहित हो रहे हैं, क्योंकि इनके ग्राहक पार्टिसिपेटरी नोट के जरिए निवेश करते हैं।
पत्ते अभी खुल नहीं रहे है। तुरुप का पत्ता अभी बाजार के हाथों में है। समझा जाता है कि प्रणव के नाम पर ममता और वामपंथी दोनों दड़ों को मना लिया जा सकता है। पर वोट तो अब भी मुलायम और मायावती के पास ज्यादा है, उन्हें पाले में लाये बिना कांग्रेस पक्की बात कैसे कर सकती है?वाम दलों के रवैये से वाकिफ लोग यही मान रहे थे कि वामदल कलाम से दूरी बनाए रखेंगे। समझा जाता है कि वामदल केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के नाम पर सहमत हो सकते हैं। भाजपा की त्वरित प्रतिक्रिया से साफ जाहिर है कि मामला हवाई नहीं है और विपक्ष को भी इस सिलसिले में फीलर मिल रहे हैं। अब दोखना है कि राष्ट्रपति चुनाव में कारपोरेट लाबिइंग क्या गुल खिलाती है, जिसकी वजह से पिछले आम चुनाव में मनमोहन को भारी कामयाबी मिली और वे प्रधानमंत्री बने रहे।मुंबई इंडियन के लिए आईपीएल खेल रहे सचिन तेंदुलकर को जिस तरह राज्यसभा सांसद बनवाने में अंबानी परिवार ने निर्मायक भूमिका निभायी, उससे तो लगता है कि यह राष्ट्रपति चुनाव का ड्रेस रिहर्सल हो गया। प्रणव मुखर्जी का नाम सामने लाने की सुचिंतित रणनीति रही है, भले ही प्रणव मुखर्जी या कांग्रेस इसे मीडिया की करतूत बता रहे हैं।
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