उत्तराखंड त्रासदी लापरवाही का नतीजा : पर्यावरणविद |
(09:49:46 PM) 30, Jun, 2013, Sunday |
नई दिल्ली ! उत्तराखंड में हाल ही में आई आपदा की सही वजहों का पता लगाया जाना अभी बाकी है लेकिन पर्यावरणविदों ने इसे दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ का परिणाम और मानव निर्मित संकट करार दिया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक तापमान में अचानक भारी बदलाव के कारण ऐसे संकट आते हैं, लेकिन पर्यावरणविद इस बात पर एकमत हैं कि हिमालय की सुकुमार पारिस्थितिकी से छेडछाड़ की वजह से इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदायें आ रही हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि हिमालय दुनिया का सबसे तरूण पर्वत है, जहां कठोर चटट्ानों पर भूमि जमा है। इसके कारण वहां भूक्षरण, भूस्खलन और भूकम्पीय हलचलें होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के डीन डॉ. अरूण अत्री का कहना है कि अनियोजित एवं अवैज्ञानिक निर्माण और बांधो की बहुलता से इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण को पागलपन करार देते हुए कहा कि निर्माण की वजह से मामूली असंतुलन से भी और जल विद्युत परियोजनाओं से हिमालय के ऊपरी हिस्से पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। डॉ. अत्री ने कहा कि जल विद्युत परियोजनाओं के लिए निर्मित किये गए जलाशय पर्वत के निचले हिस्से के संतुलन को गडबडा सकते हैं और यह गंगा के प्रवाह में दिखाई भी दे रहा है। वर्तमान में 10 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए गंगा पर करीब 70 जल विद्युत परियोजनायें निर्मित हो गयी हैं या प्रस्तावित हैं। इन जल विद्युत पड़रयोजनाओं की श्रृंखला से गंगा एक दिन या तो सुरंग में परिवर्तित हो जायेगी या वह एक जलाशय में तब्दील हो जायेगी। इससे गंगा के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो रहा है। विज्ञान एवं पर्यावरण केद्र के लिए घाटी में काम कर रहे श्री नित्या जैकब का भी कहना है कि भविष्य की परवाह किये बगैर वहां अंधाधुंध निर्माण किये जा रहे हैं। श्री जैकब ने कहा कि केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्र में बादल फटने की घटना कोई अनोखी नहीं है। यह मौसम के असामान्य हो जाने का नतीजा है। कुछ दशकों के अंतराल पर ऐसा होता रहता है। इस बार यह उस समय हुआ जब केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा पर हजारों श्रध्दालु वहां गए हुए थे। रिकार्ड के अनुसार 1880 और 1890 में भी वहां बादल फटने की भीषण घटनायें हुई थी. लेकिन तब पानी का बहाव पेडों और अन्य वनस्पड़तयों की बहुलता की वजह से नियंत्रित हो गया था। श्री जैकब ने कहा कि पिछले करीब 150 वर्षों ययशेष पृष्ठ 3 पर य में वनों की अंधाधुंध कटाई से जमीन के कसाव में काफी कमी आई है जिससे पहाडियों में निरंतर अस्थिरता आ रही है। हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस त्रासदी को पहाडों की सुनामी कहते हुए इसे भीषण प्राकृतिक आपदा मान रहे हैं। निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तराखंड में बादल फटने की घटना जलवायु परिवर्तन का नतीजा है या इसकी कुछ और वजह है, लेकिन पिछले कुछ वष्रों के रिकार्ड से यह तो स्पट है कि देश में भारी बारिश की घटनायें बढ़ रही है और मध्यम वर्षा का दौर कम होता जा रहा है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में बादल फटने और अप्रत्याशित बारिश होने की भारी आशंका है। उल्लेखनीय है कि 15 जून को केदारनाथ के ऊपरी पर्वतीय इलाके में बादल फटने से 24 घंटे में 240 मिलीमीटर वर्षा हुई थी। इसी वजह से आई भीषण बाढ़ के कारण उत्तराखंड में भारी तबाही हुई है। पर्यावरणविद और विशेषज्ञ उत्तराखंड जैसे राय में विकास की जरूरत से तो सहमत हैं. लेकिन उनका कहना है कि हाल की त्रासदी से यह स्पष्ट है कि इन इलाकों के लिए विकास का नया मॉडल तैयार किया जाना चाहिए. जिसके केद्र में क्षेत्र की जैव भौतिकीय परिस्थितियों को मुख्य रूप से रखा जाना चाहिए। http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/186610/1/20 |
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Sunday, June 30, 2013
उत्तराखंड त्रासदी लापरवाही का नतीजा : पर्यावरणविद
उत्तराखंड: अब खाने के लिए हो रहा है खूनी संघर्ष
उत्तराखंड: अब खाने के लिए हो रहा है खूनी संघर्ष
उत्तराखंड में आपदा के बाद अब भूख का संकट गहरा गया है। खाने को लेकर कई जगहों पर खूनी संघर्ष हो रहे हैं। सरकार के राहत पहुंचाने के दावे की पोल खुल रही है। अब भी 1,300 गांव अलग-थलग पड़े हुए हैं। यहां अनाज खत्म होने से अब लोग भूख से तड़प रहे हैं और राहत के नाम पर जो कुछ पहुंच रहा है उसे पाने के लिए मारपीट तक से परहेज नहीं कर रहे हैं।
सुदूर इलाकों में लोग भूख से लड़ने के लिए एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं। शांत माने जाने वाले इस राज्य में प्रकृति का कहर इस तरह बरपा कि लोगों के घर, जमीन, सामान सब कुछ जमींदोज हो गए। 16 दिनों से आपदा की मार झेल रहे लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। पिथौरागढ़ जिले के नेपाल सीमा से लगे गांव मारछा में राहत सामग्री आते ही लोग उस पर टूट पड़े। हालत यह है कि राहत सामग्री में से अपना हिस्सा पाने के लिए लोग एक-दूसरे से मारपीट पर उतारू हो गए हैं। ज्यादा मार महिलाओं पर पड़ रही है, क्योंकि उन्हें अपनी भूख के साथ ही परिवार वालों की भूख के लिए भी लड़ना पड़ रहा है। खाने के सामान को लेकर जिस तरह मारपीट हो रही है उससे सरकार के राहत पहुंचाने के दावों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
स्थानीय निवासी बसंती मारछाल ने कहा कि हम टेंट में रहकर या टेंट में जगह न मिलने पर बाहर रहकर किसी तरह गुजारा कर रहे हैं पर अब भूख बर्दाश्त नहीं हो रही। इसलिए मैं सामान लूटने के लिए झगड़ पड़ी। पता नहीं फिर कब सामान आएगा। मैं अपने परिवार वालों को भूख से तड़पता नहीं देख सकती। मारछा गांव के अलावा बलुवाकोट, कालिका, तेजम, तवाघाट, ऐलागाड़ का भी यही हाल है। यहां जाने का रास्ता टूट गया है। जो भी एनजीओ और सामाजिक-राजनीतिक संगठन राहत सामग्री लेकर जा रहे हैं वह दूर से ही वहां फेंक रहे हैं। गांव के किसी प्रभावशाली शख्स को उसका जिम्मा सौंपने के अलावा उन्हें सामग्री बांटने का कोई रास्ता समझ नहीं आ रहा।
भारी बरसात से नरक यंत्रणा की शुरुआत!
भारी बरसात से नरक यंत्रणा की शुरुआत!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
अभी मानसून लगातार बरस नहीं रहा है। लेकिन एक रात और अगले दिन दोपहर की बारिश से कोलकाता और उपनगरों मे उत्तराखंड के जलप्रलय का स्पर्श मिल गया। कोलकाता की रामकहानी हर बरसात में एक जैसी है, उसमें सुधार हने के आसार बहुत कम है। लेकिन कोलकाता महानगर के उत्तरी और दक्षिणी उपनगरों में नरक यंत्रणा की शुरुआत हो चुकी है। महानगर में फिरभी निकासी की व्यव्था देर सवेर हो जाती है।कोलकाता के विभिन्न हिस्सों में शनिवार रात से हो रही भारी बारिश से शहर में कई स्थानों पर जल भराव होने के कारण सामान्य जीवन प्रभावित हो गया है और रेल सेवाएं भी आंशिक रूप से बाधित हो गई हैं। सेंट्रल, नॉर्थ और साउथ कोलकाता के विभिन्न हिस्सों में जल भराव के कारण लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।मौसम विभाग के अनुसार पिछले 24 घंटों में शहर में 89.5 मिमी बारिश दर्ज की गई है। आगामी 24 घंटों में मध्यम से भारी बारिश होने की संभावना है। राज्य के गांगेय क्षेत्र के ऊपर वर्षा रेखा पूरी तरह से सक्रिय हो उठी है। इसके साथ ही ओड़िशा व उसके संलग्न पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों के ऊपर भी एक चक्रवात तैयार हो गया है। इन दो परिस्थितियों के कारण शनिवार को भी कोलकाता समेत राज्य के कई इलाकों में अच्छी-खासी बारिश हुई।मौसम विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अगले 24 घंटे में उक्त चक्रवात और सक्रिय होकर निम्न दबाव के रूप में परिवर्तित हो जायेगा। इस वजह से ओड़िशा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के तटीय व उसके आसपास के इलाकों में और बारिश होगी। उपग्रहों से मिली तसवीरों के अनुसार दो-तीन दिन पहले अंडमान में समुद्र के ऊपर बना चक्रवात बढ़ते-बढ़ते ओड़िशा व पश्चिम बंगाल के तटीय व संलग्न बंगाल की खाड़ी के ऊपर स्थिर हो गया है। जाहिर है कि नरक यंत्रणा की शुरुआत है यह।
कोलकाता के महापौर शोभनदेव चटर्जी ने बताया कि कोलकाता नगर निगम के कर्मी जलभराव वाले इलाकों से पानी बाहर निकाल रहे हैं। भारी बारिश के कारण सियालदह खंड में रेल सेवाएं आंशिक रूप से बाधित हो गईं। दिन में रेल सेवापूरी तरह से बहाल हो गई।
उपनगरों में अंधाधुंध र्माण की वजह से जल निकासी के तमाम रास्ते अवरुद्ध हो गये हैं। नालियां और नहरें, उपनदियां तो पाट दी गयी हैं। झीलों, पोखर और तालाब भी खत्म हो गये हैं।जरा कल्याणी हाईवे पर नजर डाले तो बिराटी से कल्याणी तक जलाशयों पर बन रहे प्रोमोटर राज से कल्याणी से लेकर बेलघरिया तक चारों तरफ लहराते समुंदर की असली वजह मालूम हो जायेगी। यहा हाल सोनारपुर से लेकर बारुईपुर तक की है। एक इंच जलाशय बाकी बचा नहीं है। साल्टलेक बन जाने के बाद कलकाता में प्राकृतिक झीलों की परिधि कम हो जाने से महानगर में जीर्ण शीर्ण निकासी व्यवस्था पर अभूतपूर्व दबाव है तो सोनारपुर बारुईरपुर से लेकर कल्याणी तक जमा जल बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं है। बैरकपुर से लेकर डनलप तक जलनिकासी के लिए परंपरागत निकासी प्रणाली बागजोला खाल का उपयोग अब अवैध शराब की आपूर्ति लाइन बतौर होती है।
रातभर की बारिश से बीटीरोड समुंदर में तब्दील हुआ। बेलघरिया और सोदपुर रेलवे ब्रिज केमुहाने तक पानी भर गया। सोदपुर मध्यम ग्राम मार्ग पर रविवारको दिनभर यातायात बंद रही। बसें नही चलीं।
जैसोर रोड पर जलजमाव होने से बारासात से लेकर दमदम हवाई अड्डेतक यातायात ठप पड़ गयी तो दमदम रोड पर नावें चलानेी हालत बन गयी। पानीहाटी, खड़दह, टीटागढ़, बरानगर, कमारहट्टी, दमदम, विधाननगर, सोनारपुर, महेशतला, बैरकपुर, नैहाटी, कल्याणी नगरपालिकाओं में आम जनजीवन शनिवार की रात को हुई बरसात से ठप पड़ गया।
वहीं हुगली के उसपार ग्रांड ट्रंक रड के संकरे रास्ते पर हालत कुछ बेहतर नही थी। मुंबई रोड से जुड़ने वाली बांकड़ा मार्ग हो या सलप से सालकिया रोड. या डनलप से सोदरपुर जाने वाली नीलगंज रोड सर्वत्र जलजला था। हावड़ा नगरनिगम और चंदननगर नगर निगम में भी जलनिकासी का इतजाम कोलकाता से कोई बेहतर नहीं है, यह साबित हो गया। विडंबना है कि शहर नियोजन के लिए गठित लंबे-चौड़े सरकारी अमले पानी के बहाव में शहरों के ठहरने पर खुद को असहाय पाते हैं। सारा दोष नालों की सफाई ना होना, बढ़ती आबादी, घटते संसाधन और पर्यावरण से छेड़छाड़ को दे दिया जाता है। पर इस बात का जवाब कोई नहीं दे पाता है कि नालों की सफाई सालभर क्यों नहीं होती और इसके लिए मई-जून का ही इंतजार क्यों होता है।
ईएम बाईपास, दिल्ली मुंबई हाईवे और कोना एक्सप्रेस में ही यातायात सामान्य रही।
छुट्टी का दिन होने से समस्या उतनी विकराल नहीं हुई। वरना थोड़ा पानी पड़ने से तो सियालदह दक्षिण और सियालदह उत्तर शाखाओं में ट्रेन सेवा भी ठप पड़ जाती है। गैरसरकारी दफ्तरों आपातकालीन सेवाओं में लगे लोगों के लिए कार्यस्थल तक पहुंचने और वापस घर लौटने के लिए मेटाडोर वाहन ही उपलब्ध थे।घर बैठे भी लोगों को राहत नहीं मिली। रविवार के दिन सेटटाप बाक्स के जरिये मनोरंजन टैक्स की रंगदारी के खिलाफ केबल आपरेटरों ने टीवी प्रसाऱण बंद कर दिया। आज वे पूर्व घोषित कार्यक्रम के मुताबिक हड़ताल पर थे। नेट के जरिये सूचना हाईवे पर टहलने वाले लोगों के लिए भी बरसात मायूसी बनकर आयी। जगह जगह लोकल फाल्ट की वजह से केबल के जरिये इंटरनेट सेवा अस्त व्यस्त रही।
बारिश के कारण बालीगंज, सीआर एवेन्यू, एमजी मार्ग, जकारिया स्ट्रीट, विधान सरणी और कॉलेज स्ट्रीट इलाके प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा भारी बारिश की वजह से पतिपुकुर और दमदम की गलियों में भी पानी भर गया है। हालांकि रविवार होने के कारण आज गलियों में यातायात काफी कम था।
सच पूछें तो देश के हर शहर का हाल थोड़ी सी बरसात में ऐसा ही हो जाता है। कोलकता को तो पहली ही बारिश ने दरिया बना दिया है। पिछले कुछ सालों में देखा गया कि हरियाणा, पंजाब के कई तेजी से उभरते शहर- अंबाला, हिसार, कुरुक्षेत्र, लुधियाना आदि एक रात की बारिश में तैरने से लगते हैं। रेल, बसें सब कुछ बंद. अहमदाबाद, सूरत के हालत भी ठीक नहीं।
अभी पटना में गंगा तो नहीं उफनी पर शहर के वीआईपी इलाके घुटने-घुटने पानी में तैरते रहे। किसी भी शहर का नाम लें, कुछ न कुछ ऐसे हालात देखने-सुनने को मिल ही जाते हैं।दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसे महानगरों में जल निकासी की माकूल व्यवस्था न होना शहर में जल भराव का स्थाई कारण माना जाता है। मुंबई में मीठी नदी के उथले होने और सीवर की पचास साल पुरानी व्यवस्था के जर्जर होने के कारण बाढ़ के हालात बनना सरकारें स्वीकार करती रही है। बंगलुरू में पारंपरिक तालाबों के मूल स्वरूप में अवांछित छेड़छाड़ को बाढ़ का कारक माना जाता है।
Winning captain MS Dhoni's non-cricketing business interests not yet forgiven
Winning captain MS Dhoni's non-cricketing business interests not yet forgiven
At least four questions thrown at Dhoni were linked to betting and spot fixing, in which specific parts of a match are rigged, after allegations of such chicanery had surfaced for the second time in two seasons in the Indian Premier Trophy (IPL).
If these questions were disconcerting, Dhoni didn't show it. He ducked all of them, with more finesse that he would a bouncer from Dale Steyn. Yet, he couldn't have been faulted for running to catch the plane to England. The cold, dreary English conditions that awaited him seemed pleasant all of a sudden.
Back home, the 'heat' was about to rise several notches. Four days later, The Economic Times reported that Rhiti Sports Management, set up by Arun Pandey, a confidante of Dhoni, manages the Indian captain as well as teammates such as Suresh Raina, Ravindra Jadeja and Pragyan Ojha.
ET investigations revealed that Dhoni bought a 15% stake in the sports management and marketing firm earlier this year, raising questions of propriety and conflict of interest.
Two instances of unseemly conduct were exposed. One relates to Dhoni's dual positions as part owner — Rhiti clarified that Dhoni currently has no stake — and as captain who has a say in team selection. The second relates to Dhoni's role as captain of IPL franchiseChennai Super Kings (CSK), in which he, Raina and Jadeja are again colleagues.
CSK is owned by N Srinivasan, former president of BCCI, the game's governing body in India, who was forced to step aside after his son-inlaw and CSK team principalGurunathMeiyappan was arrested (later released on bail) on charges of illegal betting.Srinivasan also happens to be the promoter of India Cements, which owns CSK and in which Dhoni is a vice-president.No prizes for guessing the company that markets CSK — Rhiti. Dhoni's studious silence on the spot-fixing and betting scandal at the press meet was assessed against the backdrop of these revelations. Was his silence a direct consequence of his ties with Rhiti and India Cements?
Nevertheless, a section of the cricket world hoped that a solid performance by India would banish the controversy. That's exactly what happened.
Not only did India emerge victors, it was by far the most dominant team in the tournament. In the afterglow of the win, discussions largely ranged from whether Dhoni was India's best captain ever to how the selectors got the team composition right. There was hardly a mention of the events that transpired before the team's departure to England.
It was not surprising. 'Let the bat do the talking' is a favourite expression in cricket, often summoned when a player's performance is under scrutiny. In Dhoni's case, it seemed the team did the talking to erase the demons off the field.
Public Sentiment
But did it? Is the public willing to forget, even forgive, the cloud of impropriety hanging over Dhoni in the wake of the Champions Trophy victory? Has their faith in cricket, which was again torn asunder by the most recent betting and spot-fixing scandal, been restored?
ET Magazine commissioned a survey by Ipsos, the world's secondlargest custom market research company, to assess the mood of the public on Dhoni, cricket and other related topics. The nationwide poll was conducted on June 26 through June 27 among professionals and students across eight of the biggest cities in India.
For the purpose of analysis, a structured questionnaire was handed to the respondents. Dhoni was expectedly voted the best Indian captain, beating his other successful predecessors such as Sourav Ganguly and Kapil Dev.
But even he couldn't get past Narendra Modi as India's most inspiring leader, a sign that the Gujarat chief minister's publicity campaign in the run-up to the elections is paying off. Only the Chennai audience thought Dhoni is more inspiring than Modi, not surprising given CSK's stellar record in the IPL (though the city sided with Ganguly and Dev in the captaincy rankings). There were few surprises in these results.
Most respondents polled (see the six questions) were unsparing about Dhoni's role in CSK and Rhiti. In Hyderabad and Delhi, nearly threefourths of the respondents were unforgiving about the controversy.
Striking Results
Likewise, the majority of respondents wanted Dhoni to end his association with either RhitiSports or India Cements or both. Only Kolkata (58%) was unperturbed. The respondents were equally upset about the corruption charges levelled against cricketers and their alleged nexus with bookies, despite the Champions Trophy victory.
Only the verdicts from Pune and Kochi countered this perception. The results of the survey must be weighed against the backdrop of the woefully-short memory of the public and the media.
In many ways, the poll is evidence that the Dhoni affair and corruption in cricket have caught the public's attention in a powerful and unprecedented way. Shailendra Singh, joint managing director, Percept Limited, a marketing company for media and entertainment, says the Indian captain has multiple questions to answer.
"Silence is not an answer." Dhoni fell into a conflict of interest and as captain, he can't afford to, according to Singh. "It is simple: the non-conflict clause has to be revisited for the sake of national sport." Clearly, Indian fans are not willing to brush off the conflict of interest between MS Dhoni the businessman and MS Dhoni the skipper. Of course, sport has been confronted with such issues in the past, though most narratives have centred on the thin line that separates a sportsperson and, well, a person.
After American cyclist Lance Armstrong confessed to doping, a thoroughly disenchanted Michael Specter wrote in The New Yorker: "Lance Armstrong was not a man, he was an idea; an American myth ... He was the little engine, brutalised by illness and then savaged by opponents, who could anyway, somebody who shrugged off hate and always took the high road." There are not many Indian parallels. But if one were to draw one, let's take the case of Sachin Tendulkar. Is Tendulkar's glorious record a passport to play for India as long as he pleases? Should fans ignore Tendulkar's delayed and meek response to the betting scandal?
Should we pay no heed to say, Tendulkar, despite his riches, giving little to charity? Should we stop worshipping Tendulkar the moment he steps off the field? Ed Hawkins, a sports-betting journalist, and the author of Bookie Gambler Fixer Spy: A Journey To The Corrupt Heart Of Cricket's Underworld, says it would take a rational person to separate an individual and a sportsman.
"It is human nature to be jealous of those more fortunate. So when we see a superstar cricketer behaving in a way which could be questioned, we all jump on his back. That behaviour (ordinarily) has little to do with his ability to score runs or take wickets but we judge him all the same and he sinks a little in our opinion," he says.
Has Dhoni sunk in the public's eyes? Social commentator Shiv Visvanathan offers a different perspective. Some kinds of creativity are not linked to the individual — in a total sense, according to him. "You can be a mystery writer and a bad person. So creativity does not have to do with good and bad. Since I see sports as a form of creativity, Dhoni the cricketer can be separated from Dhoni the man," he says. But even Visvanathan says if one looks at ethics, Dhoni the sportsperson cannot be divorced from the man.
"Let me pretend that I am an emerging young batsman, hoping to break into the India team. Yet I never get the call, despite scoring more runs, in more pressurised situations and in quicker time than a rival. But that rival gets picked. I find out that player is part of the same 'stable' as the captain. I feel wronged. This may or may not have happened already in Indian cricket but the potential damage this causes is obvious... The inference is that Dhoni has wielded his power in the selection meeting to get his 'boys' picked, and thereby benefitting financially," he says.
Of course, if that has happened, it has done no harm whatsoever, says Hawkins. "India are world champions and Champions Trophy winners. Dhoni cannot do any wrong. And there's the rub." Even so, there is no denying that a prolonged period of failure by these cricketers would set off a different chain of events. And Dhoni has reportedly on at least one occasion backed a close friend, defying form and logic.
Remember how a portly RP Singh, who is a close friend of Dhoni, was called in as a replacement during the English tour of 2011. Actually, the veracity of Dhoni's ownership in Rhiti is beside the point. Pandey and Dhoni have been friends since they met years ago in the domestic cricket circuit.
Pandey follows Dhoni like a shadow, sometimes even to the dugout. At a dinner hosted by the Sahara Group in March, which until recently sponsored the Indian cricket team, Dhoni entered along with Jadeja, Raina and Ojha with who else, but Pandey, in tow.
Friends Forever
If the circumstances were different, these instances could pass off as normal camaraderie. But as they aren't, the bonding, so to speak, does raise eyebrows. Pandey, chairman and managing director of Rhiti Sports, declined to comment for this article.
Visvanathan says he is intrigued that cricket players who are supposed to be lifestyle exemplars should suddenly be asked to be ascetic. "Cricket has become a form of conspicuous consumption. You cannot expect the current crop of players to be a Polly Umrigar or a Dilip Sardesai," he says.
According to Visvanathan, the conflict of interest epidemic goes back to the BCCI, which appoints ex-cricketers in various positions and then expects undying loyalty from them. The ET Magazine-Ipsos survey reveals a similar verdict. Most respondents blamed the BCCI and the IPL format for bringing the game into disrepute. Corruption maybe pervasive but its shadow over sport is particularly disturbing.
Take for example, Brazil's troubles over the football world cup — even the world's most favourite sport and the country's history of success have been unable to quell the massive protests against corruption. The BCCI now wants players to be more transparent about commercial deals.
According to an Indian Express report, players must furnish details of their endorsements, investments and disclose business interests related to individuals or companies when contracts come up for renewal in October. But the BCCI seems to be plodding on other fronts.
The Times of India has reported that the investigation into the betting charges is progressing slowly. Worse, the inquiry panel has limited powers — there is no provision for tip-offs by whistleblowers — raising concerns over the sagacity of the investigation. Dhoni and his band of friends have meanwhile landed in the Caribbean for a tri-series involving the West Indies and Sri Lanka.
Thanks to the Champions Trophy win, the nearly 25 brands Dhoni endorses have no reason to panic. Santosh Desai, CEO, Future Brands, says brands need not worry until the BCCI seriously pursues the investigation into betting and addresses the conflict of interest issue. "So far we haven't seen that intent." Does that mean Dhoni can count on another great performance ending for good the troubles outside the field?
The ET Magazine-Ipsos survey tells us it won't be easy. Hawkins says a player needs to understand that he will not be viewed separately as an individual. "Often you hear celebrities bemoan 'I am not asking to be a role model'. Tough. It comes with the trappings. So they should behave accordingly," he says. "A celebrityobsessed world is watching, waiting, hoping for a slip so something salacious can be reported."
कोयला नीति में ही घोटालों के बीज, कोयलांचल में तबाही के संकेत
कोयला नीति में ही घोटालों के बीज, कोयलांचल में तबाही के संकेत
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
राजनीति ने हमेशा कोयलांचल की उपेक्षा ही की है। झारखंड आंदोलन में यह शिकायत बार बारबार होती थी कि कोयला और खनिज संसाधनों से भरपूर आदिवासी इलाकों का कोई विकास ही नहीं हुआ।झारखंड अलग राज्य बने अरसा बीता, हालात नही बदले। झरिया रानीगंज में लुटेरों की तादाद बढ़ गयी है। अवैध खनन का सिलसिला जारी है और जीवन के हर क्षेत्र में माफिया का सर्वव्यापी वर्चस्व है। लेकिन विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है। जो कथा बिहार की है, वही बंगाल की भी है। देश के दूसरे हिस्सों के कोयलंचलों में कोई अलग कथा व्यथा नहीं है।
आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला बताये जा रहे एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले की पीछे यह बदल रही कोयला नीति है। कोयला ब्लाकों के आबंटन के मामले से कोयलांचल में व्याप्त भ्रष्टाचार का तनिक खुलासा हुआ है। लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद से देश के सभी कोयला क्षेत्रों में अपनायी जा रही कोयला नीति में ही भ्रष्टाचार की जड़ें जमी हुई हैं। राजनीति ने सत्ता समीकरण के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामले को तुल दिया लेकिन कोयला नीति में निहित सर्वनाश को हमेशा की तरह नजरअंदाज किया।
स्थानीय लोगों के विकास पर किसी का ध्यान नहीं जाता। माफिया गैंगवार में लहूलुहान होते लोगों की सुनवाई नहीं होती। आर्थिक सुधारों के बहाने जिस तरह कोल इंडिया को बलि का बकरा बना दिया गया है, उसके खिलाफ कोई बोल नहीं रहा है।निजी बिजली कंपनियों को कोयला आयात की अनुमति देकर, आपूर्ति गारंटी योजना के तहत आयात के जरिये कोयला खरीदकर बिजली कंपनियों को देने की कोल इंडिया की मजबूरी और इस आयातित कोयले की कीत म उपभोक्ताओं पर डालने की कोयला नीति भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुठाराघात है।आम जनता तो मरी हुई है, लिकिन रुपये की गिरावट की एक बड़ी वजह कोयला आयात नीति में बदलाव है। यह कोलगेट से कम बड़ा घोटाला नहीं है और इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे ब्याज दरों में कटौती की संभावना भी कम हो गई है। लिहाजा, विकास दर पर भी असर पड़ेगा। इससे एफआईआई ज्यादा बिकवाली कर सकते हैं, जिससे रुपया और नीचे लुढ़ेगा। मुद्रा भंडार पर दबाव बढऩा जारी रहा तो भुगतान संकट पैदा हो सकता है। विदेशी मुद्रा विनिमय संकट बढऩे की आशंका से सरकार सुधार की दिशा में आगे बढ़ सकती है।
हाल ही में तमाम मंत्रालयों से एफडीआइ से जुड़ी उनकी लंबित नीतियों पर रिपोर्ट मंगवाई गई है। कोयला कीमत को लेकर बिजली मंत्रालय और उर्वरक मंत्रालय के सख्त विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप कर इस पर फैसला करवाया।
कोयला आबंटन कोयला नीति के तहत ही हुआ है। आबंटन पर बवाल मचाने वाले लोग निरंतर कोयला नीति में जनविरोधी बदलाव के खिलाफ सिरे से खामोश हैं। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। इतना ही नहीं ज्यादातर वैश्विक मुद्राओं की तुलना में रुपये की हालत सबसे खस्ता है। इसके नतीजे भी बेहद खराब हैं। जून में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शेयर और ऋण दोनों से अपना निवेश निकाल लिया और इसी वजह से रुपये में गिरावट आई है। रुपये में गिरावट से आयात महंगा हो गया है। ईंधन मसलन कच्चा तेल, गैस और कोयले की कीमत रुपये में काफी बढ़ गई है।
अब कोयला नियामक के शस्त्र से आबंटन विवाद को भी रफा दफा किया जा रहा है, लेकिन विनिवेश और विभाजन के विरोध में लामबंद यूनियनों और प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे राजनीतिक दलों ने कोयला नियामक का कोई विरोध नहीं किया है।
कोयला आपूर्ति गारंटी समझौते से लेकर कोयला नियामक तक सरकारी कोयला नीतियों का असल मामला निजी इस्पात और बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने की रही है।ईंधन आपूर्ति करार और बिजली खरीद समझौते से जुड़े कानून में संशोधन होने के बाद कंपनियां नई योजना के तहत आयातित कोयले की पूरी लागत का भार ग्राहकों पर डाल सकेंगी। मौजूदा शुल्क व्यवस्था के तहत अभी आयातित कोयले की ऊंची लागत का भार ग्राहकों पर डालने की अनुमति नहीं है। शुरुआती अनुमान से लगता है कि लैंको इन्फ्रा, जीएमआर, अदाणी पावर और सीईएससी जैसी कंपनियों को नई योजना से फायदा होगा।हालांकि इस नवीनतम प्रस्ताव से उपभोक्ताओं के लिए बिजली और महंगी हो जाएगी लेकिन इससे कोयले की उपलब्धता और बिजली उत्पादन बेहतर करने में मदद मिलेगी।
चूंकि बिजली की दरें इस नीति की वजह से बढ़ रही है, इसलिए बिजली कपनियों को हो रहे फायदे पर थोड़ा बहुत शोर होने लगा है। लेकिन इस्पात उद्योग के बारे में खामोशी है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने कोयला आपूर्ति और कीमत प्रक्रिया पर नया कदम उठाकर बिजली उत्पादन उद्योग को राहत दी है। इससे पहले भी अप्रैल 2013 में कोयले के दाम की पूलिंग का प्रस्ताव आया था मगर राज्यों के बिजली बोर्डों ने इसे नकार दिया।दूसरी बात, कंपनियों को संबंधित राज्य नियामकों से निजी तौर पर शुल्क बढ़ाने की गुजारिश करनी पड़ेगी और इससे हर कंपनी पर अलग असर पड़ेगा। उनके इस सतर्क रवैये की वजह यह भी है कि ऐसी पहल से उपभोक्ताओं और बिजली वितरण कंपनियों पर असर पड़ेगा खासतौर पर तब जबकि अगले साल आम चुनाव होने हैं।
कोयला कंपनियों के अलावा निजी और सरकारी इस्पात संयंत्र झारखंडड और बंगाल का भूगोल बनाते हैं। अगर कोयला कपनियों पर विकास का कार्यभार है, तो इस्पात सयंत्रों और कंपनियों पर भी विकास का दायित्व है। दोनों तरफ से लेकिन कुछ हुआ नहीं है।
बड़ी कंपनियों की बात करें तो इस नई योजना से अदाणी पावर की 1424 मेगावाट मुंद्रा 3 परियोजना और 1320 मेगावाट की तिरोडा परियोजना को फायदा हो सकता है क्योंकि इन परियोजनाओं के लिए कोल इंडिया के साथ ईंधन आपूर्ति करार पर हस्ताक्षर किए गए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि लैंको इन्फ्राटेक को भी सरकार के इस कदम से फायदा हो सकता है क्योंकि कंपनी राज्य वितरण कंपनियों से अपने 300 मेगावाट संयंत्र से उत्पादित बिजली की शुल्क दर बढ़ाने के लिए काफी लंबे समय से गुजारिश कर रही थी। कंपनी के अमरकंटक संयंत्र को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने से यहां महज 47 पीएलएफ पर ही परिचालन किया जा रहा है। लेकिन सरकार के इस कदम से आने वाले समय में लैंको का मुनाफा और नकदी प्रवाह बेहतर स्थिति में हो सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि सीईएससी की 600 मेगावाट की प्रस्तावित बिजली उत्पादन क्षमता (जिसका परिचालन वित्त वर्ष 2014) कोयला उपलब्ध होने से पीपीए पर हस्ताक्षर करने की बेहतर स्थिति में होगी।
चेतावनी को लेकर मौसम विभाग और उत्तराखंड सरकार में मतभेद
उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य ने स्वीकार किया कि मौसम विभाग ने चेतावनी जारी की थी। लेकिन प्राकृतिक आपदा की मात्रा के कारण अधिकारी बहुत सीमित प्रयास कर सकते थे क्योंकि क्षेत्रों में लाखों लोग बिखरे हुए थे। मंत्री ने कहा कि हमारे पास पूर्व सूचना थी लेकिन इतनी बड़े पैमाने पर संकट होने का कोई संकेत नजर नहीं आ रहा था।
उत्तराखंड के आपदा प्रबंधन मंत्री आर्य ने कहा कि लाखों लोग विभिन्न स्थलों पर थे। विभाग क्या कर सकता था। हमने अपना सवरेत्तम किया और हम यह करना जारी रखेंगे। बहरहाल, शर्मा ने कहा कि चेतावनी इतनी विशिष्ट नहीं थी और पहले से यह अनुमान लगाना कठिन होता है कि ऐसी परिस्थितियों में स्थिति किस तरह बने। उन्होंने कहा कि राज्य मौसम विभाग ने चेतावनी दी थी कि लोगों को पर्वतों में जाने से परहेज करना चाहिए और ऊंचाइयों पर पहले ही पहुंच चुके लोगों को सुरक्षित स्थलों पर चले जाना चाहिए। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस तरह की चेतावनी से लोगों को कम ही मदद मिल पाती है क्योंकि वे यात्रा कर रहे थे और उनके पास किसी तरह के संचार की व्यवस्था तक पहुंच बेहद कम थी।
क्या राज्य सरकार परामर्श पर तत्परता से काम करने में विफल रही, इस सवाल के जवाब में शर्मा ने बताया, यहां आपदा प्रबंधन अधिकारी चेतावनी को लेकर अवगत थे। मैं यह कैसे कह सकता हूं कि राज्य सरकार ने चेतावनी पर काम किया या नहीं। शर्मा ने कहा कि उन्होंने अखबार की खबरों में पढ़ा था कि मुख्य सचिव ने लोगों से कहा था कि मौसम विभाग की खराब मौसम के पूर्वानुमान के मददेनजर वे चारधाम की यात्रा पर नहीं जाएं। आपदा के कारण बड़े पैमाने पर मानवीय जीवन और संपत्ति को हुए नुकसान के बारे में शर्मा ने कहा कि यह मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद हो सकता था।
मृतकों की सही संख्या का पता नहीं चल पाएगा: मुख्यमंत्री
उन्होंने बताया कि जो लाशें गलियों में पड़ी हैं (उनका अंतिम संस्कार हो रहा है)। बहुत से लोगों के शव उन इमारतों में फंसे पड़े हैं जिनमें वे रह रहे थे लेकिन उन्हें बाहर निकालने के लिए कुछ मशीनों की जरूरत है। कुछ जेसीबी मशीनें उपलब्ध करायी जा रही हैं।
बहुगुणा ने बताया कि वायुसेना और लोक निर्माण विभाग जेसीबी के डिजाइन आदि का फैसला कर रहा है जिन्हें हेलिकाप्टरों से इन जगहों पर ले जाया जाएगा। उन्होंने बताया कि जो शव रामबाड़ा में पड़े हैं उन तक कोई पहुंच नहीं सकता। लेकिन सवाल यह है कि हम क्या करें जिससे कि पर्यावरण प्रदूषित नहीं हो। कुछ रसायन और पाउडर का इस्तेमाल करना पड़ेगा।
आपदा पर कार्रवाई को लेकर हो रही आलोचना के संबंध में सवाल किए जाने पर उन्होंने कहा कि सेना और सरकार की बेहद त्वरित जवाबी प्रतिक्रिया थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि कोई देरी नहीं हुई। केवल खराब मौसम और सड़क संपर्क की समस्या के चलते उन्हें वहां पहुंचने में समय लगा। लेकिन जब वे पहुंचे तो बड़ी सच्चाई यह है कि हजारों लोगों को निकाला गया और पिछले कुछ दिनों में एक लाख से अधिक लोगों को बिना वहां कानून व्यवस्था की समस्या हुए निकाला गया। इसका श्रेय राज्य सरकार को जाना चाहिए कि वहां कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं थी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि वहां 200 से अधिक गांव थे जहां कोई संपर्क नहीं था और इनका पुनर्निर्माण करना होगा। इसके लिए एक सर्वेक्षण किया गया है और विशेषज्ञों से सलाह मशविरा किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इन गांवों के लिए भोजन भेजा जाएगा। काम प्रगति पर है। हम खाना भेज रहे हैं ताकि ग्रामीण दो माह तक गुजारा कर सकें। राहत सामग्री जिला मुख्यालयों पर रखी है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि सप्ताह भर में सभी स्थानों के लिए कच्चे रास्ते बनाए जाएंगे ताकि कुछ संपर्क बहाल हो सके। उन्होंने कहा कि कोई गांव ऐसा नहीं छोड़ा जाएगा जहां राहत सामग्री नहीं पहुंचे। यह हमारी प्राथमिकता है। इस काम में कुछ समय लगेगा क्योंकि मानसून के दौरान पक्की सड़कें नहीं बनाई जा सकती। बहुगुणा ने कहा कि मैं इस पर आपसे सहमत नहीं हूं कि यह मानव निर्मित आपदा है। आपदाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं है। मैं सुनामी, भूकंप या बादल फटने की घटना को नहीं रोक सकता। ऐसे हालात में मैं क्या कर सकता हूं कि कैसे मैं अपने लोगों की जान बचाऊं। आपदाएं हमारे नियंत्रण में नहीं हैं।
सरकार की लापरवाही ने ली सैकड़ों लोगों की जान!
सरकार की लापरवाही ने ली सैकड़ों लोगों की जान!
नई दिल्ली। उत्तराखंड में आई तबाही का अंदेशा मौसम विभाग को पहले ही हो गया था। यहां तक कि मौसम विभाग ने 14 जून को ही राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि इस बार बारिश काफी तेज होने वाली है। मौसम विभाग ने लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेजने के लिए कहा था, यहां तक कि चारधाम यात्रा टालने की भी बात भी की थी, लेकिन सरकार ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया।
अगर विभाग का मुख्यालय इस चेतावनी को गंभीरता से लेता तो केंद्र सरकार को भी अलर्ट किया जा सकता था। भारी बारिश की पहली चेतावनी 14 जून को कृषि-सलाह बुलेटिन में दी गई थी। आपदा प्रबंधन केंद्र को चेतावनी दी गई। 15 जून, यानी भयानक बारिश से पूरा एक दिन पहले ही अगले 72 घंटे में भारी बारिश की चेतावनी आईटीबीपी और रुद्रप्रयाग के डीएम को दी गई थी। इस चेतावनी में साफ कहा गया था कि यात्रियों को सुरक्षित जगहों पर जाने को कहा जाए।
30 दिन में नहीं मिले तो माना जाएगा मृत: CM बहुगुणा
30 दिन में नहीं मिले तो माना जाएगा मृत: CM बहुगुणा
देहरादून। सीएम विजय बहुगुणा ने दावा किया है कि राज्य में अब भी 3000 के करीब लोग लापता हैं। उनके मुताबिक अगर उत्तराखंड के लापता निवासी 30 दिनों के अंदर वापस नहीं आते तो ये माना जाएगा की उनकी मृत्यु हो गई है। साथ ही साथ कहा है कि दाह संस्कार के लिए 200 लोगों की टीम बनाई जा रही है।
सीएम का कहना है कि ये टीमें केदारनाथ जाएंगी और वहां शवों को निकालकर अंतिम संस्कार करेंगी। गौरतलब है कि आज 15 दिनों बाद ही सैकड़ों लोग लापता है। उनकी कोई खोज खबर नहीं है। इस बीच सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन लागातार जारी है। बचाव का काम अपने आखिरी चरण पर है।
बन्द करो ऐसा आपदा प्रबन्धन जिसके होते सेना की मदद लेनी पड़े
बन्द करो ऐसा आपदा प्रबन्धन जिसके होते सेना की मदद लेनी पड़े
उत्तराखण्ड त्रासदी में मरने वालों की संख्या दस हजार के पार पहुँच सकती है-
उत्तराखण्ड के विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का कथन
उत्तराखण्ड त्रासदी में कितने लोगों की जान गयी इस पर भले ही केन्द्र और राज्य सरकारें खामोशी बरत रही हों लेकिन उत्तराखण्ड के विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के एक बयान ने बवाल खड़ा कर दिया है। कुंजवाल के मीडिया में आये बयान के मुताबिक उत्तराखण्ड त्रासदी में मरने वालों की संख्या दस हजार के पार पहुँच सकती है। जबकि राज्य की ओर से अभी तक मरने वालों का आँकड़ा एक हजार के आस पास जारी किया गया है। कुंजवाल का कहना है कि उन्होंने स्थानीय लोगों से बातचीत करके ये आँकड़े बताये हैं।
उधर खबर है कि उत्तराखण्ड में आपदा के नाम पर लापरवाही को देखते हुये जबलपुर उच्च न्यायालय ने केन्द्र और मध्य प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लिया है। जबलपुर उच्च न्यायालय का कहना है कि ऐसे आपदा प्रबन्धन को बन्द कर देना चाहिये जिसके होते हुये सेना की मदद लेनी पड़े। उच्च न्यायालय ने कहा कि अगर आम लोगों की मदद सेना कर रही है तो आपदा प्रबन्धन को मिलने वाला फण्ड भी सेना को ही ट्रांसफर कर देना चाहिये। वहीं उच्च न्यायालय ने उत्तराखण्ड में आयी भीषण तबाही में फँसे लोगों की जानकारी का ब्योरा राज्य सरकार से एक हफ्ते के अन्दर पेश करने का निर्देश दिया।
यूपी को अमेठी से खबर है कि उत्तराखंड में राहत बचाव कार्य के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हुये विमानमें शहीद जवान अखिलेश सिंह के अन्तिम संस्कार में शामिल होने राहुल गांधी पहुंचे। राहुल रायबरेली के फुर्सतगंज हवाई अड्डे से सीधे अखिलेश के पैतृक गाँव पहुँचे। जवान अखिलेश सिंह यूपी के अमेठी के रहने वाले थे। शनिवार को उनका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
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