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Sunday, April 13, 2014

नमो ब्रांडिंग की धूम, अब की बार सैन्य राष्ट्र की पुलिसिया सरकार

नमो ब्रांडिंग की धूम, अब की बार सैन्य राष्ट्र की पुलिसिया सरकार


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


नमो ब्रांडिंग की धूम, अब की बार सैन्य राष्ट्र की पुलिसिया सरकार। यूपाए की सरकार ने दस साल के राजकाज से भारत राष्ट्र का सैन्यीकरण कर दिया है।आर्थिक सुधारों के दूसरे चरण के लिए इसी सैन्य राष्ट्र के लिए पुलिसिया सरकार के लिए जनादेश निर्माण की कवायद में मार्केटिंग की हर चमकदाक कोरियाग्राफी के साथ नमो ब्रांडिंग की धूम मची है।


इस एम्बुश मार्केटिंग का असर मीडिया और इंरनेट पर सबसे ज्यादा दीख रहा है।नमो सुनामी का असली रसायन यह है।


तेइस करोड़ से ज्यादा इंटरनेट यूजर को केसरिया बनाने में सबसे ज्यादा जोर है नमोटीम का और बाकी लोग जो इस कवायद में जुटे हैं,एनजीओ विशेषज्ञता और सरकारी साधनों से महाबली कांग्रेस इस प्रतियोगिता में नमो ब्रिगेड से काफी पीछे हैं।


हाल यह है कि नये वोटरों को प्रभावित करने में नमोमंत्र जाप अखंड है।लेकिन बाजार से बाहर जो असली भारत है,उसे संबोधित करने में कितनाी कामयाबी इस विज्ञापनी अश्वमेध से मिल पायेगी,यह 16 मई से पहले जानने  का कोई उपाय नहीं है।


सैन्य राष्ट्र मुकम्मल बना देने के बावजूद सरकार के मानवीय चेहरा दिखाते रहने की कांग्रेसी विकलांगता की काट हिंदू राष्ट्र का नस्ली तिलिस्म है,जहां जायनवादी हिटलरी जनसंहार संस्कृति विचारधारा है,जो मुक्त बाजार और छिनाल पूंजी के सबसे ज्यादा माफिक है।


नमो एजंडा के तहत हिंदुत्व के धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के तहत जो ध्रूवीकरण की कारपोरेट राजनीति है और उसमें भी जो अराजनीति का मसाला तड़का है,वह संघ परिवार के हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना में राजकाज पुलिसिया है और इसकी मुकम्मल तस्वीर गुजरात से छत्तीसगढ़ तक में सलवा जुड़ुम के इतिहास में बाकायदा दर्ज है।


हिंदू राष्ट्र के मुताबिक देश का मौजूदा संविधान बदला जाना है।कर प्रणाली सिरे से खत्म हो जानी है और करपद्धति के नाम पर जो भगवा अर्थतंत्र है,वह अंबानी से लेकर अडानी,बहुराष्ट्रीय कंपनियों से लेकर इंडिया इनकारपोरेशन को निनानब्वे फीसद कर राहत और राजस्व प्रबंधन, वित्तीय प्रणाली और मौद्रिक नीतयों का सारा बोझ बहुसंख्य निनानब्वे फीसद मूक जनता पर लादने का अंतिम लक्ष्य है।


बिना फासीवाद,बिना नाजीवाद, बिना धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद बिना प्रतिरोध यह लक्ष्य हासिल हो ही नहीं सकता। विनिवेश हो या कालाधन को सफेद बनाने का खेल,श्रम कानून,कानून व्यवस्था व न्याय प्रणाली के साथ आरक्षण खत्म करने की तैयारी हो या वित्तीय,लंपट पूंजी छिनाल पूंजी को हरसंभव छूट, नागरिक और मानव अधिकारों के सिरे से सफाये के लिए सैन्य राष्ट्र के जनता के विरुद्ध युद्धघोषणा ही काफी नहीं है।


होती तो कारपोरेट साम्राज्यवाद का पहला विकल्प फिर कांग्रेस ही होती।


पुलिसिया सरकार की मुठभेड़ संस्कृति के बिना देश के चप्पे चप्पे में गुजरात माडल लागू किया ही नहीं जा सकता,इसीलिए कारोबार व उद्योग जगत के नाम पर नस्ली सत्ता बनिया वर्गकी पहली पसंद नमो पार्टी के प्रधानमंत्री नमो हैं।इसलिए देशभर में अब की बार नमो सरकार की ऐसी आक्रामक ब्रांडिंग है।


देश बेचो अभियान के लिए,जल जंगल जनमीन से अबाध बेदखली के लिए वंचितों आदिवासियों के दिये गये संवैधानिक रक्षाकवच को किरचों में बिखेर देना अनिवार्य है।अनिवार्य है सलवा जुड़ुम। नागरिक अधिकारों का निषेध अनिवार्य है। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून  अनिवार्य  है।विधर्मियों के साथ साथ प्राकृतिक ऐश्वर्य वाले इलाकों में नागिरक मानवाधिकार का निषेध  अनिवार्य  है।


गौर करें,संघी नारा है,बहुत हुआ मानवाधिकार,अबकी बार मोदी सरकार।इसी तरह संघ की विचारधारा का प्रस्तान बिंदू विधर्मियों के लिए नागरिक अधिकारों का निषेध है।


खास बात तो यह है कि नमो ब्रांडिंग में नमो सुपरमाडल है।नमो ईश्वर है।घर घर मोदी है। भाजपा सरकार नहीं,अबकी दफा नमो सरकार है।इन जुमलों में संघ परिवार की भारत के संविधान के साथ साथ संसदीय प्रणाली, लोक गणराज्य, संघीय ढांचा और लोकतंत्र को एकमुश्त तिलांजलि देने की परिकल्पना बेनकाब है।


मार्केटिंग की खास पद्धति के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तरह एकमेव व्यक्ति केंद्रित चुनाव प्रचार अभियान है,जो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अभूतपूर्व है। यह सीधे तौर पर अमेरिकी राष्रपति प्रणाली को स्थापित करने की शुरुआत है, लेकिन अमेरिका के विपरीत संसद के प्रति और जनता के प्रति पुलिसिया सरकार का उत्तरदायित्व सुनिश्चित किये बिना।खास बोत तो यह है कि आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा अपने चुनाव अभियान समिति के प्रमुख नरेंद्र मोदी की बड़े स्तर पर ब्रांडिंग करने की तैयारी में है। जातीय समीकरण, पृष्ठभूमि और आकांक्षाओं आदि के मुताबिक मोदी को अलग-अलग जगहों पर आइकन बनाकर पेश किया जाएगा। पार्टी ने इसके लिए राज्य स्तर पर माइक्रो फीडबैक के आधार पर ब्रांडिंग मॉडल तैयार किया है।

इसका मकसद है-चौक-चौराहों से लेकर चायपान की दुकान और फाइव स्टार होटल से लेकर फ्लाइट,ट्रेन व बसों तक में मोदी को सुर्खियों में रखना।


मजे की बात तो यह है कि भारत में कालाधन की चुनाव प्रणाली से प्रधानतक बन जावने वाले लोगो की दिन दूनी रात चौगुणी प्रगति तय है।राजनेताों की माली हालत में सुधार के तमाम किस्से देश की कंगाली और आम लोगों की बदहाली के बरअक्स समझ लीजिये। बेरोजगार राजनेताओ का बैंक बैलेंस करोड़ों अरबों में है जबकि अच्छे खास कामकाज, कारोबार,नौकरी में लगे बहुसंख्य आम लोगों की कमाई जिंदगी की बेसिक जरुरते पूरी करने में नाकाफी है।


इसके विपरीत अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा जो अपना दूसरे कार्यकाल पूरा करने वाले हैं,उनकी आय में कमी की खबर है। भ्रष्टाचार जहां गौरवशाली राजनीति संस्कृति है,वहां राष्ट्पति प्रणाली संसदीय अंकुश के बिना लागू हुई तो क्या होना है,समझ लीजिये।


अबकी दफा चुनाव खर्च के सारे रिकार्ड टूट रहे हैं।तीस हजार करोड़ से ज्यादा का चुनाव प्रचार खर्च है।जो आयोग को दर्ज किये जाएंगे।अघोषित खर्च कितना होगा,उसका कोई अंदाजा नहीं है।चुनाव पूर्व केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से दिये गये थोक विज्ञापनों, राहत, छूट, पैकेज,भत्ता,अनुदान,कथित विकास प्रकल्प,पुरस्कार,सम्मान,आदि का कोई हिसाब तो बनता ही नहीं है। इस पर तुर्रा यह है कि इस अंधाधुंध रकम का ज्यादातर हिस्सा कालाधन है। चुनाव प्रचार और विज्ञापनों में नमो ब्रांडिंग की लागत जाहिर है,सबसे ज्यादा है।सिर्फ नमो होर्डिंग में ही ढाई हजार करोड़ फूंके जा रहे हैं।मीडिया में जारी विज्ञापनों, हवाई दौरों,रैलियों और कारकारवां का खर्च हिसाब लगा लीजिये तो लोकतंत्र उत्सव का माजरा और नजारा दोनों साफ हो जायेंगे।


India in an economic rut: Narendra Modi's 'transformative leadership' image gives him an edge


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