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Saturday, November 1, 2014

अभिषेक को धन्यवाद,इस शानदार मौके की तस्वीरे खींचने की जब हम अपने परिवार में थे और वीरेनदा और आनंदजी के साथ फिर सपना बुनने का दुस्साहस कर रहे थे

अभिषेक को धन्यवाद,इस शानदार मौके की तस्वीरे खींचने की जब हम अपने परिवार में थे और वीरेनदा और आनंदजी के साथ फिर सपना बुनने का दुस्साहस कर रहे थे।
हम अब भी एक जान हैं तो असंभव कुछ भी नहीं।
पलाश विश्वास

अपने आसपास इतने सारे लोग हैं जो हमें कमज़ोर और निराश नहीं होने देते। बस मिलते-जुलते रहने की ज़रूरत है। सिर्फ चार महीने पहले रविभूषणजी जब दिल्‍ली आए थे तो उनके और रंजीतजी के साथ वीरेनदा के पास जाना हुआ था। पहली तस्‍वीर तब की है। वीरेनदा की वही निश्‍छल हंसी फिर देखने को मिली जब आठ साल बाद सपत्‍नीक दिल्‍ली आए पलाशदा के साथ हम लोगों ने दिन गुज़ारा। पलाशदा डेढ़ साल में रिटायर होने जा रहे हैं लेकिन अब भी किसी को बोलने नहीं देते। पूरे उत्‍साह से लबरेज़ और नई-नई चुनौतियों से लड़ने की योजनाएं बनाते हुए।

सोचिए, पलाशदा के साथ पहले आनंदस्‍वरूप वर्मा के घर पर जाना और वहां से वीरेनदा के यहां जाना, साथ में अम्‍लेंदुजी और रंजीतजी का संग। उस पर से पलाशदा की हमसफ़र सविता भाभीजी का वीरेनदा के कमरे में मधुर रवींद्र संगीत।

जिंदगी राजनीति और विचारधारा से बहुत बड़ी है। इन लोगों को देख‍कर लगता है कि हम कथित नौजवान लोग ही बहुत जल्‍दी बुढ़ा रहे हैं। सबके चेहरों की मुस्‍कान ऐसे ही बनी रहे। प्रधनवा का क्‍या है, वो तो आता-जाता रहेगा!!!

जून की तस्‍वीर। रविभूषणजी और वीरेनदा।
बाएं से पलाश बिस्‍वास, अम्‍लेंदु उपाध्‍याय, सविता भाभीजी, रंजीत वर्मा और ख़ाकसार
पलाशदा, अम्‍लेंदु भाई, पलाशदा की धर्मपत्‍नी सविताजी, आनंद स्‍वरूप वर्मा और रंजीतजी

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