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Monday, March 30, 2015

हम हार नहीं मानेंगे! हम लड़ना नहीं छोड़ेंगे!

दोस्‍तो, इस जानकारी काे ज्‍यादा से ज्‍यादा फैलायें। अगर आप पत्रकार या सम्‍पादक हैं तो अपनी पत्रिका/अख़बार/वेबसाइट पर इसे जगह दें। इस खबर का अंग्रेजी वर्जन आपको पहले ही मेल किया जा चुका है। 
Dear friends, if you are not comfortable with Hindi, please refer to our earlier mail which was in English. 


केजरीवाल सरकार के आदेश पर 25 मार्च 2015 को दिल्ली सचिवालय के बाहर मज़दूरों पर बर्बर लाठी चार्ज की घटना का पूरा ब्यौरा
हम हार नहीं मानेंगे! हम लड़ना नहीं छोड़ेंगे!
अभिनव सिन्हा
(संपादकमज़दूर बिगुल और मुक्तिकामी छात्रों-युवाओं का आह्वानकार्यकर्ता बिगुल मज़दूर दस्ता और इतिहास विभागदिल्ली वि‍श्वविद्यालय में शोध छात्र)



​25 
मार्च को दिल्ली में मज़दूरों पर जो लाठी चार्ज हुआ वह दिल्ली में पिछले दो दशक में विरोध प्रदर्शनों पर पुलिस के हमले की शायद सबसे बर्बर घटनाओं में से एक था। ध्यान देने की बात यह है कि इस लाठी चार्ज का आदेश सीधे अरविंद केजरीवाल की ओर से आया थाजैसा कि मेरे पुलिस हिरासत में रहने के दौरान कुछ पुलिसकर्मियों ने बातचीत में जिक्र किया था। कुछ लोगों को इससे हैरानी हो सकती है क्योंकि औपचारिक रूप से दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के मातहत है। लेकिन जब मैंने पुलिस वालों से इस बाबत पूछा तो उन्हों ने बताया कि रोज-ब-रोज की कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिल्ली पुलिस को दिल्ली के मुख्यमंत्री के निर्देशों का पालन करना होता हैजबतक कि यह केन्द्र सरकार के किसी निर्देश/आदेश के विपरीत नहीं हो। 'आपसरकार अब मुसीबत में पड़ चुकी है क्योंकि वह दिल्ली के मजदूरों से चुनाव में किए वायदे पूरा नहीं कर सकती। और दिल्ली के मजदूर 'आपऔर अरविन्द केजरीवाल द्वारा उनसे किए गए वायदे को भूलने से इनकार कर रहे हैं। मालूम हो कि बीती 17 फरवरी कोदिल्ली यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ लर्निंग के छात्रों ने खासी तादाद में वहां पहुंचकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन दिया। इसके बाद, 3 मार्च को डीएमआरसी के सैकड़ों ठेका कर्मचारी केजरीवाल सरकार को अपना ज्ञापन देने गए थे और वहां उन पर भी लाठीचार्ज किया गया।
इस महीने की शुरुआत से ही विभिन्न मजदूर संगठनयूनियनेंमहिला संगठनछात्र एवं युवा संगठन दिल्ली में 'वादा न तोड़ो अभियानचला रहे हैंजिसका मकसद है केजरीवाल सरकार को दिल्ली के गरीब मजदूरों के साथ किए गए उसके वायदों जैसे कि नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा को खत्म करनाबारहवीं तक मुफ्त शिक्षादिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को भरनासत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करनासभी घरेलू कामगारों और संविदा शिक्षकों को स्थायी करनाइत्यादि की याद दिलाना और इसके बाद सरकार को ऐसा करने के लिए बाध्य करना। 25 मार्च के प्रदर्शन की सूचना केजरीवाल सरकार और पुलिस प्रशासन को पहले से ही दे दी गयी थी और पुलिस ने पहले से कोई निषेधाज्ञा लागू नही की थी। लेकिन 25 मार्च को जो हुआ वह भयानक था और क्योंकि मैं उन कार्यकर्ताओं में से एक था जिन पर पुलिस ने हमला कियाधमकी दी और गिरफ्तार कियामैं बताना चाहूंगा कि 25 मार्च को हुआ क्या थाक्यों हजारों मजदूरमहिलाएं और छात्र दिल्ली सचिवालय गएउनके साथ कैसा व्यवहार हुआ और किस तरह मुख्य धारा के मीडिया चैनलों और अखबारों ने मजदूरोंमहिलाओं और छात्रों पर हुए बर्बर दमन को बहुत आसानी से ब्लैक आउट कर दिया?
25 मार्च को हजारों मजदूरमहिलाएं और छात्र दिल्ली सचिवालय क्यों गए?

​जैसा पहले बताया जा चुका हैकई मजदूर संगठन अरविन्द केजरीवाल को उन वायदों की याद दिलाने के लिए पिछले एक महीने से दिल्ली में 'वादा न तोड़ो अभियानचला रहे हैं जो उनकी पार्टी ने दिल्ली के मजदूरों से किए थे। इन वायदों में शामिल हैं नियमित प्रकृति के काम में ठेका प्रथा खत्म करनादिल्ली सरकार में पचपन हजार खाली पदों को भरना;सत्रह हजार नये शिक्षकों की भर्ती करना और संविदा शिक्षकों को स्थायी करनासभी संविदा सफाई कर्मचारियों को स्थायी करनाबारहवीं कक्षा तक स्कूली शिक्षा मुफ्त करनाये वे वायदे हैं जो तत्काल पूरे किए जा सकते हैं। हम जानते हैं कि सभी झुग्गीवासियों के लिए मकान बनाने में समय लगेगाफिर भीदिल्ली की जनता के सामने एक रोडमैप प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इसी तरहहम जानते हैं कि बीस नये कॉलेज उपलब्ध कराने में समय लगेगाहालांकि केजरीवाल मीडिया से कह चुके हैं कि कुछ व्यक्तियों ने दो कॉलेजों के लिए जमीन दी है और उन्हें यह जरूर बताना चाहिए कि वो जमीनें कहां हैं और राज्य सरकार इन कॉलेजों का निर्माण कब शुरू करने जा रही है। ऐसा नहीं है कि केजरीवाल ने अपने किसी वायदे को पूरा नहीं किया। उन्होंने दिल्ली के फैक्टरी मालिकों और दुकानदारों से किए वायदे तत्काल पूरे किए! और उन्होंने ठेका मजदूरों के लिए क्या कियाकुछ भी नहीं,सिवाय केवल सरकारी विभागों के ठेका मजदूरों के बारे में एक दिखावटी अन्तरिम आदेश जारी करने केजो कहता है कि सरकारी विभागों/निगमों में काम करने वाले किसी ठेका कर्मचारी को अगली सूचना तक बर्खास्त नहीं किया जाएगा। हालांकिकुछ दिनों बाद ही अखबारों में खबर आयी कि इस दिखावटी अन्तरिम आदेश के मात्र कुछ दिनों बाद ही दर्जनों होमगार्डों को बर्खास्त कर दिया गया! इसका साधारण सा मतलब है कि अन्तरिम आदेश सरकारी विभागों में ठेका मजदूरों और दिल्ली की जनता को बेवकूफ बनाने का दिखावा मात्र था। इन कारकों ने दिल्ली के मजदूरों के बीच संदेह पैदा किया और इसके परिणामस्वरूप विभिन्न ट्रेड यूनियनोंमहिला संगठनोंछात्र संगठनों ने केजरीवाल को दिल्ली की आम मजदूर आबादी से किए गए अपने वायदों की याद दिलाने के लिए अभियान चलाने के बारे में सोचना शुरू किया।

इसलिए, 3 मार्च को डीएमआरसी के ठेका मजदूरों के प्रदर्शन के साथ वादा न तोडो अभियान की शुरुआत की गयी। उसी दिनकेजरीवाल सरकार को 25 मार्च के प्रदर्शन के बारे में औपचारिक रूप से सूचना दे दी गयी थी और बाद में पुलिस प्रशासन को इस बारे में आधिकारिक तौर पर सूचना दी गयी। पुलिस ने प्रदर्शन से पहले संगठनकर्ताओं को किसी भी प्रकार की निषेधाज्ञा नोटिस जारी नहीं की। लेकिनजैसे ही प्रदर्शनकारी किसान घाट पहुंचेउन्हें मनमाने तरीके से वहां से चले जाने को कहा गया! पुलिस ने उन्हें सरकार को अपना ज्ञापन और मांगपत्रक सौंपने से रोक दियाजोकि उनका मूलभूत संवैधानिक अधिकार हैजैसेकिउन्हें सुने जाने का अधिकारशान्तिपूर्ण एकत्र होने और अभिव्यक्ति का अधिकार।
25 मार्च को वास्तव में क्या हुआ?
दोपहर करीब 1:30 बजेलगभग 3500 लोग किसान घाट पर जमा हुए। आरएएफ और सीआरपीएफ को वहां सुबह से ही तैनात किया गया था। इसके बादमजदूर जुलूस की शक्ल में शान्तिपूर्ण तरीके से दिल्ली सचिवालय की ओर रवाना हुए। उन्हें पहले बैरिकेड पर रोक दिया गया और पुलिस ने उनसे वहां से चले जाने को कहा। प्रदर्शनकरियों ने सरकार के किसी प्रतिनिधि से मिलने और उन्हें अपना ज्ञापन देने की बात कही। प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली सचिवालय की ओर बढ़ने की कोशिश की। तभी पुलिस ने बिना कोई चेतावनी दिए बर्बर तरीके से लाठीचार्ज शुरू कर दिया और प्रदर्शनकारियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। पहले चक्र के लाठीचार्ज में कुछ महिला मजदूर और कार्यकर्ता गंभीर रूप से घायल हो गयीं और सैकड़ों मजदूरों को पुलिस ने दौड़ा लिया। हालांकिबड़ी संख्या में मजदूर वहां बैरिकेड पर रुके रहे और अपना 'मजदूर सत्याग्रहशुरू कर दिया। यद्यपि पुलिस ने कई मजदूरों को वहां से खदेड़ कर भगा दियाफिर भीलगभग 1300 मजदूर वहां जमे हुए थे और उन्होंने अपना सत्याग्रह जारी रखा था। लगभग 700 संविदा शिक्षक सचिवालय के दूसरी ओर थेजो प्रदर्शन में शामिल होने आए थेलेकिन पुलिस ने उन्हें प्रदर्शन स्थल तक जाने नहीं दिया। इसलिए उन्होंने सचिवालय के दूसरी तरफ अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा। मजदूर संगठनकर्ता बार-बार पुलिस से आग्रह कर रहे थे कि उन्हें सचिवालय जाने और अपना ज्ञापन देने दिया जाए। पुलिस ने इससे सीधे इनकार कर दिया। तब संगठनकर्ताओं ने पुलिस को याद दिलाया कि सरकार को ज्ञापन देना उनका संवैधानिक अधिकार है और सरकार इसे स्वीकार करने के लिए बाध्य है। इसके बाद भीपुलिस ने प्रदर्शनकारियों को सचिवालय जाने और अपना ज्ञापन सौंपने नहीं दिया। तकरीबन डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद मजदूरों ने पुलिस को अल्टीमेटम दिया कि यदि आधे घंटे में उन्हें जाने नहीं दिया गया तो वे सचिवालय की ओर बढ़ेंगे। जब आधे घंटे के बाद पुलिस ने उन्हें सचिवालय जाने और अपना ज्ञापन सौंपने नहीं दियाइसके बाद पुलिस ने फिर से लाठीचार्ज किया। इस बार लाठीचार्ज ज्यादा बर्बर तरीके से हुआ।

​मैं पिछले 16 वर्ष से दिल्ली के छात्र आंदोलन और मज़दूर आंदोलन में सक्रिय रहा हूं और मैं कह सकता हूं कि मैंने दिल्ली में किसी प्रदर्शन के विरुद्ध पुलिस की ऐसी क्रूरता नहीं देखी है। महिला मज़दूरों और कार्यकर्ताओं को और मज़दूरों के नेताओं को खासतौर पर निशाना बनाया गया। पुरुष पुलिसकर्मियों ने निर्ममता के साथ स्त्रियों की पिटाई कीउन्हें बाल पकड़कर सड़कों पर घसीटाकपड़े फाड़ेनोच-खसोट की और अपमानित किया। किसी के लिए भी यह विश्वास करना मुश्किल होता कि किस तरह अनेक पुलिसकर्मी स्त्री मज़दूरों और कार्यकर्ताओं को पकड़कर पीट रहे थे। कुछ स्त्री कार्यकर्ताओं को तब तक पीटा गया जब तक लाठियां टूट गयीं या स्त्रियां बेहोश हो गयीं। मज़दूरों पर नजदीक से आंसू गैस छोड़ी गयी।
सैकड़ों मज़दूर इसके विरोध में शांतिपूर्ण सत्याग्रह के लिए ज़मीन पर लेट गयेफिर भी पुलिसवाले उन्हें पीटते रहे। आखिरकार मज़दूरों ने वहां से हटकर राजघाट पर विरोध जारी रखने की कोशिश की लेकिन पुलिस और रैपिड एक्शमन फोर्स ने वहां भी उनका पीछा किया और फिर से पिटाई की। पुलिस ने 17 कार्यकर्ताओं और मज़दूरों को गिरफ्तार किया जिनमें से एक मैं भी था। मेरे एक साथीयुवा कार्यकर्ता अनन्त को हिरासत में लेने के बाद भी मेरे सामने पीटा जाता रहा। पुलिस ने उसे भद्दी-भद्दी गालियां दीं। हिरासत में अन्य कार्यकर्ताओं और मज़दूरों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव जारी रहा। लगभग सभी गिरफ्तार व्यक्ति घायल थे और उनमें से कुछ को गंभीर चोटें आयी थीं।

चार स्त्री कार्यकर्ता शिवानीवर्षावारुणी और वृशाली को हिरासत में लिया गया था और पिटायी में भी उन्हें खासतौर से निशाना बनाया गया था। वृशाली की उंगलियों में फ्रैक्चिर हैवर्षा के पैरों पर बुरी तरह लाठियां मारी गयींशिवानी की पीठ पर कई पुलिस वालों ने बार-बार चोट की और उनके सिर में भी चोट आयी और वारुणी को भी बुरी तरह पीटा गया। चोटों का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि वारुणी और वर्षा को जमानत पर छूटने के बाद 27 मार्च को फिर से अरुणा आसफअली अस्पाताल में भर्ती कराना पड़ा। स्त्री कार्यकर्ताओं को पुलिस वाले लगातार गालियां देते रहें। पुलिसकर्मियों ने स्त्री कार्यकर्ता को जैसी अश्लील गालियां और अपमानजनक टिप्परणियों का निशाना बनाया जिसे यहां लिखा नहीं जा सकता। कार्यकर्ताओं और विरोध प्रदर्शन करने वालों के सम्मान को कुचलने की पुरानी पुलिसिया रणनीति का ही यह हिस्सा था।
गिरफ्तार किये गये 13 पुरुष कार्यकर्ता भी घायल थे और उनमें से को गंभीर चोटें आयी थीं। लेकिन उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए घंटे से ज्यादा इंतजार कराया गया जबकि उनमें से दो के सिर की चोट से खून बह रहा था। आईपी स्टेंट पुलिस थाने में रहने के दौरान कई पुलिस वालों ने हमें बार-बार बताया कि लाठी चार्ज का आदेश सीधे मुख्यपमंत्री कार्यालय से दिया गया था। साथ हीपुलिस की मंशा शुरू से साफ थी : वे विरोध प्रदर्शनकारियों की बर्बर पिटाई करना चाहते थे। उन्होंने हमसे कहा कि इसका मकसद सबक सिखाना था।
अगले दिन स्त्री साथियों को जमानत मिल गयी और 13 पुरुष कार्यकर्ताओं को दो दिन के लिए सशर्त जमानत दी गयी। आई पी स्टेट पुलिस थाने को जमानतदारों और गिरफ्तार लोगों के पते सत्यापित करने के लिए कहा गया। पुलिस गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को 14 दिन की पुलिस हिरासत में लेने की मांग कर रही थी। प्रशासन की मंशा साफ है : एक बार फिर कार्यकर्ताओं की पिटाई और यंत्रणा। पुलिस लगातार हमें फिर से गिरफ्तार करने और हम पर झूठे आरोप मढ़ने की कोशिश में है। जैसा कि अब पुलिस प्रशासन की रिवायत बन गयी हैजो कोई भी व्यवस्था के अन्याय का विरोध करता है उसे 'माओवादी'', ''नक्सलवादी'', ''आतंकवादी'' आदि बता दिया जाता है। इस मामले में भी पुलिस की मंशा साफ है। इससे यही पता चलता है कि भारत का पूंजीवादी लोकतंत्र कैसे काम करता है। खासतौर पर राजनीति और आर्थिक संकट के समय मेंयह व्यंवस्था की नग्न बर्बरता के विरुद्ध मेहनतकश अवाम के किसी भी तरह के प्रतिरोध का गला घोंटकर ही टिका रह सकता है। 25 मार्च की घटनायें इस तथ्य की गवाह हैं।
आगे क्या होना है?
शासक हमेशा ही यह मानने की ग़लती करते रहे हैं कि संघर्षरत स्त्रियोंमज़दूरों और छात्रों-युवाओं को बर्बरता का शिकार बनाकर वे विरोध की आवाज़ों को चुप करा देंगे। वे बार-बार ऐसी ग़लती करते हैं। यहां भी उन्होंने वही ग़लती दोहरायी है। 25 मार्च की पुलिस बर्बरता केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली के मेहनतकश ग़रीबों को एक सन्देश देने की कोशिश थी और सन्देश यही था कि अगर दिल्ली के ग़रीबों के साथ केजरीवाल सरकार के विश्वासघात के विरुद्ध तुमने आवाज़ उठायी तो तुमसे ऐसे ही क्रूरता के साथ निपटा जायेगा। हमारे घाव अभी ताजा हैंहममें से कई की टांगें सूजी हैंउंगलियां टूटी हैंसिर फटे हुए हैं और शरीर की हर हरकत में हमें दर्द महसूस होता है। लेकिनइस अन्याय के विरुद्ध लड़ने और अरविंद केजरीवाल और उसकी 'आपपार्टी की घृणित धोखाधड़ी का पर्दाफाश करने का हमारा संकल्प और भी मज़बूत हो गया है।
ट्रेडयूनियनोंस्त्री संगठनों और छात्र संगठनों तथा हज़ारों मज़दूरों ने हार मानने से इंकार कर दिया है। उन्होंने घुटने टेकने से इंकार कर दिया है। हालांकि उनके बहुत से कार्यकर्ता अब भी चोटिल हैं और हममें से कुछ ठीक से चल भी नहीं सकते,फिर भी उन्होंने दिल्ली भर में भंडाफोड़ अभियान शुरू कर दिये हैं। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली की मज़दूर आबादी के साथ घिनौना विश्वासघात किया है जिन्हों ने 'आपपर बहुत अधिक भरोसा किया था। दिल्ली की मेहनतकश आबादी आम आदमी पार्टी की धोखाधड़ी के लिए उसे माफ नहीं करेगी। मेरे ख्याल से आम आदमी पार्टी का फासीवादकम से कम थोड़े समय के लिए,भाजपा जैसी मुख्‍य धारा की फासिस्ट पार्टी से भी ज्यादा खतरनाक हैऔर मैंने 25 मार्च को खुद इसे महसूस किया। और इसका कारण साफ है। जिस तरह कम से कम तात्कालिक तौर पर छोटी पूंजी बड़ी पूंजी के मुकाबले अधिक शोषक और उत्पीड़क होती हैउसी तरह छोटी पूंजी का शासनकम से कम थोड़े समय के लिए बड़ी पूंजी के शासन की तुलना में कहीं अधिक उत्पीड़क होता है और आप की सरकार छोटी पूंजी की दक्षिणपंथी पापुलिस्टस तानाशाही का प्रतिनिधित्व करती हैऔर बेशक उसमें अंधराष्ट्रवादी फासीवाद का पुट भी है।25 मार्च की घटनाओं ने इस तथ्य को साफ जाहिर कर दिया है।

जाहिर है कि केजरीवाल घबराया हुआ है और उसे कुछ सूझ नहीं रहा। और इसीलिए उसकी सरकार इस तरह के कदम उठा रही है जो उसे और उसकी पार्टी को पूरी तरह नंगा कर रहे हैं। वह जानता है कि दिल्ली की ग़रीब मेहनतकश आबादी से किये गये वादे वह पूरा नहीं कर सकता हैखासकर स्था‍यी प्रकृति के कामों में ठेका प्रथा खत्मा करनाक्योंकि अगर उसने ऐसा करने की कोशिश भी कितो वह दिल्लीं के व्यापारियोंकारखाना मालिकों,ठेकेदारों और छोटे बिचौलियों के बीच अपना सामाजिक और आर्थिक आधार खो बैठेगा।'आपके एजेंडा की यही खासियत है : यह भानुमती के पिटारे जैसा एजेंडा है (साफ तौर पर वर्ग संश्रयवादी एजेंडा) जो छोटे व्यापारियोंधनी दुकानदारोंबिचौलियों और प्रोफेशनल्स/स्‍वरोजगार वाले निम्न बुर्जुआ वर्ग के अन्य हिस्सों के साथ ही झुग्गीवासियोंमज़दूरों आदि की मांगों को भी शामिल करता है। यह अपने एजेंडा की सभी मांगों को पूरा कर ही नहीं सकताक्यों कि इन अलग-अलग सामाजिक समूहों की मांगें एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत हैं। आप की असली पक्षधरता दिल्लीं के निम्न बुर्जुआ वर्ग के साथ है जो कि आप के दो महीने के शासन में साफ जाहिर हो चुका है। 'आपवास्तव में और राजनीतिक रूप से इन्हीं परजीवी नवधनाढ्य वर्गों की पार्टी है। 'आम आदमीकी जुमलेबाजी सिर्फ कांग्रेस और भाजपा से लोगों के पूर्ण मोहभंग से पैदा हुए अवसर का लाभ उठाने के लिए थी। चुनावों होने तक यह जुमलेबाजी उपयोगी थी। जैसे ही लोगों ने 'आपके पक्ष में वोट दियाकिसी विकल्प के अभाव मेंअरविंद केजरीवाल का असली कुरूप फासिस्ट चेहरा सामने आ गया।
आंतरिक तौर पर भीकेजरीवाल धड़े और यादव-भूषण धड़े के बीच जारी सत्ता संघर्ष के चलते 'आपकी राजनीति नंगी हो गयी है। इसका यह मतलब नहीं कि अगर यादव धड़े का वर्चस्व होतातो दिल्ली के मेहनतकशों के लिए हालात कुछ अलग होते। यह गंदी आंतरिक लड़ाई 'आपके असली चरित्र को ही उजागर करती है और बहुत से लोगों को यह समझने में मदद करती है कि 'आपकोई विकल्प़ नहीं है और यह कांग्रेसभाजपासपाबसपा,सीपीएम जैसी पार्टियों से कतई अलग नहीं है। खासतौर परदिल्ली के मज़दूर इस सच्चाई को समझ रहे हैं। यही वजह है कि 25 मार्च को ही पुलिस बर्बरता और केजरीवाल सरकार के विरुद्ध दिल्ली के हेडगेवार अस्पताल के कर्मचारियों ने स्वत:स्फू्र्त हड़ताल कर दी थी। दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के मज़दूरोंअन्य अस्पतालों के ठेका मज़दूरोंठेके पर काम करने वाले शिक्षकोंझुग्गीवासियों और दिल्ली के ग़रीब विद्यार्थियों और बेरोजगार नौजवानों में गुस्सा सुलग रहा है। दिल्ली का मज़दूर वर्ग अपने अधिकार हासिल करने और केजरीवाल सरकार को उसके वादे पूरे करने के लिए बाध्य करने के लिए संगठित होने की शुरुआत कर चुका है। मज़दूरों को कुचलने की केजरीवाल सरकार की बौखलाहट भरी कोशिशें निश्चित तौर पर उसे भारी पड़ेंगी।
मज़दूरछात्र और स्त्री संगठनों ने दिल्ली के विभिन्न मेहनतकश और ग़रीब इलाकों में अपना भंडाफोड़ अभियान शुरू कर दिया है। अगर 'आपसरकार दिल्ली के ग़रीब मेहनतकशों से किये गये अपने वादे पूरे करने में नाकाम रहती है और हजारों स्त्रियों,मज़दूरों और छात्रों पर किये गये घृणित और बर्बर हमले के लिए माफी नहीं मांगती है तो उसे दिल्ली के मेहनतकश अवाम के बहिष्कार का सामना करना होगा। 25 मार्च को हम परदिल्ली के मज़दूरोंस्त्रियों और युवाओं पर की गयी हरेक चोट इस सरकार की एक घातक भूल साबित होगी।

इस बर्बर लाठीचार्ज से जुड़ी अन्‍य फोटोवीडियो व न्‍युज कवरेज को देखने के लिए इस लिंक पर जायें - http://www.mazdoorbigul.net/archives/7076

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