Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Tuesday, April 28, 2015

तुम्हें विदा करते हुए बहुत उदास हूँ सुनील... हमारे सहकर्मी,हमारे स्वजन अमर उजाला हलद्वानी के संपादक सुनील साह नहीं रहे


तुम्हें विदा करते हुए बहुत उदास हूँ सुनील...

हमारे सहकर्मी,हमारे स्वजन अमर उजाला हलद्वानी के संपादक सुनील साह नहीं रहे

पलाश विश्वास

राजीवलोचन साह,हमारे राजीव दाज्यू के फेसबुक वाल पर अभी अभी लगा है वह समाचार,जिसकी आशंका से हमारे वीरेनदा कल फोन पर आंसुओं से सराबोर आवाज में कह रहे थे, सुनील वेंटीलेशन पर है और कल डाक्टरों ने जवाब दे दिया है।वीरेनदा की तबियत बदलते हुए मौसम की तरह है।

बोले तुर्की जाकर देख आया।हमारी हिम्मत नहीं हुई।

राजीव दाज्यू के मित्र सुनील साह पुराने हैं।नैनीताल से जुड़ी सुनील साह बरसो से हल्द्वानी में है।

पिछले जाड़ों में हम सुनील साह,हरुआ दाढ़ी,चंद्रशेखर करगेती और हमारे गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी से मिलने नैनीताल से हल्द्वानी निकलने वाले ही थे कि पद्दो का घर से अर्जेंटपोन आ गया और हम हल्द्वानी बिना रुके बसंतीपुर पहुंच गये।

आज सुबह जब हमने सविता को बताया कि सुनील की हालत बहुत खराब है तो सविता कहने लगी कि जिन दोस्तों के भरोसे तुम हल्द्वानी रुक बिना चले आये,उन्होंने तो हम लोगों की ऐसी तैसी कर दी।हम अपने मित्र स्वजन से आखिरी बार मिलने से रह गये।

राजीवदाज्यू के सौजन्य से मिला समाचार पढ़कर तुरंत सविता को सुनाया तो वह भी मातम में है।

कल रात हमने अमलेंदु से भी कहा था कि वीरेनदा से खबर मिली कि सुनील गंगाराम अस्पताल में वेंटीलेशन पर है ,जरा हो सके तो देखकर आना।अमलेंदु से आज पूछने का मौका भी नहीं मिला और न दिल्ली के दूसरे मित्रों से बातचीत करने का व्कत मिला और हमारे सहकर्मी,हमारे मित्र सुनील साह चले गये।

राजीव दाज्यू ने लिखा हैः


अभी-अभी 'अमर उजाला' हल्द्वानी के सम्पादक सुनील शाह के देहान्त की खबर जगमोहन रौतेला ने दी. मैं स्तब्ध रह गया. सुनील की अधिकांश पत्रकारिता 'अमर उजाला' में ही हुई। हालाँकि उसने जनसत्ता और हिन्दुस्तान आदि में भी काम किया।

मैं उसे 'पत्रकारिता का कीड़ा' कहता था, क्योंकि दैनिक अखबारों की दृष्टि से वह लगभग सम्पूर्ण पत्रकार था। वीरेन डंगवाल को बरेली में उसके कारण इतना आराम रहता कि वह मजे-मजे में बाकी काम करते रहता था।

चूँकि मेरी 'अमर उजाला' से ज्यादा ठनी ही रही, अतः सुनील भी उसकी चपेट में आता रहा। हम में लम्बे अबोले भी रहे, वह खबरों से मेरे नाम भी काटता रहा। लेकिन यह भी सच है कि जिन्दगी में एकमात्र बार उसी के कहने से पहली बार मैंने एक अखबार, 'अमर उजाला', के लिये बाकायदा संवाददाता का काम किया…

राजीव दाज्यू ने लिखा हैः
तुम्हें विदा करते हुए बहुत उदास हूँ सुनील…

हम भी बहुत उदास हैं..

अमर उजाला दफ्तर के अलावा वीरेनदा के घर,सुनील के बरेली कैंट स्थित घर,दूसरे तमाम मित्रों के यहां हम लोग एक साथ देश दुनिया की फिक्र में लगे रहे।वह हमारे परिजनों में थे।

शादी उनने हमारे कोलकाता आने के बाद की।उन भाभी जी को हमने अभीतक देखा भी नहीं है और सुनील चले गये।

वीरेनदा और हमारी तरह अराजक किस्म के नहीं,बेहद व्यवस्थित थे सुनील।मां बाप बरेली में अकेले थे,तो जनसत्ता का राष्ट्रीय मंच से निकलकर बेहिचक बरेली में वे मां बाप के पास चले आये।मालिकान से हमारी बात बात पर ठन जाती थी।

बिगड़ी बात बनाने वाले थे सुनील साह।वीरेनदा और हमें डांटने से भी हिचकते न थे।

वीरेनदा जब हमें कोलकाता भेजने पर तुले हुए थे,तब उसके प्रबल विरोधी थे सुनील साह।उसने हर संभव कोशिश की कि हम अमर उजाला में ही रहे।

आखिरी बार जब उससे मुलाकात हुई।मैं बसंतीपुर जाते हुए बरेली में रुका और अमरउजाला में तब वीरेनदा संपादक थे।अतुल माहेश्वरी तब भी जीवित थे।राजुल शायद तब नागपुर गये हुए थे।
तब बनारस से अमर उजाला निकलने ही वाला था।वीरेनदा के बजाय सुनील हमसे बार बार कहते रहे कि मैं तुरंत अतुल माहेश्वरी से फाइनल करके बनारस अमर उजाला संभाल लूं। बाद में हमारे ही मित्र राजेश श्रीनेत वहां चले गये।अतुल से हमारी बात इसलिए हो न सकी कि सविता किसी कीमत पर जनसत्ता छोड़ने केखिलाफ थीं।

कल अचानक मेंल पर वीरेनदा का संदेश आया कि फोन कट गया।

रात के नौ बजे दफ्तर पर मैंने मेल खोला तो यह संदेश देखते ही वीरेनदा को फोन लगाया।वीरेनदा बेहद परेशान थे,इसीलिए उनने यह मैसेज लगाया।

हमने पूछा कि क्या हुआ तो बोले कि फोन पर नेट नहीं आ रहा है।हस्तक्षेप पढ़ नहीं पा रहा लगातार।इसीलिए यह संदेश लगाया।

वे नीलाभ को धारावाहिक छापने पर बेहद खुश हैं।बोले भी,ससुरा गजब का लिखने वाला ठैरा।उससे और लिखवाओ।

वे हमारी दलील से सहमत भी हैं कि मीडिया का मतलब पत्रकारिता नहीं है,सारे कला माध्यम है,जिनका साझा मंच होना चाहिए।

जरुरी बातें खत्म होते न होते वीरेनदा ने फिर कहा कि बेहद परेशान हूं।सुनील की हालत बैहद खराब है।मैं तो जैसे आसमान से गिरा।

वीरेनदा नेे बताया कि उसे एक्लीडेंट के बाद इंफेक्शन हो गया है और न्यूमोनिया भी।

हमने कहा कि न्यूमोनिया तो कंट्रोल हो सकता है।फिक्र की बात नहीं है।

फिर मैंने पूछा कि कहीं सुनील को सेप्टोसिमिया तो नही हो गया है।

इसपर वीरेन दा सिर्फ रोये नहीं,लेकिन मुझे उनकी रुला ई साफ साफ नजर आ रही थी।

बोले कि क्या ठीक होगा।दो दिनों से वेंटीलेशन पर है और कल डाक्टरों ने जवाब भी दे दिया।

रातभर हम मनाते रहे और आज देर तक पीसी के मुखातिब नहीं हुआ कि सुनील सकुशल वापस लौटें।

ऐसा हो नहीं सका और सुनील बिना मिले चल दिये।

हम तुम्हारे जाने से बेहद उदास हैं सुनील।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors