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Friday, August 31, 2012

अपने वतन में पराए

अपने वतन में पराए

Friday, 31 August 2012 10:31

प्रफुल्ल कोलख्यान 
जनसत्ता 31 अगस्त, 2012: अपने मूल भाषा-क्षेत्र से बाहर रह कर छोटे-मोटे रोजगार और खुदरा कारोबार में लगे लोगों को 'बाहरी' होने का भारी दबाव झेलना पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि राज्य सरकारों की निगाह में राज्य से बाहर के लोग बोझ होते हैं जिनके नागरिक अधिकार सुनिश्चित करना उनका दायित्व नहीं है। 
भारतीय राजनीति इस समय चुनाव जीतने की तात्कालिकता में सांस ले रही है। चुनावी तात्कालिकता और भारतीयता के विन्यास को बचाए रखने की दीर्घकालिकता के बीच संतुलन को साधने के धैर्य का अभाव कमोबेश सभी राजनीतिक दलों में  दिखाई देता है। राजनीतिक दलों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण भी यह अभाव उनका सामान्य चरित्र बन गया है। यहां नागरिक जमात की एक गहरी भूमिका बन सकती है। लेकिन नागरिक जमात इस समय भ्रष्टाचार के मुद््दे पर केंद्रित होकर भी भ्रष्टाचार के मूल कारणों की उपेक्षा ही कर रही है। कहना न होगा कि भ्रष्टाचार का गहन संबंध मुनाफेबाजी से है। बाजार के नए व्याकरण में शुभ तो गायब हो ही गया है लाभ भी चुपके से मुनाफाखोरी में बदल गया है। कारण कुछ भी हो, स्थिति यह है कि नागरिक जमात फिलहाल इस पर लगभग चुप ही है।
आजादी के आंदोलन के दौरान भारतीयता नए स्तर पर संगठित हो रही थी। कुछ छोटे कालखंडों को छोड़ दिया जाए तो भारत कभी एक राजनीतिक इकाई नहीं था। इसके बावजूद आजादी के आंदोलन के दौरान स्थानीय समस्याओं के निदान के लिए राजनीति राष्ट्रीयता की ओर बढ़ती थी और आज की स्थिति यह है कि वह राष्ट्रीय समस्याओं का हल क्षेत्रीयता में ढंूढ़ती है। भारत एक राजनीतिक इकाई न होने की स्थिति में भी हमेशा एक सांस्कृतिक इकाई रहा है।
भारत बड़ा और सांस्कृतिक रूप से जटिल संरचना वाला देश है। पुराने को बनाए रखते हुए नए का समावेशन इसकी सांस्कृतिक विशेषता है। कोशिश करने पर भी अनुपयोगी और अप्रासंगिक हो चुके कई पुराने जीवन-प्रसंगों से भारतीय संस्कृति का पिंड छूटता नहीं और नए मूल्यबोध से भारतीय संस्कृति अलग-थलग रह नहीं पाती है। इसलिए यह बोझिल, जटिल और अंतर्विरोधी भी है। यह इसकी बनावटका अपना अनिवार्य वैशिष्टय है। जब नजर पुरानेपन पर ठिठक जाती है तब यह निष्कर्ष मिलने लग जाता है कि भारत बिल्कुल नहीं बदल रहा है। जब नजर नएपन से चौंधिया जाती है तो लगने लगता है कि पुराना जो भी था नष्ट हो गया। कबीर को याद करें तो इन दोनों राह न पाई। सच तो यह है कि पूरी दुनिया के साथ भारत भी बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इस बदलाव में अच्छा और बुरा दोनों शामिल हैं। 
इस बदलाव की भाषा को पढ़ा जाना चाहिए। खासकर इसकी राष्ट्रीय संरचना में हो रहे बदलाव के संकेतों को पढ़ा जाना इसलिए भी जरूरी है कि आज का हासिल भारत राष्ट्रवाद के उपकरणों से निर्मित है। पूरी बीसवीं सदी दुनिया में राष्ट्रवाद के बोलबाले की सदी रही है। इक्कीसवीं सदी बाजारवाद की सदी है। राष्ट्रवाद और बाजारवाद के अंतर्विरोध, अंतर्घात और अंतर्मिलन से राष्ट्रीय संरचना में हो रहे बदलाव का गहरा संबंध है।
राष्ट्रवाद का गहरा संबंध मानव-श्रम की तुलना में मशीन के बढ़ते वर्चस्व से रहा है। यहां याद करना प्रासंगिक है कि औद्योगिक क्रांति के दौर में मशीन के इस्तेमाल से उत्पादन प्रक्रिया में जबर्दस्त तेजी आई। इसके कारण प्रचुर मात्रा में कच्चे माल को लाने और बड़े पैमाने पर तैयार माल को खपाने की जरूरत पैदा हुई। उत्पाद का संबंध मनुष्य की जरूरत से ज्यादा मुनाफे से होता गया। औद्योगिक और व्यापारिक पूंजी, दोनों ही मुनाफे से संचालित होने लगीं। औपनिवेशिक शक्तियों की सक्रियता बढ़ी। इससे राष्ट्रवाद एक ऐसी राजनीतिक संरचना के रूप में विकसित हुआ जो औपनिवेशिक शक्तियों को भी मजबूत बनाता था और उनके चंगुल से बचाव की भी प्रेरणा बनता था। कहने की जरूरत नहीं कि पूंजी में राष्ट्रीयता का तत्त्व शामिल हो गया। 
पूंजी में निहित मुनाफे की आकांक्षा के टकरावों को पूंजी की राष्ट्रीयताओं के टकरावों में बदलते देर नहीं लगी। फलस्वरूप दुनिया को विश्व-युद्धों की त्रासदी से गुजरना पड़ा। विश्व-पूंजी ने इससे कुछ सबक भी ग्रहण किया। पूंजी की महत्त्वाकांक्षा को युद्ध से परहेज नहीं है। लेकिन विश्व-ध्वंस से उसे अवश्य डर लगता है। विभिन्न राष्ट्रों के एटमी हथियारों से लैस हो जाने से इस विध्वंस के खतरे में होने वाली अतिरिक्त वृद्धि का पाठ पूंजीवाद के लिए बहुत मुश्किल नहीं था। हालांकि 1946 से ही परमाणु अप्रसार के प्रयास हो रहे थे, लेकिन दुनिया के एक-ध्रुवीय बनने की ओर बढ़ने के ठीक पहले परमाणु अप्रसार के उपायों पर बहुत जोर दिया जाने लगा। 
दुनिया भर में पूंजीवाद की राजनीतिक जरूरतों के अनुसार राष्ट्रवाद विकसित हुआ और राष्ट्रवाद की राजनीतिक जरूरत के अनुसार जनतंत्र। लेकिन पूंजीवाद और जनतंत्र में आत्म-विरोध है। पूंजीवाद अनिवार्य रूप से विषमता का आधार तैयार करता है, जबकि यथासंभव समता जनतंत्र के प्राण का मूलाधार है। पूंजीवाद जनतंत्र को समता की ओर नहीं बढ़ने देता। लेकिन समता की ओर बढ़ने का प्रयत्न करते हुए दिखे बिना जनतंत्र अपनी विश्वसनीयता ही नहीं बना पाता। 
जनतंत्र को अपनी विश्वसनीयता कायम करने के लिए जरूरी है कि वह समता की ओर भले न बढ़े, पर इसका प्रयास करता हुआ दिखे अवश्य। कपट लंबे समय तक नहीं चलता। एक समय के बाद यह कपट प्रकट होने लगा और जनतंत्र की विश्वसनीयता कम होने लगी।
जनतंत्र का क्षरण राष्ट्रवाद को धीरे-धीरे निरर्थक बना देता है। राष्ट्रवाद की सिकुड़न से बनने वाली राजनीतिक शून्यता को साम्राज्यवाद बाजारवाद से भरने की कोशिश करता है। जनतंत्र का स्थानापन्न बन कर आने वाला बाजारवाद स्वाभाविक रूप से जनकल्याण का आश्वासन लेकर आता है। इसको विकास के मुहावरे में समझा और समझाया जाता है। 

अब चूंकि जनकल्याण का प्राण विकास में बसता है और विकास को बाजारवाद ही सुनिश्चित कर सकता है, इसलिए खुद सिद्ध हो जाता है कि जनकल्याण का रास्ता बाजारवाद से होकर ही गुजरता है। विकास के नए वातावरण में भारत बदल रहा है। इसके कारण भारत की अंदरूनी हलचल और बेचैनी बढ़ रही है। इसे समझने का प्रयास जरूरी है।
आजादी के आंदोलन के दौरान और आजादी मिलने के बाद पहले दौर में भारत की राष्ट्रीय संरचना राष्ट्रवाद और जनतंत्र के सापेक्ष विकसित हुई। यह संरचना अब बाजारवाद और विकास की सापेक्षता में बदल रही है। जाहिर है, इस बदलाव को समझने के लिए विकास के चरित्र को समझना होगा। विकास के लिए चाहिए पूंजी। चूंकि राष्ट्र ही सिकुड़ रहा है इसलिए स्वाभाविक है कि पूंजी की राष्ट्रवादी पहचान भी खत्म हो रही है। पूंजी है देशी-विदेशी पूंजीपतियों के पास। पूंजी चाहे देशी हो या विदेशी, उसका स्वाभाविक लक्ष्य है निष्कंटक मुनाफा। यह मुनाफे का कांटा ही था जिसके चलते पश्चिम बंगाल में लगा कारखाना उखड़ कर अपेक्षया निष्कंटक मुनाफा-क्षेत्र गुजरात चला गया। मुनाफे के कांटे पर भी गौर करना जरूरी है। 
जिस तरह पूंजी का लक्ष्य होता है निष्कंटक मुनाफा, उसी तरह आम आदमी का लक्ष्य होता है निर्बाध रोजगार। हमारी सरकारों की राजनीतिक कुशलता यह होनी चाहिए कि वे मुनाफे के कांटों और रोजगार की बाधाओं, दोनों को व्यावहारिक स्तर पर कम करें। कठिनाई यह है कि मुनाफे के कांटे कम करने पर रोजगार निर्बाध नहीं रह पाता। रोजगार की बाधाओं को कम किया जाए तो मुनाफा में कांटे बढ़ जाते हैं। यहीं राजनीतिक कुशलता की जरूरत होती है। एक बात और समझने की है कि पूर्णत: अंतर्विरोध-मुक्त सिर्फ यूटोपिया होता है। जीवन को अंतर्विरोधों में सामंजस्य साधते हुए ही आगे बढ़ना पड़ता है। 
राष्ट्रवाद के दौर से बाहर निकलते ही क्षेत्रीयता, राष्ट्रीयता और नागरिकता के अंतर्संबंध में एक भिन्न तरह का तनाव उत्पन्न हो रहा है। इसके कारकों को समझना होगा। भारत के सभी क्षेत्रों में एक तरह की विकास प्रक्रिया नहीं चल रही है। सभी क्षेत्रों में जनसंख्या और राजनीतिक गुणवत्ता भी एक जैसी नहीं है न कुदरती और सांस्कृतिक समृद्धि एक जैसी है। जाहिर है, शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, आवास, रोजगार सहित सामाजिक सुरक्षा और नागरिक अधिकार की उपलब्धता सभी जगह एक जैसी नहीं है। 
नागरिकता राष्ट्रीय है, लेकिन नागरिक अधिकार से जुड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन, आवास, रोजगार सहित सामाजिक सुरक्षा के अधिकार की उपलब्धता एक क्षेत्रीय प्रसंग बनती जा रही है। रोजगार और बेहतर जिंदगी की तलाश में लोग पूरी दुनिया का चक्कर लगाते हैं। भारत के एक क्षेत्र के लोग दूसरे क्षेत्र में अधिकारपूर्वक जाते हैं। लेकिन नागरिक अधिकार के क्षेत्रीय प्रसंग बनते जाने से अपने मूल क्षेत्र से बाहर रहने वाले लोगों को कदम-कदम पर यह अहसास होने लगा है कि उनका नागरिक अधिकार मूल निवासियों से कमतर है। वैधानिक स्थिति चाहे जो हो, वास्तविक स्थिति यही है।
चुनाव में प्राप्त वोट-प्रतिशत या अपनी विचारधारा के तर्क पर खुद को राष्ट्रीय दल बताने वालों में भी क्षेत्रीयता का मनोभाव बढ़ रहा है, क्षेत्रीय दलों में तो वह है ही। राष्ट्रवाद के दायरे से बाहर निकल कर बाजारवाद के परिसर में प्रवेश करने के उपक्रम में राष्ट्रीय संरचना बुरे अर्थ में क्षेत्रीयता के दबाव में है। अधिकतर मामलों में राज्य सरकारें न सिर्फ क्षेत्रीयता के दबाव में काम कर रही हैं, बल्कि क्षेत्रीय भावनाओं को खतरनाक ढंग से उभारे रखने की कोशिश भी लगातार करती रहती हैं। 
राजनीतिक विकास-क्रम को देखने पर यह बात बिल्कुल साफ हो जाती है कि केंद्र में किसी एक दल की सरकार बनने के दिन नहीं रहे। भारतीय राज्य और भारतीय संघ के पारस्परिक संबंध को व्याख्यायित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के साक्ष्य से यह प्रमाणित है कि भारत की राष्ट्रीय संरचना का मूल चरित्र एकात्मक है। राष्ट्र के एकात्मक होने और सरकार के संघात्मक बनने की संभावनाओं के कारण तीखा अंतर्विरोध उभर रहा है। राष्ट्र और सत्ता की संरचना पर इसका दूरगामी असर पड़ सकता है। तात्कालिक असर तो अपने मूल राज्य से बाहर निकल कर छोटे-मोटे रोजगार तलाशने या खुदरा कारोबार करने वालों पर दिखने लगा है। 
एक तरफ खुदरा क्षेत्र में बड़ी-बड़ी देशी-विदेशी कंपनियों के लिए जगह बनाने की कोशिश हो रही है, तो दूसरी ओर, अपने ही राज्य में छोटे-मोटे कारोबारियों के लिए जगह कम पड़ रही है। ऐसे में भिन्न राज्य से रोजगार या खुदरा कारोबार की तलाश में आने वाले भारतीय नागरिक को बाहरी बता कर व्यावहारिक स्तर पर बाहर कर देने की स्थिति बन रही है। इसमें जो प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं उनसे नागरिक अधिकार खंडित होता है। 
यहां राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों की एक सकारात्मक भूमिका के लिए महत्त्वपूर्ण जगह है। लेकिन क्षेत्रीयता की भावनाएं उभार कर अपना हित साधने में लगे राजनीतिक दलों और क्षेत्रीयता के दबाव में काम करने वाली सरकारों से इस सकारात्मक भूमिका की अपेक्षा कैसे की जाए! इस मामले में स्थिति काबू से बाहर होने के पहले ही राष्ट्र को कानूनी प्रावधान करने के बारे में सोचना चाहिए।

Fwd: [initiative-india] प्रेस नोट: भ्रष्टाचार जांच प्रकरण में म. प्र. हाई कोर्ट के सक्त आदेश:



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From: NAPM India <napmindia@napm-india.org>
Date: 2012/8/31
Subject: [initiative-india] प्रेस नोट: भ्रष्टाचार जांच प्रकरण में म. प्र. हाई कोर्ट के सक्त आदेश:
To:


जबलपुर ३१ अगस्त, २०१२:                                                                                                         प्रेस नोट 

भ्रष्टाचार  जांच  प्रकरण  में  मध्य  प्रदेश  हाई  कोर्ट  ने  

राज्य  शासन  को  दिया  सक्त  आदेश


भ्रष्टाचार  जांच  सम्बंधित  अधिकारियों  के  तबादले  के  न्या . 

झा  जांच आयोग की  मांग  पर  राज्य  शासन  जवाब  दे


राज्य  शासन आयोग   को  पूरी  अर्थ  सहायता  प्रदान करे 


हाई  कोर्ट  ने . झा  जांच आयोग  से २ महीनों में माँगा प्रगति  अहवाल 


जबलपुर ३१ अगस्त, २०१२: आज  मध्य  प्रदेश  उच्च  न्यायालय  के  माननीय  न्या . श्री  के. के. लाहोटी जी और  माननीय न्या . श्री  अजीत  सिंह  जी  के   खंडपीठ  ने  नर्मदा  बचाओ  आन्दोलन  की   भ्रष्टाचार  सम्बन्धी जन  हित  याचिका  के अंतर्गत   दाखिल   की   गयी   विभिन्न    अंतरिम   अर्जियों   और मा. न्या झा आयोग के पत्रों   के आधार  पर कुछ  महत्वपूर्ण  आदेश पारित  किये |


आज सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता  नर्मदा  बचाओ आन्दोलन  की तरफ  से सामाजिक कार्यकर्ता मेधा  पाटकर  ने न्यायालय  को गंभीरता  के  साथ   सूचित  किया  कि  13 - 4 - 2011 को ही , याने कि16 महीने  पूर्व  से , झा आयोग ने प्रमुख  सचिव , मध्य  प्रदेश  शासन को एक  पत्र  लिखकर  मांग की थी  कि बड़वानी , धार  और खरगोन  जिलों   में पदस्थ  सभी  पुनर्वास सम्बन्धी अधिकारी  - कर्मचारी  जिनका कार्य फर्जी  रजिस्ट्री   जांच में शामिल  है , उन्हें  डूब क्षेत्र से अन्यत्र स्थानों पर तबादला किया जाए, ताकि जाँच किसी भी तरीके से प्रभावित न हो | 


मगर अपने ही अधिकारियों द्वारा किये गए  भ्रष्टाचार को उजागर करने में राज्य  सरकार क़ी उदासीनता के कारण, आज तक इस पत्र पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं की गयी है | आन्दोलन ने भी याचिका लगाकर, महत्वपूर्ण दस्तावेज एवं  गवाहों को प्रभावित करने वाले सभी पुनर्वास सम्बन्धी अधिकारी  - कर्मचारी के तबादले क़ी  मांग अप्रैल, २०११ से क़ी है | दोनों पक्षों की बात सुनकर, मा. खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि झा आयोग के उक्त  पत्र पर शासन द्वारा क़ी गयी कार्यवाही के सम्बन्ध में १४  सितम्बर , २०१२ तक शपथ  पत्र प्रस्तुत करे | 


सरदार  सरोवर  विस्थापितों  के  पुनर्वास  के  विविध  मुद्दों  पर  ४ सालों से चल  रही  झा आयोग की जांच में आ  रही आर्थिक और संसाधन  सम्बन्धी कठिनाइयों  के बारें  में  खंडपीठ  ने राज्य  शासन को सक्त   आदेश दिया  कि  आयोग    द्वारा  समय  - समय   पर मांगी  जा  रही सम्पूर्ण राशि  उसे   तत्काल   उपलब्ध   किया  जाए  | मेधा पाटकर ने आयोग के ही पत्र से पढ़ते हुए, बताया कि आयोग को आज भी काम करने के लिए लाखों रुपयों क़ी ज़रुरत है, जो उसे नहीं मिल  रहे हैं  | आयोग का आरोप है कि सामान्य प्रशासन विभाग के मुख्य  सचिव द्वारा सहयोग नहीं करना ही इसका कारण है | 


खंडपीठ ने झा आयोग को भी आदेश दिया कि अभी तक उसे उच्च  न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के तहत सौंपे  गए  कार्य तथा उसकी प्रगति के सम्बन्ध में और २ महीनों के अन्दर एक संक्षिप्त अहवाल प्रस्तुत  करे | आन्दोलन इन महत्वपूर्ण आदेशों का स्वागत करता  है | 


मध्य  प्रदेश  सरकार  की तरफ  से अधिवक्तआ  अर्पण  पवार  ने पक्ष  रखा  |  याचिकाकर्ता    की तरफ से मेधा पाटकर  ने न्यायालय  के सामने  हकीकत   प्रस्तुत  की | अगली  सुनवाई १४  सितम्बर , २०१२ को रखी  गयी  है  


राहुल यादव                           कैलाश अवास्या                             श्रीकांत 


संपर्क : ०९१७९१४८९७३ / ०७२९०-२९१४६४ 

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Fwd: invitation for the programme of Seema Azad and Vishwavijay in JNU



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From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: Sat, Sep 1, 2012 at 3:55 AM
Subject: Fwd: invitation for the programme of Seema Azad and Vishwavijay in JNU
To: panini.anand@gmail.com


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From: banojyotsna ... <banojyotsna@gmail.com>
Date: Fri, Aug 31, 2012 at 11:51 PM
Subject: invitation for the programme of Seema Azad and Vishwavijay in JNU


friends
attached is the invitation for a convention organized by Revolutionary Cultural Front which will be held on the 3rd of September in SSS Auditorium JNU at 2pm. The convention titled "Uthane hi honge abhivyakti ke khatre: daman ke khilaf pratirodh ki sanskriti" is going to be an attempt to challenge the escalating state repression on democratic and cultural activists by the state. the speakers who will address the convention are going to be noted writers, poets, civil rights activists many of whom have faced state repression themselves. the main speakers will be

Seema Azad Vishwavijay Anjani Manager pandey Pankaj Bisht Mangalesh Dabral Madan Kashyap Ranjit Verma Neelabh Ashq Anuj Lugun Kapilesh Bhoj Prashant Rahi Vidrohi

we cordially invite you to come and join the programme and raise your voice against the ongoing state repression and onslaught on freedom of expression


with revolutionary greetings

Revolutionary Cultural Front, JNU

 



विकास कथा देश पर काबिज प्रोमोटर बिल्डर राज की सही अभिव्यक्ति!

विकास कथा देश पर काबिज प्रोमोटर बिल्डर राज की सही अभिव्यक्ति!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि जीडीपी की विकास दर में सालाना आधार पर भले ही गिरावट दिखाई दे रही है, पर तिमाही स्तर पर देखा जाए तो यह यह जनवरी-मार्च के 5.3 फीसदी के स्तर से बढ़कर 5.5 फीसदी पर आ गई है। यह छोटी ही सही, पर राहत की बात है। भारत के वित्तमंत्री को औद्योगिक विकास दर या कृषि विकास दर में गिरावट की परवाह नहीं है क्योंकि निर्माण क्षेत्र में विकास दर दहाई​ ​ में है। देश पर काबिज प्रोमोटर बिल्डर राज की सही अभिव्यक्ति है यह। घोटालों से सरकार त्रस्त है औ मैच फिक्सिंग के तहत संसद ठप है।अर्थ व्यवस्था पटरी पर कैसे आयेगी , इसकी चिंता किसी को नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने दैनिक ३२ रुपए के गरीबी के पैमाने की समीक्षा करने से ​​इंकार कर दिया। राजनीतिक डांवाडोल और पस्त आर्थिक हाल में इस देश का क्या होगा, तिरुपति में पूजा करते हुए वित्तमंत्री ने सोचा होता, तो शायद बेहतर होता।पिछले साल की चौथी तिमाही में विकास दर 5.3% रही थी। साल 2011-12 की पहली तिमाही में विकास दर 8.0% थी। पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र (Agriculture) विकास दर साल-दर-साल 3.7% से घट कर 2.9% हो गयी है। उत्पादन (मैन्युफैक्चरिंग) की वृद्धि दर 7.3% से घट कर 0.2% पर आ गयी। हालाँकि खनन क्षेत्र की विकास दर -0.2% से बढ़ कर 0.1% हो गयी। जीडीपी की खबर के बाद शेयर बाजार की गिरावट में कमी आयी।विनिर्माण और खनन में मंदी के बावजूद निर्माण और वित्तीय क्षेत्रों में सेवाओं की मदद से मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को बल मिला। हालांकि विनिर्माण का प्रभाव परिवहन क्षेत्र की सेवाओं पर पड़ा जिसकी विकास दर व्यापार, होटल और संचार के समान ही अप्रैल से जून तिमाही में कम होकर 4 फीसदी पर आ गई और यह पिछले 12 वर्षों के दौरान सर्वाधिक न्यूनतम है। पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही में इस क्षेत्र की विकास दर 13.8 फीसदी दर्ज की गई थी।

वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही के बाद से जीडीपी में जारी गिरावट का सिलसिला टूटना अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि एक लंबे अरसे के बाद तिमाही आंकड़ों में जीडीपी ने एक बार फिर बढ़त का रुख किया है। विकास दर की धीमी चाल का संबंध निवेश में ठहराव आने से है, जोकि सरकार के लिए चिंता का विषय है।ऐसे में इसे सुधारने और खासकर कारखाना क्षेत्र में निवेश से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए तेजी के साथ कदम उठाने की सख्त जरूरत है। इसके अलावा जीडीपी के ताजा तिमाही आंकड़ों में कुछ सकारात्मक चीजें भी देखी जा सकती हैं, जैसे कि निर्माण क्षेत्र की विकास दर बीते वित्त वर्ष की की पहली तिमाही के 3.5 फीसदी से बढ़कर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 10.9 फीसदी पर पहुंच जाना काफी महत्वपूर्ण है।

इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ किया कि वे अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे। प्रधानमंत्री ने तेहरान से लौटते वक्त एक सवाल के जवाब में मीडिया प्रतिनिधियों को बताया कि उन्हें अपने पद की मर्यादा रखनी है। उनके इस्तीफे के लिए भाजपा को 2014 तक इंतजार करना होगा।कोल ब्लॉक आवंटन को लेकर संसद में विपक्ष के रुख की प्रधानमंत्री ने आलोचना की। पीएम ने भाजपा से कहा कि वह संसद को चलने दे। हालांकि उन्होंने साफ किया कि वो आरोप-प्रत्यारोप में नहीं पड़ना चाहते। राहुल गांधी के मंत्री बनने पर पीएम ने कहा कि उन्हें पूरा यकीन है कि राहुल जल्द ही कैबिनेट का हिस्सा बनेंगे।वित्‍त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में देश की विकास दर में केवल 0.2 फीसदी का मामूली इजाफा हुआ है। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था फिर बुरी तरह आहत हुई है। यूपीए-2 के शासनकाल में लगातार विकास दर कम हुई है और आम आदमी की हालत बद से बदतर हुई है। 2009 से लेकर अब तक लगातार वित्तीय घाटा बढ़ रहा है। महंगाई आसमान पर है। नौकरियों का सूखा-सा पड़ने लगा है। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार दम तोड़ता दिख रहा है। आम जनता की क्रय शक्ति न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई है। पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की तस्वीर बिगाड़ने में मैन्यूफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र का खासा योगदान रहा है। महंगे कर्ज ने मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार को बेहद धीमा कर दिया है। वहीं कोयला खदानों के उत्पादन में कमी ने खनन क्षेत्र का प्रदर्शन बिगाड़ा है। पहली तिमाही में दोनों क्षेत्रों की विकास दर एक प्रतिशत से भी कम रही है।

कोयला ब्लॉक आवंटन को लेकर शुक्रवार को भी संसद में गतिरोध जारी रहा। इस गतिरोध के बीच शुक्रवार को समाजवादी पार्टी (सपा), तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) व वामपंथी दलों ने संसद के बाहर एकजुट होकर तीसरे मोर्चे के वजूद का आभास कराते हुए धरना दिया और कोयला ब्लॉक आवंटन में कथित भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग की। वहीं संसद के अंदर हंगामे के कारण गतिरोध बना रहा।

सरकार की ओर से आज जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 30 जून को समाप्त चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में कृषि वानिकी आर मछली उत्पादन में 2.9 फीसदी की वृद्धि हुई जिससे जीडीपी को पिछली तिमाही के 5.3 फीसदी से बढ़ाकर 5.5 फीसदी करने में मदद मिली। पिछले साल के ऊंचे आधार के कारण सकल जीडीपी में 16 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले कृषि क्षेत्र में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरकर करीब 1 फीसदी वृद्धि रहने के अनुमान लगाए जा रहे थे।इंटरनैशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) के निदेशक (दक्षिण एशिया) पीके जोशी ने कहा, 'कृषि क्षेत्र में वृद्धि उम्मीद से कहीं बेहतर रही है। ऐसा मुख्य रूप से पिछले साल रबी फसलों की बेहतर उपज और छिटपुट बारिश का प्रभाव न पडऩे के कारण संभव हुआ।' अर्थशास्त्रियों ने कहा कि पिछले साल के रबी फसलों की कटाई 2012-13 में हुई और इससे कृषि वृद्धि को बल मिला। केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि कृषि क्षेत्र में अच्छी वृद्धि दर्ज की गई है और इसका मुख्य कारण रहा रबी फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन। आंकड़ों के अनुसार, गेहूं का उत्पादन कृषि वर्ष 2011-12 (जुलाई-जून) में 8.1 फीसदी बढ़ा, जबकि चावल के उत्पादन में 16.6 फीसदी की गिरावट आई है।

अमेरिका और यूरोप में आर्थिक नरमी के चलते पश्चिमी देशों की मांग में गिरावट और घरेलू स्तर पर सेवा क्षेत्र एवं कारखाना गतिविधियों में सुस्ती के चलते चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 5.5 फीसदी रही, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह आठ प्रतिशत के स्तर पर थी।देश के शेयर बाजारों में बुधवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 140 अंकों की गिरावट के साथ 17,490.81 पर और निफ्टी 46 अंकों की गिरावट के साथ 5,287 पर बंद हुआ। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स सुबह 19 अंकों की तेजी के साथ 17,651 पर खुला और 140 अंकों की गिरावट के साथ 17,490 बंद हुआ। दिन के कारोबार में सेंसेक्स 17653 के ऊपरी और 17471 के निचले स्तर तक पहुंचा।महंगाई की ऊंची दर की वजह से उपभोक्ता मांग लगातार कम हो रही है। इसका असर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर पड़ा है। महंगाई के चलते रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में भी बहुत ज्यादा बदलाव नहीं आया है। उद्योग जगत लगातार ब्याज दरों में कमी की मांग कर रहा है। महंगे कर्ज से उद्योगों के लिए विस्तार के संसाधन सीमित हो गए हैं। इससे निवेश की दर भी घट रही है। पहली तिमाही में यह 33.2 प्रतिशत से घटकर 32.8 प्रतिशत रह गई है। उद्योग जगत का मानना है कि आर्थिक सुधारों में तेजी लाए बिना औद्योगिक उत्पादन के हालात सुधारना मुश्किल होगा।

हालांकि तिमाही आधार पर इसमें 0.2 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज की गई क्योंकि इससे पिछली तिमाही में आंकड़ा 5.3 फीसदी पर रहा था। सबसे ज्यादा सुस्ती कारखाना और सेवा क्षेत्र में देखने को मिली, जबकि निर्माण (कंस्ट्रक्शन) क्षेत्र ने मजबूत बढ़त दर्ज की। खनन उद्योग भी निगेटिव जोन से उबरने में कामयाब रहा।

केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार गत 30 जून को समाप्त इस तिमाही में कारखाना क्षेत्र की वृद्धि दर मात्र 0.2 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011 की आलोच्य अवधि में यह 7.3 प्रतिशत रही थी। सेवा क्षेत्र की गतिविधियों में सुस्ती आने से वित्त वर्ष 2012-13 की पहली तिमाही में इस क्षेत्र की विकास दर दहाई अंक से घटकर 6.7 फीसदी पर आ गई, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह 10.2 फीसदी रही थी।

जीडीपी के आंकडे़ में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी करने वाले औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर में भी गिरावट का रुख रहा। गत 30 जून को समाप्त तिमाही में यह 3.6 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह 5.6 प्रतिशत रही थी। इस दौरान बिजली क्षेत्र की विकास दर में शिथिलता आई है और यह वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही में आठ प्रतिशत से घटकर 6.3 प्रतिशत पर आ गया।

कृषि गतिविधियों में भी सुस्ती देखने को मिली है और चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही इस क्षेत्र की विकास दर महज 2.9 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह 3.7 प्रतिशत रही थी। हालांकि आलोच्य अवधि में देश के निर्माण क्षेत्र में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और पहली तिमाही में यह बढ़कर 10.9 प्रतिशत पर पहुंच गई है। वित्त वर्ष 2011 12 की समान अवधि में 3.5 फीसदी के स्तर पर थी।

खनन क्षेत्र भी नकारात्मक वृद्धि से उबरते हुए पहली तिमाही में 0.1 प्रतिशत की दर से बढ़ा जबकि वित्त वर्ष 2011-12 की समान अवधि में यह नकारात्मक 0.2 प्रतिशत रहा था। वित्त वर्ष 2011-12 में देश की जीडीपी 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी थी और चालू वित्त वर्ष में भी इसके 6.5 प्रतिशत से लेकर 6.7 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान जताया जा रहा है।

केंद्र सरकार देश के कॉरपोरेट क्षेत्र की आर्थिक सेहत मापने के लिए एक सूचकांक बनाने की योजना बना रही है। कंपनी मामलों के मंत्री वीरप्पा मोईली ने यहां इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में यह जानकारी दी।

मोईली ने कहा कि इसके लिए एक मजबूत आर्थिक पैमाना तय किया जाएगा और कंपनियों के प्रदर्शन को इसी पैमाने पर नापा जाएगा। यह नया पैमाना या सूचकांक बनाने का काम किसी विश्वसनीय साख निर्धारक संस्था को सौंपा जाएगा।

उन्होंने कहा कि देश के निवेश माहौल को लेकर निवेशकों में बढ़ती चिंताओं को देखते हुए सरकार ने यह नया पैमाना बनाने का फैसला किया है। नए कंपनी कानून 2011 के संबंध में उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद के अगले सत्र में यह पारित हो जाएगा। प्रस्तावित कानून में कंपनियों के सतत और समग्र विकास के लिए बेहतर नियामक ढांचा तैयार करने की कोशिश की गई है।

उच्चतम न्यायालय ने देश में सार्वजनिक वितरण पण्राली की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कारगर तरीके से इसे लागू करने के दावों के बावजूद गरीबों की हालत जस की तस है। न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अमल के बारे में हमें रिपोर्ट तो मिल रही हैं लेकिन जहां तक गरीबों का सवाल है तो वे अब भी परेशान हाल हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि यह मामला 11 साल से लंबित है और अब वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर प्रभावी तरीके से अमल के बारे में आदेश पारित करेंगे। इस मामले में न्यायालय को इसमें अब तक 22 रिपोर्ट मिल चुकी हैं। न्यायाधीशों ने केंद्र सरकार को इस मामले में और अधिक समय देने से इनकार करते हुए कहा, यह मुकदमा इस तरह नहीं चल सकता है। न्यायालय को मिली 22 रिपोर्ट इस मामले में निर्देश देने के लिए पर्याप्त हैं।

विश्व बैंक ने वैश्विक स्तर पर खाद्य वस्तुओं के दाम जुलाई माह में 10 फीसदी चढ़ने की बात कही है। बैंक का कहना है कि इससे दुनियाभर के गरीबों खासकर अफ्रीका और पश्चिम एशिया के लोगों के लिए परेशानी बढ़ गई है। सूखे और बढ़ते तापमान की वजह से अमेरिका और पूर्वी यूरोप में कुछ महत्वपूर्ण अनाज की फसलों में कमी आई है। वहीं दूसरी ओर मक्का और सोयाबीन के दाम नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं।


विश्व बैंक ने आगाह किया है कि 2008 के मध्य तथा 2011 की शुरुआत की तरह कीमतों में आई तेजी से ज्यादातर खाद्य आयात करने वाले देशों की सेहत को लेकर अंदेशा बढ़ा है।


विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम ने एक बयान में कहा, खाद्य वस्तुओं के दाम एक बार फिर चढ़ रहे हैं, जिससे दुनियाभर में लाखों लोगों की परेशानी बढ़ी है। जून से जुलाई के दौरान मक्का और गेहूं कीमतों में जहां 25 फीसदी का इजाफा हुआ, वहीं सोयाबीन के दाम 17 प्रतिशत चढ़े।

अर्थव्यवस्था में टिकाऊ विकास लाने और देश के सभी लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए फाइनेंशियल इनक्लूजन को विकल्प के तौर पर नहीं, बल्कि जरूरी कदम के तौर पर अपनाना होगा। दैनिक भास्कर समूह की तरफ से आयोजित 'फाइनेंशियल इनक्लूजन कॉनक्लेव 2012' में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ.सी. रंगराजन ने यह बात कही। इस मौके पर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि आर्थिक आजादी के बिना लोगों का सशक्तीकरण संभव नहीं है।





वित्तीय सुविधाओं की कमी के खतरे को रेखांकित करते हुए दैनिक भास्कर समूह के चेयरमैन रमेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि इससे दो भारत बन रहा है। एक समृद्ध भारत जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं और दूसरा वित्तीय सुविधाओं से महरूम गरीब भारत। इस मौके पर एलआईसी के कार्यकारी निदेशक (माइक्रो इंश्योरेंस) वी. सत्यकुमार ने कहा कि अभी तक 50 फीसदी आबादी तक बैंकिंग या बीमा की पहुंच नहीं है। इन तक बैंकिंग और बीमा की पहुंच बनानी होगी, तभी इन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सकेगा।





एनसीडीईएक्स के प्रमुख - कॉरपोरेट सर्विसेज एम.के. आनन्द कुमार ने कहा कि दहाई अंकों में आर्थिक विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्र का विकास जरूरी है। कॉनक्लेव के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए डॉ. रंगराजन ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिये पर बैठे लोगों को मुख्यधारा में लाने का एक ही उपाय है कि उन्हें संगठित वित्तीय तंत्र में भागीदार बनाया जाए। उन्हें अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्र- कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र से जोडऩा होगा। यही नहीं, संगठित वित्तीय तंत्र का विस्तार देश के सभी क्षेत्रों में करना होगा। अभी भौगोलिक रूप से जटिल क्षेत्रों में संगठित वित्तीय तंत्र का विस्तार कम ही है।





उन्होंने कहा कि समाज के निम्न आय वर्ग के लोगों को बेहद कम कीमत पर ऋण और अन्य वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करानी होंगी। वित्तीय सेवाओं के विभिन्न रूप जैसे बचत, ऋण, बीमा और भुगतान तथा अंतरण सेवाओं से भी उन्हें जोडऩा होगा। रंगराजन के मुताबिक यह कहना गलत होगा कि जो लोग संगठित वित्तीय तंत्र से ऋण नहीं ले पा रहे हैं, वे फाइनेंशियल इनक्लूजन से बाहर हैं। महत्वपूर्ण यह है कि यदि कोई बैंक से कारोबार करने योग्य है और उन्हें बैंक से क्रेडिट चाहिए तो उसे ऋण देने से इनकार नहीं किया जाना चाहिए।





इस मौके पर संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री सचिन पायलट ने कहा कि आर्थिक आजादी के बिना लोगों का सशक्तीकरण और विकास संभव नहीं है। जहां कही भी वित्तीय सशक्तीकरण हुआ है, वहां विकास अपने-आप आया है। उन्होंने कहा कि वित्तीय सेवाओं से लोगों को अवगत नहीं कराया गया तो हम विकसित राष्ट्र बनने का ख्वाब भूल जाएंगे। इन सबके लिए संपर्क साधन और तकनीक का इस्तेमाल जरूरी है।





इस अवसर पर दैनिक भास्कर समूह के अध्यक्ष रमेश चंद्र अग्रवाल ने कहा कि केन्द्र सरकार हर साल लाखों करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में देती है। राज्यों की सब्सिडी अलग से है। तो फिर अर्थव्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर बैठे लोगों का वित्तीय समावेशन क्यों नहीं होना चाहिए। इस समय देश के 50 फीसदी लोग जानते ही नहीं कि बैंक से लोन लेना क्या चीज है। उन्हें कभी बैंकिंग सुविधा मिली ही नहीं क्योंकि वे योजनाओं के पात्र नहीं बन पाते। ऐसे में दो भारत बन रहा है। एक समृद्ध भारत जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं और दूसरा गरीब भारत जहां लोग वित्तीय सुविधाओं से भी महरूम हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि ऐसे में हाशिये पर बैठे लोगों की अगली पीढ़ी का क्या होगा?

Growth story breaks down as Dollar linked Indian economy seems to have no bottom at all!



Growth  story breaks down as Dollar linked Indian economy seems to have no bottom at all!

Troubled Galaxy Destroyed Dreams, Chapter 798
Palash Biswas

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Skype ID: palash.biswas44

Email: palashbiswaskl@gmail.com


Growth  story breaks down as Dollar linked Indian economy seems to have no bottom at all. Gross fixed capital formation, a proxy for investment activity, is down to 32.8% of GDP (at constant prices) compared to 33.9% last year.Private consumption has remained flat 59.5% of GDP  (at constant prices) in the same quarters of both 2011-12 and this year.Basic goods output growth, which comprises of infrastructure sectors such as crude oil, natural gas, petroleum refinery products and fertilisers, appear to be slowing down considerably with the growth rate of eight infrastructure sectors plunging to.1.8% in July, down from 8.2% in July 2011, and at its lowest level in nine months.Deprived of fundamentals it continues the free fall.Analysing the latest growth numbers, Crisil has noted that the Indian economy grew at 5.5 per cent in the Q1FY13, marginally better than 5.3 per cent in Q4FY12.But the black money hegemony is least interest to rvive the production system as said to be concerned over declining performance of the manufacturing sector, Finance Minister P Chidambaram said quick decisions were needed to remove bottlenecks hampering investments.Chidambaram was responding to first quarter Gross Domestic Product (GDP) numbers, which showed a growth of 5.5%, down from 8% in the corresponding period last fiscal.The decline in the GDP was mainly on account of poor showing by the manufacturing sector where the growth rate decelerated to 0.2% from 7.3% in the same quarter in 2011-12.Chidambaram, however, drew comfort from the fact that the quarterly GDP numbers were better on sequential basis. The GDP registered a growth of 5.3% in the fourth quarter (January-March) 2011-12.The growth story continues despite the infinite fall!The parliament faces unprecedented standoff as the opposition is trying its best to make responsiblt the irresponsible government inflicted with scams, latest being coalgate , the bone of contention!Since legislation as well as policy making paralyed, we may not hope naything better in given conditions. The prime minster is away in Tehran to oblige US diplomacy as a mediator to sustain Dollar supremacy as Iran has statred a consumer exchange rejecting the Dollar. RBI governor is sitting duck away in New York! The masse have to live on Rs Thirty two daily as the apex court refused to review the scale. What next?Union Finance Minister P Chidambaram offered worship at the famous famous hill shrine of Lord Venkateswara at Tirumala near in Tirupati last night.Perhaps the god may save Indian economy!Chidambaram, on his first visit to the shrine after assuming charge of Finance Ministry recently, was accompanied by his wife Nalini, son Karti Chidambaram and daughter-in-law Srinidhi Karti and other family members.On the other hand, Prime Minister Manmohan Singh blamed the 'lack of cohesive coordination' in domestic politics as one of the factors hampering growth rate.Is it the story?India incs seem not to be so worried as corporate lobbying continues as greater reflection of infight within. But the symptoms look very bad as despite favourable gestures from the banks already motivated by the FM, consumer market is also hit. Demand for new cars and two-wheelers continues to be weak in spite of the fast-approaching festival season.But theFM considers growth of the promoter builder raj with healthy construction sector as silver lining!Far from worried with Indian economy or feeling the urgency as public liability,PRIME Minister Manmohan Singh Friday came down strongly on the BJP for obstructing Parliament over the coal blocks allotment controversy, saying it was a "total negation of democratic politics" to not allow the party with majority to function.

On the other hand, The Supreme Court has expressed its reluctance to review the poverty line fixed at Rs 32 per capita per day in the country, noting the figure may not be "fabulous" but it was not for them to settle economic policies, Indian Express reports..

"We cannot review or alter it. We cannot settle economic policies for the country. In the light of your concerns, we can say it is not fabulous but it has been fixed by the Planning Commission on certain basis only," said a Bench led by Justice T S Thakur on Wednesday.

The court was responding to a request by senior advocate Colin Gonsalves, who appeared for NGO "People's Union for Civil Liberties" and sought its indulgence to review the "unrealistic and deplorable" Rs 32-figure while dealing with larger issues plaguing the Public Distribution System (PDS).

The fall in production of rice and oilseeds pulled down the growth in the agriculture sector to 2.9 per cent in the first quarter of the current fiscal, even as wheat and cotton output increased.On the other hand,India's relatively superior savings rate, which supported investments in factories and infrastructure for nearly two decades before the 2008 crisis, is faltering as corporate profitability is squeezed and inflation-averse individuals rush to the safety of gold and real estate. Banks - the biggest intermediary supplying money to businesses - are turning cautious due to rising bad loans and slowing deposits growth.

Away in America,Federal Reserve Chairman Ben Bernanke on Friday said the US economy faced "daunting" challenges and that progress reducing unemployment had been too slow, but he stopped short of providing a clear signal of further monetary policy easing.While in India,continued disruptions in Parliament are also reducing the prospect of policy reforms during a time when the country is under threat of credit ratings downgrades from Standard and Poor's and Fitch Ratings.Investors are now expected to focus on the US Federal Reserve chairman Ben Bernanke's speech later in the day amid hopes he will hit at resuming asset purchases. Potential action from the European Central Bank is also keenly anticipated.

Although the data signalled the worst may be over, investors worry that growth will remain lethargic, but not low enough to prompt interest rate cuts from the Reserve Bank of India (RBI).With the inflationary expectations still high, most experts are of the opinion that the Reserve Bank of India (RBI) will not cut key rates in its monetary policy review on September 17. However, most of them are anticipating a 50 bps cut towards the end of FY13.Markets fell on Friday to their lowest close in four weeks as lenders such as ICICI Bank Ltd were hit after stronger-than-expected gross domestic product (GDP) data dashed hopes for rate cuts next month, while Reliance Industries Ltd (RIL) fell after Citigroup downgraded the stock.Public sector banks also edged lower, though they did turn positive at one point after the farming sub-index within the April-June GDP data grew more strongly than expected.However, the prospect of reduced non-performing assets from rural areas was not enough to keep shares afloat in a down market. State Bank of India fell 0.13 %, while Bank of India retreated 0.6 %.Software services exporters fell as worries intensified pricing power in the sector would be hit by rising competition and a weaker global outlook.Shares of the energy conglomerate had a good run in August, but started to slide towards the second half. RIL shares still posted a 3.1 % gain for the month.

Most amusing part of the story seems to be yet another patch up attempt as  the Government is planning to come out with a business development index based on economic parameters to reflect the strength of the corporate sector.

Corporate Affairs Minister Veerappa Moily said on Friday that a credible agency would be entrusted with the work of developing the index.

"This index will be based on robust economic parameters that will reflect the true strength of corporate sector," Moily said at a function organised by the Institute of Company Secretaries of India.

The proposal comes against the backdrop of rising concerns among the investor community over the overall investment climate in the country.

Moily said the Ministry of Corporate Affairs will come out with a sustainability reporting framework for companies in a "couple of weeks".

The Minister also said radical solutions are needed to tackle social and economical problems. Regarding the new Companies Bill, 2011, Moily said he hopes the Bill will be passed in the next session of Parliament.

The Bill is aimed at creating a good regulatory environment for sustainable and inclusive growth.

The proposed National Competition Policy may help in tackling inflation by creating a fair playing field for producers, farmers and traders, Corporate Affairs Minister Veerappa Moily said today.


The Minister said that good competition would "create a win-win situation for producers, farmers, traders among others".

"That is the kind of big benefit," he added. He was speaking at a function organised by the Institute of Company Secretaries of India (ICSI) here.

"Whenever we confront with inflation and many other problems of economy we always look at the RBI and bankers...on what they will do. "But, ultimately they can't do anything to contain inflation ... Only fair play of the competition law and competition policy is the solution," Moily said.

Consultations are underway on a draft National Competition Policy to integrate principles of fair-trade practices in various economic policies.

Inflation, which touched 6.87% in July, continues to remain a concern for the economy. Though inflation moderated in July compared to 7.25% in June, it still remains much above the 5-6% comfort level of the Reserve Bank of India (RBI).

Meanwhile, food inflation, which accounts for nearly 15% of the overall inflation basket, was at 10.06% in July. Supply side bottlenecks are seen as one of the reasons for high inflation.

The RBI in July cut economic growth estimate to 6.5% from 7.3% and raised its inflation forecast for the year to 7% from 6.5%. It continues to say prices that are rising and there's little room to cut the repo rate, the rate at which it lends to banks.

Investments, the fuel needed to put the economy back in the 8% orbit, may not revive for more than a year even with lower interest rates. This is because the consumption and savings behaviour of individuals and companies has turned adverse.

The GDP growth in the agriculture sector stood at 3.7 per cent in the same quarter of the 2011-12 fiscal.The agricultural sector, which contributes about 14 per cent to India's GDP, comprises of agriculture, forestry and fishing.

"The production of wheat increased by 8.1 per cent during the rabi season of agriculture year 2011-12 (which ended in June 2012), while rice registered a decline of 16.6 per cent," Central Statistical Organisation data released today said.

Among the commercial crops, the production of oilseeds declined by 12.6 per cent during rabi 2011-12, it added.The production of cotton and sugarcane recorded growth rates of 6.7 per cent and 4.5 per cent, respectively during agricultural year 2011-12 (July-June).Cereal output recorded a growth rate of 3.5 per cent during the rabi season of agriculture year 2011-12 over the production in the year-ago period.

Despite a revival in the monsoon rains, which lasts from June to September, the sowing of kharif (summer) crops is still lagging behind target.The sowing so far in the ongoing season is down by 6 per cent to 920.31 lakh hectares as against 979.19 hectares in the last kharif season.As per the Indian Meteorological Department's (IMD) data, the overall rainfall in the country during June to August 30 is deficient by 12 per cent.

"Of course the decline of fixed investment is a source of concern to the government. It emphasises once again the need to take quick decisions to accelerate investment, especially removing all bottlenecks to investment in the manufacturing sector," he said in a statement.

"After continuous reduction in the growth rate in successive quarters beginning in the fourth quarter of 2010-11, this is the first time when quarterly growth rate has exceeded the growth rate in the previous quarter", the Minister said.

At the same time, he added, there was also encouraging signs as the construction sector recorded a growth of 10.9%, up from 3.5% in Q1 of the last fiscal.

Hindustan times reports:India's economy grew 5.5% in the April to June quarter, confirming fears of a widespread slowdown caused by a demand and investment sque-eze from a host of factors that include local policy logjam, high interest rates and sluggish exports amid a euro zone crisis The growth in April to June is marginally higher than the previous quarter's 5.3% growth and a sharp drop the 8% recorded in the same quarter in the previous year.

"Overall, despite today's sligh-tly higher GDP print, we believe that the underlying growth momentum remained weak with three critical drivers: private consumption, investment and exports leading the slowdown. Early data such as the manufacturing and exports suggest no pick up in sight," said Sonal Varma, of broking and research firm Nomura.

Experts blamed domestic uncertainty behind the sudden turnabout in the economy, which until recently was the destination global investors flocked to.

India's GDP growth languished around its lowest in three years in the quarter that ended in June, offering no respite for Prime Minister Manmohan Singh as he struggles to escape a series of political scandals that have paralysed his economic agenda.Weak demand in the West has hit exports, but the heaviest toll on the economy is from overspending and a lack of reforms at home - a point made by both the central bank and ratings agencies Fitch and Standard & Poor's, who threaten to downgrade India's sovereign ratings to junk.The economy grew 5.5 percent in the quarter, government data showed on Friday, just above the 5.3 percent posted in the three-month period ending in March and slightly better than economists' expectations in a Reuters poll.

The BSE Sensex witnessed the worst fall in over one month despite GDP data for the fiscal first quarter indicating a marginal recovery in economic growth.

Meanwhile,the aggressive intent of the Congress-led government in taking on the main opposition BJP paralysing parliament became quite clear on Thursday as it rushed to pass two bills in Lok Sabha amid rucks over the CAG report on the coal block allocation issue.The government could not, however, repeat this feat in Rajya Sabha, where the amended version of the Whistle Blowers Protection Bill is awaiting nod for over past one week.DNA reports.

The government aims to whittle down the bill, passed by the Lok Sabha on December 27 without discussion, with an amendment to bar use of the 'secret' cabinet notes and other confidential policy papers for exposing corruption.Sources in the government said with no meeting ground in sight to allow a smooth functioning of the parliament, the ministries have been asked to identify the priority business and get it passed in the current monsoon session amid rucks by taking into confidence friendly parties.On Thursday, the government managed to pass that law that would allow the government to set up All India Institute of Medical Sciences-like institutes across the country just by a notification.

- India's economy would grow at 6.7 percent in the current fiscal year, less than an earlier estimate of 7.5-8.0 percent, Prime Minister Manmohan Singh's Economic Advisory Council said two weeks ago.

- The country's wholesale inflation unexpectedly dropped to near three-year low of 6.87 percent in July from 7.25 percent in June, while consumer price inflation slowed slightly to 9.86 percent from 10.02 percent.

- Earlier this week, the Reserve Bank of India (RBI) Governor Duvvuri Subbarao said inflation remained too high and needed to fall further or risk more damage to the economy, dismissing criticism of the bank's hawkish stance.

- The country's industrial output fell for the third time in four months in June, adding to pressure on new Finance Minister Palaniappan Chidambaram to move quickly and pull Asia's third-largest economy from its worst slowdown in almost a decade.

- The HSBC Purchasing Managers' Index for the services sector, which gauges the activity of hundreds of Indian companies, slipped to 54.2 in July from June's 54.3 while for manufacturing, the index fell to 52.9 in July from 55.0 in June -- its biggest one-month drop since September last year.

- India sharply revised its GDP data to show a much worse economic performance than originally thought in the aftermath of the global financial crisis, putting renewed scrutiny on the reliability of government data.

Unhappy with 5.5. per cent GDP growth in April-June quarter, industry chambers today said opportunities for revival of the economy would soon "peter out" if the government does not take immediate policy action.Expressing serious concern over the continuous slowdown in the GDP, which was the slowest pace of Q1 growth in a decade, industry body CII said the numbers leave no doubt about the "criticality" of the situation.

CII strongly feels that opportunities for revival of economic growth would soon peter out if the economy dives into a downward growth spiral due to steep decline in growth of gross capital formation," chamber's Director General Chandrajit Banerjee said in statement.


We once again appeal for a coordinated monetary and fiscal intervention to address this deteriorating situation, Banerjee said.

Industry body Assocham said the disaggregated figures clearly show the weaknesses in the economy and immediate corrective steps are required.

"The manufacturing sector has obviously been worst hit as the sector has become virtually stagnant at 0.2 per cent in Q1 of 2012-13 against 7.3 per cent growth in the corresponding period last year", Assocham President Rajkumar N Dhoot said.

Dhoot said given the global slowdown and slackening in exports demand, domestic manufacturing needs some stimulus by deeper cuts in interest rates.

"With the Finance Minister announcing intent on fiscal consolidation, this is an opportune time to cut repo rates," CII added.

Industry body FICCI said the growth slowdown reflects a sharp decline in investment and the government should take measures to control the fiscal deficit and lay basis for boosting investment demand.

"... what is worrisome is expectations of subdued global growth, uncertainty on Eurozone and slowdown in capital formation in India... I would like to emphasise that many needed economic decisions can be taken on administrative basis without new legislation," FICCI President R V Kanoria.

Consultancy firm Dun and Bradstreet expects the July-September (second quarter) GDP to remain subdued at below 6 per cent on inflationary pressures, unsatisfactory monsoon and policy stagnation.

"Nonetheless, we expect growth to witness some revival during the second half of the current fiscal with abatement of inflationary pressures and further easing of the monetary policy," said Dun and Bradstreet economist Arun Singh.

The Reserve Bank today permitted individual overseas investors, also called Qualified Foreign Investors (QFIs), to hedge currency risk for their investments in equity or debt instruments.

"It has now been decided to allow QFIs to hedge their currency risk on account of their permissible investments (in equity and debt instruments)," the RBI said in a notification.

Currency risk arises as QFIs are allowed to invest in rupee-denominated units of domestic mutual fund schemes and listed equity shares.

A QFI is an individual, group or association resident in a foreign country that is compliant with Financial Action Task Force (FATF) standards. QFIs do not include FIIs/sub accounts.

As per the notification, QFIs have been allowed to hedge the currency risk on the market value of entire investment in equity or debt in India as on a particular date.

It has also allowed to hedge Initial Public Offers (IPO) related transient capital flows under the Application Supported by Blocked Amount (ASBA) mechanism.

As part of hedging mechanism, the QFIs are allowed to pick forward foreign exchange contracts with rupee as one of the currencies and foreign currency-INR options.

Foreign Currency-INR swaps are allowed for IPO-related flows, it said.

Some investors have been optimistic a weak growth number would persuade the central bank to lower interest rates at its Sept. 17 policy meeting, but the bank's recent comments remain hawkish in the face of stubbornly high inflation.

The RBI still maintains a hawkish bias and rate cuts are still seem some way off. Asian data momentum has not been great in Q3 so it is difficult to see a dramatic improvement in Q3, said Jonathan Cavenagh, a currency strategist at Westpac, Singapore.

The absence of a stronger rebound in growth is further bad news for the government, which is embroiled in a row with the main opposition Bharatiya Janata Party (BJP) over sweetheart coal deals. The state auditor has questioned the deals, and the BJP has refused to allow parliament to function until Singh quits.

A raft of bills, including a number of important economic reforms, is now bogged down in the legislature. The furore has deepened the sense of dysfunction in Indian politics that has already stalled bold measures to cut government spending on costly fuel subsidies and help bring down high inflation. Poor monsoon rains have added to the economic gloom.

The manufacturing sector grew an annual 0.2 percent during the quarter, the first of the 2012/13 fiscal year that runs to next March, while farm output rose 2.9 percent.

For now, Finance Minister P. Chidambaram is focused on small-bore measures he hopes will put the economy on track, and his ministry is also contemplating possible budget cuts later in the year.

The Reserve Bank of India (RBI) meets on Sept. 17 to review monetary policy and bond prices rallied earlier this week on expectations a low growth reading would pressure the bank to reduce interest rates, some of the highest among major economies.

But only last week the RBI said fighting inflation remained the cornerstone of its monetary policy, and said lower interest rates alone would not jumpstart the economy.

India's benchmark 10-year bond yield rose 3 basis points to 8.23 percent after the GDP data.

Bonds fall, rupee trims losses after April-June GDP

India's benchmark 10-year bonds fell, while the rupee and stocks trimmed earlier losses on Friday.

India's benchmark 10-year bond yield rose as much as 3 basis points to 8.23 percent from levels before the data, as faster GDP growth is expected to reduce expectations for interest rate cuts.

The rupee trimmed losses, trading at around 55.72 to the dollar from around 55.77 before the data was released.

India's benchmark BSE index and NSE index trimmed losses as well, and were down around 0.3 to 0.4 percent each.

India's 1-year OIS swap rose 3 bps to 7.78 percent, while the 5-year swap rates was up around 4 bps to 7.16 percent, according to traders.

COMMENTARY

SUJAN HAJRA, CHIEF ECONOMIST, ANAND RATHI SECURITIES, MUMBAI

We don't think that today's growth number will lead to any change in the Reserve Bank of India's monetary policy stance. It is unlikely that there will be a rate cut before the fourth quarter of the current fiscal year ending in March 2013.

Our growth estimate for the current fiscal year is 5.8 percent. We are seeing that slowdown in the manufacturing sector is percolating to the services sector. However, in the third and fourth quarter of the fiscal, there may be some improvement in industrial activity.

RADHIKA RAO, ECONOMIST, FORECAST PTE, SINGAPORE

Sense of relief was palpable in the domestic financial markets after the stronger-than-expected Q2 GDP print. Whilst an upside surprise at 5.5 percent, the pace of growth is undeniably below potential and validates the need for the government to address sluggishness in investment and external sector activity.

Inflation remains sticky for the same reason that GDP is underweather - supply side constraints and structural bottlenecks. Thereby RBI action, we reckon, will be dictated by when the government gets its act together on the fiscal situation and ease structural constraints. We nonetheless still see reason to hold on to 50 bps rate cut by year-end, albeit might be deferred to Q1 2013.

JONATHAN CAVENAGH, CURRENCY STRATEGIST, WESTPAC, SINGAPORE

Likely to take some of the heat out of USD/INR but only at the margin. The RBI still maintains a hawkish bias and rate cuts still seem some way off. Asian data momentum has not been great in Q3 so difficult to see a dramatic improvement in Q3.

RAHUL BAJORIA, REGIONAL ECONOMIST, BARCLAYS CAPITAL, SINGAPORE

There are some oddities in the number like if I look at the industrial production data, mining was negative and so was manufacturing, but that is not reflected in the GDP data and that's one source of the upside.

Also, construction number looks abnormally strong. On paper this looks good, but there is some scope of revision in the GDP data. For RBI, I guess it will possibly help them to explain their anti-inflation stance. But even if on relative basis the number looks good, overall it is still weak. If we look at the first half of 2012, growth is 5.4 percent compared with 6.4 percent in second half of 2011.

MARKET REACTION

- The benchmark 10-year bond yield rose as much as 3 basis points to 8.23 percent from levels before the data.

- The rupee trimmed losses, trading at around 55.72 to the dollar from around 55.77 before the data was released.

- The benchmark BSE index and NSE index trimmed losses, and were down around 0.3 to 0.4 percent each.

- The 1-year OIS swap rose 3 bps to 7.78 percent, while the 5-year swap rates was up around 4 bps to 7.16 percent, according to traders.


Reuter reports: Economic growth languished near its slowest in three years in the quarter that ended in June but was slightly better than expected, signalling the worst may be over for Asia's third largest economy and dashing investor hopes of an early rate cut.

Quarterly GDP grew 5.5 per cent, driven by a rebound in construction and financial services, provisional government data showed on Friday, just above the 5.3 per cent posted in the three months ended in March and slightly higher than economists had forecast in a Reuters poll.

The number offered little respite for Prime Minister Manmohan Singh as he struggles to escape a series of political scandals that have paralysed his economic agenda. Economists do not foresee a rapid return to boom times in India.

But while failing to signal a decisive rebound, the read-out was viewed by analysts as not weak enough to prod the central bank into make a near-term cut in interest rates, which have been on hold since April as it tries to force the government to push through reforms that would help tame inflation.

"We expect a gradual recovery in growth during the current fiscal year ending in March 2013, but this recovery is contingent on structural reforms," said Leif Eskesen, chief economist for India and ASEAN at HSBC in Singapore. "It will also depend on the stabilisation of the global economy."

Weak demand in the West has hit Indian exports, but the heaviest toll on the economy is from government overspending and a lack of reforms, a point made by both the central bank and ratings agencies Fitch and Standard & Poor's, who threatened to downgrade India's sovereign ratings to junk.

NO RATES MOVE, YET

Many G20 central banks have been moving to support growth, but policy interest rates have come down just once in more than two years and are among the highest of big economies.

Some investors had been optimistic that a weak growth number would persuade the Reserve Bank of India (RBI) to cut borrowing costs at its September 17 review, but the slight uptick will bolster the bank's argument that stubborn inflation is its main concern.

"The RBI still maintains a hawkish bias and rate cuts still seem some way off," said Jonathan Cavenagh, a currency strategist at Westpac Bank in Singapore, who said data from across Asia suggested growth would remain subdued in the September quarter.

RBI Governor Duvvuri Subbarao this week said inflation remained too high and needed to fall further or risk more damage to the economy.

Benchmark 10-year bond yield rose 3 basis points to 8.23 per cent after the GDP data, while one- and five-year overnight index swap rates also rose, reflecting disappointment over hopes for rate cuts in September.

Manmohan Singh's economic advisory panel this month cut its forecast to 6.7 per cent for economic growth in the year to next March (2012/13), down from a previous forecast of 7.5-8 per cent. The RBI predicts growth of 6.5 per cent in the same period.

Manmohan Singh's economic advisor C. Rangarajan said on Friday he saw growth being led by agriculture and basic industries such as coal and steel in the next few months.

"The monsoon has been very normal during the month of August and therefore the rural demand may pick up and may not decline as one has expected earlier," he said.

While the growth figure is strong by global standards, it is considered almost recessionary in India, which targets 9 per cent expansion to provide jobs for a bulging young population.

Worried about social unrest if aspirations are not met, Manmohan Singh recently called high growth a matter of national security.

But for all the gloom in recent months, plenty of companies and investors continue to bet on India's longer-term prospects, especially in sectors driven by domestic demand.

Net foreign institutional investment in Indian stocks and bonds has quadrupled this year to $16.7 billion, including nearly $4 billion since the start of July.

The Sensex is up 14 per cent this year, making it one of the best performing major stock markets in Asia.

BUDGET CUTS?

Newly reappointed Finance Minister P. Chidambaram has vowed to revive an economy he steered through the 2008 credit crunch with tax cuts. The buzz on his return to the ministry helped a market rally, further fuelled by a flurry of minor policy moves.



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