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Sunday, March 31, 2013

प्रवीरचन्द्र भंजदेव – बस्तर के आदिवासियो का शापित नायक [पुण्यतिथि पर विशेष आलेख]

प्रवीरचन्द्र भंजदेव – बस्तर के आदिवासियो का शापित 

नायक 


[पुण्यतिथि पर विशेष आलेख] 



प्रवीरचन्द्र भंजदेव – बस्तर के आदिवासियो का शापित नायक 
[पुण्यतिथि पर विशेष आलेख] 


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आज बस्तर के जन-नायक तथा बस्तर रियासत काल के अंतिम शासक महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव की सैतालीसवी पुण्यतिथि है। उनका सम्पूर्ण जीवन ही संघर्षपूर्ण रहा तथा आदिवासियों के वे एसे नायक बन कर उभरे जिन्होंने लम्बे समय तक बस्तर की राजनीति की दिशा और दशा तय की। 26 मार्च 1966 को राजमहल को घेर कर अनेक संघर्षरत आदिवासियों के साथ उन्हें भी गोली मार दी गयी थी। आज प्रस्तुत है प्रवीर का जीवन संघर्ष - 

रियासत काल के अंतिम शासक प्रवीर चन्द्र भंजदेव आधुनिक बस्तर को दिशा प्रदान करने वाले पहले युगपुरुषों में से एक हैं। महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी तथा प्रफुल्ल चन्द्र भंजदेव की द्वितीय संतान प्रवीरचन्द्र भंजदेव का जन्म शिलांग में 12.6.1929 को हुआ था। उनकी माता तथा बस्तर की महिला शासिका महारानी प्रफुलकुमारी देवी के असमय और रहस्यमय निधन के पश्चात लंदन में ही ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधियों ने अंत्येष्टि से पहले उनके छ: वर्षीय ज्येष्ठ पुत्र प्रवीरचन्द्र भंजदेव (1936 – 1947 ई.) का औपचारिक राजतिलक कर दिया। प्रवीर अट्ठारह वर्ष के हुए और जुलाई 1947 में उन्हें पूर्ण राज्याधिकार दे दिये गये। 15.12.1947 को सरदार वल्लभ भाई पटेल ने मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में छत्तीसगढ़ की सभी चौदह रियासतों के शासकों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने के आग्रह के साथ आमंत्रित किया। महाराजा प्रवीर चन्द्र भंजदेव ने अपनी रियासत के विलयन की स्वीकृति देते हुए स्टेटमेंट ऑफ सबसेशन पर हस्ताक्षर कर दिये। बस्तर रियासत को इसके साथ ही भारतीय संघ का हिस्सा बनाये जाने की स्वीकृति हो गयी। 15.08.1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तथा 1.01.1948 को बस्तर रियासत का भारतीय संघ में औपचारिक विलय हो गया। 9.01.1948 को यह क्षेत्र मध्यप्रांत में मिला लिया गया।

यह स्वाभाविक था कि सत्ता छिन जाने तथा महाराजा से प्रजा हो जाने की पीडा उनकी वृत्तियों से झांकती रही तथा इसकी खीझ वे एश्वर्य प्रदर्शनों, लोगों में पैसे बाटने जैसे कार्यों से निकालते भी रहे। तथापि उम्र के साथ आती परिपक्वता तथा राजनीति के थपेडों नें उन्हें एक संघर्षशील इंसान भी बनाया तथा धीरे धीरे वे अंचल में आदिम समाज के वास्तविक स्वर और प्रतिनिधि बन कर भी उभरे। उनके जनसंघर्षों की यदि बानगी देखी जाये तो यह समय शुरु होता है जब 13 जून 1953 को उनकी सम्पत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स के अंतर्गत ले ली गयी थी। प्रवीर नें 1955 में "बस्तर जिला आदिवासी किसान मजदूर सेवा संघ" की स्थापना की थी। 1957 में प्रवीर बस्तर जिला काँग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए; आमचुनाव के बाद भारी मतो से विजयी हो कर विधानसभा भी पहुँचे। 1959 को प्रवीर ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। मालिक मकबूजा की लूट आधुनिक बस्तर में हुए सबसे बडे भ्रष्टाचारों में से एक है जिसकी बारीकियों को सबसे पहले उजागर तथा उसका विरोध भी प्रवीर ने ही किया था। 11 फरवरी 1961 को राज्य विरोधी गतिविधियों के आरोप में प्रवीर धनपूँजी गाँव में गिरफ्तार कर लिये गये। इसके तुरंत बाद फरवरी-1961 में "प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट" के तहत प्रवीर को गिरफ्तार कर नरसिंहपुर जेल ले जाया गया। राष्ट्रपति के आज्ञापत्र के माध्यम से 12.02.1961 को प्रवीर के बस्तर के भूतपूर्व शासक होने की मान्यता समाप्त कर दी गयी इसके साथ ही प्रवीर के छोटे भाई विजयचन्द्र भंजदेव को भूतपूर्व शासक होने के अधिकर दिये गये। इसके विरोध में लौहण्डीगुडा तथा सिरिसगुड़ा में आदिवासियों द्वारा व्यापक प्रदर्शन किया गया था। जिला प्रशासन की जिद और प्रवीर पर हो रही ज्यादतियों का परिणाम 31.03.1961 का लौहंडीगुड़ा गोली काण्ड़ था, जहाँ बीस हजार की संख्या में उपस्थित विरोध कर रहे आदिवासियों पर निर्ममता से गोली चलाई गयी थी। सोनधर, टांगरू, हडमा, अंतू, ठुरलू, रयतु, सुकदेव; ये कुछ नाम हैं जो लौहण्डीगुड़ा गोलीकाण्ड के शिकार बने।

फरवरी 1962 को कांकेर तथा बीजापुर को छोड पर सम्पूर्ण बस्तर में महाराजा पार्टी के प्रत्याशी विजयी रहे तथा यह तत्कालीन सरकार को प्रवीर का लोकतांत्रिक उत्तर था। 30 जुलाई 1963 को प्रवीर की सम्पत्ति कोर्ट ऑफ वार्ड्स से मुक्त कर दी गयी। प्रवीर पर बहुधा बस्तर को नागालैंड बनाने तथा हिंसक प्रवृत्तियों को भडकाने के आरोप लगते रहे हैं तथापि गंभीर विवेचना करने पर ज्ञात होता है कि उनके अधिकतम आन्दोलन शांतिप्रिय तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की परिधि में ही थे। 1964 ई. में प्रवीर ने पीपुल्स वेल्फेयर एसोशियेशन की स्थापना की। 12 जनवरी 1965 को प्रवीर ने बस्तर की समस्याओं को ले कर दिल्ली के शांतिवन में अनशन किया था। गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा द्वारा समस्याओं का निराकरण करने के आश्वासन के बाद ही प्रवीर ने अपना अनशन तोडा था। 6 नवम्बर 1965 को आदिवासी महिलाओं द्वारा कलेक्ट्रेट के सामने प्रदर्शन किया गया जहाँ उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसके विरोध में प्रवीर, विजय भवन में धरने पर बैठ गये। 16 दिसम्बर 1965 को आयुक्त वीरभद्र ने जब उनकी माँगों को माने जाने का आश्वासन दिया तब जा कर यह अनशन टूट सका। 8 फरवरी 1966 को पुन: जबरन लेव्ही वसूलने की समस्या को ले कर प्रवीर द्वारा विजय भवन में अनशन किया गया। 12 मार्च 1966 को नारायणपुर इलाके में भुखमरी और इलाज की कमी को ले कर प्रवीर द्वारा पुन: अनशन किया गया। प्रवीर के आन्दोलन व्यवस्था के लिये प्रश्नचिन्ह बने हुए थे जिनका दमन करने के लिये आदिवासी और भूतपूर्व राजा के बीच के बंध को तोडना आवश्यक था। 

इस बीच एक बडी घटना घट गयी। तारीख 18.03.66, शाम के साढे तीन बजे थे। चैत पूजा के लिये लकड़ी का बड़ा सा सिन्दूर-तिलक लगा हुआ लठ्ठा महल के भीतर ले जाया जा रहा था। कंकालिन गुड़ी के सामने परम्परानुसार इस स्तम्भ को लगाया जाना था। इस समय कहीं किसी तरह की अशांति नहीं और न ही कोई उत्तेजना। महिलाओं की संख्या चार सौ से अधिक होंगी; इस समूह में पुरुष भी थे, पूरी तरह नि:शस्त्र, जो संख्या में डेढ़ सौ से अधिक नहीं थे। महिलाओं में अधिकांश के वदन पर नीली साड़ी थी और पुरुषों के सिर नीली पगडियाँ; यह भूषा प्रवीर नें अपने समर्थकों को दी थी जिन्हें वे मेम्बर तथा मेम्ब्रीन कहते थे; इस समय इस समूह का प्रवीर से केवल इतना ही सम्बन्ध भर था। यह जुलूस महल के प्रमुख प्रवेश – सिंह द्वार के निकट पहुँचा ही था कि एकाएक उस पर लाठीचार्ज हो गया। इसके बाद स्थिति विस्फोटक हो गयी तथा उत्तेजित ग्रामीणों नें तीर-कमान निकाल लिये थे। इस अप्रिय स्थिति को प्रवीर के हस्तक्षेप के बाद ही टाला जा सका था। स्थिति यही नहीं थमी। 25 मार्च 1966 के दिन राजमहल में सामने का मैदान आदिम परिवारों से अटा पड़ा था। कोंटा, उसूर, सुकमा, छिंदगढ, कटे कल्याण, बीजापुर, भोपालपटनम, कुँआकोंडा, भैरमगढ, गीदम, दंतेवाडा, बास्तानार, दरभा, बकावण्ड, तोकापाल लौहण्डीगुडा, बस्तर, जगदलपुर, कोण्डागाँव, माकडी, फरसगाँव, नारायनपुर.....जिले के कोने कोने से या कहें कि विलुप्त हो गयी बस्तर रियासत के हर हिस्से से लोग अपनी समस्या, पीड़ा और उपज के साथ महल के भीतर आ कर बैठे हुए थे। भीड़ की इतनी बड़ी संख्या का एक कारण यह भी था कि अनेकों गाँवों के माझी 'आखेट की स्वीकृति' अपने राजा से लेने आये थे। चैत की नवदुर्गा में आदिवासी कुछ बीज राजा को देते और फिर वही बीज उनसे ले कर अपने खेतों में बो देते थे। चैत और बैसाख महीनों में आदिवासी शिकार के लिये निकलते हैं जिसके लिये राजाज्ञा लेने की परम्परा रही है। यह भी एक कारण था कि भीड़ में धनुष-वाण बहुत बड़ी संख्या में दिखाई पड़ रहे थे, यद्यपि वाणों को युद्ध करने के लिये नहीं बनाया गया था। ज्यादातर वाण वो थे जिनसे चिडिया मारने का काम लिया जाना था। इसी बीच आदिवासियों और पुलिस में एक विचाराधीन कैदी को जेल ले जाते समय झड़प हुई जिसमे एक सूबेदार सरदार अवतार सिंह की मौत हो गयी। इसके बाद पुलिस नें आनन-फानन में राजमहल परिसर को घेर लिया; आँसूगैस छोडी गयी तथा फिर बिना चेतावनी के ही फायरिंग होने लगी। दोपहर बारह बजे तक अधिकतम आदिवासी मैदानों से हट कर महल के भीतर शरण ले चुके थे। धनुषों पर वाण चढ़ गये और जहाँ-तहाँ से गोलियों का जवाब भी दिया जाने लगा। दोपहर के दो बजे गोलियों की आवाज़े कुछ थमीं। सिपाहियों के लिये खाने का पैकेट पहुँचाया गया था। छुटपुट धमाके फिर भी जारी रहे। कोई सिर या छाती नजर आयी नहीं कि बंदूखें गरजने लगती थीं। दोपहर के ढ़ाई बजे; लाउडस्पीकर से घोषणा की गयी – " सभी आदिवासी महल से बाहर आ कर आत्मसमर्पण कर दें। जो लोग निहत्थे होंगे उनपर गोलियाँ नहीं चलायी जायेंगी।" प्रवीर ने औरतों और बच्चों को आत्मसमर्पण करने के लिये प्रेरित किया। लगभग डेढ़ सौ औरतें अपने बच्चों के साथ बाहर आयीं। जैसे ही वे सिंहद्वार की ओर आत्मसमर्पण के लिये बढीं, मैदान में सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया। यह जुनून था अथवा आदेश...बेदर्दी से लाठियाँ बरसाई जाने लगीं। क्या इसके बाद किसी की हिम्मत हो सकती थी कि वो आत्मसमर्पण करे? शाम साढे चार बजे एक काले रंग की कार प्रवीर के निवास महल के निकट पहुँची। प्रवीर और उसके आश्रितों को आत्मसमर्पण के लिये आवाज़ दी गयी। आवाज सुन कर प्रवीर पोर्चे से लगे बरामदे तक आये किंतु अचानक ही उनपर गोली चला दी गयी, गोली जांघ में जा धँसी थी। इसके बाद महल के भीतरी हिस्सों में जहाँ तहाँ से गोली चलने की आवाज़े आने लगी थीं। आदिम वाणों ने बहुत वीरता से देर तक गोलियों को अपने देवता के शयनकक्ष तक पहुँचने से रोके रखा। एक प्रत्यक्षदर्शी अर्दली के अनुसार बहुत से सिपाही राजा के कमरे के भीतर घुस आये थे। जब वह सीढियों से नीचे उतर कर भाग रहा था उसे गोलियाँ चलने की कई आवाजें सुनाई दीं...वह जान गया था कि उनके महाराज प्रवीर चंद्र भंजदेव मार डाले गये हैं। शाम के साढे चार बजे इस आदिवासी ईश्वर का अवसान हो गया था। प्रवीर की मृत्यु के साथ ही राजमहल की चारदीवारी के भीतर चल रहे संघर्ष ने उग्र रूप ले लिया। अब यह प्रतिक्रिया का युद्ध था जिसमें मरने या मारने का जुनून सन्निहित था। रात्रि के लगभग 11.30 तक निरंतर संघर्ष जारी रहा और गोली चलाने की आवाजें भी लगातार महल की ओर से आती रहीं थीं। इसके बाद रुक रुक कर गोली चलाये जाने का सिलसिला अलगे दिन की सुबह चार बजे तक जारी रहा। 26.03.1966; सुबह के ग्यारह बजे; जिलाधीश तथा अनेकों पुलिस अधिकारी महल के भीतर प्रविष्ठ हो सके। इसी शाम प्रवीर का अंतिम संस्कार कर दिया गया। प्रवीर बस्तर की आत्मा थे वे नष्ट नहीं किये जा सके। आज भी वे बस्तर के लगभग हर घर में और हर दिल मे उपस्थित हैं। 
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Invitation to the Independent People’s Tribunal on Police Torture Against Muslims


  • Invitation to the Independent People's Tribunal on Police Torture Against Muslims

    http://www.facebook.com/events/231506490307605/permalink/231506493640938/?notif_t=like

    People's Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR) in collaboration with Human Rights Law Network (HRLN) is holding an Independent People's Tribunal on Police Torture against Muslims in Uttar Pradesh. The event is scheduled to take place on April 3 and 4, 2013 at Kamesh Hut Hotel in Varanasi. The specific objective of this event is to highlight and present a systematic account and assessment of the incidences of gross human rights violations suffered by the members of Muslim minority in the districts of Varanasi, Moradabad, Aligarh, Chandauli and Meerut in Uttar Pradesh.

    Human rights groups have reported multiple cases of discrimination by police against Muslims within Uttar Pradesh. According to National Human Rights Commission's statistics of 2009, over 50 per cent of the complaints of human rights violations is originated from Uttar Pradesh. Human rights organisations and other civil society groups working within Uttar Pradesh have shown increasing concerns on shocking and violent behavior of the state agencies, specially the atrocities and abuses by the police towards the marginalized unprotected sections of the society, particularly the Muslim minority in the state. Use of abusive language and ill treatment seems to have become a common practice on the part of the police whenever any member of Muslim community approaches them for justice. Muslims are victimized and targeted during the communal riots. They suffer due to the partisan attitude of the police towards them.

    The people's tribunal will consist of seven-member panel of prominent judges, academicians, former police officials in front of whom the victims would provide necessary testimonies about their cases. A total of 40 cases will be deposited along with the testimonies of 4 experts on the topic. We would be delighted if you could collaborate as a partner in this event.

    Sincerely Yours


    Lenin Raghuvanshi
    Executive Director
    Peoples' Vigilance Committee on Human Rights

    Mathew Jacob
    Assistant Director
    Human Rights Law Network

    Concept Note

    Background and Objective of the Independent People's Tribunal
    Uttar Pradesh is most populous state of India. The fourth largest state in terms of people living below poverty line, Uttar Pradesh constitutes more than 30 percent of the total population. In recent years, the state has acquired the dubious distinction of having most repressive administrative set-up which is well demonstrated by increasingly higher incidents of human rights violations. According to National Human Rights Commission's data of 2009, over 50 percent of the complaints of human rights violations originated from Uttar Pradesh. Human rights organizations and other civil society groups working within Uttar Pradesh have shown increasing concerns on shocking and violent behavior of the state agencies, especially the atrocities perpetrated by the police on the vulnerable, marginalised and unprotected sections of the society, Particularly Muslim minority community.
    There are mass scale violations happening in UP which include torture in custody, rape, extrajudicial killings, more often on flimsy grounds. This is the situation despite the fact that the state has a legally empowered State Human Rights Commission to protect the liberty and dignity of the people. Such violent behavior or violation of individual right to life and liberty as guaranteed under the constitution of free India is often justified to maintain law and order in the society, security or in the guise of tackling terrorism.
    Muslims constitutes 18.5% of the population of Uttar Pradesh where they are the principle minority group. Muslims have not only suffered discrimination in social and economic development process historically but with the "tag of terrorism" in recent years they have also been subjected to worst forms of repression all over. The problem is exacerbated by the fact that innocent Muslims today not only fall victims of communal rioting but also suffer due to the biased attitude of the state agencies. Muslim victims are given selective treatment on their complaints and thereby denied the right to be treated equally getting equal protection before the law. Their rights, freedom and dignity are denied everyday just because they happen to belong to a particular religion.
    The need to ensure dignity and justice to minorities in the state has motivated the human rights organisations, civil society groups, legal experts, and academicians to come together to a public platform to voice their concerns. With this objective the People's Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR), and Human Rights Law Network (HRLN) have joined hands to hold an Independent People's Tribunal on April 3 and 4, 2013 in Varanasi with support of EU-JMN initiative for reducing police torture against Muslim Minority . The specific objective of this event is to highlight and present a systematic account and assessment of the incidences of gross human rights violations suffered by the minority Muslim community in the districts of Varanasi, Moradabad, Aligarh, Chandauli and Meerut in Uttar Pradesh. It is part of the systematic inquiry that seeks to identify and understand the patterns, its practices and the participants in the process of continued violation of human rights and discrimination against and torture of Muslim community members at the hands of state agencies like police.
    Human rights groups have reported numerous cases of discrimination by police against Muslims within Uttar Pradesh. In fact, people of Muslim community pass through a physical and mental trauma on a daily basis. Any act of terrorism brings enormous amount of stress and misery for ordinary Muslims because they are the ones who become the prime suspects. It is not only the state police which targets them but even common people tend to look at Muslims with suspicion. Today a large number of Muslim youths are being trapped in bogus cases under a planned conspiracy. Several media reports expose the fake encounters or extra judicial killings where Muslim youth were reported to be killed. Even the state treats its Muslim citizens vindictively. Talking to any Muslim youth on the bylanes of any city in Uttar Pradesh, one can know the horror tales that they have to pass through. They can be picked up by the police any time, day or night, for questioning. Being a Muslim or having a Muslim identity is or can be threatening because one is likely to be dubbed as a terrorist or having links with terrorist group and so on. This is how the state police treat anyone who has a Muslim name and is confronted by police. Use of abusive language and ill treatment seems to have become a common practice on the part of the police. The social pressure is so much that today Muslim youths are compelled to adopt Hindu names such Pappu, Pintu and so on. Keeping beard, wearing cap and loongi can invite trouble anytime.

    Muslims in India face double dilemma. On the one hand they are labelled as anti nationals who have to prove their national loyalties and at the same time they are blamed, as being appeased as a community, by the right wing Hindutva groups. They are victimized and targeted during the communal riots.

    The chronology of communal riots in Uttar Pradesh clearly demonstrates that such disturbances have taken place in cities and town where Muslim middle class have attained some degree of economic self sufficiency in the field of small and medium scale industry sector. Rioting not only takes heavy toll of life and property but official data show that it is the minority Muslims who become the major victims, riot after riot. Muslim community feels that the police and security agencies have a partisan attitude. In Uttar Pradesh, PAC has been accused of blatant misuse of power against the minority community. In case of any violent incident, FIR is registered in the name of unidentified persons and then gradually the entire Muslim community is harassed and ill treated in the name of questioning. In the course of investigation even children, elderly and physically handicapped are not spared; all have to bear the brunt of police brutality. In recent years a new trend is visible, that is, even the lawyers who are taking legal cases on behalf of Muslims are being threatened. Crime record data shows that the percentage of Muslims in jails is much higher than their percentage in total population. Though, voices are often raised even in the Indian Parliament that innocent Muslims should be freed. But the question remains that even if they are out of jails, would those innocent be able to live in the 'outer' world with the same dignity? Will the society accept them and permit them to live as part of their family? These are the issues which require scrutiny in contemporary times.

    Cases and Expert Opinions
    For the purpose of organizing this people's tribunal, we have selected about 40 cases of victims, which have been documented and would be deposed before the jury members in the IPT. These are representative cases clearly representing a pattern, a reflection of a reality which is much bigger than these 40 cases. In some cases FIR has been lodged but no action has been taken by the police. In some cases, it has been found that police authorities have avoided registering the cases. In some cases it was found that when victims tried to take the help of police to seek justice, but instead they were falsely implicated by the police and their harassment by the police authorities continued. Almost all the cases, to be deposed in the IPT, have been previously submitted by the victims to various state authorities and institutions like SSP, DGP, Minority Commission, Women's Commission and National Human Rights Commission but so far they have not been able to receive any relief in their quest for justice. These cases represent violations committed all over Uttar Pradesh. These violations refer to crimes or negligence committed by the state institutions such as police inaction after an FIR, no action after FIR, false investigation report, torture, ill treatment of the victims etc. The nature of violation covers civil and political rights of the victims.

    In addition to the victims' testimonies, five experts working on the issue of rights of minority community will share their experiences of working in the field of human rights. This panel of experts is comprising of prominent members of civil society organizations and academicians who have been involved in studying and understanding the plight of the marginalized sections of the society at the grass root level as well as at the policy level. Today, the paradox of human rights is that even while proclamations are made, the rights are denied to large section of the people.

    Mission of the jury members
    Jury members are requested to make their observations on the state of human rights in Uttar Pradesh and the role of various state agencies and institutions in fulfilling the objectives of constitution which assures right to life and liberty to all its citizens without discriminating on the basis of caste, class, gender or religion. After hearing the testimonies of the victims and making further enquiries with them, the jury members will issue interim observations and recommendations at the end of the event. A report will be prepared on the basis of the details of the testimonies along with jury's recommendations. The reported document will be submitted to the National Human Rights Commission, National Minorities Commission, National Women's Commission, Director General of Police, Uttar Pradesh, Ministry of Minority Welfare, Chief Minister of UP, Prime Minister of India, different political parties, Home Department and Chief Justice of India. It will also be released to the press. For the advocacy of these cases, RTI applications will be filed so that victims get justice and rule of law is established.

    http://www.pvchr.net/2013/03/invitation-to-independent-peoples.html
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