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Sunday, May 26, 2013

नक्सल हमला:कांग्रेस नेताओं सहित30 मरे!ছত্রিসগড়ে কংগ্রেস কনভয়ে মাওবাদী হামলা! Naxal attack: Chhattisgarh Congress chief, son found dead, death toll 30,VC Shukla admitted to Gurgaon hospital, critical!PM, Sonia reach Raipur to assess situation!Centre rushes additional forces!

नक्सल हमला:कांग्रेस नेताओं सहित30 मरे!ছত্রিসগড়ে কংগ্রেস কনভয়ে মাওবাদী হামলা!

Naxal attack: Chhattisgarh Congress chief, son found dead, death toll 30,VC Shukla admitted to Gurgaon hospital, critical!PM, Sonia reach Raipur to assess situation!Centre rushes additional forces!


नक्सल हमला:कांग्रेस नेताओं सहित30 मरे

रायपुर।। शनिवार शाम हुए नक्सली हमले के बाद से लापता बताए जा रहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंद कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश पटेल के शव आज घटनास्थल से थोड़ी दूरी पर मिले। उनके बारे में कहा जा रहा था कि नक्सली उन्हें अगवा कर ले गए हैं।

बस्तर जिले के पुलिस अधिकारियों ने बताया कि घटनास्थल पर आज सुरक्षाकर्मियों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के शव भी बरामद किए गए।


छत्तीसगढ में हुए माओवादी हमले की निन्दा करते हुए भाजपा ने आज नक्सल खतरे से निपटने के लिए आक्रामक एकीकृत रणनीति बनाने की अपील की। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। हम इसकी कडी निन्दा करते हैं। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने भी घटना की निन्दा करते हुए कहा कि नक्सल खतरे से निपटने के लिए आक्रामक एकीकृत रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि यह कायराना हरकत है और भाजपा इसकी निन्दा करती है। नक्सल समस्या किसी राज्य विशेष से नहीं जुडी है बल्कि कई राज्यों की समस्या है। कल का हमला सुकमा में हुआ जो महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ की सीमा पर है।


ছত্তিসগড়ের বস্তার জেলার দরভাঘাটে কংগ্রেস নেতাদের কনভয়ে বড়সড় হামলা চালালো মাওবাদীরা। ল্যান্ডমাইন, বন্দুক নিয়ে ৪০০ থেকে ৫০০ জনের একটি দল হামলা চালায়। নিহত হয়েছেন কংগ্রেস নেতা মহেন্দ্র কর্মা। মৃত্যু হয়েছে রাজ্যের আরও দুই কংগ্রেস নেতার। গুলিবিদ্ধ হয়েছেন প্রাক্তন কেন্দ্রীয় মন্ত্রী বিদ্যাচরণ শুক্লা। উদ্ধার হয়েছে বস্তার জেলার কংগ্রেস সভাপতি নন্দ কুমার প্যাটেল ও তাঁর ছেলের মৃতদেহ। এখনও পর্যন্ত ২৫ জনের মৃত্যুর খবর পাওয়া গেছে। আহত হয়েছেন কমপক্ষে ২৮ জন। 

এ বছরের শেষের দিকে ছত্তিসগড়ে বিধানসভা নির্বাচন। এখন থেকেই প্রচার শুরু করে দিয়েছে ক্ষমতাসীন বিজেপি ও বিরোধী কংগ্রেস। বিজেপি শুরু করেছে বিকাশ যাত্রা। পাল্টা পরিবর্তন যাত্রায় নেমেছে কংগ্রেস। শনিবার বিকেলে এই পরিবর্তন যাত্রা সেরেই ফিরছিলেন কংগ্রেস নেতারা।

বস্তারের জেলা সদর জগদলপুর থেকে তিরিশ কিলোমিটার দূরে জঙ্গল ঘেরা দরভাঘাট এলাকায় জাতীয় সড়কের ওপর তাঁদের কনভয়ে হামলা চালায় মাওবাদীরা। ল্যান্ডমাইন বিস্ফোরণ ঘটানো হয়। চারশো থেকে পাঁচশো সন্দেহভাজন মাওবাদীর দল নির্বিচারে গুলি চালায়।


রায়পুর: ছত্তীসগঢ়ের সুকমায় কংগ্রেসের পরিবর্তন যাত্রায় শনিবারের মাওবাদী হামলায় নিহতের সংখ্যা বেড়ে হয়েছে ২৯৷ আহত অন্তত ২০৷ তাঁদের বেশ কয়েকজনের অবস্থা আশঙ্কাজনক৷ আজ সকালে দ্বারভার জঙ্গল থেকে ছত্তীসগঢ় প্রদেশ কংগ্রেস সভাপতি নন্দকুমার পটেল ও তাঁর ছেলে দীনেশকুমার পটেলের দেহ উদ্ধার হয়৷ গতকাল হামলার পর থেকে নিখোঁজ ছিলেন তাঁরা৷ এছাড়াও নিহতদের মধ্যে রয়েছেন ছত্তীসগঢ় বিধানসভার প্রাক্তন বিরোধী দলনেতা মহেন্দ্র কর্মা, রাজনন্দগাঁওয়ের প্রাক্তন বিধায়ক উদয় মুদালিয়ার সহ আরও ২৫জন৷ এদিকে, গুরুতর জখম অবস্থায় হাসপাতালে চিকিত্সাধীন প্রাক্তন কেন্দ্রীয় মন্ত্রী বিদ্যাচরণ শুক্ল৷গতকাল রাতেই জগদলপুর হাসপাতালে তাঁর শরীরে অস্ত্রোপচার করা হয়৷তাঁকে আজ সকালে বিমানে উড়িয়ে এনে নয়াদিল্লির কাছে একটি হাসপাতালে ভর্তি করা হয়েছে।হাসপাতালে চিকিত্সাধীন কংগ্রেস বিধায়ক কাওয়াসি লাখমা, দলীয় নেতা রাজীব নারায়ণ, প্রাক্তন কংগ্রেস বিধায়ক ফোলো দেবী নেতাম সহ ২০জন৷ এদিন ভোরের আলো ফুটতেই ছত্তীসগঢ়ে জঙ্গল এলাকায় তল্লাশি শুরু করে সিআরপিএফ৷ তবে বৃষ্টির জেরে অভিযান ব্যাহত হচ্ছে সকাল থেকে৷ এদিকে  ছত্তীসগঢ় পৌঁছেছেন প্রধানমন্ত্রী মনমোহন সিংহ ও কংগ্রেস সভানেত্রী সনিয়া গাঁধী৷আগেই সেখানে পৌঁছে যান কংগ্রেস সহ-সভাপতি রাহুল গাঁধী৷ গতকালের আক্রমণের তীব্র নিন্দা করে তিনি বলেছেন, মাওবাদীদের এই হামলা শুধুমাত্র কংগ্রেস নেতা, কর্মীদের ওপর নয়, গণতন্ত্রের ওপর হামলা৷ 

ঘটনাস্থলেই মারা যান কংগ্রেস নেতা মহেন্দ্র কর্মা ও উদয় মুদালিয়র। হাসপাতালে মৃত্যু হয় রাজ্যের আরেক কংগ্রেস নেতা গোপী ওয়াদবানির। 

ছত্তিসগড়ে মাওবাদী বিরোধী আন্দোলনের রূপকার ছিলেন মহেন্দ্র কর্মা। নব্বইয়ের দশকে তাঁর হাত ধরেই কাজ শুরু করে জনজাগরণ মঞ্চ। পরে, বহু বিতর্কিত ও সমালোচিত সালওয়া জুড়ুমও শুরু করেন তিনিই। যদিও, পরে সেই আন্দোলনের রাশ হাতে নিয়ে নেয় বিজেপি।

দীর্ঘদিন মন্ত্রী, বিধায়ক থাকার পর দুহাজার আটে বিধানসভা ভোটে হেরে যান মহেন্দ্র কর্মা। যদিও, তাঁর প্রভাব ছিল আগের মতোই অটুট। বহুদিন ধরেই মাওবাদীদের হিট লিস্টে ছিলেন মহেন্দ্র কর্মা।
এর আগে, একাধিকবার আক্রমণের শিকার হলেও বেঁচে যান তিনি। এ বার আর শেষরক্ষা হল না। 

কিষেণজির মৃত্যুর পর পশ্চিমবঙ্গে অনেকটাই কোণঠাসা মাওবাদীরা। ঝাড়খণ্ডের জঙ্গল এলাকা বা মহারাষ্ট্রের গড়চিরৌলির মতো শক্ত ঘাঁটিতেও ইদানিংকালে নিরাপত্তাবাহিনীর হাতে বড়সড় ক্ষতির সম্মুখীন হয়েছে তারা। তবে, ছত্তিসগড়ের বস্তার অঞ্চলে যে তাঁদের প্রভাব এখনও অটুট, শনিবারের ঘটনা তারই জ্বলন্ত প্রমাণ বলে মনে করা হচ্ছে।


नक्सली हमला कर एक राज्य से दूसरे राज्य में भाग जाते हैं इसीलिए केन्द्र को इस खतरे से निपटने के लिए एकीकृत रणनीति बनानी होगी।

जावडेकर ने कहा कि यह विकास से जुडा मुद्दा नहीं है। नक्सली मानते हैं कि वे हिंसा के जरिए सत्ता परिवर्तन कर सकते हैं। उन्होंने कांग्रेस को आगाह किया कि वह कल की इस घटना पर राजनीति न करे। पार्टी के ही एक अन्य नेता अनंत कुमार ने कहा कि पूरे देश को एक साथ खडे होकर संकल्प लेना चाहिए कि नक्सल समस्या और हिंसा को हम अपनी मातृभूमि से उखाड फेंकेंगे।


छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेस नेताओं पर हुए नक्सली हमले से वहां की सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल इसलिए क्योंकि पिछले 10 सालों में नक्सलियों की ताकत दस गुना बढ़ गई है। सवाल इसलिए भी उठ रहे कि कांग्रेस की परिवर्तन रैली को लेकर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किए गए थे। इस हमले ने केंद्र और राज्य सरकार की खुफिया एजेंसियों की नाकामी को भी उजागर किया है।

सुकमा में जिस तरह से नक्सलियों ने इतने बड़े हमले को अंजाम दिया, उससे रमन सिंह सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। कांग्रेस के बड़े नेताओं पर हमले के बाद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का गुस्सा भड़क गया। छत्तीसगढ़ के बड़े कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा और उदय मुदलियार की मौत के बाद कांग्रेसी कायकर्ताओं ने जगह-जगह प्रदर्शन शुरू कर दिया। प्रदर्शनकारी रमन सिंह सरकार को बर्खास्त करने की मांग करने लगे।

हमले से कांग्रेस का गुस्सा फूटा, राष्ट्रपति शासन की मांग

बीती रात दुर्ग में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी दफ्तर पर हमला बोल दिया। कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने बीजेपी दफ्तर पर लगे पोस्टर और बैनर फाड़ डाले। पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी तो रमन सरकार की शिकायत लेकर राज्यपाल के पास जा पहुंचे। जोगी का कहना है कि राज्य में कांग्रेस के नेताओं को सही तरीके से सुरक्षा नहीं दी जा रही। कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में राष्ट्रपति शासन लगाने तक की मांग कर डाली। राज्यपाल से मुलाकात के दौरान भी अजित जोगी के आंसू थम नहीं रहे थे।

हमले के बाद भी नक्सलियों का कहर थमा नहीं, नक्सलियों ने एक जगह एक ट्रक को फूंक दिया। ट्रक को फूंकने के बाद नक्सलियों ने पहले से तैयार एक बैनर मौके पर टांग दिया। जाहिर है, नक्सलियों ने हमले की तैयारी पहले से कर रखी थी, ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या नक्सलियों की गतिविधि के बारे में रमन सरकार को पता था? क्या नक्सलियों के हमले के बारे में खुफिया विभाग को कोई जानकारी थी? अगर थी तो सरकार ने इसके लिए क्या कदम उठाए? कांग्रेस के बड़े नेताओं की सुरक्षा में लापरवाही क्यों बरती गई? अगर सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे तो संवेदनशील इलाकों से यात्रा की गुजरने की इजाजत क्यों दी गई? आखिर राज्य की खुफिया विभाग क्या कर रही थी?

जिस जगह पर हमला हुआ वो नक्सलियों की हलचल की वजह से संवेदनशील माना जाता है। संकरा रास्ता होने की वजह से वहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम होने चाहिए थे, सरकार को नेताओं के काफिले के गुजरने तक सुरक्षा बल के जवानों को तैनात करना चाहिए था,लेकिन ऐसा नहीं किया गया यानी नेताओं की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया गया, सुरक्षा के जानकारों को इसे चूक मानने में कोई गुरेज नहीं।

ये सच है कि काफिले में शामिल कई नेताओं को निजी सुरक्षा मिली थी। कुछ को जेड स्तर की सुरक्षा मिली थी, लेकिन हजारों नक्सलियों से निपटने में वो नाकाम रहे। इस हमले ने छत्तीसगढ़ सरकार के नक्सलियों पर नकेल कसने के दावे की पोल खोल दी है। आंकड़े भी छत्तीसगढ़ सरकार के दावों की कलई खोलते हैं। केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 10 साल में ट्रेंड हथियारबंद नक्सलियों की संख्या एक हजार से बढ़कर 10 हजार हो चुकी है।

सबसे घातक मिलिटरी इकाई पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी की कंपनियां तीन से दस हो चुकी हैं। वे लगातार इलाके का विस्तार और सदस्यों की संख्या बढ़ा रहे हैं। एक महीने पहले ही उन्होंने कांकेर और राजनांदगांव के इलाके को मिलाकर नया डिवीजन बनाया है। खुफिया एजेंसियों ने पिछले 10-11 सालों में नक्सलियों की ताकत पर एक रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कहा गया है कि उनका पूरा जोर बड़े हमलों की जगह छोटे हमले, अपनी ताकत बढ़ाने और इलाका विस्तार पर है।


विद्या चरण शुक्ल की हालत नाजुक, ICU में भर्ती

नक्सली हमले में घायल 84 साल के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्या चरण शुक्ल की हालत नाजुक बनी हुई है, उनके कई अंग ठीक से काम नहीं रहे हैं। फिलहाल उनका गुड़ंगाव के मेंदाता अस्पताल में इलाज चल रहा है।12:24 PM, May 26, 2013

हमले से कांग्रेस का गुस्सा फूटा, राष्ट्रपति शासन की मांग

छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेस नेताओं पर हुए नक्सली हमले से वहां की सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल इसलिए क्योंकि पिछले 10 सालों में नक्सलियों की ताकत दस गुना बढ़ गई है।08:10 AM, May 26, 2013

अगवा नंद कुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की हत्या

नक्सली हमले के दौरान अगवा नंद कुमार पटेल की भी नक्सलियों ने हत्या कर दी है। पटेल छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष थे, मौका ए वारदात के आसपास के गांववालों ने दावा किया है कि पटेल की उन्होंने लाश देखी है।08:07 AM, May 26, 2013

तस्वीरों में देखें: सुकमा में नक्सलियों का कहर

छत्तीसगढ़ के सुकमा में नक्सलियों ने बड़ा हमला कर दिया। सूत्रों के मुताबिक हमले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी के बड़े नेता महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी गई है।22:35 PM, May 25, 2013


A day after Chhattisgarh Congress Committee chief Nand Kumar Patel and his son Dinesh were kidnapped by Naxals, their dead bodies were found in Jiram valley, Bastar on Sunday.  After a major Naxal attack on a Congress rally in Chhattisgarh, the Union Home Ministry on Saturday night said it is rushing additional paramilitary forces to help launch a combing operation for release of abducted leaders. 

"Home Ministry has sent additional forces to Chhattisgarh to assist the local administration in launching combing operations for rescue of kidnapped persons," Home Ministry sources said adding "the state government has been assured of all help".


The Home Ministry has also sought a report from the state government on today's violence. The MHA officials are in regular touch with state government officials and are monitoring the situation.

While senior Congress leader Mahendra Karma was killed in the attack, another leader VC Shukla is reported to be critical after sustaining three bullet injuries. 

The Maoists also kidnapped PCC chief Nand Kumar Patel and his son Dinesh after attacking a convoy of Congress leaders in Darba Gati Valley in Jagdalpur district. 
The bullet-riddled bodies of the father son-duo were today found along with those of eight others in Jiram valley in Bastar. 


 The condition of senior Congress leader VC Shukla, who was injured after Maoists ambushed a convoy of party leaders in Chhattisgarh's Bastar district, was on Sunday critical, according to doctors treating him. 


Following Saturday's tragic and dastardly attack on Congress leaders and activists by Maoists in Chhattisgarh, Prime Minister Dr Manmohan Singh and Congress president Sonia Gandhi have reached here on Sunday to offer their condolences and support to families of those killed and injured. 

Earlier describing the incident as a dastardly and anti-democratic act, Dr Singh said, Government will take firm action against the perpetrators of violence. 

Dr Singh also appealed to the attackers to release, at the earliest, all those who may have been abducted. He also spoke to Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh and offered all help in rescue and relief operations. 


Congress President Sonia Gandhi, accompanied by Party Vice President Rahul Gandhi met the Prime Minister last night. Talking to media persons after the meeting Gandhi said, she is shocked, astounded and pained by the attack on Party colleagues. 

Congress Vice President Rahul Gandhi visited the injured persons at hospital in Raipur. He also visited Pradesh Congress Headquarters in Raipur and addressed party leaders and workers. 

At least 27 people, including senior Congress leader Nand Kumar Patel, Mahendra Karma, were killed and several others injured including senior party leader VC Shukla when heavily-armed Maoists ambushed a convoy of party leaders inside a dense forest in Chhattisgarh's Bastar district. 

The body of Chhattisgarh Congress chief Nand Kumar Patel, who was kidnapped along with his son after Maoists ambushed a convoy of party leaders, was found on Sunday in a forest in Bastar district. The body has been spotted near Darba Gati Valley, police said. 

Maoists had kidnapped Patel and his son Dinesh after attacking the convoy of Congress leaders.

84-year-old Shukla was airlifted to Medanta Hospital in Gurgaon from Raipur early this morning. 

r Yatin Mehta, Chairman Institute of Critical Care and Anaesthesiology, Medanta Hospital said, "Shukla is undergoing treatment. He is critical but doctors are treating him". 

The former union minister yesterday underwent an operation in Jagdalpur hospital for removal of three bullets he had received in the attack. 

Heavily-armed Maoists ambushed a convoy of Congress leaders in Chattisgarh's Bastar district yesterday, killing 27 people including senior Congress leader Mahendra Karma, and injuring Shukla and 31 others.


The Maoists had kidnapped Patel and his son Dinesh after attacking the convoy of Congress leaders yesterday. 

With the recovery of the bodies, the toll in the lethal Maoist attack on a convoy of Congress leaders, has climbed to 30, police sources said. 

Meanwhile, heavy rains in the area are hampering the operations undertaken by the security forces. 


In an unprecedented attack, Naxals on Saturday targeted a convoy of Congress leaders in Bastar district yesterday, killing the party's senior leader Mahendra Karma, who was the guiding force behind Salwa Judum. 

A former Congress MLA Udya Mudaliyar was also shot dead by the Maoists who attacked the convoy at around 1730 hours when they were returning from a "Parivartan" rally. 

Karma, a former home minister of the state who was a guiding force behind "Salwa Judum" (anti-Naxal operation by vigilante groups), was killed when a large number of Maoists opened fire on the rally. The burst of gunfire was preceded by a blast. 

Prime Minister Manmohan Singh and Congress chief Sonia Gandhi have condemned the incident and are scheduled to visit Chhattisgarh today. 

Sonia Gandhi, speaking to reporters in New Delhi after holding a late evening meeting at Prime Minister Manmohan Singh's official residence, termed the attack "despicable" and said the party was "devastated". 

Minister of State for Home RPN Singh, who is slated to go to the state Sunday, tweeted condemning the attack. 

Chief Minister Raman Singh said: "This is not an attack on a particular party, but an attack on democracy." 

"We must all maintain calm. I have spoken to the prime minister, and also to Rajnath Singh (BJP chief) and to Sushma Swaraj (Leader of Opposition in the Lok Sabha)," he said. 

He said his government is in touch with his medical authorities in Delhi and Hyderabad. 

"The fight against Maoists is long. We need to show unity," Singh said. 

Bharatiya Janata Party (BJP) chief Rajnath Singh, in Gorakhpur, condemned the attack. "I condemn it in strong words. We should fight it and rise above petty political considerations." 


Naxal attack: Chhattisgarh Congress chief, son found dead, death toll 27


छत्तीसगढ़ के जीरमघाटी के निकट घात लगाकर बैठे नक्सलियों द्वारा कांग्रेस के नेताओं की हत्या पर केन्द्र भी चिंतित है। प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने घटना की निंदा करते हुए इस लोकतंत्र विरोधी घटना करार दिया है। प्रधानमंत्री ने बचाव एवं राहत कार्य के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को हर संभव मदद उपलब्ध कराने का प्रस्ताव भी किया है। दूसरी ओर इस घटना के बाद शाम को मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक उच्चस्तरीय बैठक की है और पूरे राज्य में एलर्ट जारी कर दिया गया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने अपनी अपनी यात्राओं को स्थगित करने का भी ऐलान कर दिया है।

जीरमघाटी की इस घटना में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र कर्मा सहित 12 नेताओं के मारे जाने की अपुष्ट खबरें आ रही हैं। इसके साथ ही कांग्रेस के प्रदेश नंद कुमार पटेल और उनके बेटे को नक्सली अगवा करके ले गये हैं। इस हमले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। बताया जा रहा है कि श्री शुक्ल की हालत नाजुक है।


'उनके बुलेट का जवाब है हमारे पास'

By  
महेन्द्र कर्मा (टीशर्ट में, बैठे हुए)
महेन्द्र कर्मा (टीशर्ट में, बैठे हुए)

छत्तीसगढ़ के भीषण नक्सली हमले में जिन महेन्द्र कर्मा की मौत हुई है वे महज कांग्रेस के नेता भर न थे। खुद आदिवासी समाज से ताल्लुक रखनेवाले महेन्द्र कर्मा ने नक्सलवाद को खत्म करने के लिए गोली का जवाब बोली से देने की पहल की थी। जून 2005 में जिस सलवा जुड़ुम मुहिम की शुरूआत हुई थी समय के साथ उसने तो दम तोड़ दिया लेकिन नक्सलवाद बेदम न हुआ। कई असफल कोशिशों के बाद आखिरकार नक्सली हमलावर महेन्द्र कर्मा को 'कुचलने' में कामयाब हो ही गये। सितंबर 2012 में आशीष कुमार अंशु ने महेन्द्र कर्मा से मुलाकात करके लंबी बात की थी जो उस वक्त जनज्वार.कॉम में प्रकाशित भी हुआ था। इस बातचीत में उन्होंने नक्सलियों से निपटने के सवाल पर जवाब दिया था, उनके बुलेट का जवाब है हमारे पास। हो सकता है कर्मा के पास कोई जवाब रहा होगा लेकिन दुर्भाग्य से अब हमारे पास महेन्द्र कर्मा नहीं है। वे उसी बुलेट का शिकार बन गये जिस बुलेट का उन्होंने जवाब खोज निकाला था।

बस्तर के पिछड़ेपन के लिए किसे जिम्मेवार माना जाए, माओवादियों को या फिर यहां की राजनीति को? 

माओवादी मूल रूप से किसी भी प्रकार के विकास का विरोध करते हैं. इसके पीछे की दलील यह है कि आम आदमी सुविधा भोगी हो जाने के बाद संघर्ष और तथाकथित क्रांति से दूर हो जाता है. आम तौर पर सरकारों पर यह आरोप लगता है कि पिछड़ेपन के कारण नक्सलियों को आधार मिलता है और हम पिछड़ेपन के लिए सीधे सरकार को जिम्मेवार मान लेते हैं. लेकिन बस्तर को लेकर मैं मानता हूं कि यह पिछले तीन दशकों से नक्सलियों का आधार केन्द्र, आन्दोलन केन्द्र और देश में उनके प्रभाव को जताने वाला भी केंद्र रहा है. उनके कामकाज में अपने आन्दोलन के विस्तार के अलावा कभी मैने आम आदमी की सुविधाओं को लेकर, उनकी बेहतरी को लेकर, आदिवासी समाज के जीवन स्तर में सुधार लाने को लेकर किसी तरह का प्रयास बस्तर में मुझे ना नजर आया और ना ही मैंने किसी से इस संबंध में सुना है. माओवादी बस्तर के समसामयिक मुद्दों को लेकर कभी लड़ते हुए नजर नहीं आये, वह बस्तर में अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ता है, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विरोध में लड़ता हुआ दिखा. राजधानी में बैठी सरकार के खिलाफ लड़ता हुआ दिखा या फिर सरकार के प्रतिनिधियों से आदिवासियों को आगे करके लड़ता हुआ दिखा. जो नक्सली बंदूक के जोर पर कुछ भी करा सकते हैं, उनके लिए बस्तर का विकास करा लेना बहुत बड़ी बात नहीं थी. 

सीआरपीएफ की भूमिका को लेकर बस्तर में अक्सर सवाल उठते रहे हैं ?
सीआरपीएफ या ऐसी दूसरी पारा मिलिट्री फोर्सेज जो बाहर से लाकर यहां लगाई गईं हैं, उनके अब तक के स्टैन्ड से लगा कि वह इस क्षेत्र के विकास को लेकर गंभीर नहीं हैं. नक्सलियों का सफाया हो, इसके लिए कभी उनकी तरफ से कोई प्रयास होता नहीं है. उदाहरण के तौर पर पिछले सात-आठ सालों में अबूझमाड़ में एक आपरेशन हुआ है, जिसमें दो-तीन बटालियन शामिल हुई थीं. एरिया डोमिनेशन के लिए हुए उस ऑपरेशन को छोड़ दें तो मुझे नहीं लगता कि वह कहीं और सफाये के लिए जा रही हैं. ये रोड ओपनिंग राशन या वीवीआईपी मेहमान के लिए करते हैं. यानी बस्तर में सीआरपीएफ नेताओं के लिए है या फिर वह खुद अपनी हिफाजत के लिए है.

क्या सरकार के पास कोई योजना है, जिससे नक्सलियों से बस्तर मुक्त हो जाये?
मुझे नहीं लगता कि सरकार के पास इसे लेकर कोई दृष्टि है. नक्सलियों के आने के बाद से यहां की स्थितियां असामान्य हुईं हैं. सरकार और सुरक्षा में लगी संस्थाओं के बीच लंबी चर्चा होनी चाहिए कि फोर्सेस को किन इलाकों में जाना है और किन इलाकों में नहीं जाना है. यह भी चर्चा हो कि अधिक से अधिक ग्रामीण कैसे दोस्त बने और इसे लेकर किस तरह के प्रयास किए जाने की जरूरत है. तब जाकर कुछ समाधान सामने आएगा, अभी बड़ा संकट विश्वास का है.

सलवा जुडूम की असफलता पर अफसोस है आपको?
सलवा जुडूम को लेकर अफसोस है, वह सफल नहीं हो पाया. नक्सलवाद के खिलाफ खड़े हुए इतने बड़े आन्दोलन को जंगल में बैठे नक्सलियों से लेकर राजधानी में बैठे लोगों ने मिलकर कुचल दिया. एक अच्छे आंदोलन का इस तरह समाप्त हो जाना तकलीफ तो देता ही है.

सरकार और सलवा जुडूम की पूरी ताकत लग जाने के बाद भी नक्सली बचे रह गए?
नक्सलियों की ताकत बंदूक में नहीं, उनकी नेटवर्किंग में है. ये जमाना नेटवर्किंग का है. जिस नेता की नेटवर्किंग जितनी अच्छी, वह उतना बड़ा नेता है. सफल नेता है. सलवा जुडूम के माध्यम से उनका नेटवर्क कमजोर हो रहा था. उनके नेटवर्क का आदमी उन्हें छोड़कर मुख्य धारा में आ रहा था. हम उनका नेटवर्क कमजोर करके ही उन्हें मार सकते हैं. उन्होंने उस दौरान अपवादों को मीडिया में इस तरह उठाया जैसे पूरे बस्तर में यही हो रहा है. यदि आंदोलन में इनती खामियां थीं तो हम जो शीर्ष नेतृत्व में थे, एक भी शिकायत, एक भी एफआईआर मेरे खिलाफ क्यों नहीं आई? हत्या, बलात्कार, लूट का आरोप सलवा जूडूम पर लगता रहा, हम तो आन्दोलन की अगली पंक्ति मे थे, मुझ पर यह आरोप क्यो नहीं लगे?

क्या यह लड़ाई आदिवासी बनाम आदिवासी की नहीं हो गई है ?
यह कहना ठीक नहीं है कि सिर्फ आदिवासी ही थे सलवा जुडूम में. गैर आदिवासी लोग भी शमिल हुए थे, इस लड़ाई में. चूंकि वह आदिवासी बहुल क्षेत्र है, इसलिए आदिवासियों की संख्या अधिक हो सकती है. नक्सलियों का नेतृत्व महाराष्ट्र और आन्ध्र का है लेकिन वे कभी आगे नहीं आते. वह आदिवासियों के पिछे छुपकर ही वार करते हैं. इस तरह महाराष्ट्र और आन्ध्रप्रदेश के नक्सली सरगनाओं के हाथों बस्तर के आदिवासी इस्तेमाल हो रहे हैं. हमारे कर्नल, कैप्टन लड़ाई में आगे होते हैं और नक्सलियों की लड़ाई में वे सबसे पिछे होते हैं. तीन, चार परतों के पिछे दुबके हुए.

इस तरह की स्थितियों के बाद भी उनका विस्तार होता जा रहा है और सरकार कुछ कर नहीं पा रही है?
उनके बुलेट का जवाब है हमारे पास, लेकिन उनकी विचारधारा का जवाब हमारे पास नहीं है. उस विचारधारा का जवाब कौन देगा?बंदूक की लड़ाई हो तो बंदूक देकर आप किसी को सामने लड़ने के लिए खड़ा कर सकते हैं. लेकिन अब सोचने का वक्त आया है कि विचारधारा की लड़ाई में हम कहां खड़े हैं. हमने इस फ्रंट पर मैदान बिल्कुल खाली छोड़ दिया है, इसलिए वे जीत जाते हैं.

नक्सलियों के विस्तार में गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ापन बड़ा कारण है या फिर भय और विचारधारा?
इसके लिए सभी बातें थोड़ी-थोड़ी जिम्मेवार हैं. वे विचारधारा को लेकर चलने वाले लोग हैं. यदि हमारी राजनीतिक पार्टी के पास विचारधारा नहीं है तो हम जीरो हैं. वे अपने विचारधारा को सांगठनिक स्तर पर फैला रहे हैं. इससे उनका विस्तार हो रहा है. वे अपने विचार को लेकर प्रतिबद्ध हैं. हम उतने कट्टर नहीं हैं. हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखते हैं. लेकिन यह भी सोचिए, वे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था को सीधे चुनौती दे रहे हैं और हम क्या कर पा रहे हैं.

यानी उनकी प्रतिबद्धता से सरकार की प्रतिबद्धता कमतर है ?
उनको संविधान, राज्य और व्यवस्था से कुछ लेना देना नहीं है. हमें इसके दायरे में रहकर काम करना है. उन्होंने उन हाथों को हथियार दे दिया, जिन्हें कानून, राज्य और संविधान नहीं पता. अब उनके लिए किसी अदालत का फैसला तो चलेगा नही.

यदि नक्सली इतने गलत हैं फिर जंगल में उनका इतना समर्थन क्यों है?
इस देश में साम्प्रदायिक शक्तियों के साथ भी लोग खड़े हो जाते हैं. दोनों के अपराध का दर्शन एक जैसा है. दोनों उकसावे पर काम करते हैं इसलिए मैं नक्सलियों और साम्प्रदायिक शक्तियों को एक करके ही देखता हूं. ये दोनों विचारधारा से एक दूसरे के विरोधी हो सकते हैं, लेकिन काम करने की पद्धति दोनों एक सा अपनाते हैं, हथियार दोनों उठाते हैं.

नक्सलियों से निपटने के मामले में सरकार में इच्छा शक्ति का अभाव क्यों है ?
सरकारें चुनाव जीतने के लिए समझौते करती है. नक्सलियों से भी जन प्रतिनिधि समझौते करते हैं. जबतक सरकार में बैठे लोग अपनी गद्दी को दांव पर लगाकर समस्या सुलझाने के लिए मैदान में नहीं आएंगे, तब तक यह मामला सुलझने वाला नहीं है. हम चुनाव हार जाएं लेकिन बस्तर से नक्सलियों को बाहर करने की प्रतिबद्धता कम नहीं होगी, इस इरादे के साथ जब हम मैदान में होगे, उसके बाद ही जीत हासिल हो सकता है.

क्या नक्सली यहां की व्यवस्था की जरूरत बन चुके हैं ?
आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर का मामला चल रहा है, जिसका आज तक हम हल नहीं निकाल पाए. वहां हमने सेना जरूर लगा रखी है. अफसरशाही इस देश के राजनीतिक नेतृत्व को कन्फ्यूज कर रहा है. देश का नेतृत्व भी इस देश की समस्याओं को लेकर बहुत गंभीर नहीं है. इस तरह के मुद्दों पर वह पूरी तरह से अफसरशाही पर निर्भर है. हमने आजादी की लड़ाई लड़ी, हमने संविधान बनाया, और आज हम विधानसभा में पेश होने वाला विधेयक नहीं बना पा रहे हैं.

(सलवा जुड़ुम के एक कैम्प की कहानी)

http://visfot.com/index.php/interview/9263-%26%23039%3B%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%AC%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%9F-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%AC-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B8%26%23039%3B.html


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