Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Wednesday, February 17, 2016

देह हो या समाज, लचीलेपन का कम होते जाना उसके बुढ़ापे या क्षीण होते जाने का परिचायक है. इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब जब हमा्रे समाज में लचीलापन कम हुआ, यह देश टूटा है. आपको और मुझे भले ही बुरा लगे पर वास्तविकता यह है कि हिन्दू पद पादशाही के उन्माद में बाबरी मस्जिद के विध्वंश ने देश के टूटने की इस प्रक्रिया को गतिशील कर दिया है. इस प्रक्रिया को रोकने के लिए जितना अधिक बल प्रयोग किया जायेगा, यह और भी तेज होती जायेगी. जिस प्रकार देह के लचीलेपन के लिए बल नहीं मल्हम की आवश्यकता होती है. उसी प्रकार केवल सौहार्द और ौर भाईचारे के मल्हम से इस विघटन्कारी प्रक्रिया को रोका जा सकता है

TaraChandra Tripathi


देह हो या समाज, लचीलेपन का कम होते जाना उसके बुढ़ापे या क्षीण होते जाने का परिचायक है. इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जब जब हमा्रे समाज में लचीलापन कम हुआ, यह देश टूटा है. आपको और मुझे भले ही बुरा लगे पर वास्तविकता यह है कि हिन्दू पद पादशाही के उन्माद में बाबरी मस्जिद के विध्वंश ने देश के टूटने की इस प्रक्रिया को गतिशील कर दिया है. इस प्रक्रिया को रोकने के लिए जितना अधिक बल प्रयोग किया जायेगा, यह और भी तेज होती जायेगी. जिस प्रकार देह के लचीलेपन के लिए बल नहीं मल्हम की आवश्यकता होती है. उसी प्रकार केवल सौहार्द और ौर भाईचारे के मल्हम से इस विघटन्कारी प्रक्रिया को रोका जा सकता है
इधर बात-बात पर 'देश द्रोह' का लेबिल लगाना आम हो गया है. और इसे वे लोग दूसरों पर अधिक चस्पा कर रहे हैं जो खुद सबसे सबसे बड़े देशद्रोही हैं. अपना घर भरने में लगे, अपने औलादों के लिए सत्ता पर एकाधिकार की जुगत भिड़ाने वाले, जमाखोर, सूद्खोर, नेता और प्रशा्सक, सत्ता के लिए देश को फिर से जातिवाद के द्लदल में फंसाने वाले, मुकदमों को वर्षों लटकाने वाले,
बात-बात पर पुलिस बल का प्रयोग करने वाले, आतंकवाद के नाम पर निरीह् लोगों की जान लेने वाले. आदिवासियों की जमीन जर और जोरू का अपहरण करने वाले लोगों को प्रश्रय देने वाले, ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों को फुट्बाल समझने वाले, पुलिस और प्रशासन को अपना पालतू कुत्ते की तरह इस्तेमाल करने वाले, भूमाफियाओं, दवामाफियाओं, जमाखोरों के संरक्षक, , शिक्षा का निजीकरण कर अभिभावकों को लूटने वाले, व्यापम का विस्तार करने वाले,अपनी औलाद से बाहर कुछ भी देखने में अ्समर्थ ------ जिनके आने पर आप माला लेकर एक दूसरे से होड़ करने लगते हैं, कौन हैं ये लोग. क्या ये देशभक्त हैं? पिछले ६७ सालों से ये अपना घर भरने और सामान्य जनता को आपस में लड़्वाने के अलावा कर क्या रहे हैं.
आम जनता को वोट बैंक बना कर, पैसे से मदिरा से, और भेदभाव पैदा कर सत्ता हथियाने वाले, लोगों को क्या आप देश भक्त कहेंगे.ये भस्मासुर हैं. इन्हें पहचानिये!
मजदूर, किसान, कारीगर, न हिन्दू होता है, न मुसलमान, न सिख न ईसाई--- इनका धर्म केवल श्रम होता है कामना केवल रोटी, कपड़ा और सिर छुपाने के लिए छोटी से छत. दुख तो तब होता है जब भी ये तथाकथित देश भक्त अपने स्वार्थ के लिए दंगा करवाते हैं, तब सम्पन्न और समर्थ नहीं मरता, बलि इन्हीं को देनी पड़्ती है.


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors