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Sunday, August 28, 2011

उम्‍मीदों भरा आंदोलन है, सर्वजनों का है, इसे आगे बढ़ाएं



[28 Aug 2011 | One Comment | ]
उम्‍मीदों भरा आंदोलन है, सर्वजनों का है, इसे आगे बढ़ाएं
क्‍या अग्निवेश टीम अन्‍ना में सरकार के मुखबिर थे?

[28 August 2011 | Read Comments | ]

डेस्‍क ♦ हालांकि यह एक सामान्‍य बातचीत है, इस लिहाज से कि अग्निवेश हमेशा सरकार और सरकारविरोधियों के बीच एक कारगर वार्ताकार हैं, लेकिन तब यह सामान्‍य नहीं रह जाती, जब लड़ाई आरपार की हो।

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अमितेश कुमार ♦ खास बात यह कि इस आंदोलन का नेतृत्व ही एक पिछड़ी जाति के हाथ में था। लगातार बढ़ते समर्थन ने भी इस बात को पुख्ता कर दिया कि यह केवल मध्यवर्गीय आंदोलन नहीं है।
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नज़रिया, संघर्ष »

[28 Aug 2011 | One Comment | ]

आशीष भारद्वाज ♦ हमारे जैसे लोकतंत्रों की सबसे मजेदार बात यह होती है कि यहां सब कुछ जनता के नाम पर होता है। भारी-भरकम भ्रष्टाचार भी और लोकलुभावन लोकपाल भी! यकीन जानिए, अगर हमारे संसदीय नेता लोगों की मोटी चमड़ी में थोड़ी भी सिहरन हुई तो सिर्फ इसीलिए कि उन्हें कारपोरेट और मीडिया से डर लगता है।

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[28 Aug 2011 | No Comment | ]

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[27 Aug 2011 | 4 Comments | ]

पुष्‍यमित्र ♦ अगर आप अपने आसपास फैली हवा की गंध को महसूस कर पा रहे हैं, तो शायद आप मान चुके होंगे कि सालों बाद ऐसा वक्त आया है, जब सब कुछ सच्चाई के पक्ष में है, आवाम के पक्ष में है। अभी कुछ दिन पहले तक एक सच्ची बात मनवाने के लिए आपको जान तक गंवाना पड़ सकता था, आज हिमालय खड़ा करना भी घरौंदे बनाने जितना आसान लग रहा है।

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[27 Aug 2011 | 9 Comments | ]

राजेश रंजन पप्‍पू यादव ♦ मेरे विचार से और जो मै समझता हूं या समझने का प्रयास कर रहा हूं, उन्ही बातों को मै आप तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं। यह जरूरी नहीं कि मेरी ही बातें सही हो, अन्य की नहीं। आप सुनें और पढ़ें सबकी; समझे और मानें अपने मन और विवेक से।

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[25 Aug 2011 | 22 Comments | ]

आशीष भारद्वाज ♦ अहिंसा की ट्रेनिंग में अन्ना समर्थक अभी इंटर्न ही हैं। ऐसा उन्माद है कि अब इस आंदोलन से अलग खड़े रहना पूरी तरह से वाजिब दिखने लगा है, ऐसा कई सोचने-समझने वाले साथियों का मानना है। संभव है कि दक्षिण मति के लोग आप को फिर से देशद्रोही कहें, पर यह दुखद है कि वाम मति के कुछ साथी भी इस आंदोलन से बाहर के साथियों पर "तटस्थ वस्तुपरक विश्लेषण" कर देने का सपाट आरोप लगा रहे हैं।

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[25 Aug 2011 | 6 Comments | ]

प्रणय कृष्‍ण ♦ देश भर में चल रहे तमाम जनांदोलनों को चाहे वह जैतापुर का हो, विस्थापन के खिलाफ हो, खनन माफिया और भू-अधिग्रहण के खिलाफ हो, पास्को जैसी मल्टीनेशनल के खिलाफ हो या इरोम शर्मिला का अनशन हो – इन सभी को अन्ना के आंदोलन के बरक्स खड़ा कर यह कहना कि अन्ना का आंदोलन मीडिया-कॉरपोरेट-एनजीओ गठजोड़ की करतूत है, और वास्तविक आंदोलन नहीं है, जनांदोलनों की प्रकृति के बारे में एक कमजर्फ दृष्टिकोण को दिखलाता है। अन्ना के आंदोलन में अच्छी खासी तादाद में वे लोग भी शरीक हैं, जो इन सभी आंदोलनों में शरीक रहे हैं।

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[25 Aug 2011 | 9 Comments | ]

प्रणय कृष्‍ण ♦ शबनम हाशमी और अरुणा राय जैसे सिविल सोसाईटीबाज, जिनका एक्टिविज्म कांग्रेसी सहायता के बगैर एक कदम भी नहीं चलता, "संघ के हव्वे" पर खेल गये। मुंहफट कांग्रेसियों ने अन्ना के आंदोलन को संघ से लेकर माओवाद तक से जोड़ा, लेकिन उन्हें इतनी बड़ी जनता नहीं दिखी, जो इतनी सारी वैचारिक बातें नहीं जानती। वह एक बात जानती है कि सरकार पूरी तरह भ्रष्ट है और अन्ना पूरी तरह उससे मुक्त।

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[25 Aug 2011 | 3 Comments | ]

डॉ लेनिन ♦ हम लोग भी सशक्त बहुजन लोकपाल बिल चाहते हैं और इसके लिए हांगकांग के अति सफल "इंडियेंडेंट कमीशन अगेंस्‍ट करप्शन" का मॉडल सरकार को दिया है, अपील की है और इसके लिए दो सालों से लड़ रहे हैं। आपको पता है कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था की नीतियों ने बेरोजगारी, महंगाई एवं भ्रष्टाचार बढ़ाया। इसकी खिलाफत कब होगी?

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