तरुण विजय जनसत्ता 1 अप्रैल, 2012: सियाचिन में शून्य से नीचे तीस से लेकर चालीस डिग्री सेल्सियस तक के भयानक बर्फानी माहौल में तैनात सैनिक अकेलेपन, ऊब और तनाव के चलते सर्वाधिक मानसिक रोगों के शिकार होते हैं। बर्फ से हाथ-पांव की उंगलियां गलने और फिर काटे जाने के अनेक मामले सैनिक अस्पतालों में मार्मिक दृश्य पैदा करते हैं। साल में महीने भर की छुट््टी मिलेगी तो आठ दिन प्राय: जाने-आने में ही खर्च हो जाते हैं। अगर कभी बर्फानी दरारों और अतल गहरे पतले बर्फ से ढके गड्ढों में गिर जाएं तो शरीर जम जाता है, चमड़ी बर्फ से चिपक जाती है, रस्सी के सहारे भी ऊपर खींचा जाना असंभव होता है, और फिर दर्दनाक अंत : पल-पल ठहरी हुई आंखें निस्तेज होती जाती हैं। फिर भी सैनिक सियाचिन में तैनाती चाहता है। वहां का रोमांच और मातृभूमि के प्रति प्रेम उसे खींच लाता है- मौत का सामना करने के लिए। उसे परास्त करने के लिए। वह मौत पर विजय पाता है। पर दिल्ली के बाबू और नेता उसे हरा देते हैं। वह फौज में इसलिए भरती हो ताकि देश की सुरक्षा के नाम पर दिल्ली के गद्दार फौजी सौदों में हजारों करोड़ रुपए की दलाली खा सकें? फिर उस सेनाध्यक्ष का गला पकड़ें, जिसने भ्रष्ट सौदों को बेनकाब किया? और फिर सत्ता के तंबुओं में पनाह लेने वाले दिग्गज 'विशेषज्ञ-पत्रकार' कहें- जनरल वीके सिंह ने नया क्या कहा? जो बातें वे बता रहे हैं, वह सब तो सीएजी की रपटों में, रक्षा मंत्रालय की स्थायी समिति के विवरणों में बरसों से छपती आई हैं, पर उसे ये सांसद पढ़ते थोड़े ही हैं। अच्छी बात है, साहब। पेड-न्यूज पर सन्नाटा ओढ़ कर संसद को अनपढ़ कहना काफी सुहाता है। पर आप खुद फिर उन तथ्यों को क्यों नहीं उठा पाए? और अगर जनरल वीके सिंह नहीं बोलते तो क्या देश उस तीव्रता से सेना के साथ मंत्रालय के बाबुओं और नेताओं के छल पर चर्चा करता? भारत दुनिया का सबसे बड़ा शस्त्र खरीदार है। नौ खरब रुपए के रक्षा बजट का चालीस प्रतिशत हथियार, विमान, पनडुब्बियां खरीदने में व्यय होता है। भारत की बयासी प्रतिशत शस्त्रास्त्र आवश्यकताएं विदेशों से की जाने वाली खरीद से पूरी की जाती हैं। उसमें भी पचहत्तर प्रतिशत केवल रूस से खरीद होती है। अब धीरे-धीरे अकेले रूस पर निर्भरता न रख कर पैंतीस अन्य देशों से भी शस्त्र खरीदे जा रहे हैं। मगर लगभग हर शस्त्र खरीद पर सवाल खड़े हुए। हजार-हजार करोड़ के सौदों में सैकड़ों करोड़ के कमीशन का इंतजाम होता है। भारत सबसे ज्यादा शस्त्र खरीदने के बावजूद सत्तानबे प्रतिशत 'अपेक्षा से कम रक्षा-सिद्ध' क्यों है? 2009 में कर्नाटक के अनुसूचित जाति संगठन के नेता हनुमंतप्पा ने प्रधानमंत्री, यूपीए अध्यक्ष और रक्षामंत्री को पत्र लिख कर टेट्रा ट्रकों की खरीद के बारे में जांच का आग्रह किया था। जांच नहीं की गई। पत्र दबा दिया गया। अब जब पत्र फिर से उजागर हुआ तो एक स्वनामधन्य विश्लेषक ने चैनल चर्चा में हनुमंतप्पा की योग्यता पर ही सवाल जड़ दिया- आपने किस हैसियत से, किस पात्रता से टेट्रा ट्रकों की जांच का पत्र लिखा? मैंने जवाब में पूछा- क्या भारत के किसी भी नागरिक को, चाहे उसकी योग्यता का स्तर कुछ भी हो, देश के प्रधानमंत्री के पास ऐसा हर विषय उठाने का अधिकार नहीं है, जिसे वह जरूरी मानता है और देशहित में उसकी जांच की मांग करना उचित समझता है? अगर पात्रता और योग्यता की ही बात करनी है तो एके एंटनी क्या इंडियन मिलिट्री एकेडमी से ग्रेजुएट हैं कि उन्हें रक्षामंत्री बनाया जाना उपयुक्त माना गया? संदेशवाहक को मारो। जो गलत काम के खिलाफ लोगों को जगाए, चेतावनी दे, उसे कठघरे में खड़ा कर बेइज्जत करो कि नामाकूल, बदनीयत, तुमने इतने बड़े-बड़े लोगों की कलई खोलने का दुहस्साहस कैसे किया? जरूर तुम्हारे मन में कोई पूर्वग्रह, कोई बेईमानी होगी। अब क्यों बोल रहे हो, पहले क्यों नहीं बोले? तुमने सीधे प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर शासकीय रीति-रिवाज का उल्लंघन किया है। तुमने अनुशासन तोड़ा है। जन्मतिथि पर तुम्हारी बात नहीं मानी गई, इसलिए खुंदक निकाल रहे हो, बदला ले रहे हो। इस्तीफा दो। वरना तुम्हें बर्खास्त कर देंगे। हिम्मत होती और अपने किए-अनकिए की ईमानदारी पर भरोसा होता, तो कबके बर्खास्त कर चुके होते। जनरल वीके सिंह ने फौज की तैयारियों में भयानक दुर्बलताओं की ओर ध्यान दिलाने वाला पत्र प्रधानमंत्री को लिखा तो उसे 'लीक' कर दिया गया। किसने किया? वे कौन हो सकते हैं, जिन्हें इस प्रकार के अत्यंत गोपनीय पत्र के लीक होने से फायदा पहुंच सकता है? शुरू के तीन दिनों तक चैनलों पर जो बहस चली, उसमें जनरल वीके सिंह पर ही पत्र 'लीक' करने के आरोप लगाए गए। जब जनरल वीके सिंह ने कहा कि यह अत्यंत गोपनीय पत्र 'लीक' करने का कुकृत्य देशद्रोह है और जिसने भी यह अपराध किया है उसके विरुद्ध निर्मम कार्रवाई होनी चाहिए, तो सिंह-विरोधी आक्रमण ढीले हुए। न केवल शानदार कीर्ति और बेदाग छवि वाले पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके मलिक, जनरल शंकर रायचौधरी और पूर्व नौसेनाध्यक्ष विष्णु भागवत जनरल वीके सिंह के समर्थन में खुल कर सामने आए हैं, बल्कि उत्तरी क्षेत्र के जीओसी लेफ्टीनेंट जनरल केटी परनायक ने जम्मू में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि जनरल वीके सिंह ने फौज के पास अच्छे शस्त्रों, कारतूसों और सैन्य उपकरणों की कमी का जो पत्र लिखा है, वह तथ्यों पर आधारित है। अब क्या जवाब रहता है इस सरकार के पास? देशभक्त सैनिक को क्या इसी छल के साए में जलते रहना होगा? बाहरी शत्रु की अपेक्षा भीतर का शत्रु ज्यादा घातक होता है। चाहे गढ़चिरौली हो, मलकानगिरि या उत्तर पूर्वांचल के क्षेत्र; सब जगह भीतरी शत्रुओं से सामना करते हुए सीमा सुरक्षाबल, सीआरपीएफ, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सेना के जवान अपना बलिदान भी देते हैं और अपने परिवारों में देशभक्ति की अलख जगाए रखते हैं। सीमा सुरक्षा बल के अधिकारी विनोद शर्मा आतंकवादियों से लड़ते हुए मारे गए। अब उनकी बेटी उर्मिला आठ साल की है। उसने कहा, पापा हमें राष्ट्रगीत का सम्मान करना सिखा गए। अगर टीवी पर भी राष्ट्रगीत बज रहा हो और हम न खड़े हों, तो पापा को इतना गुस्सा आता था कि हमें सजा मिलती थी। लेकिन फौजी वर्दी और उसकी निष्ठा पर पत्थर फेंकने वाले आज संसद से मीडिया तक आवाज उठाते दिख जाते हैं, तो भारत सिकुड़ता प्रतीत होता है। हथियारों की खरीद में घोटाला करने वाले सीधे-सीधे बिना शक देशद्रोही हैं। उन्हें कतार में खड़ा कर उन्हीं के लायक सजा मिले तो सैनिक का जलना बंद हो। |
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