सुरेंद्र सिंघल देवबंद, 1 अप्रैल। देवबंदी मसलक के मुसलिमों के सामाजिक व मजहबी प्रमुख संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद के दोनों धड़ों के बीच दूरी और तनाव बढ़ने से इस्लामिक शिक्षण संस्था दारुल उलूम पर संकट के बादल फिर मंडरा सकते हैं। मौलाना असद मदनी के निधन के बाद से जमीयत उलमा-ए-हिंद दो धड़ों में बंट गई थी। एक धड़े पर उनके बेटे महमूद मदनी सांसद और दूसरे पर उनके भाई व दारुल उलूम के हदीस के विद्वान मौलाना अरशद मदनी का कब्जा हो गया था। दोनों धड़े गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समर्थक माने जाने वाले दारुल उलूम के मोहतमिम मौलाना गुलाम मौहम्मद वस्तानवी को संस्था से निकाले जाने के मुद्दे पर जरूर एक हो गए थे लेकिन दारुल उलूम की मजलिसे शूरा (सर्वोच्च अघिकार प्राप्त प्रबंधक समिति) के सदस्य व एयूडीएफ सांसद मौलाना बदरुद्दीन अजमल के मुद्दे पर उनमें तनाव और दूरियां बढ़ गई थीं। मौलाना अरशद मदनी की अगुवाई वाले धड़े के देवबंद में 24-25 मार्च को हुए राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद उस समय उनके बीच तनाव पैदा हो गया, जब देवबंद से लौटे सैकड़ों प्रतिनिधियों को दिल्ली जमीयत के दफ्तर मस्जिद अब्दुल नबी में देर रात महमूद मदनी समर्थक लोगों ने वहां से जबरिया निकालने का काम किया। इस घटना से गुस्साए मौलाना अरशद मदनी ने 27 मार्च को नई दिल्ली हाई कोर्ट में दो याचिकाएं दायर कीं। एक में महमूद मदनी और उनके करीबी कुछ हामियों के खिलाफ अवमानना का आरोप लगाया तो दूसरे में यह मांग की कि जमीयत के दिल्ली दफ्तर में उन्हें भी सुरक्षा गार्ड आदि नियुक्त करने का अधिकार दिया जाए। अवमानना मामले में मौलाना अरशद ने आरोप लगाया कि महमूद मदनी और उनके पीए मुबस्सिर अंसारी आदि पांच-छह लोगों ने जमीयत कार्यकर्ताओं को कार्यालय के उस हिस्से से बाहर निकालने का काम किया, जिसका स्टे हाई कोर्ट से मिला हुआ है। महमूद मदनी धड़े के नियाज अहमद फारुखी ने शनिवार को जनसत्ता को बताया कि हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीएस सिस्टानी ने अवमानना संबंधी मौलाना अरशद मदनी की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्हें दफ्तर परिसर में जिन तीन कमरों के इस्तेमाल का स्टे मिला है, वे उन्हीं का इस्तेमाल कर सकते हैं और वहां उतनी क्षमता के ही मेहमानों को बुला और ठहरा सकते हंै। जबकि 26 मार्च की घटना के रोज वहां दो-तीन सौ लोग जमा हो गए थे। नियाज अहमद फारुखी ने यह भी बताया कि याचिका की दूसरी मांग पर न्यायमूर्ति जीएस सिस्टानी ने महमूद मदनी पक्ष को अपना जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए, जिस पर 14 मई 2012 को मस्जिद नबी के इस्तेमाल प्रकरण पर फैसला देते समय विचार किया जाएगा। जाहिर है इस मुद्दे पर फिलहाल मौलाना अरशद मदनी को मायूसी हाथ लगी है। जमीयत के दोनों धड़ों के बीच महमूद मदनी की अगुवाई वाली जमीयत की असम इकाई के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल मुद्दे पर भी तलवारें खिंच गई हैं। पहले देवबंदी मदरसों के राष्ट्रीय अधिवेशन और बाद में जमीयत के अधिवेशन के दौरान मौलाना बदरुद्दीन के खिलाफ आपित्तजनक आठ पेज की पुस्तिका जारी कर उन पर हिंदुओं की मूर्ति पूजा करने और गैर इस्लामिक रीतिरिवाज करने का आरोप लगाया गया। इसका मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने जोरदार खंडन किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनके खिलाफ की गई इस घिनौनी साजिश की सीबीआई जांच की मांग भी की। जमीयत के इन दोनों धड़ों के बीच का तनाव और विवाद अगर जारी रहता है तो दारुल उलूम पर भी इसका असर पड़े बिना नहीं रहेगा। इन हालात से यह भी साफ हो गया कि लोकप्रिय और प्रगतिशील गुजराती मौलाना गुलाम मौहम्मद वस्तानवी को भी एक साजिश के तहत दारुल उलूम के मोहतमिम पद से हटाने का काम किया गया था। अब मौलाना वस्तानवी पक्ष के मजलिसे शूरा के सदस्य मौलाना बदरुद्दीन अजमल भी उन्हें शूरा से हटाने की साजिश की बू इस पूरे विवाद में महसूस कर रहे हैं। लेकिन उनका दावा है कि इस बार उनके विरोधियों की चालें अल्लाह कतई सफल नहीं होने देगा। |
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