अब रायसिना रेस जीतने के बाद बाजार का लक्ष्य अपना वित्तमंत्री हासिल करने का!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोलकाता से चाहे ममता दीदी कहें कि खेल अभी बाकी है, पर उन्हें बंगाल में बाजार की मदद से माकपा के ३४ साल के राज खत्म करने के बावजूद बाजार की ताकत का कोई अंदाजा नहीं है। अपनी प्रबल लोकप्रियता के दम पर बाजार के खिलाफ विद्रोह तो उन्होंने कर दिया लेकिन बाजार को अपना राष्ट्रपति चुनने से रोक नहीं पायी और अकेली रह गयी। उन्हें मुलायम पर भरोसा था और अब शायद राजग की मदद से १९६९ की इंदिरा गांधी की तरह अब भी वे पांसा बदलने की सोच रही है। पर बाजार अपनी जीत तय करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता, यह सबक उन्हें अब तो सीख ही लेना चाहिए। अब रायसिना रेस जीतने के बाद बाजार का लक्ष्य अपना वित्तमंत्री हासिल करने का है। भारत का वित्तमंत्री १९९१ से किसी राजनीतिक समीकरण से नहीं बनता, यह सर्वविदित है। वैश्विक पूंजी के हित साधने वाले को ही यही पद मिलता है। ऐसा नहीं होता तो रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर ही रिटायर कर गये हते डा मनमोहन सिंह।आखिर अब वित्तमंत्री और नेता सदन कौन बनेगा?
सूत्रों मुताबिक प्रणव मुखर्जी 24 जून को राष्ट्रपति नामांकन के बाद इस्तीफा दे सकते हैं।अगले वित्तमंत्री की खोज की कवायद शुरू हो चुकी है। नया वित्तमंत्री कौन होगा इसके लिए भी कवायद शुरू हो चुकी है। इस पद के लिए जयराम रमेश, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सुशील कुमार शिंदे, आनंद शर्मा, कमलनाथ के नाम चल रहे हैं।
रंगराजन को इस दौड़ में काला घोड़ा माना जा रहा है।रमेश के आसार सबसे कम नजर आते हैं। बतौर पर्यावरण मंत्री उन्होंने कारपोरेट इंडिया को नाकों चने चबवा दिये थे और जयंती नटराजन ने उनकी जगह लेक आक्सीजन सप्लाई जारी रखी।बाजार को आहलूवालिया या रंगराजन और यहां तक कि नंदन निलेकणि और कौशिक बसु के मुकाबले कमलनाथ का नाम पसंद होगा, ऐसा भी नहीं लगता।हालांकि आनंद शर्मा को कैबिनेट मंत्रालय का अनुभव कम है, लेकिन जयराम रमेश और आनंद शर्मा दोनों को 10 जनपथ का करीबी माना जाता है वहीं आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को राजनीतिक अनुभव की कमी है। प्रणब दा इस समय कांग्रेस संसदीय दल और कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं, जिसमें देश के सभी कांग्रेस सांसद और विधायक शामिल होते हैं। साथ-साथ वह लोकसभा में सदन के नेता, बंगाल प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष, कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मंत्रिपरिषद में केन्द्रीय वित्त मंत्री हैं। इस पद से प्रणब दा 25 तारीख तक इस्तीफा दे देंगे। और अगर सभी दलों के सांसद-विधायकों की सहमति हुई तो वो देश के अगले राष्ट्रपति होंगे।उनके इस्तीफा देने के बाद मंत्रिमंडल में बड़ा फेर-बदल होना तय हो गया है। माना जा रहा है कि अब भारत को नया वित्तमंत्री, गृहमंत्री और रक्षामंत्री मिल सकता है।
आज जब प्रणव के लिए राष्ट्रपति भवन आरक्षित करके सत्ता वर्ग ने अपने महाअधिनायक को सम्मानजलक अवसर देने का रास्ता साफ कर लिया, तब वाशिंगटन में राष्ट्रपति ओबामा को भारत अमेरिकी रिश्ते मजबूत करने की सुधि आयी है। इस एजंडे को कामयाब करने के लिए अपने विदेश मंत्री नालेज इकानामी के जनक कपिल सिबल और भारतीय अर्थ व्यवस्था के कर्ता धर्ता मंटेक सिंह आहलूवालिया के साथ वहीं आसन जमाये हुए हैं।देश के मौजूदा वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति पद के लिए यूपीए के उम्मीदवार होंगे। ममता बनर्जी के बोए कांटे चुनते हुए आज यूपीए ने उन्हें सर्वसम्मति से इस पद के लिए अपना प्रत्याशी बनाने का ऐलान कर दिया। उधर-प्रणब की जगह मुलायम के साथ मिलकर कलाम का नाम राष्ट्रपति के लिए आगे बढ़ा रही ममता बनर्जी अकेली रह गईं क्योंकि मुलायम सिंह यादव ने पलटी मार कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। यूपीए द्वारा प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिए जाने के बाद जहां एक तरफ विभिन्न दलों में उनको समर्थन देने की होड़ लग गई है, वहीं तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी अपने रुख पर कायम हैं। ममता ने कहा है कि अब भी कलाम ही उनके उम्मीदवार हैं और वह किसी के आगे सिर नहीं झुकाएंगी। राष्ट्रपति चुनाव के आईपीएल फाइनल के बाद आर्थिक मामलों से जुड़े मंत्रालयों के फेरबदल चैंपियन लीग से कम सनसनीखेज नही होने जा रही है। दीदी अपनी जिद पर अड़ी रही और राजनीतिक परिपक्वता नहीं दिखायी तो उनके हाथ में कुछ नहीं लगने वाला। बंगाल पैकेज जो गया सो गया, अब बाकी चार साल सरकार चलाना मुश्किल हो जायेगा। राजग ने कांग्रेस के वामपंथ से नत्थी होने और वामपंथियों के मुख्यधारा में लौटने का मौका देते हुए प्रणव का विरोध करना तय कर लें तो दीदी का खेल जारी रह सकता है वरना नहीं। पर बाजार इसकी इजाजत यकीनन नहीं देने वाला।वैसे कांग्रेस ने अब मान लिया है कि ममता बनर्जी अब यूपीए के साथ नहीं हैं। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यूपीए को सपा का समर्थन मिल गया है।समाजवादी पार्टी के नेता मोहन सिंह ने कहा कि ममता बनर्जी के साथ कोई खटास नहीं है। चूंकि कलाम साहब इच्छुक नहीं हैं, इसीलिए हम उनके नाम पर पीछे हट रहे हैं।
भारत के नीति निर्धारण में हस्तक्षेप की मंशा से वाशिंगटन तेल राजनय का भी भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। पहले ही मुद्रस्पीति, राजस्व घाटा, रुपये पर संकट और राजनीतिक बाध्यताओं के आगे बेबस य़ूपीए सरकार के लिए इस दबाव को धेल पाना मुश्किल होगा। अमेरिकी विदेश नीति के रडार में इमर्जिंग मार्केट भारत और चीन की हर हलचल का पहले से पूर्वाभास दर्ज हो जाता है औरयह अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए जीवन मरण का प्रश्न है। भारत में अर्थ व्यवस्था, राजनीति और नीति निर्धारण प्रक्रिया पर वाशिंगटन की कड़ी नजर है। जाहिर है कि मामला हाथ से बाहर न हो , इसलिए अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की खास जिम्मेवारी है। हिलेरिया की कोलकाता सवारी का भी यही आशय रहा है। अब इसके आसार बहुत कम हैं कि अहम फैसलों पर उनका असर हो ही न।
कयास यह लगाए जा रहे हैं कि रक्षामंत्री ए. के. एंटनी को वित्त मंत्रालय सौंपा जा सकता है और गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को रक्षामंत्री बनाया जा सकता है और वित्त मंत्रालय खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने पास रख सकते हैं। खबर यह भी है कि पीएम वित्त मंत्रालय को खुद के पास रखने की इच्छा जता सकते हैं, क्योंकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले आखिरी बजट पेश किया जाना है ऐसे में अनुभव को तवज्जो दी सकती है।नेता सदन के लिए जिन नामों की चर्चा है उनमें सूत्रों के मुताबिक चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे और कमलनाथ का नाम प्रमुख है। हालांकि चिदंबरम 2-जी केस में आरोपों से घिरे हैं तो वहीं सुशील कुमार के दामन पर भी आदर्श घोटाले के आरोपों के दाग हैं।
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इंदिरा गांधी की सरकार में 1982 से लेकर 1984 तक वित्तमंत्री का कार्यभार संभाल चुके हैं। यूपीए-1 में विदेश मंत्री रहे मुखर्जी ने जनवरी 2009 में वित्तमंत्री का प्रभार संभाला था। मुखर्जी को 1984 में दुनिया के शीर्ष पांच वित्तमंत्रियों की सूची में स्थान दिया गया था। पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाले मुखर्जी राजनीति और सत्ता के गलियारों के पुराने मुसाफिर रहे हैं।
बाजार ने अपने उम्मीदवार के राच्ट्रपिता बनना पक्का हो जाने का जश्न मनाना शुरू कर दिया है।हफ्ते के आखिरी दिन घरेलू बाजार में जबरदस्त खरीदारी देखने को मिली। ग्रीस में होने वाले चुनावों और आरबीआई की मॉनेट्री पॉलिसी की समीक्षा से ठीक पहले निवेशकों में उत्साह देखा गया। यूरोपीय बाजारों की तेज शुरुआत के चलते घरेलू बाजारों की रफ्तार बढ़ी। बाजार करीब 1.5 फीसदी की तेजी के साथ बंद हुए। सेंसेक्स 272 अंक तेज होकर 16950 के स्तर पर और निफ्टी 84 अंक तेज होकर 5139 के स्तर पर बंद हुआ। दूसरी ओर रेटिंगकांड के बाद भारत की अर्थव्यवस्था पर रेटिंग एजेंसी मूडीज ने गंभीर टिप्पणी की है। मूडीज का कहना है कि भारत फिलहाल स्टैगफ्लेशन यानी की मुद्रास्फीतिजनित मंदी के दौर से गुजर रहा है।मूडीज के मुताबिक भारत में महंगाई तो तेजी से बढ़ रही है लेकिन आर्थिक विकास सुस्त पड़ता जा रहा है। जबकि आमतौर पर ग्रोथ के साथ-साथ महंगाई बढ़ती है। मूडीज का कहना है कि ऐसे में रिजर्व बैंक के पास ब्याज दरों में कटौती करने की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। साथ ही रुपये में कमजोरी के चलते महंगाई घटने की उम्मीद नहीं है।
प्रणव को विश्व पुत्र कहने मात्र से खुले बाजार की अर्थ व्यवस्था के प्रतिरोध की जमीन तैयार नहीं हो जाती। बांग्ला ब्राह्मणवादी राष्ट्रीयता भी बाजार के खेल में पूरी तरह शामिल है और वह अब प्रणव के साथ है। कल तक ममता को मां माटी मानुष की सरकार बनाने में सबसे बड़ी मददगार महाश्वेता देवी और माकपा की नेता वृंदा कारत ने दादा को समर्थन और बधाई संदेश देकर रुझान बता दी है।बहरहाल ताजा स्थिति यह है कि यूपीए ने प्रणब मुखर्जी को अपना उम्मीदवार बनाया है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने प्रणब की उम्मीवारी का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात की। मनमोहन सिंह ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज से बात की है। हालांकि अभी तक एनडीए ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन सूत्र बताते हैं कि राजग में आम राय प्रणब का समर्थन करने पर बन रही है। ऐसे में लग रहा है कि बिना मतदान के ही प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाएंगे और रायसीना की रेस आसानी से जीत जाएंगे। राजधानी दिल्ली में लंबी राजनीतिक उठापटक के बाद शाम 5 बजे प्रेस वार्ता में सोनिया गांधी ने प्रणब मुखर्जी के नाम का ऐलान किया। सोनिया ने सभी दलों के सांसदों और विधायकों से अपील की कि वे प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद के लिए वोट दें।उधर एनडीए की भी एक बैठक होने जा रही है। चर्चा है कि एनडीए अभी भी एपीजे अब्दुल कलाम का नाम प्रस्तावित कर सकती है। हालांकि कलाम साहब पहले ही कह चुके हैं कि जब तक सर्वदलीय सहमति नहीं होगी, तब तक वो चुनाव नहीं लड़ेंगे।
ममता को राहत इस बात की है कि राजग ने अभी औपचारिक फैसला नहीं किया है। जबकि हकीकत यह है कि एनडीए राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर प्रणब मुखर्जी का विरोध नहीं करेगा। सूत्रों का कहना है कि एनडीए में कुछ लोगों को छोड़कर प्रणब मुखर्जी को समर्थन करने पर आम सहमति बन गई है। सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर एनडीए में प्रणब मुखर्जी के नाम पर सभी सहमत है। एनडीए ने अपनी तरफ से कोई भी उम्मीदवार नहीं खड़ा करेगा। फिलहाल एनडीए की तरफ से आधिकारिक तौर से इसकी घोषणा नहीं की गई है।ममता बनर्जी ने कहा है कि खेल अभी बाकी है, अभी थोड़ा इंतजार करें। उन्होंने कहा कि मैं प्रणब की उम्मीदवारी पर कुछ नहीं बोलना चाहती हूं। प्रणब को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने के कुछ ही देर बाद तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि उनकी पार्टी एपीजे अब्दुल कलाम की उम्मीदवारी पर कायम है। आडवाणी ने कहा- एनडीए ने राष्ट्रपति पद के लिए कोई निर्णय फिलहाल नहीं लिया है। हमने कई नामों पर चर्चा की। हमने यह भी चर्चा की कि कौन-कौन राष्ट्रपति पद पर किस-किस को रायसीना हिल्स भेजना चाहता है। कोई चाहता है कि वित्तमंत्री कोई दूसरा हो। तो कोई चाहता है प्रधानमंत्री कोई और हो। इतनी सरकारें हुई हैं- पंडित नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक। इससे पहले कभी भी विश्वास में इतनी कमी कभी नहीं देखी। आडवाणी ने कहा- सरकार अपना विश्वास खो चुकी है। अगर यूपीए को अपनी इज्जत बचानी है तो उसे सभी दलों के साथ बैठकर राष्ट्रपति पद के लिए नाम फाइनल करना चाहिये। उन्होंने कहा कि यूपीए के गैरकांग्रेसी दलों ने भाजपा से संपर्क किया है। फिलहाल भाजपना ने कोई निर्णय नहीं लिया है। कई नामों पर चर्चा हुई है, लेकिन अंतिम निर्णय एनडीए की बैठक के बाद होगा। हम जयललिता से भी सलाह मश्वरा करेंगे। मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत करेंगे। एनडीए ने कहा है कि वो ममता और मुलायम से बात के लिए तैयार हैं। अंत में आडवाणी ने कहा कि पहले यूपीए अपनी प्रत्याशी का नाम घोषित करे, तभी एनडीए करेगी। हम जल्दबाजी नहीं करेंगे। गौरतलब है कि बदले हालात में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल के चुनाव लड़ने की संभावना काफी कम हो गई है। संप्रग की ओर से मुखर्जी को अपना उम्मीदवार घोषित किए जाने के फैसले से अविचलित ममता ने कहा कि हम कलाम की उम्मीदवारी पर कायम हैं। वह सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं। प्रणब मुखर्जी ने 19 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी का सहयोग मांगते हुए कहा कि वह उनकी बहन की तरह हैं। जब प्रणब मुखर्जी से पूछा गया कि जिन राजनीतिक दलों से वह सहयोग की अपील कर रहे हैं, क्या उनमें ममता की तृणमूल कांग्रेस भी है, तो वित्त मंत्री ने कहा, 'मैं ममता बनर्जी से भी समर्थन चाहता हूं, क्योंकि वे मेरी बहन की तरह हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने फोन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बात की और दोनों नेताओं ने आपसी सहमति के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की।व्हाइट हाउस से कल जारी एक बयान में कहा गया है कि दोनों नेताओं ने यूरोजोन के संकट के कारण उत्पन्न समस्याओं से निपटने की खातिर वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से काम करने पर सहमति जताई।बयान में कहा गया है 'दोनों नेता यूरोजोन में लगातार बने खतरों को देखते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के कदमों के महत्व पर और वैश्विक वृद्धि को गति देने के उपायों पर ध्यान देने पर सहमत हुए।' अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि ईरान पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों से सात देशों को दी गई छूट मात्र छह महीने के लिए वैध है। अधिकारी ने उम्मीद जताई कि भारत सहित सातों देशों तेहरान पर अपनी तेल निर्भरता में कटौती करना जारी रखेंगे।अधिकारी का यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के उस बयान के बाद आया है जिसमें हिलेरी ने कहा कि भारत सहित सात देश ईरान के तेल पर लगाए गए प्रतिबंधों से मुक्त होंगे। हिलेरी ने कहा था कि इन देशों ने ईरानी तेल पर अपनी निर्भरता काफी कम की है।दक्षिण एवं मध्य एशिया मामले के सहायक विदेश मंत्री रॉबर्ट ब्लैक ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, यह अपील हम दुनिया भर के अपने सहयोगियों से कर रहे हैं। यह बात केवल भारत पर लागू नहीं है। ईरान के तेल प्रतिबंधों से जो छूट प्रदान की गई है, वह केवल छह महीने के लिए है।
राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने मैक्सिको के लॉस कैबोस में 18 जून से शुरू होने जा रहे दो दिवसीय जी 20 समूह के सम्मेलन की सफलता के लिए भी मिलजुल कर काम करने पर सहमति जताई। इस सम्मेलन में यूरोप के संकट का मुद्दा छाये रहने की उम्मीद है। चीन और भारत में धीमी वृद्धि के साथ इस संकट के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न हो गया है।दोनों नेताओं के बीच बातचीत से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने यहां आए अपने भारतीय समकक्ष एस कृष्णा और अन्य शीर्ष अधिकारियों के साथ कई विषयों पर बातचीत की।अमेरिका ने सोमवार को भारत तथा छह अन्य देशों को ईरान से तेल आयात में कटौती के लिए नए कड़े प्रतिबंधों से छूट देने का ऐलान किया था।
भारत, अमेरिका एवं अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता पाकिस्तान के खिलाफ नहीं है बल्कि इसका उद्देश्य आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना और युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में स्थायित्व लाना है।अमेरिका और भारत चीन के साथ बेहतर साझीदारी चाहते हैं और बीजिंग के साथ द्विपक्षीय संबंधों की संभावनाओं पर गौर कर रहे हैं। यह बात ओबामा प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कही है।दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के सहायक विदेश मंत्री रॉबर्ट ब्लेक ने कहा कि चीन पर विचार-विमर्श हुआ। मैं यह नहीं कहना चाहता कि चीन पर ही ध्यान केंद्रित किया गया।मेरा मतलब है कि हमने अफगानिस्तान एवं अन्य चीजों पर ज्यादा गौर किया। भारत और अमेरिका के बीच तीसरी रणनीतिक वार्ता एक दिन पहले ही हुई थी।उन्होंने कहा, भारत और अमेरिका चीन के साथ बेहतर एवं मजबूत संबंध चाहते हैं। हमें नही लगता कि हमारी रणनीतिक साझेदारी चीन के साथ संबंधों के रास्ते में आड़े आयेगी।
यूपीए 1 और यूपीए 2 में जब-जब परेशानियां आयीं, तब-तब प्रणब मुखर्जी संकट मोचक के रूप में दिखाई दिये। उन्होंने बड़े-बड़े विवाद चुटकियों में सुलझाये। अब यह संकट मोचक दिल्ली की रायसीना हिल की ओर अग्रसर हैं। उनकी नई पारी की शुरुआत से पहले हम आपको रू-ब-रू करा रहे हैं प्रणब दा के राजनीतिक सफर से।
पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के किरनाहर शहर के पास 11 दिसंबर 1935 को मिराती गांव में कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के घर प्रणब का जन्म हुआ। उनके पिता कांग्रेस पार्टी की ओर से पश्चिम बंगाल विधान परिषद (1952-64) के सदस्य और वीरभूम जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई थी। वे 10 साल तक जेल में रहे थे।
प्रणब दा ने वीरभूम के सूरी विद्यासागर कॉलेज में शिक्षा ग्रहण की और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ने चले गये। प्रणव दा ने अपने करियर की शुरुआत कॉलेज शिक्षक के रूप में की और फिर पत्रकार बन गये। बतौर पत्रकार प्रणब दा ने बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक (मातृभूमि की पुकार) के लिए काम किया। वे बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी और बाद में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी बने।
पत्रकारिता के साथ-साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा और कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। 1969 में कांग्रेस पार्टी के राज्यसभा सदस्य के रूप में पहली बार संसद पहुंचे। उसके बाद 1975, 1981, 1993 और 1999 में फिर से चुने गए। 1973 में वे औद्योगिक विकास विभाग के केंद्रीय उप मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में शामिल हुए।
वे सन 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे और और सन 1984 में भारत के वित्त मंत्री बने। उनका कार्यकाल भारत के अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋण की 1.1 अरब अमरीकी डॉलर की आखिरी किस्त नहीं लेने के लिए उल्लेखनीय रहा. वित्त मंत्री के रूप में प्रणव के कार्यकाल के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे।
वे इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद राजीव गांधी की समर्थक मंडली के षड्यंत्र के शिकार हुए जिसने इन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। एक छोटी अवधि के लिए कांग्रेस पार्टी से उन्हें निकाल दिया गया था और उस दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक दल राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का गठन किया, लेकिन बाद में सन 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद उसका कांग्रेस पार्टी में विलय हो गया।
यहां से प्रणब दा ने एक और नई शुरुआत की और फिर पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री कार्यकाल में वे केंद्रीय कैबिनेट मंत्री बने। 1995 से 1996 तक वे विदेश मंत्री रहे।
सन 2004 में, जब कांग्रेस ने गठबंधन सरकार के अगुआ के रूप में सरकार बनायी, तो कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ एक राज्यसभा सांसद थे. इसलिए जंगीपुर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले प्रणव मुखर्जी को लोकसभा में सदन का नेता बनाया गया। वे अपने करियर में रक्षा, वित्त, विदेश विषयक मंत्रालय, राजस्व, नौवहन, परिवहन, संचार, आर्थिक मामले, वाणिज्य और उद्योग, समेत विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल चुके हैं।
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Friday, June 15, 2012
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