अब कल्पना करें कि प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री! इस पर तुर्रा यह कि अन्ना ब्रिगेड का संविधान विरोधी अभियान भी कामयाब! कैसा होगा यह समीकरण?
पलाश विश्वास
धर्म आधारित राष्ट्रवाद के प्रतिरोध के बगैर कारपोरेट साम्राज्यवाद का विरोध बेमायने हैं। अभी अभी लोकतंत्र के निर्यात के बहाने कारपोरेट साम्राज्यवाद ने मध्यपूर्व एशिया और अफ्रीका में धार्मिक राष्ट्रवाद के पुनूरुत्थान की जमीन तैयार की है और इस्लामिक ब्रदरहुड की विचारदारा अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रवाद का पर्याय बन गयी है , जिसके चपेटे में तेजी से आ रहा है दक्षिण एशिया भी। भारत में अमेरिकी नवउदारवादी खुले बाजार के वर्चस्व के पीछे हिंदू राष्ट्रवाद का पुनूरुत्थान है, सिखों का नरसंहार . आपरेशन ब्लू स्टार, बाबरी विध्वंस, आतंकवादी हमले और गुजरात के नरसंहार जैसी घटनाएं हैं, इस तथ्य को नजरअंदाज करके हम प्रतिरोध का कोई भी मौका तैयार करने में असमर्थ रहे हैं।अब पूर्वी भारत कोखोलने की रणनीति है, जिसके लिए हिलेरिया की कोलकाता की सवारी ही काफी नहीं हैं, इसलिए एक दफा फिर असम को दंगाइयों के हवाले कर दिया गया। मालूम हो कि गुजरात की तरह असम भी हिंदू राष्ट्रवाद का गुजरात की तरह ही अनोखा प्रोयोगस्थल है। बांग्ला राष्ट्रवाद की तरह अहमिया राष्ट्रवाद भी अंततः वर्चस्ववादी हिंदुत्व ही है।इस प्रस्थानबिंदू और अवस्थान से देखें तो साठ, सत्तर, अस्सी और नब्वे दशक के दरम्यान हिंदू राष्ट्रवाद और नवउदारवादी खुले बाजार का चोली दामन का रिश्ता साफ हो जायेगा।यही जहरीला रसायन जल, जंगल और जमीन से जुड़े समुदायों की सांसें तोड़ने में लगा है और इसी को समावेशी विकास , विकास दर, गरीबी उन्मूलन, आर्थिक सुधार बतौर परिभाषित किया जा रहा है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि अपने ही नुमाइंदे डा. मनमोहन सिंह को अंडर एटीवर करार देने वाले अमेरिकी कारपोरेट मीडिया हिंदू राष्ट्रवाद के प्रमुख ध्वजावाहक नरेंद्र मोदी के प्रति खास मेहरबान हैं। प्रधानमंत्रित्व के दावेदार मोदी अब गुजरात नरसंहार का कलंक दोने के लिए एढ़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। रामरथी लालकृष्म आडवाणी तक उनके बचाव में लाम बंद है। गुजरात दंगों के कलंक के बावजूद भाजपा के पास प्रधानमंत्रित्व के लिए नरेंद्र मोदी से बेहतर उम्मीद नहीं हैं।अब कल्पना करें कि प्रणव मुखर्जी राष्ट्रपति और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री! इस पर तुर्रा यह कि अन्ना ब्रिगेड का संविधान विरोधी अभियान भी कामयाब! कैसा होगा यह समीकरण?क्या हम इस स्थिति के लिए तैयार हैं?अजित सिंह का लिखा गौरतलब है कि डेढ़ दशक से भाजपा की गोदी में बैठकर सत्ता सुख भोग रहे नीतीश कुमार को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तो सांप्रदायिक नजर आते हैं पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग धर्मनिरपेक्ष। नीतीश कुमार को क्या यह बताने की जरूरत है कि वे जिस आडवाणी को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण-पत्र दे रहें हैं ये वही लालकृष्ण आडवाणी हैं, जिन्होंने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा करके बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद किये जाने का वातावरण निर्मित किया। ये वही आडवाणी हैं जिन्हें अटल बिहारी वाजपेयी के सक्रिय राजनीति में रहते हुए कट्टर कहा जाता रहा है। इतना ही नहीं उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी से यही तर्क देकर महरूम कर दिया गया कि उनकी कट्टर हिंदूवादी छवि के चलते तथाकथित धर्मनिरपेक्ष घटक दल उनका नेतृत्व स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। नीतीश इस बात को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं कि श्धर्मनिरपेक्ष्य अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही गुजरात के मुसलमानों का थोक के भाव में संहार किया गया था। बावजूद इसके नरेंद्र मोदी का बाल भी बांका नहीं हुआ। उलटे वे हिंदू हृदय सम्राट बन बैठे। क्या समाजवादी पृष्टभूमि से आने वाले नीतीश कुमार को यह भी याद दिलाने की जरूरत है कि चाहे वे अटल बिहारी वाजपेयी हों या लालकृष्ण आडवाणी या फिर नरेंद्र मोदी, ये सभी लोग पहले जनसंघ या राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के हैं, भारतीय जनता पार्टी के तो बाद में हुए। संघ की विचारधारा क्या है, यह पूरी दुनिया को पता है।
गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा है कि अगर मैं गुजरात दंगे का गुनहगार हूं तो सूली पर चढ़ा दो। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बात नई दुनिया नाम के उर्दू साप्ताहिक को दिए इंटरव्यू में कही है।
मोदी का यह कवर पेज इंटरव्यू नई दुनिया के संपादक और समाजवादी पार्टी के राज्य सभा सांसद शाहिद सिद्दीकी ने लिया है। उन्होंने कहा है कि इस इंटरव्यू से समाजवादी पार्टी का कोई लेना देना नहीं है। इस इंटरव्यू में गोधरा कांड के बाद गुजरात दंगों, गुजरात में मुसलमानों के हालत और कई दूसरे संवेदनशील मुद्दों पर बात की गई है। मोदी को लेकर सोच में बदलाव के सुबूत के तौर पर सिद्दीकी ने लिखा है कि नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू का फैसला उन्होंने मुंबई में बॉलीवुड की दो बड़ी फिल्मी हस्तियों महेश भट्ट और सलीम खान के साथ लंच के बाद लिया।उन्होंने कहा कि मुझे यकीन नहीं था कि गुजरात दंगों पर केंद्रित इस इंटरव्यू के लिए मोदी तैयार हो जाएंगे। जानकारों की मानें तो साल 2014 में होने वाले आम चुनाव को लेकर मोदी अपनी छवि सुधारने मे जुटे हैं। मोदी इससे पहले कभी इतने खुले रूप से दंगों की बात करते दिखाई नहीं दिए। इंटरव्यू में मोदी ने गुनहगार होने पर फांसी देने की बात तो की ही लेकिन यह भी कहा है कि अगर मैं निर्दोष हूं तो देश मुझसे माफी मांगे।
जंतर मंतर पर इकट्ठा अन्ना समर्थक 'वंदे मातरम', 'अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं' और 'भारत माता की जय' जैसे नारे लगा रहे हैं। जंतर-मंतर पर टीम अन्ना के अनशन के समर्थन में देश में कई जगहों पर लोग अनशन कर रहे हैं।उन्हें लोकतंत्र, संविधान और संसद से परेशानी हो रही है! आप लोग उनकी दिक्कत को समझ नहीं रहे हैं...आप लोग भ्रष्ट हैं, असंवेदनशील हैं और आपकी देशभक्ति संदिग्ध है!इस अभियान को राजनीति और लोकतंत्र की प्रासंगिकता खतम हो जाने देशव्यापी कारपोरेट बिल्डर माफिया राज से कोई शिकायत नहीं है। भ्रष्टाचार विरोधी यह अभियान खुले बाजार या कारपोरेट वर्चस्व के विरुद्ध नहीं है, बल्कि उन्हीं से प्रायोजित है जो सामाजिक न्याय, समता और धर्मनिरपेक्षता की गारंटी देने वाले, आरक्षण और पांचवी छढीं अनुसूची के प्रावधान वाले धर्संम निरपेक्ष संविधान के विरुद्ध है।नीति निर्धारण में वर्चस्ववादी व्यवस्था और अनिर्वाचित तकनीशयनों, अर्थ शास्त्रियों, कारपोरेट तत्वों, विश्व बैंक आईएमएफ, यहूदीवादी हिंदू राष्ट्रवाद के पक्षधर लोगों के शत प्रतिशत वर्चस्व के खिलाफ उन्हें कोई शिकायात नहीं है। राजनीति में प्रतिनिधित्व की वर्चस्ववादी प्रणाली, अर्थव्यवस्था में वित्तीय नीति की अनुपस्थिति और बहुसंक्य निनानब्वे फीसद आबादी के बहिष्कार से कोई तकलीफ नहीं है, प्रकृति और पर्यावरण के विध्वंस के खिलाफ उन्हें कुछ नहीं कहना है। कालाधन और भ्रष्टाचार के खुला बाजार के खिलाफ खामोश ये लोग रालेगांव की मनुस्मृति व्यवस्था पूरे देश में लागू करना चाहते हैं और कारपोरेट मीडिया प्रायोजिक दृश्यों को जनांदोलन सिद्ध करके लोकतंत्र और संविधान दोनों की हत्या करना चाहते हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ टीम अन्ना के अनिश्चितकालीन अनशन के दूसरे दिन गुरुवार सुबह जंतर-मंतर परिसर में कोई खास भीड़ नहीं जुटी। सुबह तो आंदोलन के नेता भी कम ही नजर आए।सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे और किरण बेदी अनशन स्थल पर सुबह 11 बजे पहुंचे। ऐसे में टीम अन्ना के साथ इस मुद्दे पर एकजुटता दिखाने के लिए इकट्ठे हुए लोगों को निराशा हुई।
इस अनशन की अगुवाई कर रहे अरविंद केजरीवाल भी वहां मौजूद नहीं थे। टीम अन्ना के एक सदस्य ने बताया कि केजरीवाल दिल्ली से बाहर हैं और वह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर गए हैं। केजरीवाल के शाम तक अनशन स्थल पर लौटने की उम्मीद है। उनके साथ अनशन पर बैठे अन्य नेता मनीष सिसौदिया व गोपाल राय हैं।
विश्वपुत्र और हिंदू राष्ट्रवाद के फील्ड मार्शल प्रणव मुखर्जी को बाजार प्रायोजित राष्ट्रपति बनाया जाना, गुजरात में नरसंहार संस्कृति के जनक नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्रित्व के लिए सद्भावना अभियान और अन्ना वंदेमातरम ब्रिगेड के संविधानविरोधी अभियान हिंदू राष्ट्र्वाद और कारपोरेट साम्राज्यवाद का साझा अश्वमेध अभियान है, इस तथ्य को समझे बिना मध्य भारत में आदिवासियों के नरसंहार, हिमालय की तबाही,कश्मीर व पूर्वोत्तार में विशेष सैन्य अधिकार कानून, माओवादी हिंसा और असम समेत देश के विभिन्न हिस्से में अहिंदू व शरणार्थी आबादी के विरुद्ध घृणा अभियान में बहिष्कृत साज की सक्रिय भागेदारी की हिंदुत्व पहेली समझ में नहीं आने वाली है।
कारपोरेट लाबिइंग, औद्योगिक घरानों और वैश्विक पूंजी के सक्रिय समर्थन के बिना क्या समूचे सत्तावर्ग का ध्रूवीकरण प्रणव मुखर्जी को राष्ट्रपति बनाने के लिए संभव था? जबकि यह समझने वाली बात है कि अगले लोकसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश की स्थिति में राष्ट्रपति की भूमिका नई सरकार बनाने के लिए निर्णायक होगी, जिससे अंततः कांग्रेस और यूपीए को लाभ की स्थिति में होना है! राजनीतिक हितों से ऊपर उठने का यह चमत्कार क्या अनायास हो गया?
असम में जो दंगे हो रहे हैं और बोडो आदिवासी और मुसलमान शरणार्थी एक दूसरे के हाथों जो मारे जा रहे हैं, सत्ता वर्ग की इस सिलसिले में तमासाई भूमिका गुजरात नरसंहार के दरम्यान अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़ों के हिंदू राष्ट्रवाद की पैदल सेना बन जाने की कथा की पुनरावृत्ति है यह। सत्तावर्ग को न गुजरात या अन्यत्र कहीं बहिस्कृत समाज के अनुसूचितों, पिछड़ों या मुसलमानों से कोई सहानुभूति है और न बोडो या दूसरे आदिवासियों या मानवाधिकार, नागरिक अधिकार और नागरिकता से वंचित शरणार्थियों और बस्तीवालों, बंजारों से। अहमिया राष्ट्रवाद से भी कुछ लेना देना होना होता तो असम इस तरह बार बार जल नहीं रहा होता।
संयोग से राष्ट्रपति भवन में वर्तमान महामहिम न सिर्फ हिंदू राष्ट्रवाद के कुलाधिपति है, जिस कारण हिंदुत्ववादी शिवसेना और उसके सहयोगी जनतादल युनाइटेड के समाजवादियों और वामपंथियों तक को उन्हें विचारधाराओं और राजनीति के विरुद्ध उन्हें समर्थन देना पड़ा, बल्कि तमाम जनविरोधी कानूनों को पास करने वाली संसदीय समितियों और अधिकारप्राप्त मंत्रीसमूहों की अध्यक्षता वे ही करते रहे हैं और संसद को बाईपास करते हुए एक के बाद एक जनविरोधी कानून पास करने में वे सबसे आगे रहे हैं।शरणार्थियों के देश निकाला अभियान के प्रवर्तक हैं मुखर्जी, जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून, गैर कानूनी आधार कार्ड परियोजना, तमाम दूसरे जनविरोधी कानून और आर्थिक सुधार लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की और बतौर राष्ट्रपति भी वे कारपोरेट हित साधने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
बंगाल और बाकी देश में उनके निष्ठावान ब्राह्मण होने की कथा डंके की चोट पर प्रचारित किया जा रहा है। ज्योतिषी की भविष्यवाणी का हवाला दिया जा रहा है। उनके गांव से सीधे पर्सारम के जरिये उनके कर्मकांड को महिमामंडित किया जा रहा है। राष्ट्रपति भवन स्थानांतरित होने से पहले श्रीमती मुखर्जी के पूजा घर को लेकर खबरें प्रसारित की जाती रही हैं। दुर्गापूजा और चंडीपाठ के रस्मोरिवाज के जरिये उनेक ब्राह्मणत्व और हिंदुत्व को महिमामंडित किया जा रहा है। बंगाल में बंगाली राष्ट्रपति से ज्यादा उनके निष्ठावान ब्राह्मण होने की धूम है। इसका क्या मतलब है? हिंदू राष्ट्रवाद के प्रति प्रतिबद्ध महामहिम? तो बाकी धर्मों और मतों के प्रतिनिधित्व करने वाले देश के प्रथम नागरिक की पहचान क्या महज उनका हिंदुत्व या ब्राह्मणत्व है?
दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के दौरान संकेत दे दिया कि इस पद पर आकर वह मंद नहीं पडे़गे। शपथ ग्रहण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने गरीबी, आतंकवाद और अन्य कई अहम मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी। करप्शन को उन्होंने देश की उन्नति में बाधा बताया।
चौथा विश्व युद्ध : प्रणव ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को चौथा विश्व युद्ध बताया। उन्होंने कहा कि यह विश्व युद्ध इसलिए है क्योंकि आतंकवाद अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकता है। देशवासियों से उन्होंने कहा कि हमारी जिम्मेदारी काम करना है, नतीजे खुद ही आ जाएंगे।
भूख सबसे बड़ा अपमान : दादा उस मुद्दे पर भी बोले जिस पर आमतौर पर कोई नहीं बोलता यानी गरीबी और गरीबों की हालत। गरीबी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भूख से बड़ा अपमान कुछ नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांत से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का हल नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि गरीबों का उत्थान करना होगा ताकि आधुनिक भारत के शब्दकोश में से यह शब्द मिट जाए।
एजुकेशन से खत्म होगा अंधकार : काले रंग की शेरवानी में शपथ लेने पहुंचे प्रणव ने शिक्षा की अहमियत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा के जरिये ही स्वर्ण युग लाया जा सकता है। करप्शन को बुराई बताते हुए दादा ने कहा कि यह हमारी प्रगति में बाधा है और महज कुछ लोगों की लालच के लिए इसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता।
तो दूसरी ओर,भारत की राजनीति गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जापान में भी पीछा नहीं छोड़ रही है। चार दिनों की जापान यात्रा पर गए नरेंद्र मोदी ने वहां भी यूपीए सरकार पर हमला बोला है। मोदी ने कहा, 'हमारी केंद्र सरकार कई तरह की अंदरूनी समस्याओं से घिरी हुई है। मैं नहीं जानता कि यह (चुनाव) कब होगा। यह कहना मुश्किल है कि चुनाव 2013 में या फिर 2014 या 2012 के आखिर में भी हो सकते हैं।'
मोदी ने यह भरोसा जताया कि एनडीए गठबंधन अगला चुनाव जीतेगा और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चली एनडीए की सरकार जैसी सरकार देगा। उन्होंने कहा, 'मुझे एनडीए की सत्ता में वापसी की उम्मीद इसलिए है क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चली सरकार देश को याद है। तब महंगाई काबू में थी। बुनियादी ढांचे का विकास तेजी से हो रहा था। हर दिन हम लोग 11 किलोमीटर लंबी सड़क बनाते थे। आज यह आंकड़ा 3 किलोमीटर हो गया है।' सभी सवालों के जवाब बेबाकी से दे रहे नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर अपनी दावेदारी को लेकर साफ-साफ कुछ नहीं कहा। मोदी से जब पूछा गया कि वे अगर प्रधानमंत्री बनते हैं तो लोगों के लिए क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा-राजनीति में किंतु-परंतु की कोई जगह नहीं है। जब इस सवाल पर मीडिया ने जोर दिया तो उन्होंने कहा, 'मैंने आपसे कहा कि राजनीति में किंतु-परंतु की कोई जगह नहीं है।'
मोदी से जब पूछा गया कि क्या वे भारत के प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं तो गुजरात के मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैं गुजरात को लेकर प्रतिबद्ध हूं। मैं 6 करोड़ लोगों के लिए प्रतिबद्ध हूं। उन लोगों ने मुझे जिम्मेदारी सौंपी है। मुझे उसे पूरा करना है।' एक दशक से गुजरात में सरकार चला रहे मोदी को दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में फिर लौटने का भरोसा है। उन्होंने कहा, 'दिसंबर में गुजरात में चुनाव होने जा रहे हैं। मेरी प्राथमिकता अभी चुनाव जीतने की है। मुझे भरोसा है कि गुजरात के लोग मेरी सरकार को दोबारा चुनेंगे।'
नरेंद्र मोदी के बयान पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं। बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मोदी का बचाव किया है। वहीं, कांग्रेस ने कहा है कि अगर मोदी को गुजरात दंगों पर कुछ कहना है तो मीडिया में नहीं बल्कि कोर्ट में आकर बोलें। केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा है कि मोदी को लोगों के लिए काम करना चाहिए।
इंटरव्यू लेने वाले शाहिद सिद्दिकी की पार्टी समाजवादी पार्टी के नेता मोहम्मद आज़म खान ने इस बारे में कहा है कि मोदी तमाम लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। आजम के मुताबिक मोदी को ज़मीन से लेकर आसमान तक कोई माफ नहीं कर सकता है।
इंटरव्यू के मुताबिक नरेंद्र मोदी ने कहा है कि अगर वह बेकसूर हैं तो मीडिया और उन पर आरोप लगाने वाले उनसे माफी मांगें। मोदी से पूछा गया कि वे गुजरात दंगों के लिए माफी क्यों नहीं मांगते? इसके जवाब में मोदी ने कहा कि गुजरात दंगे जैसा कांड देश में होता है तो केवल माफी मांगना काफी नहीं है। इसमें मैं गुनहगार पाया जाता हूं तो मुझे फांसी पर लटका दिया जाए। मोदी ने ऐसी ही बात पिछले साल सितंबर में अपनी सद्भावना उपवास के दौरान भी कही थी।
इंटरव्यू में मोदी से पूछा गया कि आप देश के प्रधानमंत्री क्यों बनना चाहते हैं? तो उन्होंने कहा कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते, वह केवल गुजरात के विकास और गुजरातियों के बारे में सोचते हैं। मोदी को लेकर सोच में बदलाव के मुद्दे पर सिद्दिकी ने बड़ी साफगोई से लिखा है कि नरेंद्र मोदी के इंटरव्यू का फैसला उन्होंने मुंबई में बॉलीवुड की दो बड़ी फिल्मी हस्तियों-महेश भट्ट और सलीम खान के साथ लंच के बाद लिया। सिद्दिकी के मुताबिक महेश भट्ट और सलीम खान ने उन्हें बताया कि गुजरात दंगों और मुसलमानों को लेकर मोदी की सोच में बदलाव आ रहा है। बकौल सिद्दिकी इंटरव्यू की सलाह महेश और सलीम ने ही दी थी। महेश भट्ट नरेंद्र मोदी के बड़े आलोचक माने जाते रहे हैं।
शाहिद सिद्दीकी ने कहा कि वे कभी नहीं सोचते थे कि मोदी इंटरव्यू के लिए तैयार होंगे। क्या इस इंटरव्यू को मोदी को लेकर मुलायम सिंह यादव या समाजवादी पार्टी की सोच बदलने का सुबूत माना जा सकता है? इस सवाल के जवाब में शाहिद ने कहा, 'इस इंटरव्यू का सपा या मुलायम सिंह यादव से कोई लेनादेना नहीं है। मैं पहले पत्रकार हूं और बाद में राजनेता।'
नरेंद्र मोदी इनदिनों जापान यात्रा पर हैं। जापान के अधिकारी मोदी पर भरोसा जाहिर कर रहे हैं कि वे जापानी निवेश के लिए अच्छा कारोबारी माहौल देंगे। गुड़गांव के मानेसर में मारुति-सुजुकी प्लांट में हिंसा के बाद औद्योगिक सुरक्षा जापानी कारोबारियों के लिए पहली प्राथमिकता बन गई है। ऐसे में जापान के उद्योग जगत की निगाह नरेंद्र मोदी पर टिक सकती है। मोदी मारुति-सुजुकी को पहले ही गुजरात में प्लांट लगाने का न्योता दे चुके हैं।
नरेंद्र मोदी को लेकर जापान के उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र सरकार के कैबिनेट रैंक के मंत्री को दिए जाने वाले प्रोटोकॉल के तहत गुजरात के मुख्यमंत्री का स्वागत किया गया। गौरतलब है कि प्रोटोकॉल के तहत भारत के किसी राज्य के मुख्यमंत्री से केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को 'सीनियर' माना जाता है।
रविवार को जापान पहुंचे मोदी तीन दिन में 44 कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। वह जापान की सत्ता पर काबिज नेताओं के अलावा विपक्षी नेताओं से भी मिलेंगे। जापान के शीर्ष कारोबारियों से मिलने के अलावा मोदी टोक्यो से हमामत्सु और फिर हमामत्सु से नागोया की 350 किलोमीटर की यात्रा 'शिंकानसेन' बुलेट ट्रेन से पूरी करेंगे। इस यात्रा को पूरा करने में मोदी को 100 मिनट लगेंगे। इस ट्रेन में मोदी के सवार होने की खास वजह भी है। मोदी अहमदाबाद-सूरत-मुंबई-पुणे रूट पर बुलेट ट्रेन चलाने पर विचार कर रहे हैं। इसके अलावा गुजरात सरकार जापानी अधिकारियों से गुजरात में दो जापानी इंडस्ट्रियल पार्क बनाने पर भी बात कर रही है। दोनों पार्क दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर का हिस्सा होंगे।
अपनी यात्रा से पहले एक जापानी बिजनेस अखबार को दिए गए इंटरव्यू में मोदी ने कहा था कि गुजरात के विकास मॉडल को पूरे भारत में लागू किए जा सकता है। पूरे भारत में लोग बेहतर ज़िंदगी की तलाश में हैं। ऐसे में सिर्फ आर्थिक विकास ही लोगों की इस उम्मीद को पूरा कर सकता है। यह यात्रा मोदी के अंतरराष्ट्रीय कद को ऊंचा उठाती हुई दिख रही है, जो अमेरिका के उस रुख से उलट है, जो गुजरात में हुए 2002 के दंगे की वजह से मोदी को अमेरिका का वीजा नहीं देता है।
राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने के बाद संसद के केन्द्रीय कक्ष में श्री प्रणव मुखर्जी के संबोधन का मूलपाठ इस प्रकार है :
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील, श्री हामिद अंसारी, श्रीमती मीरा कुमार, न्यायमूर्ति एस. एच. कापड़िया संसद सदस्यों महामहिमगण, मित्रो और देशवासियो, आपने मुझे जो उच्च सम्मान दिया है, मैं उससे अभिभूत हूं। यह सम्मान, इस पद पर बैठने वाले को आनंदित करता है और उससे यह भी अपेक्षा करता है कि वह देश की भलाई के लिए कार्य करते हुए व्यक्तिगत अथवा पक्षपात की भावना से ऊपर उठकर काम करे।
इस पद की प्रमुख जिम्मेदारी संविधान के संरक्षक के रूप में काम करने की है। मैं अपने संविधान को सुरक्षा, संरक्षा तथा रक्षा, जैसा कि मैंने शपथ में कहा है, न केवल उसके शब्दों से बल्कि उसकी भावना से, करने के लिए प्रयत्नशील रहूंगा। हम सभी, भले ही किसी भी दल और क्षेत्र से हों, अपनी मातृभूमि की वेदी पर सहयोगी हैं। हमारा संघीय संविधान, आधुनिक भारत के विचार का जीता-जागता स्वरूप है और यह न केवल भारत को बल्कि आधुनिकता को भी परिभाषित करता है।
आधुनिक राष्ट्र कुछ बुनियादी सिद्धांतों पर निर्मित होता है जैसे, लोकतंत्र अथवा हर एक नागरिक को बराबर का अधिकार, धर्मनिरपेक्षता अथवा हर एक धर्म को बराबर स्वतंत्रता, हर एक क्षेत्र और भाषा को बराबर अधिकार, लैंगिक समानता तथा इनमें सबसे अधिक, आर्थिक समानता। हमारा विकास वास्तविक लगे इसके लिए जरूरी है कि हमारे देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को यह महसूस हो कि वह उभरते भारत की कहानी का एक हिस्सा है।
बंगाल के एक छोटे-से गांव में दीपक की रोशनी से दिल्ली की जगमगाती रोशनी तक की इस यात्रा के दौरान मैंने विशाल और कुछ हद तक अविश्वसनीय बदलाव देखे हैं। उस समय मैं बच्चा था, जब बंगाल में अकाल ने लाखों लोगों को मार डाला था, वह पीड़ा और दुख मैं भूला नहीं हूं। हमने कृषि उद्योग और सामाजिक ढांचे के क्षेत्र में बहुत कुछ हासिल किया है, परंतु यह सब उसके मुकाबले कुछ भी नहीं है, जो आने वाले दशकों में, भारत की अगली पीढ़ियां हासिल करेंगी।
हमारा राष्ट्रीय मिशन वही बना रहना चाहिए, जिसे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, अंबेडकर तथा मौलाना आजाद की पीढ़ी ने भाग्य से भेंट के रूप में हमारे सुपुर्द किया था, गरीबी के अभिशाप को खत्म करना और युवाओं के लिए ऐसे अवसर पैदा करना, जिससे वे हमारे भारत को तीव्र गति से आगे लेकर जाएं। भूख से बड़ा अपमान कोई नहीं है। सुविधाओं को धीरे-धीरे नीचे तक पहुंचाने के सिद्धांतों से गरीबों की न्यायसंगत आकांक्षाओं का समाधान नहीं हो सकता। हमें उनका उत्थान करना होगा जो कि सबसे गरीब है जिससे गरीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोश से मिट जाए।
यह बात जो हमें यहां तक लेकर आई है वही हमें आगे लेकर जाएगी। भारत की असली कहानी है इसकी जनता की भागीदारी। हमारी धनसंपदा को किसानों और कामगारों, उद्योगपतियों और सेवा-प्रदाताओं, सैनिकों और असैनिकों द्वारा अर्जित किया गया है। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा तथा सिनागॉग के प्रशांत सह-अस्तित्व में, हमारा सामाजिक सौहार्द दिखाई देता है और ये हमारी अनेकता में एकता के प्रतीक है।
शांति, समृद्धि का पहला तत्व है। इतिहास को प्राय: खून के रंग से लिखा गया है; परंतु विकास और प्रगति के जगमगाते हुए पुरस्कार शांति से प्राप्त हो सकते हैं न कि युद्ध से। बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध और उत्तरार्द्ध के वर्षों की अपनी कहानी है। यूरोप और सही मायने में पूरे विश्व के दूसरे विश्व युद्ध और उपनिवेशवाद की समाप्ति के बाद खुद को फिर से स्थापित किया और परिणाम स्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी महान संस्थाओं का उदय हुआ। बिन नेताओं ने लड़ाई के मैदान में बड़ी-बड़ी सेनाएं उतारी, और तब उनकी समझ में आया कि युद्ध में गौरव से हीं अधिक बर्बरता होती है, तो इसके बाद उन्होंने दुनिया की सोच में परिवर्तन करके उसे बदल डाला। गांधीजी ने हमें उदाहरण प्रस्तुत करके सिखाया और हमें अहिंसा की परम शक्ति प्रदान की। भारत का दर्शन पुस्तकों में कोई अमूर्त परिकल्पना नहीं है। यह हमारे लोगों के रोजाना के जीवन में फलीभूत हो रहा है, जो मानवीयता को सबसे अधिक महत्व देते हैं। हिंसा हमारी प्रकृति में नहीं है, इन्सान के रूप में जब हम कोई गलती करते हैं तब हम पश्चाताप तथा उत्तरदायित्व के द्वारा खुद को उससे मुक्त करते हैं।
परंतु शांति के इन प्रत्यक्ष पुरस्कारों के कारण इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया है कि अभी युद्ध का युग समाप्त नहीं हुआ है। हम चौथे विश्व युद्ध के बीच में है, तीसरा विश्व युद्ध शीत युद्ध था, परंतु 1990 के दशक की शुरूआत में जब यह युद्ध समाप्त हुआ उस समय तक एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में बहुत गर्म माहौल था।
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चौथा युद्ध है और यह विश्व युद्ध इसलिए है, क्योंकि यह अपना शैतानी सिर दुनिया में कहीं भी उठा सकता सकता है। दूसरे देशों को इसकी जघन्यता तथा खतरनाक परिणामों के बारे में बाद में पता लगा, जबकि भारत को इस युद्ध का सामना उससे कहीं पहले से करना पड़ रहा है। मुझे अपनी सशस्त्र सेनाओं की वीरता, विश्वास तथा दृढ़ निश्चय पर गर्व है, जो उन्होंने हमारी सीमाओं पर इस खतरे से लड़ते हुए दिखाया है, अपने बहादुर पुलिस बलों पर गर्व है जिन्होंने देश के अंदर शत्रुओं का सामना किया है तथा अपनी जनता पर गर्व है जिन्होंने असारण उकसावे के बावजूद शांत रहकर आतंकवादियों के कुचक्र को बेकार कर दिया। भारत के लोगों ने घावों का दर्द सहते हुए परिपक्वता का उदाहरण प्रस्तुत किया है। जो हिंसा भड़काते हैं और घृणा फैलाते हैं, उन्हें एक सच्चाई समझनी होगी। वर्षों के युद्ध के मुकाबले शांति के कुछ क्षणों से कहीं अधिक उपलब्धि प्राप्त की जा सकती है। भारत आत्मसंतुष्ट है तथा समृद्धि के ऊंचे शिखर पर बैठने की इच्छा से प्रेरित है। यह अपने इस मिशन में आतंकवाद फैलाने वाले खतरनाक लोगों के कारण विचलित नहीं होगा।
भारतवासियों के रूप में हमें भूतकाल से सीखना होगा, परंतु हमारा ध्यान भविष्य पर केंद्रित होना चाहिए। मेरी राय में शिक्षा वह मंत्र है जो कि भारत में अगला स्वर्ण युग ला सकता है। हमारी प्राचीनतम ग्रंथों में समाज के ढांचे को ज्ञान के स्तंभो पर खड़ा किया गया है, हमारी चुनौती है, ज्ञान को देश के हर एक कोने में पहुंचाकर, इसे एक लोकतांत्रिक ताकत में बदलना। हमारा ध्येय वाक्य स्पष्ट है, ज्ञान के लिए सब और ज्ञान सबके लिए।
कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है। समाचार सदैव खुशनुमा नहीं होते। भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है जो देश की मनोदशा में निराशा भर सकती है और इसकी प्रगति को बाधित कर सकती है। हम कुछ लोगों के लालच के कारण अपनी प्रगति की बलि नहीं दे सकते।
मैं एक ऐसे भारत की कल्पना करता हूं जहां उद्देश्य की समानता में सबका कल्याण संचालित हो, जहां केंद्र और राज्य केवल सुशासन की परिकल्पना से संचालित हों, जहां हर एक क्रांति सकारात्मक क्रांति हो, वहां लोकतंत्र का अर्थ केवल पांच वर्ष में एक बार मत देने का अधिकार न हो बल्कि जहां नागरिकों के हित में बिना भय और पक्षपात के बोलने का अधिकार हो, जहां ज्ञान विवेक में बदल जाए, वहां युवा अपनी असाधारण ऊर्जा तथा प्रतिभा को सामूहिक लक्ष्य के लिए प्रयोग करें। जब पूरे विश्व में निरंकुशता समाप्ति पर है, जब उन क्षेत्रों में लोकतंत्र फिर से पनप रहा है जिन क्षेत्रों को पहले इसके लिए अनुपयुक्त माना जाता था, ऐसे समय में भारत आधुनिकता का मॉडल बनाकर उभरा है।
जैसा कि स्वामी विवेकानंद ने अपने सुप्रसिद्ध रूपक में कहा था कि भारत का उदय होगा, शरीर की ताकत से नहीं बल्कि मान की ताकत से, विध्वंस के ध्वज से नहीं, बल्कि शांति और प्रेस के ध्वज से। अच्छाई की सारी शक्तियों को इकट्ठा करें। यह न सोचे कि मेरा रंग क्या है, हरा, नीला अथवा लाल; बल्कि सभी रंगों को मिला लें और सफेद रंग की उस प्रखर चमक को पैदा करें, जो प्यार का रंग है।
हमारा दायित्व है काम करना, परिणाम खुद ही आ जाएंगे।
किसी भी जनसेवक के लिए गणतंत्र का प्रथम नागरिक चुने जाने से बड़ा कोई पुरस्कार नहीं हो सकता।
कृपया इस रपट को पढ़ें:
नरेंद्र मोदी : बनेंगे प्रधानमंत्री
तत्काल निर्णय लेने की क्षमता वाले नेता
पं. अशोक पँवार 'मयंक'
स्वच्छ, साफ-सुथरी छवि के धनी तथा कर्मठ जुझारू नेता गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को मेहसाना में वृश्चिक लग्न कर्क नवांश वृश्चिक राशि में हुआ। आपकी छवि ईमानदार होने के साथ-साथ कट्टर हिन्दूवादी नेता के रूप में है।
इस छवि से सिर्फ भारत देश ही नहीं, पूरे विश्व में अपनी छवि का डंका बजाने आप कामयाब हो सकते हैं। आपकी दो टूक वाली बात का राज आपकी पत्रिका में स्थित मंगल को जाता है। आपकी पत्रिका में मंगल लग्न में स्वराशि वृश्चिक का सौम्य होकर भाग्य के स्वामी चन्द्रमा के साथ है। पत्रिका में चन्द्र नीच का है लेकिन मंगल के साथ होकर बैठने से चन्द्र का नीच भंग हो गया है। इसके कारण आप अत्यंत भाग्यशाली है। मंगल केन्द्र में स्वराशि का होने से रूचक योग बना, जो एक प्रकार का उत्तम राजयोग है।
अब यहां पर नक्षत्र परिवर्तन भी हो रहा है। मंगल जहां गुरु के नक्षत्र विशाखा में है तो गुरु मंगल के नक्षत्र धनिष्ठा में है। ये भी एक प्रकार से उत्तम स्थिति है। यही वजह है कि ईमानदार छवि के साथ जहां भी रहते है वहां उन्नति ही रहती है। अब एक और योग की बात करें तो केन्द्र का स्वामी केन्द्र में होकर त्रिकोण के साथ हो तो लक्ष्मीनारायण योग बनता है। यह योग कर्म क्षेत्र को धनवान बनाने में समर्थ है।
सब जानते हैं कि गुजरात की उन्नति में आपका सबसे बडा़ योगदान रहा।
पंचम भाव में राहु की स्थिति व पंचम का वक्री होना संतान सुख में बाधा का कारण बनता है। ग्रहों की माया से ही आप शादीशुदा नहीं है। इसी कारण राज्य का भला करने में पीछे भी नहीं है। जब किसी को घर-परिवार का मोह ना हो तो वो या तो संन्यासी होता है या भी फिर समाजसेवी यही कारण आपकी राजनीति में सेवा का रहा।
शनि शत्रु राशि में होकर चतुर्थ (जनता भाव) पर पूर्ण दृष्टि रखने से जनता के बीच प्रसिद्ध बना रहा है। इसी कारण से भारत की अधिकांश जनता भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रही है। दशमेश बुध एकादशेश के साथ है। दशमेश सूर्य, केतु से भी युक्त है। एकादश में राज्य के मालिक सूर्य के होने से आप अभी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं। आय भाव का स्वामी आय में होने से आप आय के क्षेत्र में काफी उन्नति करते हैं सो आपने गुजरात को सामर्थ्यवान बना डाला।
अभी वर्तमान में सूर्य का महादशा में लग्नेश मंगल का अन्तर चल रहा है जो दशमेश होकर लाभ भाव में व मंगल स्वराशि का होकर लग्न में है और यही समय है भारतीय जनता पार्टी उनकी छवि का लाभ उठा सकती है। आगामी प्रधानमंत्री घोषित कर उनकी कार्य प्रणाली का लाभ भारत के नागरिकों को दिला सकती है।
यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो मेरा दावा है कि महंगाई व भ्रष्टाचार में निश्चित तौर पर कमी आएगी। जनता को लाभ मिलेगा। अब जनता पर निर्भर करता है की वह महंगाई चाहती है या नरेंद्र मोदी।
http://hindi.webdunia.com/religion-astrology-sitaron-ke-sitarey/%E0%A4%A8%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%AE%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80-1110918038_1.htm
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