Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, July 25, 2014

इसीलिए राज्यों में जिहाद और केंद्र में साथ साथ।

इसीलिए राज्यों में जिहाद और केंद्र में साथ साथ।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


सत्ता के केंद्रीयकरण की वजह से बागी तेवर अपनाने के बावजूद राज्यों में सत्तादलों के सामने केंद्र के सामने आत्मसमर्पण करने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं बचता है।केंद्र से पंगा लेकर राज्यों का राजनीति चल ही नहीं सकती।


मसलन  मायावती और मुलायम दोनों परस्परविरोधी दल हैं और यूपी मेंं इनमें से कोई दूसरे के लिए एक इंच जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है।लेकिन दोनों पार्टियां केंद्र सरकार को समर्थन देते रहने को मजबूर हैं।माना जा रहा है कि सीबीआई के पास अब भी तकनीकी रूप से आय से अधिक संपत्ति मामले में मुलायम सिंह और मायावती के खिलाफ मामला बनाए रखने के कई रास्ते हैं।


इसीतरह तमिलनाडु में सत्ता में चाहे द्रमुक हो या अन्नाद्रमुक केंद्र के साथ नत्थी हो जाने की उसकी अनिवार्य परिणति है।


भारतीय संविधान में संघीय ढांचा के तहत कानूनी हक हकूक का बंटवारा तो हुआ है लेकिन राजस्व और संसाधनों के मामले में राज्य सरकारे केंद्र पर ही निर्भर हैं।


निरंतर हो रहे कानूनी संशोधन के मार्फत मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था में उत्पादन प्रणाली ध्वस्त हो जाने की वजह से आर्थिक तौर पर लगातार खस्ता हाल होते जा रहे राज्य राजकाज के लिए केंद्र पर ही निर्भर होते जा रहे हैं।तो दूसरी ओर संपन्न राज्यों की राजनीति भी केंद्र से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की सौदेबाजी पर टिकी होती है।


जाहिर है कि वोटबैंक साधने के लिए राज्य राजनीति में आग उगलने के बावजूद राज्यों के सत्तदलों के लिए केंद्र को पैकेज,अनुदान,विकास,योजना,मदद के बहाने केंद्र के साथ नत्थी हो जाना मजबूरी है।


जैसा कि भूमि अधिग्रहण संशोदन कानून के सिलसिले में देखा जा रहा है कि एकमात्र वामपंथी त्रिपुरा की सरकार गुजरात सरकार के साथ मिलकर हाल में लागू नये भूमि अधिग्रहण कानून को रद्दी में डालने की मांग कर रही है तो सुर में सुर मिलाने लगी हैं राज्यों की तमाम कांग्रेसी सरकारें भी।


सही है कि कांग्रेस बुरी तरह चुनावों में पराजित है।


सच यह भी है कि संसद में केसरिया सरकार को पूर्ण बहुमत है।


लेकिन गैर कांग्रेसी भाजपाई पार्टियों की ताकत अब भी कम नहीं है।


अन्नाद्रमुक,टीएमसी और बीजू जनतादल की ताकत बढी है। सीमांध्र और आंध्र में सत्तादल तो  फिरभी राजग के घटक हैं।लेकिन इन तीनों पार्टियों ने शुरु से ही राज्यसभा में अल्पमत सरकार की जमानत के इंतजाम में जुट गयी है।


गैर भाजपाई सांसदों की कुल ताकत उतनी कमजोर भी नही है।लेकिन संसद में सासद अपनी अपनी राज्यसरकार के हित में बैटिंग करते देखे गये।इसीलिए मामूली रस्म अदायगी के अलावा बजट पर संसद में चर्चा हुए बिना वित्त विधेयक इतनी आसानी से पास हो रहा है।


वंचितों के हक हकूक के मामले में राज्यों और केंद्र का रवैया समान है।विकास के पीपीपी  गुजरात माडल चूंकि सर्वव्यापी है औरसारी पार्टियां कारपोरेट हितों के मुताबिक काम कर रही हैं तो दमन उत्पीड़न नागरिक मानवाधिकारों के हनन में राज्यों और केंद्र का चोली दामन का साथ है।


ममता बनर्जी के भाजपा विरोधी जिहाद में इसीलिए केंद्र की आर्थिक नीतियों के बारे में एक शब्द भी नहीं होते तो मुलायम,मायावती से लेकर बागी नीतीश कुमार जैसे भी आर्थिक नीतियों पर खलकर बहस करने के बजाय धर्मनिरपेक्षता को मुद्दा बनाये हुए हैं या मूल्यवृद्धि पर मामूली शोरशराबा है संसद के भीतर और संसद के बाहर।बुनियादी मुद्दों पर कहीं सवाल ही खड़े नहीं किये जा रहे हैं।


राज्यपाल इस समीकर को साधने का सबसे बेशकीमती साधन है। केंद्रीयम मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति भी राज्यपालों के कार्यकाल के असमय अवसान के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते।


राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद है वैसे ही राज्यपाल भी संवैधानिक पद तो हैं लेकिन राजभवन से राज्य की राजनीति में केंद्रीय वर्चस्व और हितों केलिए काम करना उनके प्रथम और अंतिम कार्यभार हैं।


इसीलिए केंद्र में सत्ताबदल हो जाने के बाद राज्यपालों की छुट्टी का सिलसिला भी चालू हो जाता है।


बंगाल में  पुराने राज्यपाल की विदाई ममता बनर्जी की इच्छा के विपरीत हो गयी और कल्याण सिंह को बाबरी विध्वंस मामले की वजह से बंगाल में तैनाती रोकने की उपलब्धि के बावजूद केसरीनाथ की नियुक्ति वे  टाल नहीं सकीं।


21 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा पर राज्य में सांप्रदायिक दंगे भड़काने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीतने के बाद भाजपा राज्य में बड़े-बड़े सपने देख रही है। लेकिन उसके सपने पूरे नहीं होंगे। अगले चुनाव में यह दोनों सीटें भी उसके हाथों से निकल जाएंगी।


अब ट्राई कानून में संशोधन क बाद बाकी कानून बदलने में भी दीदी और मोदी विकास और जनहित के हवाले साथ साथ हैं।


धर्मनिरपेक्षता का फंडा जाहिर है कि अपने अपने वोटबैंक साधने की कवायद है।


अब अपने सिंगापुर दौरे से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तीन अगस्त से तीन दिवसीय दौरे पर दिल्ली जा रही हैं। देखते रहिये,क्या क्या गुल खिलते हैं इस मानसून में।


केसरीनाथ ने बंगाल के राजभवन में प्रवेश करते न करते संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए राजनीति हिंसा भी बंद करने की चेतावनी जारी कर दी है।


शारदा फर्जीवाड़े मामले में सांसदों,मंत्रियों,पार्टी नताओं के अलावा दीदी खुद आरोपों के घेर में है।कुणाल और सुदीप्त के भी राजसाक्षी बन जाने की आशंका है।


पश्चिम बंगाल पुलिस के कुछ अधिकारी शारदा घोटाले से संबंधित महत्वपूर्ण दस्तावेजों को कथित तौर पर नष्ट करने को लेकर सीबीआई के निशाने पर हैं।

सीबीआई सूत्रों ने कहा कि बार बार अनुरोध किए जाने के बाद भी उन्हें पश्चिम बंगाल पुलिस से घोटाले से संबंधित पूरे दस्तावेज नहीं मिले हैं। इससे यह आशंका पैदा हो रही है कि उनमें से कुछ दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया हो।

उन्होंने कहा कि अगर यह स्थापित हो जाता है कि घोटाले से जुड़े अहम दस्तावेज अधिकारियों द्वारा जानबूझकर नष्ट किए गए, एजेंसी दस्जावेजों को नष्ट करने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर सकती है।

सूत्रों ने कहा कि सीबीआई समझती है कि घोटाले की जांच के दौरान पश्चिम बंगाल पुलिस ने बड़ी संख्या में मामले दर्ज किए थे और सभी दस्तावेज एकत्र करना कठिन है। चिटफंट योजनाओं के सरगनाओं ने हजारों निर्धन लोगों के पैसे एकत्र उनमें गड़बड़ी की।



सांसदों, विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ दूसरे गंभीर आरोप भी हैं।


सांसद तापस पाल पर तलवार लटक रही है।


जांच एजंसियां नवान्न में दस्तक देने लगी हैं।


नये सेलिब्रिटी सांसद मिथुन चक्रवर्ती तक घिरने लगे हैं।शारदा चिटफंड घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय ने बुधवार को फिल्म अभिनेता और डांसिंग स्टार मिथुन चक्रवर्ती से 8 घंटे की पूछताछ की है।


मालूम हो कि मिथुन चक्रवर्ती इस समय तृणमूल कांग्रेस पार्टी से राज्यसभा सांसद हैं।


मिथुन से ईडी ने उनके घर पर ही पूछताछ की जिसमें मिथुन ने ईडी को अपने और शारदा ग्रुप के रिलेशन के बारे में बताया और खबर है कि उन्होंने कुछ दस्तावेज भी निदेशालय को सौंपे हैं।


मालूम हो कि मिथुन से पूछताछ पहले ही होनी थी लेकिन मिथुन तब भारत में नहीं थे इसलिए उनका बयान अब रिकार्ड हुआ है। वैसे आपको बता दें कि शारदा चिट फंड घोटाले के सरगना सुदीप्त सेन और निलंबित तृणमूल कांग्रेस के सांसद कुणाल घोष समेत छह आरोपी इस समय जेल में हैं।


बाकी राज्यों में भी सत्तादलों की तस्वीर यही है।


इसीलिए राज्यों में जिहाद और केंद्र में साथ साथ।




No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors