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Friday, August 8, 2014

गाजा का कुत्ता ---वीरेन डंगवाल की नयी कविता

गाजा का कुत्ता ---वीरेन डंगवाल की नयी कविता

गाजा का कुत्ता 

वह जो कुर्सी पर बैठा 
अख़बार पढ़ने का ढोंग कर रहा है 
जासूस की तरह 
वह दरअसल मृत्यु का फरिश्ता है। 

क्या शानदार डाक्टरों जैसी  बेदाग़ सफ़ेद पोशाक है उसकी 
दवाओं की स्वच्छ गंध से भरी 
मगर अभी जब उबासी लेकर अखबार फ़ड़फ़ड़ाएगा, जो दरअसल उसके पंख हैं 
तो भयानक बदबू  से भर जायेगा यह कमरा 
और ताजा खून के गर्म छींटे 
तुम्हारे चेहरे और बालों को भी लथपथ कर देंगे 
हालांकि बैठा है वह समुद्रों के पार 
और तुम जो उसे देख पा  रहे हो 
वह सिर्फ तकनीक है 
ताकि तुम उसकी सतत उपस्थिति को विस्मृत न  कर सको

बालू पर  चलते हैं अविश्वसनीय रफ़्तार  से सरसराते हुए भारी -भरकम टैंक 
घरों पर बुलडोजर 
बस्तियों पर बम बरसते हैं 
बच्चों पर गोलियां 

एक कुत्ता भागा जा रहा है
धमाकों की आवाज के बीच 
मुंह में किसी बच्चे की उखड़ी बची हुई भुजा दबाये  
कान पूँछ हलके से दबे हुए 
उसे किसी परिकल्पित 
सुरक्षित ठिकाने की तलाश है 
जहाँ वह इत्मीनान से 
खा सके अपना शानदार भोज 
वह ठिकाना उसे कभी  मिलेगा नहीं। 

[वीरेन डंगवाल 
२६ जुलाई २०१४ , तिमारपुर , दिल्ली ]


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