Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Wednesday, June 6, 2012

'चारा घोटाले के फैसले में अभी 20 साल और’

'चारा घोटाले के फैसले में अभी 20 साल और'



चारा घोटाले मामले में फिर एक बार सुगबुगाहट शुरू हुई है। घोटाले में शामिल आरोपितों की सुनवाईयों का दौर-दौरा चल रहा है। जांच में आयी तेजी के बावजूद अरबों के घोटाले के आरोपी बेहद निश्चिंत दिख रहे हैं और लगता ही नहीं कि उन्हें अपराधी साबित होने का कोई डर है...

सीबीआइ के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह से अजय प्रकाश की बातचीत 

lalu-prasadचारा घोटाले जांच मामले में फिर शुरू हुई सुगबुगाहट से आपको उम्मीदें?

सीबीआइ को स्वतंत्र तौर पर काम करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए जांच की उम्मीदें सरकार के चाहने और न चाहने पर टीकी हुई है, सीबीआइ पर नहीं। सीबीआइ को सरकार अपने कब्जे में किस तरह रखती है इसका तजुर्बा मुझे 1997 में हुआ था जब तत्कालीन प्रधानमंत्री आइके गुजराल ने मेरा सीबीआइ शाखा से तबादला करा दिया था। उस समय चारा घोटाले की चांज रफ्तार पकड़ रही थी और मैं निदेशक था। 

यानी सीबीआइ को बस में रखने का जो आरोप कांग्रेस सरकार पर भाजपा लगाती है, वह सही है?

यह बात सिर्फ कांग्रेस पर ही नहीं सभी पार्टियों पर लागू होती है। भाजपा सरकार में जब पार्टी के वरिष्ठ नेता बंगारू लक्ष्मण पैसा लेते हुए पकड़े गये थे तो भाजपा ने भी वही किया था जो बाकी सरकारें करती हैं। सीबीआइ को तो न्यायालय में अपील करने का भी अधिकार नहीं है, उसके लिए भी सरकार से इजाजत लेनी पड़ती है।  

कोई सुधार की गुंजाइश?

सुधार के लिए एक थाॅमस समिति का गठन हुआ था। कोशिश की गयी थी देश की इस सबसे सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसी को स्वतंत्र दर्जा दिया जाये, लेकिन कोई भी राज्य सरकार तैयार नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में पुलिस रिफाॅर्म के आदेश दिये थे, उस मामले में भी कोई प्रगति नहीं है। अधिकारियों पर ट्रांसफर की तलवार जबतक लटकती रहेगी तबतक कोई माकूल हल नहीं निकाला जा सकता। सीबीआइ को संवैधानिक दर्जा मिलना चाहिए। 

चारा घोटाले की जांच में सीबीआइ से भी कोई चूक हुई?

इस जांच में करीब 13 लाख पेज के डाक्युमेंट तैयार हुए और सीबीआइ को जब भी मौका मिला अधिकारियों ने बेहतर काम किया। इस घोटाले का खुलासा 1990 में हुआ। तबसे 22 साल बीत चुके हैं और मामला अभी निचली अदालत में है। अभी अगले 20 साल और लग जायेंगे उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में फैसला होने में। 

क्या इसी वजह से चारा घोटाले के अरोपी लालू प्रसाद निश्चिंत हैं?

बिल्कुल। दरअसल जांच एजेंसियों की ओर से घोटाले के अरोपी लालू प्रसाद निश्चिंत नहीं हैं बल्कि उनको बच जाने का भरोसा सरकार से है। दूसरी हिम्मत उन्हें जांच के इतिहास से भी मिल रही होगी, ज्यादातर राजनीतिज्ञ तमाम आरोपों और संलिप्तताओं के बावजूद बच जाते हैं। 

ajay.prakash@janjwar.com

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors