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Wednesday, February 26, 2014

रज्जाक मोल्ला के निष्कासन का फैसला जनाधार तेजी से खो रहे वामदलों के लिए यह एक और विराट आत्मघाती कदम

रज्जाक मोल्ला के निष्कासन का फैसला जनाधार तेजी से खो रहे वामदलों के लिए यह एक और विराट आत्मघाती कदम

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


सोमनाथ चटर्जी के निष्कासन के बाद भारतीय किसान सभा के नेता रज्जाक मोल्ला के निष्कासन का फैसला बिना इसके परिणामों पर गंभीरता से विचार किये माकपा नेतृत्व ने जो कर दिया,उससे बंगाल में राजनीतिक समीकरण में भारी बदलाव हो जाने के आसार हैं।जनाधार तेजी से खो रहे वामदलों के लिए यह एक और विराट आत्मघाती कदम है। गौरतलब है कि माकपा सांगठनिक कवायद के दौरान हर जिले में बगावत का झंडा बुलंद हुआ था,जिसे नेतृत्व ने कुचलकर रख दिया। स्थानीय, जिला और राज्य स्तर के नेतृत्व को कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने ठुकरा दिया है। रज्जाक मोल्ला का दलित मुस्लिम गठजोड़ इसी का नतीजा है,जो माकपा नेतृत्व के खिलाफ सीधे युद्ध घोषणा है।पार्टी पोलित ब्यूरो ने जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करते हुए सीधे विद्रोह दमन बिना किसी संवाद के जो कर दिया,उसके खतरनाक नतीजे होंगे।


माकपा राज्य कमिटी के प्रेस बयान के मुताबिक गंभीर पार्टी विरोधी गतिविधियों और आम जनता में पार्टी की छवि खराब रने के आरोप में पार्टी संगठन संविधान की धारा 19 और उपधारा 13 के तहत रज्जाक मोल्ला का पार्टी से निष्कासन कर दिया गया है।बयान के मुताबिक माकपा राज्य सचिव मंडल की 26 को हुई बैठक में यह फैसला हुआ।


रज्जाक मोल्ला माकपा के जुझारु नेता मंत्री रहे हैं। सोमनाथ चटर्जी का उतना विस्तृत जनाधार नहीं रहा है और न किसी खास समुदाय की भावना उनसे जुड़ी है। रज्जाक के मामले में कतई ऐसा नहीं है। राज्य में मुसलमान वोट बैंक पहले ही सत्तादल  तृणमूल कांग्रेस के हवाले है और बाकी देश में भी अल्पसंख्यकों में दीदी की साख लगातार मजबूत हो रही है।खासकर मुजफ्परनगर दंगों के सिलसिले में मुसलमानों की नाराजगी के बाद अब तो देश के मुसलमान नरेंद्र मोदी तक को गले लगाने को तैयार दीख रहे हैं।


बंगाल में सच्चर कमिटी की रपट ने खस्ताहाल मुसलमानों का वामदलों से स्थाई मोहभंग करा दिया है। पार्टी नेतृत्व में मुसलमानों और दूसरे कमजोर पिछड़े समुदायों को शामिल करके माकपा रज्जाक मोल्ला के जनाधार का बेहतर इस्तेमाल कर सकती थी।इसके उलट सनकपन के बेमिसाल इजहार के साथ रज्जाक को पार्टी बाहर कर दिया गया।इसके नतीजतन अब भी जो मुसलमान माकपा और वामदलों के साथ जुड़े हुए हैं, उनके लिए धर्म संकट की स्थिति बन रही है।


रज्जाक मोल्ला और नजरुल इस्लाम साथ साथ काम कर रहे हैं।समीर पुतुटुंडु,सैफुद्दीन चौधरी,लक्ष्मण सेठ ,सिदिकुल्ला चौधरी के एकजुट होने का मंच अब माकपा ने तैयार कर दिया है।जो लोग रज्जाक की पहल को माकपा की जनाधार वापसी की कवायद लग रही थी,उनको अब रज्जाक को अपनी ईमानदारी और नीयत के बारे में अलग से कुछ कहने कीजरुरत ही नहीं है।


गौरतलब है कि दक्षिण 24 परगना जिले के भांगड़ से वर्तमान सीपीएम विधायक और पश्चिम बंगाल में वाम सरकार में भू-राजस्व मंत्री रहे रज्जाक मोल्ला ने अलग पार्टी बनाने के संकेत दिए हैं। वाम नेतृत्व से मोहभंग होने के बाद उन्होंने कहा कि बंगाल को अब दलित मुख्यमंत्री की दरकार है। वे प्रदेश में दलितों के हितों वाली सरकार बनाने का प्रयास करेंगे। हाल में दर्जन भर से अधिक मुस्लिम व दलित संगठनों को लेकर गठित अपने सामाजिक न्याय मंच के पहले सम्मेलन में उन्होंने अपने राजनीतिक एजेंडे को सामने रखा।

मोल्ला ने कहा कि बंगाल में ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य महज चार फीसद हैं लेकिन आजादी के बाद से ही वे 96 फीसद लोगों पर राज कर रहे हैं। प्रदेश में मुसलमानों और अनुसूचित जाति व ओबीसी, आदिवासियों को अब तक सामाजिक न्याय नहीं मिल सका है। पीसी घोष से लेकर अब तक चार फीसद आबादी वाले 'कोलकाता केंद्रित लोग' ही बंगाल की जनता पर राज करते आए हैं।


हालांकि उन्होंने स्वयं विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की लेकिन पार्टी बनाने का संकेत जरूर दिया. मोल्ला के पहले सम्मेलन में सीपीएम के विक्षुब्ध नेता व नंदीग्राम के तमलुक से प्रभावशाली सांसद रहे लक्ष्मण सेठ भी शरीक हुए। लेकिन वे श्रोताओं के बीच बैठे रहे. एमसीपी की ओर से उन्हें बर्खास्त करने की खबरों से जुड़े सवाल पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की।


मोल्ला के मंच को जेडीयू सांसद और पसमांदा मुस्लिम संगठन के अध्यक्ष अली अनवर अंसारी ने भी अपना समर्थन दिया है।


दक्षिण कोलकाता के रवींद्र सदन में रविवार को आयोजित सम्मेलन में अली अनवर ने कहा कि हिंदुओं की तरह मुसलमानों में भी दलित हैं. सम्मेलन को अन्य दलित नेताओं ने भी संबोधित किया।



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