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Wednesday, February 5, 2014

गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों के कारपोरेट राज का। Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star

गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों के कारपोरेट राज का।

Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star


पलाश विश्वास

आज का संवाद

गोरे दोस्त नहीं हैं सिखों के,शहीदआजम के वंशजों से ब्रिटिश हुकूमत के बदले का खुलासा।अब जागो वाहे गुरु के खालसा। देश जोड़ो,देश को लीड करो और करारा जवाब दो गोरों का कारपोरेट राज का।

अब इस खबर पर गौर करें और याद करें कि हम लगातार सिखों से गुजारिश करते रहे हैं कि अंध धर्मोन्मादी राष्ट्रवादी जनसंहार के शिकार वे आखिरकार इसीलिए हुए कि वे भी दलितों, मुसलमानों, आदिवासियों, पूर्वोत्तरनिवासियों की तरह अलगाव में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के भरोसे चल रही सिख राजनीति ने सिखों को देश की सबसे मजबूद सबसे देशभक्त कौम को देश में ही अलग थलग कर दिया है।ब्रिटिश हुकूमत को सबसे ज्यादा परेशानी बंगालियों और सिखों से थीं।विभाजन के बावजूद सिखों का कुछ नहीं बिगाड़ सके जबकि बंगाल को पूरी तरह तहस नहस कर दिया गया तो सिकों से बदला लेने का सबसे बड़ा आपरेशन ब्लू स्टार अंग्रेजी प्लान मुताबिक हो गया। देश में अपनी पुश्तैनी बढ़त छोड़कर सिखों की आत्मघाती गोरागुलामी ने नस्ली भेदभाव वाले वर्ण वर्चस्वी सत्तावर्ग को उनके जनसंहार का मौका दिया।अब बाकी देश को साथ लेकर गोरों के इस कारपोरेट राज का खात्मा करके ही सिख ही हिसाब बराबर कर सकते हैं।


नयी दिल्ली. ब्रिटेन ने आज स्वीकार किया कि उसने 1984 में अमृतसर के स्वर्णमंदिर में आतंकवादियों को निकालने के लिये रणनीति में बनाने में भारत की सहायता के लिये एक सैन्य सलाहकार भेजा था लेकिन तीन माह बाद कार्यान्वित की गई रणनीति ब्रिटिश सैन्य सलाहकार की सलाह से बिल्कुल भिन्न थी जिसमें सैकडों लोगों की जानें गईं थीं.

ब्रिटेन ने विदेश मंत्री विलियम्स हेग ने आज अपनी संसद में दिये एक वक्तव्य में प्रधानमंत्री डेविड केमरन के निर्देश पर कैबिनेट सचिव द्वारा पुराने दस्तावेजों की जांच के नतीजों का खुलासा करते हुए यह जानकारी दी. श्री हेग ने बताया कि कैबिनेट सचिव ने चार बिन्दुओं पर जांच करने को कहा गया था कि भारत को क्या सलाह दी गई थी सलाह का प्रकार क्या था आपरेशन ब्ल्यू स्टार पर इस सलाह का क्या प्रभाव पडा तथा क्या ब्रिटिश संसद को इस बारे में गुमराह किया गया था

उन्होंने बताया कि करीब 200 फाइलों एवं 23 हजार से ज्यादा दस्तावेजों की गहन छानबीन से पता चला है कि फरवरी 1984 में भारत सरकार से ब्रिटेन की सरकार को एक आवश्यक पत्र मिला था जिसमें स्वर्ण मंदिर परिसर से आतंकवादियों को बाहर निकालने की रणनीति बनाने में तुरंत सहायता मांगी गई थी. ब्रिटिश उच्चायोग ने भी सकारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की थी. जिसे तत्कालीन सरकार ने स्वीकार कर लिया था तथा 8 से 17 फरवरी के बीच एक सैन्य सलाहकार भारत गया था जिसने भारतीय गुप्तचर एजेंसियों एवं विशेष समूह को आवश्यक सलाह दी थी. .

श्री हेग ने कहा कि सलाहकार ने यह साफ कर दिया था कि बातचीत के सभी प्रयास विफल होने की दशा में सैन्य कार्रवाई अंतिम विकल्प के तौर पर ही होना चाहिये. सलाह में कहा गया था कि सैन्य कार्रवाई में चौंकाने वाला तत्व होना जरू री है तथा इसमें हेलीकॉप्टर वाली टुकडियों का इस्तेमाल किया जाना चाहिये ताकि कम से कम जानें जायें और जल्दी परिणाम मिल सके. उन्होंने कहा कि दस्तावेजों के अनुसार सरकार का साफ तौर पर मानना था कि इस मामले में सैन्य सलाह से अधिक कोई मदद नहीं दी जाए और यह सलाह भी आरंिभक चरण तक ही सीमित रहे. उन्होंने भारतीय बलों को प्रशिक्षण और उपकरण देने की बात का सिरे से खंडन किया.

श्री हेग ने कैबिनेट सचिव की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पांच से सात जून के बीच हुए आपरेशन ब्लू स्टार के कार्यान्वयन को देखा तो पाया गया कि ब्रिटिश सैन्य सलाहकार की सलाह से िभन्न रणनीति पर काम हुआ तथा में चौंकाने वाला तत्व और हेलीकाप्टर वाली टुकडियों का प्रयोग नहीं किया गया था. उन्होंने बताया कि इस प्रकार ब्रिटिश सैन्य सलाह का इस अिभयान पर बहुत सीमित प्रभाव था. जहां तक संसद को गुमराह करने के आरोप का सवाल है तो ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिले हैं जिनमें इस आरोप की पुष्टि होती है. ब्रिटिश विदेश मंत्री ने बताया कि उनकी सरकार सिख समुदायों की चिंताओं को लेकर बेहद संजीदा है और सांसद ईस्ट डेवान सिख समुदाय के लोगों से मिलकर उनकी चिंताओं पर बात करेगें. उन्होंने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार ने कानूनी बदलाव करके 2022 के बाद तीस की बजाय बीस साल पुराने दस्तावेजों को सार्वजनिक करने का कदम उठाया है.

इधर नयी दिल्ली में विदेश मंत्रालय ने कहा कि उसे ब्रिटिश सरकार ने जांच रिपोर्ट के बारे में पूरी जानकारी दे दी है और उसने विदेश मंत्री के बयान को भी देख लिया है.



पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने आज कहा कि स्वणर मंदिर परिसर से आतंकवादियो को बाहर निकालने की कार्रवाई मे कांग्रेसी सरकार के ब्रिटेन की सरकार से सलाह लिये जाने संबंधी ब्रिटेन के खुलासे से पूरा देश सकते मे है।      श्री बादल ने यहां जारी बयान मे कहा..मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा कि किसी संप्रभु देश की प्रधानमंत्री अपने ही लोगों को इस तरह अपमानित करेंगी।अपने ही लोगो के खिलाफ सैन्य विकल्प का इस्तेमाल करेगी।यह सिखों.पंजाबियो और देश के लोगो के खिलाफ किया गया एक घोर पाप था।..


शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने भी इस संबंध मे किये गये ब्रिटिश सरकार के ख्ुालासे के बाद कांग्रेस को आडे हाथो लेते हुए कहा कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल मे किया गया आपरेशन ब्लू स्टार पंजाबियो के खिलाफ जघन्य कृत्य था।


शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा ने कहा कि देश मे अंदरूनी मामले मे विदेशी सलाह लेकर पूर्व प्रधानमंत्री ने आंतरिक सुरक्षा के साथ खिलवाड किया और लोगों को धोखा दिया।ऐसा करके श्रीमती गांधी ने स्पष्ट रूप से देश की संप्रभुता के साथ समझौते का एक उदाहरण पेश किया।


शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि 1984 में श्री हरमंदिर साहिब में आपरेशन ब्लू स्टार के लिए ब्रिटेन सरकार द्वारा भारत सरकार को सलाह देना और हमले की योजना बनाने में मदद करना शर्मनाक और अति निंदनीय है। सिख कौम ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई की सख्त शब्दों में निंदा करती है।


मक्कड़ ने कहा कि सिख जिस देश में भी गए, वहां अथक मेहनत करके उन्होंने उस देश की आर्थिक खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ब्रिटेन में भी सिखों ने वहां की तरक्की में बड़ा योगदान दिया।


बावजूद इसके ब्रिटेन सरकार ने अगर श्री हरमंदिर साहिब पर हमला करने के लिए भारत सरकार की मदद की है तो यह सिखों के साथ धोखा है।


मक्कड़ ने कहा कि ब्रिटेन जैसा देश जो मानवीय अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाता रहा है, उसकी ओर से सिखों के धार्मिक स्थान पर हमले के लिए मदद करना साबित करता है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा मानवीय अधिकारों के लिए आवाज उठाना भी धोखा है।


ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई से दुनिया भर में बैठे सिखों के मन में ब्रिटेन के खिलाफ रोष पैदा हुआ है। गुप्त पत्र से उन ब्रिटेन के लोगों के चेहरे भी बेनकाब हो गए है जिन्होंने सिखों को मारने और दबाकर राज करने की साजिश में हिस्सेदारी की है।

Britain says it advised India on 1984 Operation Blue Star

LONDON: British military's role in the 1984 Operation Blue Star was "limited" and "purely advisory", UK's foreign secretary William Hague told parliament on Tuesday.


Hague said the UK played no role in the actual operation that took place at the Golden Temple in Amritsar.


In a statement on the conclusion of an inquiry into alleged British assistance provided by then British Prime Minister Margaret Thatcher, Hague said, "The report concludes that the nature of the UK's assistance was purely advisory, limited and provided to the Indian government at an early stage in their planning."


An analysis of nearly 200 files and 23,000 documents has confirmed that a "single British military adviser" travelled to India between February 8 and 19, 1984, to advice Indian intelligence services on contingency plans that they were drawing up for operations in the temple complex, including ground reconnaissance of the site.


"The cabinet secretary's report includes an analysis by current military staff of the extent to which the actual operation in June 1984 differed from the approach recommended in February by the UK military adviser. Operation Bluestar was a ground assault, without the element of surprise, and without a helicopter-borne element," Hague said.


"The cabinet secretary's report concludes that the UK military officer's advice had limited impact on Operation Blue Star. This is consistent with the public statement on 15th January this year by the operation commander, Lt Gen Brar, who said that 'no one helped us in our planning or in the execution of the planning'," he said.


Hague said this conclusion is also consistent with an exchange of letters between former Indian Prime Minister Indira Gandhi and Thatcher on June 14 and 29, 1984, discussing the operation.


While admitting that some military files covering various operations were destroyed in November 2009, as part of a routine process undertaken by the ministry of defence at the 25-year review point, copies of at least some of the documents in the destroyed files were also in other departmental files.


The report by cabinet secretary Jeremy Heywood includes the publication of the relevant sections of five extra documents that shed light on this period, but which would not normally have been published, the minister told MPs.


"The adviser had made clear that a military operation should be put into effect only as a last resort when all attempts of negotiation had failed. It recommended the inclusion in any operation an element of surprise and the use of helicopter forces in the interests of reducing casualties and bringing about a swift resolution," Hague said.


"This giving of military advice was not repeated...and the cabinet secretary found no evidence of any other assistance such as equipment or training," he added.


British Prime Minister David Cameron had ordered the inquiry after documents released under the 30-year declassification rule here implied British SAS commanders had advised the Indian government as it drew up plans for Operatio Blue Star in February 1984.


Sikh groups in the UK have criticised the scope of the inquiry and claim it focuses on a very "narrow period".


Britain's only Sikh MP, Paul Uppal, spoke in the Commons on Tuesday to stress that the report makes clear that the UK played no "malicious" role in Operation Blue Star and called on the government to work with Sikh groups and the Indian High Commission in the UK to work towards a "process of truth and reconciliation so that the community can finally begin to feel a sense of justice".


A few months after Operation Blue Star, then Indian Prime Minister Gandhi was assassinated by her Sikh bodyguards in an apparent revenge attack.


The row over how much the British knew and helped in the incidents 30 years ago threatens to derail Conservative party attempts to attract Sikh voters, who could play a major role in marginal seats in London and Leicester in any election.


Hague updated MPs on the extent of Thatcher's involvement in helping plan the operation.


Sikh groups in the UK criticised the scope of the inquiry into Britain's role in the operation.


In a letter to Cameron, Sikh Federation UK chairman Bhai Amrik Singh said: "We are dismayed the terms of the review were only formally made available almost three weeks after the review was announced and only days before an announcement of the results of the review are expected in parliament.

Friday, January 24, 2014

Sikh Politics worldwide should be aware of USA and UK

सिखों को अमेरिका और ब्रिटेन के बजाय भारत देश से न्याय मांगने की जरुरत है


जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश्वमेध को रोकने में निर्णायक भूमिका भी हो सकती है सिखों की,दरअसल पश्चिम को सिखों से यही सबसे बड़ा खतरा है और सिखों के दमन में इसीलिए वह धर्मोन्मादी भारतीय सत्ता वर्ग का साथ निभाता रहा है।


पलाश विश्वास

आज का संवाद

भारतवर्ष के स्वतंत्रता संग्राम में सिख धर्म की भूमिका उसके जनम से लेकर हमेशा निर्णायक रही है।


हम यह इतिहास भूल गये हैं कि भारत में अस्सी के दशक से पहले सिखों की राजनीति पूरे देश को जोड़ रही थी और अस्सी के दशक से अमेरिका,ब्रिटेन और पश्चिम से सिख नेताओं का टांका भिड़ने के बाद ही सिखों का अलगाव हुआ और इसी अलगाव की वजह से हूबहू इस देश के आदिवासियों और दलितों की तरह अस्सी के दशक में धर्मोन्मादी सत्ता ने सिखों का जनसंहार किया।


दरअसल स्वतंत्रता प्रेमी सिख राष्ट्रीयता का समर्थक पश्चिम हो ही नहीं सकता जिसने  कुल मिलाकर बाजार और कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी सामाजिक शक्ति बतौर बार बार अपने को साबित किया।


हरित क्रांति के जरिये भारतीय कृषि के महाध्वंस के प्रतिरोध की पंजाबी पहल को धर्मोन्माद के दुश्चक्र में फंसाकर कारोपेरेट सम्राज्यवादी पूंजीवाद पश्चिम ने भारत की धर्मोन्मादी सत्ता वर्ग के साथ मिलकर सिख जनसंहार को अंजाम दिया।


आज भी दुनियाभर में अपनी पहचान के लिए सिख ही सबसे ज्यादा निशाने पर हैं।


अमेरिका और यूरोप में ये हमले निरंतर तेज हो रहे हैं।


भारत सरकार ने जिस तरह एक देवयानी खोपड़ागड़े के मामले राजनयिक युद्ध की घोषणा कर दी,उस हिसाब से भारत ने सिखों के पक्ष में कोई बड़ी राजनयिक पहल अभीतक नहीं की है।


भारतीय सत्तावर्ग में सिख नहीं हैं और इसीलिए अमेरिका,इजराइल और ब्रिटेन के हितों के मुताबिक वे वैसे भी नहीं हो सकते जैसे इस देश के आदिवासी और बहुसंख्य उत्पीड़ित आम लोग।


भारतीय सत्ता वर्चस्व के विरुद्ध सिख अस्मिता की लड़ाई इसीलिए भारतीय जनपक्षधर मोर्चे से ही लड़ी जा सकती है।अमेरिका,कनाडा या ब्रिटेन से नहीं क्योंकि सिखों के खून से उनके हाथ भी उसीतरह रंगे हैं जैसे भारतीय धर्मोन्मादी सत्तावर्ग के।


जब देश बेचो ब्रिगेड पूरे देश की नीलामी कर रहा है और कंपनी राज की पूरी तैयारी है तो देशभक्त सिखों को सिख धर्म,परंपरा और इतिहास से सबक लेकर भारतीय जन गण के प्रतिरोध संघर्ष में फिर सामने आना चाहिए।


यह इतिहास का तकाजा है।


जैसे भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए अब भी अपना खून बहाने में सिख ही सबसे आगे हैं,उसी तरह कारपोरेट अश्वमेध को रोकने में निर्णायक भूमिका भी हो सकती है सिखों की,दरअसल पश्चिम को सिखों से यही सबसे बड़ा खतरा है और सिखों के दमन में इसीलिए वह धर्मोन्मादी भारतीय सत्ता वर्ग का साथ निभाता रहा है।


हमारा बचपन सीमा के उस पार रह गये पंजाब के सबसे बेहतरीन कृषि पंडितों के बच्चों के साथ उत्तराखंड की तराई में बीता है और हम जनमजात उनकी कृषिजीवी जिंदगी के हिस्सा रहे हैं। साठ और सत्तर दशक में भी अति संपन्न सिख,जाट और पंजाबी परिवारों के बच्चे पढ़ लिखकर अंततः अपने खेतों और खिलहानों के मध्य ही लौटकर आते रहे हैं। पंजाब में हरित क्रांति से जो कायाकाल्प हुआ,हम देहरादून से लेकर पीलीभीत बरेली रामपुर जिलों तक फैली उत्तर प्रदेश की दिवंगत तराई पट्टी में उसके साझेदार रहे हैं।हरित क्रांति के दु्ष्परिणामों को भी हमने साथ साथ झेला है।


हमारे परिवार में पुराने स्वतंत्रता सेनानियों का आना जाना रहा है। हमने बहुत नजदीक से उन्हें देखा है। बनारस में स्वतंत्रता सेनानी परिवार बनर्जी परिवार के बसंत कुमार बनर्जी पिताजी के खास मित्र थे तो बलिया के रामजी राय पिता के अवसान के बाद भी हमारे परिवार से जुड़़े रहे। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहासकार सुधीर विद्यार्थी को हम बरेली से जानते रहे हैं।तो स्वतंत्रतासंग्राम के इतिहासकार मन्मथ नाथ गुप्त भी बसंतीपुर आये और डा. अशोक सेन भी।


नेताजी के रहस्यमय तरीके से भारत से बाहर जाकर आजाद हिंद फौज के निर्माण की शुरुआती यात्रा में उनके साथी भगतराम तलवार  भी पीलीभीत में बस गये थे।


मुंबई में नौसैनिक विद्रोह में शामिल सरदार अजित सिंह खटीमा के पास रहते थे। कब तक सहती रहेगी तराई,शीर्षक से 1978 में नैनीताल पर  एक धारावाहिक छप रहा था,उसी दौरान खटीमा में मैं उनसे टकरा गया।वे पकड़कर मुझे अपने घर ले गये और नौसेना विद्रोह का रोजनामचा लिखवाया। नैनीताल समाचार में जिसका थोड़ा इस्तेमाल मैं कर सका,बाद में पेशेवर पत्रकारिता की दौड़ में वह रोजनामचा गायब  हो गया।


सरदार अजित सिंह ने सिख गावों के अलावा खटीमा इलाके के थारु गांव में हमारे साथ घर घर गये।


1969 के मध्वावधि चुनाव में काशीपुर विधानसभा क्षेत्र से नारायणदत्त तिवारी उम्मीदवार थे। उनके मुकाबले भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार थे शहीदेआजम सरदार भगत सिंह के छोटे भाई।तब शहीदेआजम की मां पंजाबमाता हमारे घर बसंतीपुर आयी थी और उन्होंने पिताजी को देखकर कहा था कि तुम तो ेकदम बटुकेश्वर दत्त लगते हो।उस चुनाव में नारायण दत्त तिवारी ने हमारे घर से चुनाव प्रचार अभियान शुरु किया था,लेकिन पिताजी शहीदेआजम के भाई के साथ खड़े थे। हमें शहीदेाजम की मां का भी आशीर्वाद मिला तब।


बंगाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के उतने भक्त नहीं होंगे, जितने अब भी पंजाब में हैं।आजाद हिंद फौज में भी बंगालियों की तुलना में सिख और पंजाबी ज्यादा थे। ऐसे लोगों से साठ और सत्तर के दशक में हमारा समना बार बार हुआ है।अब भी उत्तराखंड बनने के बाद जबसे राज्य का मुख्य नेताजी जयंती समारोह बसंतीपुर में होने लगा है,भूल भटके स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी और नेताजी के साथी भी बसंतीपुर पहंचते रहे हैं।


हम पंजाबी,सिख और जाटों की पंजाबी बिरादरी का साझा चूल्हा देख चुके हैं जो विभाजन के बाद अस्सी के दशक तक अटूट रहा है।तराई में तो उस साझे चूल्हे में हमारा भी हिस्सा था।हमारे पड़ोसी गांव में हर साल मनाये जाने वाले गुरुपर्व में हम उसी तरह हिस्सेदार रहे हैं ,जैसे वे हमारी पूजा में।ननकमत्ता गुरुद्वारा में मेरे छोटे भाई पंचानन को शरोपा तो नब्वे दशक के अंत में दिया गया।पत्रकारिता के लिए।तब वह पत्रकारिता कर रहा था,लेकिन बसंतीपुर के घर में वह तलवार अभी मौजूद है।


अस्सी के दशक के सिखनिधन अभियान ने न केवल पंजाब,न केवल तराई बल्कि पूरे भारत का तानाबाना सामाजिक बिगाड़ दिया,जिसे बुनने में शायद सिखों की सबसे बड़ी भूमिका रही है।


भारत देश के लिए कुर्बान हो जाने का जज्बा क्या होता है,यह हमने सिखों से ही सिखा है।


अस्सी के दशक के सिख संहार ने सिखों को इस देश से काटकर रख दिया है।तबसे लेकर अब तक न हुए न्याय की वजह से भी सिखों का अलगाव अब भी बदस्तूर जारी है। हमारे हिसाब से भारत देश के लिए यह बेहद खतरनाक है।सिखों के मुकाबले दुनियाभर में दूसरी योद्धा कौम खोजना कसरतका काम है।सत्तावर्ग की धर्मोन्मादी राजनीति ने उस योद्धा कौम को अपनी समस्याओं से निजात दिलाने के लिए अमेरिका,ब्रिटेन और पश्चिम की ओर देखने का जो सिलसिला शुरु करवा दिया है, वह अब भी खत्म नहीं हुआ क्योंकि सिखों के जख्म अब भी हरे हैं औरन राष्ट्र ने और न बाकी देश वासियों ने उस जख्म को भरने का कोई जतन किया है।


आपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटिश सरकार की भूमिका के खुलासे से पता चल ही गया कि पश्चिम आखिरकार सिखों का उतना मित्र है नहीं,जितना सिख समुदाय को लगता है। अमेरिका और यूरोप में सिखों की भावनाओं को बार बार चोट पहुंचायी जाती है और बाद में थोड़ा बहुत मलहम लगा दिया जाता है , जैसे पेंटागन ने सिखों,मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों की धार्मिक पहचान की बहाली के नये नियम जारी कर दिये हैं।


मौका है कि हमारे ही परिवार के अभिन्न अंग सिख समुदाय के लोग अब अपने अलगाव  को तोड़कर फिर पहले की तरह पूरे जज्बे के साथ भारत देश की आम जनता के रोजमर्रे के संघर्षों की अगुवाई करे। न्याय भारत में ही होना है और यह न्याय तब मिलेगा जब सिखों के अलावा पूरी पंजाबी बिरादरी विभाजन की त्रासदी के वक्त दिखायी एकजुटता को फिर हासिल करें और बाकी देश भी अपने उत्पीड़ित सिख भाइयों के साथ खड़े हों।


गौरतलब है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष अवतार सिंह मक्कड़ ने कहा है कि 1984 में श्री हरमंदिर साहिब में आपरेशन ब्लू स्टार के लिए ब्रिटेन सरकार द्वारा भारत सरकार को सलाह देना और हमले की योजना बनाने में मदद करना शर्मनाक और अति निंदनीय है। सिख कौम ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई की सख्त शब्दों में निंदा करती है।


मक्कड़ ने कहा कि सिख जिस देश में भी गए, वहां अथक मेहनत करके उन्होंने उस देश की आर्थिक खुशहाली में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ब्रिटेन में भी सिखों ने वहां की तरक्की में बड़ा योगदान दिया।


बावजूद इसके ब्रिटेन सरकार ने अगर श्री हरमंदिर साहिब पर हमला करने के लिए भारत सरकार की मदद की है तो यह सिखों के साथ धोखा है।


मक्कड़ ने कहा कि ब्रिटेन जैसा देश जो मानवीय अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाता रहा है, उसकी ओर से सिखों के धार्मिक स्थान पर हमले के लिए मदद करना साबित करता है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा मानवीय अधिकारों के लिए आवाज उठाना भी धोखा है।


ब्रिटेन सरकार की इस कार्रवाई से दुनिया भर में बैठे सिखों के मन में ब्रिटेन के खिलाफ रोष पैदा हुआ है। गुप्त पत्र से उन ब्रिटेन के लोगों के चेहरे भी बेनकाब हो गए है जिन्होंने सिखों को मारने और दबाकर राज करने की साजिश में हिस्सेदारी की है।


इसी बीच अमेरिकी सेना ने नये दिशानिर्देश जारी करते हुए कुछ मानकों में ढील दे दी है ताकि सैनिकों को उनके धर्म के मुताबिक आभूषण और परिधान पहनने की इजाजत हो। सेना के इस अहम फैसले का दूरगामी असर उन सिखों पर पड़ सकता है जो अमेरिकी सेना में भर्ती हुए हैं।


बहरहाल, नए दिशानिर्देशों में सुरक्षात्मक उपकरण जैसे हेलमेट आदि पहनने पर अब भी जोर दिया गया है। मानकों में दी गई छूट अब भी इतनी नहीं है कि सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में अमेरिकी सशस्त्र बलों में शामिल हो सकें। सिख अमेरिकी समुदाय की यह मांग पुरानी है।


पेंटागन के प्रवक्ता नौसेना के लेफ्टिनेंट कमांडर नैटहैन जे. क्रिस्टेन्सन ने एक बयान में बताया कि नई नीति में कहा गया है कि सैन्य विभाग सर्विस सदस्यों के धार्मिक अनुरोध पर तब ही विचार करेगा जब उस अनुरोध का सेना की तैयारी पर, मिशन पूरा करने में, एकजुटता और अनुशासन पर प्रतिकूल असर न पड़े। उन्होंने कहा कि धार्मिक चलन अपनाने के लिए सभी अनुरोधों पर मामला दर मामला विचार किया जाएगा।


क्रिस्टेन्सन ने कहा कि कमांडर ऐसी स्थिति में धार्मिक परिधान या प्रतीकों को पहनने की अनुमति दे सकते हैं जब कि उसमें सैन्य विभाग या उन सर्विस नीतियों की छूट की जरूरत न हो जो कि सैन्य वर्दी और धार्मिक परिधान आदि के बारे में हो।


उन्होंने कहा कि इन बातों पर विचार किया जाएगा कि धार्मिक परिधानों से कहीं सैन्य दायित्व निर्वाह में बाधा न आए, स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी खतरा न हो। क्रिस्टेन्सन के अनुसार, पेंटागन का मानना है कि नए दिशानिर्देशों से कमांडरों और सुपरवाइजरों की व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने की क्षमता बढ़ेगी तथा सेना में भेदभाव होने की धारणा दूर होगी।

31 Jan. Morichjhanpi Day. Mass demo. In front of GjandhiMurti.Park St.Kolkata.From 12 noon .

31 January Morichjhanpi Day. Mass demonstration in front of Gandhi Murti, Park St.Kolkata.12 noon to 6 pm.       The Morichjhanpi incident is one of the darkest episode of CPI(M) led Government of West Bengal.The Refugees who were raped by the CPI(M) were betrayed after the Elections.The settlement established by Refugees in the Morichjhapi island of Sundarban was dealt with iron fists by the Left front Govt. of West Bengal who deemed it  " illegal ". Subsequently they were brutally evicted by the Police and hired Mercenaries who butchered the Resisting People ,fired and killed Refugees, raped the Women,burnt down entire settlements. Please come and join.   Thanks.         Prof.Sunanda Sanyal, Prof.Ashokendu Sengupta, Dhiraj Sengupta ( sec APDR),Jagadishchandra Mondal(Researcher),Sibnath Chowdhury(Writer), Dr.Subodh Biswas (Refugee leader, Maharashtra),Nemai Sarkar ( Odisha ), Prasen Raftan ( Refugee leader, Karnatak ), Dr.Sanmathanath Ghosh ( Great Refugee leader), Nalini Mandal (Refugee leader,W.B.),Radhikaranjan Biswas (Refugee leader, Morichjhanpi),Debabrata Biswas (Refugee leader, Morichjhanpi), Narayan Mondal ( Refugee leader, Morocjjhanpi ),Mrityunjoy Mallik ( Respected Refugee leader),  Tushar Bhattacharjee ( Journalist, Docu.film maker).

New US rules on beards, turbans for Sikh, Muslim soldiers

Requests for wearing items of one's faith by Sikhs, Muslims and other religious-minority service members will be decided on a case by case basis


AP

Washington: The US defence department has clarified rules allowing Sikhs, Muslims and other religious-minority service members to wear a turban, scarf or beard as long as the practices do not interfere with military discipline, order or readiness.


However, requests for wearing items of one's faith by way of religious accommodation will still be decided on a case by case basis, but will generally be denied only if the item poses a safety hazard, interferes with wearing a uniform, a helmet or other military gear or "impairs the accomplishment of the military mission", Pentagon said.


"The new policy states that military departments will accommodate religious requests of service members unless a request would have an adverse effect on military readiness, mission accomplishment, unit cohesion and good order and discipline," Pentagon spokesman Navy Lt. Cmdr. Nathan J. Christensen announced on Wednesday.


Immediate commanders may resolve religious accommodation requests that don't require a waiver of military department or service policies that address wearing of military uniforms and religious apparel, grooming, appearance or body-art standards, he said.


The spokesman said department officials believe the new instruction will enhance commanders' and supervisors' ability to promote the climate needed to maintain good order and discipline, and will reduce the instances and perception of discrimination toward those whose religious expressions are less familiar to the command.


The Defense Department "places a high value on the rights of members of the military services to observe the tenets of their respective religions and the rights of others to their own religious beliefs", "including the right to hold no beliefs", the spokesman said.


Sikh American organisations criticised the new rules for not going far enough, but acknowledged they were a "stepping stone" in a long process of prodding the Pentagon to ease restrictions on wearing or showing their "articles of faith".


The Sikh American Legal Defence and Education Fund (SALDEF) called the rules an expansion of current policies rather than a meaningful overall change in policy. "Unfortunately, this continues to make us have to choose between our faith and serving our country," said SALDEF executive director Jasjit Singh.


"This is an expansion of the waiver policy that is decided person by person. It does not open doors and say you can apply as a Sikh American and serve your country fully," he said.


Responding to new Pentagon rules that permit limited religious accommodation, Democratic House member Joe Crowley, reiterated his call for an end to the presumptive ban on Sikh articles of faith, including turbans and beards, in the US military.


Crowley, vice chair of the Democratic Caucus and a leader on Sikh American issues in Congress, is currently spearheading a bipartisan letter signed by 20 members of Congress on both sides of the aisle requesting that the US Armed Forces update their appearance regulations to allow Sikh Americans to serve while abiding by their articles of faith.


"Depending on how they are implemented, some aspects of the new Department of Defense rules may be a step in the right direction," said Crowley.


"But more needs to be done to end the underlying presumptive ban on service by patriotic Sikh Americans. Sikh Americans love this country and want a fair chance to serve in our nation's military."

Probe ordered into Thatcher link to Operation Bluestar

Explanations have been sought after recent documents stated that SAS officials had been dispatched to help in Operation Bluestar

Reuters

London: British Prime Minister David Cameron has directed his Cabinet Secretary to establish the facts behind claims that Margaret Thatcher's government may have helped Indira Gandhi plan Operation Bluestar in 1984.

Labour MP Tom Watson and Lord Indarjit Singh had demanded an explanation after recently declassified documents indicated that Britain's Special Air Service (SAS) officials had been dispatched to help India on the planning on the raid of the Golden Temple to flush out militants from the shrine, an operation left more than 1,000 people dead.

"These events led to a tragic loss of life and we understand the very legitimate concerns that these papers will raise. The Prime Minister has asked the Cabinet Secretary to look into this case urgently and establish the facts," a UK government spokesperson said in a statement issued here yesterday night.

"The PM and the Foreign Secretary were unaware of these papers prior to publication. Any requests today for advice from foreign governments are always evaluated carefully with full Ministerial oversight and appropriate legal advice," he added.

The documents being referenced were released by the National Archives in London under the 30-year declassification rule as part of a series over the New Year. A letter marked "top secret and personal" dated February 23, 1984, nearly four months before the incident in Amritsar, titled 'Sikh Community', reads: "The Indian authorities recently sought British advice over a plan to remove Sikh extremists from the Golden Temple in Amritsar.

"The Foreign Secretary decided to respond favourably to the Indian request and, with the Prime Minister's agreement, an SAD (sic) officer has visited India and drawn up a plan which has been approved by Mrs Gandhi. The Foreign Secretary believes that the Indian Government may put the plan into operation shortly."

"These documents prove what Sikhs have suspected all along, that plans to invade the Golden Temple went back months even though the Indian government was claiming even weeks before that there were no such plans," Lord Singh, also the director of the Network of Sikh Organisations in the UK, told PTI.

"I have already approached the Indian government through the High Commission of India for the need of an independent international enquiry to establish the exact facts. I will now raise the issue in the House of Lords," he added.

Some of the documents have been reproduced on the 'Stop Deportations' blog which focuses on Britain's immigration policy and claim Thatcher sent SAS officials to advise Mrs Gandhi on the operation.

"I've only seen the documents this morning (Monday) and am told there are others that have been withheld. This is not good enough. It is not unreasonable to ask for an explanation about the extent of British military collusion with the government of Indira Gandhi," Watson, an MP for West Bromwich East, said.

He has written to UK foreign secretary William Hague and plans to raise the issue in the House of Commons.

"I think British Sikhs and all those concerned about human rights will want to know exactly the extent of Britain's collusion with this period and this episode and will expect some answers from the Foreign Secretary.

"But trying to hide what we did, not coming clean, I think would be a very grave error and I very much hope that the foreign secretary will...Reveal the documents that exist and give us an explanation to the House of Commons and to the country about the role of Britain at that very difficult time for Sikhism and Sikhs," he added.

Five months after Operation Bluestar, Gandhi was assassinated by her Sikh bodyguards in retaliation for the raid on the Golden Temple.

'Thatcher colluded with Indira for Operation Bluestar'

Documents released under Britain's 30-year rule included papers from Thatcher authorising the SAS to collude with the Indian government on the planning on the raid of the Golden Temple

Reuters

London: A British MP today claimed that top secret documents suggested Prime Minister Margaret Thatcher's government helped Indira Gandhi plan the storming of the Golden Temple in 1984 to flush out militants from the shrine, an operation that left more than 1,000 people dead.

Tom Watson, the Labour lawmaker from West Bromwich East, said the documents released under Britain's 30-year rule included "papers from Mrs Thatcher authorising the SAS (Special Air Service) to collude with the Indian government on the planning on the raid of the Golden Temple".

The government apparently "held back" some more documents and "I don't think that's going to wash", he told BBC Asian Network.

"I think British Sikhs and all those concerned about human rights will want to know exactly the extent of Britain's collusion with this period and this episode and will expect some answers from the Foreign Secretary," Watson said.

He wrote on his website that he would write to the Foreign Secretary and raise the issue in the House of Commons to get a "full explanation".

Man who led Operation Bluestar trashes talk of UK help

Lt Gen (retd) K S Brar, who led offensive in 1984, says it was planned and executed by Indian commanders

Reuters

Mumbai: Amid the raging row over claims that Margaret Thatcher's government had aided India in the Operation Bluestar to flush out militants from the Golden Temple in 1984, Lt Gen (retd) K S Brar, who led the offensive, on Tuesday said it was planned and executed by Indian military commanders.

"I am quite dumbfounded because the operation was planned and executed by military commanders in India. There is no question ... we never saw anyone from UK coming in here and telling us how to plan the operation," Brar told a TV news channel.

Maintaining that there was no involvement of British agencies in the operation that left over 1000 dead and led to the revenge assassination of Prime Minister Indira Gandhi, he said the authenticity of the documents that have surfaced suggesting England's assistance should be checked.

"I am not a politician. I don't know what are the political motives of these letters coming out. I am a straightforward soldier and therefore cannot give any view besides the soldier's view.

"I conducted the operation and no aid came in. This is the first time I am hearing all this. It is obviously some mischief at some stage or the other. There was no aid given to us, no advice given to us, there was no representative from the UK government who came and met us to help us plan the operation," the 79-year-old former general said.

A controversy has broken out after a British MP claimed he had seen declassified documents suggesting Britain's Special Air Service (SAS) officials had been despatched to help India plan the military offensive at the Golden Temple.

Labour MP Tom Watson and Lord Indarjit Singh had on Monday demanded an explanation from British government after the documents, declassified under Britain's 30-year rule, said Thatcher had authorised SAS to collude with Indian government to plan the operation.

There was a murderous attack on Brar by a group of Sikhs in London in 2012.

Three Sikh men and a woman were last year convicted of carrying out the revenge attack on Brar and sentenced to undergo imprisonment from 10 and half years to 14 years by a British court.

British Prime Minister David Cameron has directed his Cabinet Secretary to establish the facts behind claims that Thatcher's government may have helped Indira Gandhi plan Operation Bluestar.

'British help' for Operation Blue Star stirs Punjab parties

Dal Khalsa wrote to British PM David Cameroon expressing 'pain, concern and anguish' over the revelations that British govt under Margaret Thatcher helped Indian govt attack Golden Temple


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AP

Chandigarh: Radical Sikh organizations as well as Punjab's ruling Akali Dal on Tuesday came out against revelations that Britain had helped the Indian government in plans to launch Operation Blue Star on the Golden Temple complex, home to the holiest of Sikh shrines Harmandar Sahib, in June 1984.

Radical Sikh organization Dal Khalsa on Tuesday shot off a letter to British Prime Minister David Cameroon through the British high commission in India expressing its "pain, concern and anguish over the startling revelations as to how the then British government under Margaret Thatcher helped Indian government to attack the Golden Temple in June 1984".

Another radical body, the All India Sikh Students Federation (AISSF) will hold a rally outside British high commissioner's office in New Delhi January 17, its president Karnail Singh Peermohammed told IANS.

"The aim of the rally is to demand that British Parliament should immediately pass a resolution that action of PM Margret Thatcher of colluding with Indira Gandhi to attack the holiest Sikh shrine was wrong," he said.

Dal Khalsa spokesperson Kanwar Pal Singh, quoting the letter, said: "The news report about the secret document from British National Archives revealing the UK government collaborating with Indian government to plan the attack has shattered the Sikhs from within. The Sikh diaspora is deeply hurt and the news has left them numbed."

He said the document revealed that India sought support and the British government obliged.

"However it is silent as to what extent and in what shape the support and succour was provided," the letter said, seeking these details.

Britain is home to tens of thousands of Sikhs who have settled there in the past nearly 100 years.

The controversy erupted after documents of that period went public in Britain and Liberal MP Tom Watson procured documents showing that Britain's elite Special Air Service (SAS) was involved in planning the attack on the Golden Temple.

The Akali Dal in Punjab on Tuesday blamed the Congress party for its "nefarious designs against the Sikh community".

In a statement here, Akali Dal spokesman Daljit Singh Cheema said that the top secret British documents had exposed the real conspiracy behind Operation Blue Star.

"The media reports published today (Tuesday) have unearthed a major conspiracy of the Congress party which even went to the extent of compromising the national sovereignty for its political gains," he said.

Terming it shocking to see that to solve an issue of internal security of Punjab state, Mrs Gandhi took the services of British forces, he said the Congress-led union government must come clean on the "unknown compulsions under which it had to take the help of forces from such a country against whom the nation had fought a battle of freedom for more than 200 years".

Cheema said that the only justification of colluding with British forces could be that they had the expertise to kill thousands of freedom fighters as in the 1919 Jallianwala Bagh massacre.

Heavily armed terrorists, led by separatist leader Jarnail Singh Bhindranwale, were flushed out by the Indian Army in its Operation Blue Star on the Golden Temple complex in June 1984. The then Prime Minister Indira Gandhi had ordered the Army operation in which hundreds were killed.

Punjab had witnessed a bloody phase of terrorism between 1981 to 1992 as separatists demanded a separate Sikh homeland — Khalistan (land of the pure). The terrorism phase left over 25,000 people dead, including hundreds of security force personnel.

1984 के लिये इंसाफ अभियान : गुनहगारों को सज़ा दो! पीडि़तों को बदनाम करना बंद करो!

1984 में सिखों के कत्लेआम के पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करते हुये, एक गंभीर व जोशपूर्ण अभियान 21 अक्तूबर, 2012 को अमृतसर में जलियांवाला बाग से, एक दिल दहलाने वाली चित्र प्रदर्शनी के साथ शुरू हुआ।

1984 के जन संहार, जिसके दौरान दिल्ली, कानपुर और अन्य जगहों पर 7000 से अधिक लोग मारे गये थे, उसके पीडि़तों के लिये इंसाफ की मांग करने वाले इस अभियान के संदर्भ में, कई संगठनों और व्यक्तियों ने उसी दिन एक प्रेस वार्ता आयोजित की। प्रेस वार्ता को संबोधित करने वाले संगठनों में बचपन बचाओ आन्दोलन, लोक राज संगठन, सिख फोरम और सोशलिस्ट युवजन भी शामिल थे।

जैसे-जैसे यह कारवां अनेक शहरों से गुज़रते हुये दिल्ली की ओर चला, हजारों-हजारों लोग इसके समर्थन में आगे आये। दिल्ली में इस अभियान के तहत, अक्तूबर के अंत व नवम्बर के आरंभ में कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।

पीडि़तों को बदनाम करना

पंजाब में कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने विभिन्न जन संगठनों द्वारा जून 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार में मारे गये लोगों की याद में एक स्मारक स्थापति करने के फैसले को बदनाम किया है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के अनुसार, यह "आतंकवादियों को सम्मानित करना" है। यह सरासर झूठ है।

80 के दशक से पंजाब में आतंक फैलाने के लिये कौन जिम्मेदार है? केन्द्रीय राज्य और नई दिल्ली में शासक पार्टी इसके लिये जिम्मेदार है। इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी नीत सरकार ने सिख समुदाय के खिलाफ़ राजकीय आतंक लागू करने, उन पर वहशी हमला करने तथा उनके सबसे पवित्र धर्म स्थल को नष्ट करने की नीति शुरू की थी। अब वे अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिये, पीडि़तों पर इल्ज़ाम लगाना चाहते हैं।

आपरेशन ब्लू स्टार

"आपरेशन ब्लू स्टार" - सिखों के सबसे पवित्र धर्म स्थल, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर सशस्त्र हमला, "आतंकवादियों का सफाया करने" के नाम पर, 6 जून, 1984 को किया गया था। आपरेशन ब्लू स्टार सिख गुरु अर्जुन देव के शहादत दिवस पर किया गया था, जिसे सिख धर्म के स्त्रियों व पुरुषों के लिये पवित्र दिन माना जाता है, जब हजारों-हजारों लोग स्वर्ण मंदिर पर इकट्ठे होते हैं। तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को भारी टैंकों व बंदूकों से स्वर्ण मंदिर पर हमला करने का आदेश दिया था, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में लोग मारे गये और सिखों के पवित्र धर्म स्थल, अकाल तख्त को बहुत हानि हुई।

स्वर्ण मंदिर पर हमले के बाद, कई वर्षों तक पंजाब, दिल्ली और देश के दूसरे भागों में राजकीय आतंकवाद आयोजित किया गया, जिसके चलते हजारों लोगों, खास तौर पर नौजवानों को मार डाला गया, पीडि़त किया गया और लापता घोषित कर दिया गया। पंजाब और अन्य जगहों पर मजदूरों और किसानों की बगावत और राष्ट्रीय अधिकारों की मांग को कुचलने के लिये यह आतंक की मुहिम चलाई गई। लोगों के जायज़ प्रतिरोध और राजनीतिक मांगों के आन्दोलन को बांटने और गुमराह करने के उद्देश्य से, शासक पार्टी और केंद्र सरकार के संस्थानों ने जानबूझकर हिन्दुओं और सिखों के बीच में बंटवारा करने की कोशिश की। सिख धर्म के लोगों को राष्ट्र विरोधी, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दुश्मन, करार दिया गया।

पंजाब के लोगों की राजनीतिक मांगों के साथ ऐसा बर्ताव किया गया जैसे कि वे "कानून और व्यवस्था की समस्यायें" थीं। "हिन्दोस्तान की एकता और अखंडता के दुश्मनों" को कुचलने के नाम पर, मजदूर वर्ग और किसानों को राजकीय आतंकवाद की नीति के समर्थन में लामबंध किया गया।

सिखों का कत्लेआम

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली, कानपुर और उत्तरी हिन्दोस्तान के अन्य मुख्य शहरों में सिखों का कत्लेआम आयोजित किया। कई हजारों सिखों को बेरहमी से मार डाला गया, हजारों महिलाओं का बलात्कार किया गया, सिखों के घरों, दुकानों व कारोबारों को जला दिया गया। सभी प्राप्त सबूतों से यह स्पष्ट होता है कि यह एक पूर्व नियोजित जन संहार था। तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के उकसाने वाले कथनों से प्रेरित, कांग्रेस पार्टी के सांसदों की अगुवाई में, वोटर लिस्ट और आगजनी के सामान लिये हुये गुंडों ने सिख धर्म के लोगों को जिन्दा जलाया और मार डाला। तत्कालीन गृह मंत्री पी.वी. नरसिंह राव की अगुवाई में पुलिस ने कातिलों को पूरा समर्थन दिया।

गुनहगारों को सज़ा दो - कमान की जिम्मेदारी निभाओ

"गुनहगारों को सज़ा दो!" - उस जनसंहार से बचने वाले लोग तथा देश भर के इंसाफ पसंद लोग बीते 28 वर्षों से डटकर यह मांग उठाते आ रहे हैं। 1984 के पीडि़तों के लिये इंसाफ़ के इस अभियान के समर्थन में हज़ारों-हज़ारों लोगों का आगे आना यह दिखाता है कि लोग 28 वर्ष पहले किये गये भयानक अपराध को आज तक नहीं भूले हैं।

कमान की जिम्मेदारी निभाने के असूल को स्थापित करना ज़रूरी है, यानि मानव जाति के खिलाफ़ इस प्रकार के अपराधों व हत्याकांडों के लिये, सिर्फ इन्हें अंजाम देने वाले गुंडों को ही नहीं बल्कि इन्हें निर्देश देने, आयोजित करने व अगुवाई देने वालों को भी सज़ा दिलाने की सख्त ज़रूरत है।

हमारी मांग है कि पीडि़तों को बदनाम करना फौरन रोका जाये और गुनहगारों को फौरन सज़ा दी जाये!

http://www.cgpi.org/hi/mel/voice-party/2652-1984-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AB-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A8



ऑपरेशन ब्लू स्टार की जांच करेगा ब्रिटेन

(03:14:48 AM) 15, Jan, 2014, Wednesday

कैमरन ने दिए ब्रिटश मदद की जांच के आदेश

थैचर सरकार ने की थी भारत की मदद !

स्वर्ण मंदिर पर सैन्य कार्रवाई के लिए चलाया गया था ऑपरेशन ब्लू स्टार

ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान सैनिक कार्रवाई करती भारतीय सेना

लंदन !  ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने 1984 में भारत में अमृतसर के प्रसिध्द स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को खदेड़ने की योजना 'आपरेशन ब्लू स्टार' में मारग्रेट थैचर की सरकार द्वारा तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मदद किए जाने के दावे की जांच का आदेश दिया गया है।

ब्रिटेन में लेबर पार्टी के सांसद टाम वाटसन और हाउस आफ लार्ड्स के सिख सदस्य इंदरजीत सिंह ने इस साल सार्वजनिक किए गए गोपनीय दस्तावेजों में ऑपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की ओर मदद पहुंचाने के दावे की जांच की मांग की थी। दस्तावेजों के मुताबिक मारग्रेट थैचर की सरकार ने ब्रिटेन के स्पेशल एयर सर्विस के अधिकारियों को इस ऑपरेशन में मदद पहुंचाने के लिये भारत भेजा था। इस ऑपरेशन के दौरान 1000 लोग मारे गए थे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने देर रात जारी विज्ञप्ति में बताया, कैमरन ने कैबिनेट सचिव को इस मामले की जांच करके सच्चाई सामने लाने का आदेश दिया है।

सरकारी प्रवक्ता ने कहा, इस ऑपरेशन में कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था और सरकार इन दस्तावेजों के प्रकाशित होने से उठे मुद्दों की गंभीरता समझती है। प्रधानमंत्री ने इसी वजह से कैबिनेट सचिव को तत्काल इसकी जांच करने का आदेश दिया है।

ब्रिटेन के नियमों के मुताबिक गोपनीय दस्तावेजो को 30 साल के बाद सार्वजनिक किया जाता है। इस महीने सार्वजनिक किए दस्तावेजों में एक पत्र भी शामिल है जिस पर 23 फरवरी 1984 की तारीख और सिख कम्युनिटी अर्थात सिख समुदाय शीर्षक अंकित है। यह पत्र आपरेशन ब्लू स्टार के क्रियान्वन के चार महीने पहले लिखा गया है।

पत्र में लिखा है, भारतीय सरकार ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से उग्रवादियों को निकाल भगाने की योजना में ब्रिटेन की सलाह मांगी है। उस समय तत्कालीन विदेश सचिव ने भारत सरकार के आग्रह को माना और तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर की सहमति से ब्रिटिश वायुसेना के एक अधिकारी को श्रीमती गांधी से मिलने भारत भेजा। इस अधिकारी ने ही ऑपरेशन की सारी योजनाएं बनाईं जिसे श्रीमती गांधी ने मंजूर किया। ब्रिटिश सरकार को तब ही पता चला था कि श्रीमती गांधी जल्द ही ऑपरेशन ब्लू स्टार को अमल में लाएगीं। वाटसन ने कहा, मैंने सोमवार सुबह को ही यह दस्तावेज देखे हैं और मुझे जानकारी मिली है कि अभी ऐसे कई दस्तावेज गोपनीय हैं। यह समझा जा सकता है कि  मानवाधिकारों और ब्रिटिश सिखों की सुरक्षा को लेकर चिंतित सभी लोग जानना चाहेंगे कि इस अवधि में और इस घटनाक्रम में ब्रिटेन की सहभागिता किस स्तर तक थी। हम विदेश मंत्री से इस विषय पर उनका जवाब चाहते है।

लार्ड सिंह ने कहा, श्रीमती गांधी की सरकार इस ऑपरेशन के कुछ सप्ताह पहले तक इस बात का दावा करती रही थी कि उन्होंने स्वर्ण मंदिर पर कार्रवाई करने की कोई योजना नहीं बनाई लेकिन इन गोपनीय दस्तावेजों के जारी होने से उस दावे की पोल खुल गई है। इस दस्तावेज से पता चलता है सिख हमेशा से कटघरे में खड़े थे और स्वर्ण मंदिर पर की जाने वाली कार्रवाई की योजना महीनों पहले बन गई थी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के घाव को कुरेदना ठीक नहीं

नवभारत टाइम्स | Jan 24, 2014, 01.00AM IST

अवधेश कुमार करीब तीस वर्ष बाद 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का भूत फिर सामने आ खड़ा हुआ है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां इस मामले में धैर्य दिखाने की जगह उस पर सियासत कर रही हैं। ब्रिटेन में कथित रूप से एक दस्तावेज सामने आया है जिससे संकेत मिलता है कि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ब्रिटेन की पीएम मारग्रेट थैचर से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य ऑपरेशन में मदद मांगी थी। ब्रिटेन में भी यह मुद्दा बन गया है और प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं। निश्चय ही जांच के बाद सच सामने आ जाएगा पर भारत में जिस तरह से इस सूचना मात्र पर तूफान खड़ा कर दिया गया है वह खतरनाक है।

ब्रिटेन के नियमों के मुताबिक गोपनीय दस्तावेज 30 साल के बाद सार्वजनिक किए जाते हैं। कहा जा रहा है कि इस महीने सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों में 23 फरवरी 1984 की तारीख और 'सिख कम्यूनिटी' शीर्षक अंकित किया गया एक पत्र है, जिसमें लिखा है कि भारत सरकार ने श्री दरबार साहिब से उग्रवादियों को निकालने की योजना में ब्रिटेन की सलाह मांगी। ऑपरेशन ब्लू स्टार से चार महीने पहले 6 फरवरी 1984 को लिखे पत्र के मुताबिक भारत सरकार की ओर से स्वर्ण मंदिर से अलगाववादियों को निकालने की योजना में मदद मांगी गई थी। अगर इसे सही मान लिया जाए तो स्वर्ण मंदिर पर हुई भारतीय सेना की कार्रवाई में ब्रिटेन की स्पेशल एयर सर्विस (एसएएस) ने मदद की थी। अति गोपनीय व व्यक्तिगत शीर्षक वाले इन दस्तावेजों के मुताबिक थैचर के निर्देश पर ऐसा हुआ था। यानी हमला सुनियोजित था। हालात बिगड़ने के बाद मजबूरी में ऐसा किए जाने का तर्क गलत था।

ब्रिटेन में सिखों की संख्या अच्छी-खासी है। वे वहां 30 से अधिक सीटों पर प्रभाव डालते हैं। ऐसे में वहां इस मामले का गरमाना स्वाभाविक है। इससे सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी की समस्या बढ़ी है। सिख नेताओं की प्रतिक्रियाएं काफी तीखी हैं। शिरोमणि अकाली दल ने कहा है कि कांग्रेस ने अपने सियासी हितों के चलते देश की प्रभुसत्ता से भी समझौता कर लिया। बीजेपी नेता अरुण जेटली ने कहा कि समय आ गया है जब भारत के लोग निष्कर्ष निकालें कि कहीं ऑपरेशन ब्लू स्टार रणनीतिक चूक तो नहीं था? सवाल है कि स्वर्ण मंदिर को जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों के चंगुल से छुड़ाने का दूसरा विकल्प ही क्या था? वे बातचीत से हथियार डालने और मंदिर को मुक्त करने के लिए तैयार नहीं थे। गौरतलब है कि आपरेशन ब्लू स्टार भारतीय सेना द्वारा 3 से 6 जून 1984 तक चलाया गया। लेकिन सेना ने मार्च में ही स्वर्ण मंदिर को चारों ओर से घेर लिया था और मंदिर परिसर के बाहर दोनों ओर से रुक-रुक कर गोलियां चल रही थीं। संभव है इंदिरा गांधी ने मार्गरेट थैचर से सलाह के लिए पत्र लिखा हो, क्योंकि थैचर ने उत्तरी आयरलैंड के पृथकतावादियों के खिलाफ 'रक्त और लौह' की नीति अपनाई थी। आतंकवाद के खिलाफ सहयोग एक स्वाभाविक बात है। पर यह मानने का कोई कारण नहीं है कि इसमें ब्रिटेन की बड़ी भूमिका रही होगी।

हम यह तो मानते हैं कि आरंभ में भिंडरावाले को कांग्रेस की ओर से ही शह मिली, अन्यथा वह इतना ताकतवर नहीं होता। लेकिन अलग पंजाब की मांग और उसके लिए प्रत्यक्ष-परोक्ष समर्थन देने वाले हर दल में मौजूद थे। उन सब कारणों से पंजाब के आतंकवाद ने ऐसा भीषण रूप लिया कि पूरा देश उससे थर्राता था। ऐसे में हमारे राष्ट्र-राज्य की एकता, अखंडता तथा सरकार की अथॉरिटी स्थापित करने के लिए स्वर्ण मंदिर और आसपास के भवनों को आतंकवादियों से मुक्त कराना ही एकमात्र विकल्प था। वैसे पंजाब एवं सिख समुदाय के लिए वह संवेदनशील मामला है और आज करीब तीस साल बाद उसे कुरेदकर हम अपना ही नुकसान करेंगे। बेहतर है इस पर कोई राजनीति न हो और उसे इतिहास के पन्नों में ही रहने दिया जाए।

दल खालसा ने कहा, गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों से दूर रहें सिख

Fri, 24 Jan 2014 10:34 PM (IST)

दल खालसा ने कहा, गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों से दूर रहें सिख

जागरण संवाददाता, अमृतसर। अलगाववादी संगठन दल खालसा ने शुक्रवार को फरमान जारी कर सिखों को 26 जनवरी के कार्यक्रमों से तब तक दूर रहने की अपील की है, जब तक सिखों के प्रति संवैधानिक नाइंसाफी समाप्त नहीं की जाती। साथ ही, कहा कि सिख की वफादारी व आस्था श्री अकाल तख्त साहिब व सिखी सिद्धांतों के साथ है।

शुक्रवार बाद दोपहर दल खालसा ने दमदमी टकसाल, शिरोमणि अकाली दल पंजप्रधानी व सिख यूथ ऑफ पंजाब के साथ मिलकर नाइंसाफी व ज्यादतियों के विरुद्ध रोष-प्रदर्शन किया। इसमें सैकड़ों सिख नौजवान हाथों में काले झंडे व बैनर पकड़े हुए थे। बैनरों पर लिखा था कि जब संविधान में सिखों की अलग पहचान से इन्कार कर रहा है तो फिर 26 जनवरी का जश्न सिख क्यों मनाएं।

दल खालसा के मुखिया हरचरणजीत सिंह धामी ने कहा कि सिख एक अलग कौम है। हिंदुस्तान में सिखों के साथ दु‌र्व्यवहार किया गया है। दमदमी टकसाल के बाबा हरनाम सिंह खालसा ने कहा कि भारतीय संविधान सिखों से एक धोखा है।

http://www.jagran.com/news/national-dal-khalsa-sikh-outfits-demand-sikh-personal-law-11037699.html

अभी भी हरे हैं ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म- दलजीत सिंह मट्टू

By अनिल पाण्डेय 06/06/2009 16:40:00



दलजीत सिंह बिट्टू पंजाब के उन प्रभावी अलगाववादी नेताओं मे से हैं जिनका युवाओं पर काफी प्रभाव है. अस्सी और नब्बे के दशक में वे करीब 10 साल भूमिगत रह कर अलग सिख राष्ट्र आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाते रहे. अप्रैल 1996 में गिरफ्तार होने के के बाद वे करीब 10 साल तक नाभा और तिहाड़ जेल में रहे. जेल से बाहर आने के बाद दलजीत सिंह फिर से युवाओं को एकजुट कर लोकतांत्रिक तरीके से अलग सिख राष्ट्र की मांग कर हैं. आपरेशन ब्लू स्टार से लेकर मौजूदा आंदोलन के बारे में अनिल पांडेय ने उनसे बातचीत की.

सवाल- आपरेशन ब्लू स्टार पर आप की क्या प्रतिक्रिया है?

जवाब- हम इसे "आपरेशन" नहीं दरबार साहिब पर "अटैक" कहते हैं. यह हमारे गुरु ग्रंथ साहिब, सिख आइडेंटटी और सिख नेशन पर हमला था. इस हमले को हम कभी भूल नहीं सकते.  आपरेशन ब्लू स्टार ने हमें जो जख्म दिया है उसे हम सिख राष्ट्र की मांग की प्रेरणा के रूप में रखना चाहते हैं. अकाल तख्त और दरबार साहिब पर पहले भी मुगलो द्वारा हमले किए गए. सिखों ने इसे कभी भुलाया नहीं, बल्कि इसका बदला भी लिया.


सवाल- लेकिन सरकार और सेना का कहना था कि स्वर्ण मंदिर में आतंकवादी छिपे थे, इसलिए कार्रवाई करनी पड़ी.

जवाब- जनरैल सिंह भिंडरवाला आतंकवादी नहीं, महान सिख थे. उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब की नए सिरे से व्याख्या की. स्टेट सोचता है कि भिंडरवाला टेरिरिस्ट थे, लेकिन आम सिख मानता है कि वे एक ऐसे संत योद्दा थे, जिन्होंने सिख ग्लोरी को रिवाइज किया. भिंडरवाला हमारे सिखों के हीरों हैं और रहेंगे.  


सवाल- फिर आप आपरेशन ब्लू स्टार की क्या वजह मानते हैं?

जवाब- इतिहास गवाह है कि दिल्ली की गद्दी पर जो भी बैठा उसे गुरु ग्रंथ साहिब और सिख विचारधारा से हमेशा डर लगता रहा है. दरबार साहिब पर जितने हमले हुए वह इसी वजह से हुए.


सवाल- आखिर दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति गुरु ग्रंथ साहिब से क्यों डरता है?

जवाब- हमारे गुरुद्वारे केवल प्लेस आफ वर्सिप नहीं हैं. यह हमारी पहचान और अस्मिता से जुडा है. अकाल तख्त केवल सिखों की एक सर्वोच्च संस्था भर नहीं है, बल्कि एक अलग सिख राष्ट्र बनाने की विचारधारा भी है. इसीलिए दिल्ली की सरकार इससे डरती है.


सवाल- कभी अलग सिख राष्ट्र की मांग को भारी जनसमर्थन था, अब वह नहीं दिखाई देता. इसका मतलब अब यह मांग खत्म हो गई है?

जवाब- नहीं, यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ है. बल्कि अभी यह दबा है. आज भी हर सिख रोज अरदास करता है, "राज करेगा खालसा". अगर आप को इस आंदोलन की सच्चाई जाननी है तो युवाओं के बीच जाइए. कालेज में पढ़ने वाले युवकों के मोबाइल स्क्रीन पर संत भिंडरवाले की तस्वीर लगी मिलेगी. उनकी रिंगटोन के रूप में भिंडरावाले के प्रेरणावाले भाषण और गाने मिलेंगे. आज पंजाब में भगत सिंह से ज्यादा भिंडरावाले की तस्वीर बिक रही है.


सवाल- क्या खालसा राज की स्थापना भारतीय राष्ट्र राज्य के खिलाफ नहीं है?

जवाब- यह मांग हिंदू या स्टेट के खिलाफ नहीं है. इसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है. खालसा राज की स्थापना तो हर सिख की तमन्ना है. हमारा तो अपना साम्राज्य भी था. खालसा राज यानी सिख धर्म के अनुसार जीवन पद्धति. लेकिन सरकार हमें हमारा अधिकार देने की बजाए हम पर जुल्म करती है. आंदोलन के दौरान भूमिगत रहने के क्रम में मैं जिन घरों में रहा पुलिस ने उन लोगों की नृशंस तरीके से हत्या कर दी.


सवाल- क्या आप लोग अपनी मांगे मनवाले के लिए फिर से हथियार उठा सकते है?

जवाब- देखिए, लड़ाई का तरीका समय पर निर्भर करता है. अभी तो हम लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों की मांग कर रहे हैं. लेकिन हालात अगर 1984 जैसा होता है तो तरीका बदल सकता है.


सवाल- क्या आप को लगता है कि भारत सरकार आप की मांग मान लेगी?

जवाब- सिख राष्ट्र का निर्माण कठिन जरूर है,लेकिन हम इसे हासिल करके ही रहेंगे.


सवाल- अपनी मांगे मनवाने के लिए जो आप लोग हथियार उठाते हैं, वह कितना जायज है?

जवाब- हमारे सिख धर्म में शस्त्र धारण करने की बात है. लेकिन हम शस्त्र अन्याय के विरुद्ध उठाते हैं, किसी के शोषण के लिए नहीं. हमारे गुरु ग्रंथ साहिब के सामने हथियार यानी कृपाण रखा जाता है. हमारे यहां तो परंपरा है कि "राज करैं या लड़ मरैं".


सवाल- कहा जाता है कि भिंडरवाला ने स्वर्ण मंदिर को अपने छुपने का माध्यम बनाया?

जवाब- मुगलों से युद्ध के दौरान गुरु घरों यानी गुरुद्वारों में ही शरण लेकर सिखों ने लड़ाई लड़ी. भिड़रवाले भी स्वर्ण मंदिर में आकर तब रहने लगे जब दो महीने के दौरान उन पर छह हमले हुए. उन्हें डर था कि पुलिस और सुरक्षा बल उन्हें फर्जी इनकांउंटर में मार देंगे.

http://visfot.com/index.php/interview/3494-%E0%A4%85%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%91%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8-%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%82-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A4%96%E0%A5%8D%E0%A4%AE-%E0%A4%A6%E0%A4%B2%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%A4-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%AE%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%82.html




লন্ডন: 'অপারেশন ব্লু স্টার' নিয়ে আবার বেকায়দায় কংগ্রেস৷ এবং এই ক্ষেত্রেও বিতর্ক উস্কে দিয়েছে ব্রিটেনের সদ্য প্রকাশিত 'গোপন' নথি৷ ব্রিটিশ বিদেশসচিব উইলিয়ম হগ এ দিন সরকারের একটি অভ্যন্তরীণ তদন্তের রিপোর্ট পেশ করে জানান, মার্গারেট থ্যাচারের প্রধানমন্ত্রিত্বকালে তাঁর সরকারের 'পরামর্শে'ই অমৃতসরের স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযান চালিয়েছিল ইন্দিরা গান্ধীর সরকার৷ তবে একই সঙ্গে তিনি দাবি করেছেন, ওই অভিযানের পিছনে ব্রিটেনের পরামর্শের খুব একটা প্রভাব ছিল না৷ এমনকি, অভিযান চালানোর আগে এ ব্যাপারে থ্যাচার প্রশাসনকে কিছু জানানোও হয়নি৷


ব্রিটেনের কিছু অপ্রকাশিত সরকারি নথি থেকে সম্প্রতি জানা যায়, ১৯৮৪ সালে স্বর্ণমন্দিরে খালিস্তানি জঙ্গিদের হটাতে গিয়ে শতাধিক শিখ হত্যার কুখ্যাত সামরিক অভিযানটির আগে ব্রিটেনের সাহায্য চেয়েছিল ভারত, এবং মার্গারেট থ্যাচার সরকারের তরফে সে অনুরোধ রাখাও হয়৷ উইলিয়াম হগ এ দিন জানান, ওই ঘটনা সম্পর্কিত ২০০টি ফাইল এবং ২৩ হাজার নথির পর্যালোচনা করে তদন্ত কমিটি জানিয়েছে, ভারত সরকারের অনুরোধে ১৯৮৪ সালের ৮-১৯ ফেব্রুয়ারির মধ্যে ব্রিটেনের এক সামরিক উপদেষ্টা সে দেশে গিয়েছিলেন৷ সেই উপদেষ্টা সাফ জানান, আলোচনার মাধ্যমে সমস্যা মেটার সব রাস্তা বন্ধ হলে একমাত্র তবেই সামরিক অভিযানের কথা ভাবুক ভারত৷ সে ক্ষেত্রে হেলিকপ্টারের মাধ্যমে আক্রমণ করলে হতাহতের সংখ্যা যথাসম্ভব কম হতে পারে বলেও জানানো হয়৷ তবে ৩ থেকে ৮ জুন অপারেশন ব্লু স্টারে শেষ পর্যন্ত যে ছক অনুসরণ করা হয় তার সঙ্গে এই পরামর্শের কোনও মিল নেই৷ অভিযানের আগে ব্রিটেনকে কিছু জানানো হয়েছিল বলেও কোনও সাক্ষ্য পাওয়া যায়নি৷


কিন্ত্ত গোটা ঘটনায় ব্রিটেনের সরাসরি 'হাত' না থাকলেও এই নথিতে চাপে পড়েছে কংগ্রেস৷ অপারেশন ব্লু স্টার-এর এর তিন মাস পরেই শিখ জঙ্গিদের হাতে প্রাণ হারান ইন্দিরা গান্ধী৷ অভিযোগ, এর প্রতিক্রিয়ায় দিল্লি জুড়ে শিখনিধন যজ্ঞ চালায় শাসকদল কংগ্রেসের কর্মীরা৷ শিখ অধিকার সংগঠনগুলি এই ঘটনার বিচার চাইছে বহু দিন ধরে৷ সম্প্রতি একটি টেলিভিশন সাক্ষাত্‍কারে ১৯৮৪ সালের শিখ দাঙ্গার জন্য ক্ষমা চাইতে অস্বীকার করে সমালোচনার মুখোমুখি হয়েছেন রাহুল গান্ধীও৷ এখন ব্রিটেনের তরফে এই স্বীকারোক্তিতে সেই বিতর্কে আরও অনেকটা ইন্ধন পড়তে চলেছে বলেই মনে করা হচ্ছে৷ - পিটিআই


ব্লুস্টারে সাহায্যের কথা মেনে নিল ব্রিটেন

নিজস্ব প্রতিবেদন

৪ ফেব্রুয়ারি

গুজরাত দাঙ্গায় নরেন্দ্র মোদীর সরকারের ভূমিকা বনাম শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় কংগ্রেসের ভূমিকা নিয়ে রাজনৈতিক চাপানউতোরের মধ্যেই নতুন সংযোজন। লোকসভা ভোটের আগে কংগ্রেসের অস্বস্তি এক ধাক্কায় অনেকটা বাড়িয়ে দিয়ে ১৯৮৪ সালে অমৃতসরের স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযানে ভারতকে পরামর্শ দিয়ে সাহায্য করার কথা মেনে নিল ব্রিটিশ সরকার। ব্রিটিশ বিদেশমন্ত্রী উইলিয়াম হেগ মঙ্গলবার জানিয়েছেন, ভারতের সঙ্গে ভাল সম্পর্কের কথা ভেবেই ইন্দিরা গাঁধী সরকারকে ওই অভিযানে সাহায্যের সিদ্ধান্ত নিয়েছিল মার্গারেট থ্যাচারের সরকার।

সম্প্রতি ব্রিটেনের জাতীয় মহাফেজখানা থেকে প্রকাশিত দু'টি নথির কথা উল্লেখ করে সরব হয়েছিলেন ব্রিটিশ পার্লামেন্টের দুই সদস্য। তাঁরা জানান, 'অপারেশন ব্লুস্টারে'র আগে ব্রিটিশ সরকারের সাহায্য চেয়েছিল ইন্দিরা-সরকার। সাহায্যে রাজিও হন তৎকালীন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী মার্গারেট থ্যাচার। ভারতীয় সেনাবাহিনী ও গোয়েন্দা সংস্থাগুলিকে পরামর্শ দিতে বিশেষ কম্যান্ডো বাহিনী 'স্যাস'-এর এক অফিসার ভারতেও যান। প্রকাশিত ওই সরকারি নথিতে তার প্রমাণ রয়েছে।

দুই ব্রিটিশ এমপি-র এই দাবি নিয়ে রীতিমতো আলোড়ন শুরু হয় ব্রিটিশ পার্লামেন্টে। ভারতে হেলিকপ্টার বিক্রির জন্যই থ্যাচার-সরকার ইন্দিরাকে সাহায্য করেছিল বলেও অভিযোগ ওঠে। চাপে পড়ে বিষয়টি নিয়ে তদন্তের নির্দেশ দেন ব্রিটিশ প্রধানমন্ত্রী ডেভিড ক্যামেরন। আজ সেই তদন্তের রিপোর্টই পার্লামেন্টে পেশ করেছেন বিদেশমন্ত্রী উইলিয়াম হেগ।

*

ব্লুস্টার নিয়ে ভারত-ব্রিটেনের এই কথা চালাচালির ইতিহাস অবশ্য এই মুহূর্তে দু'দেশের কোনও সরকারের পক্ষেই স্বস্তির নয়। ব্রিটেন দাবি করছে, তারা শুধুই পরামর্শ দিয়েছিল এবং ভারত আদৌ ব্রিটেনের কথা মতো কাজ করেনি। বিষয়টি নিয়ে এখনও সরকারি ভাবে মুখ খোলেনি কেন্দ্রে কংগ্রেসের নেতৃত্বাধীন সরকার।

শিখদের ধর্মস্থান স্বর্ণমন্দিরে ঘাঁটি গেড়ে বসে থাকা খলিস্তানি জঙ্গি নেতা জার্নেল সিংহ ভিন্দ্রানওয়ালে ও তাঁর সশস্ত্র সঙ্গীদের হটাতে ১৯৮৪ সালের ৩ থেকে ৮ জুন অভিযান চালিয়েছিল ভারতীয় সেনা। সেই অভিযানই 'অপারেশন ব্লুস্টার' নামে পরিচিত। সেই সংঘর্ষে ভিন্দ্রানওয়ালে-সহ জঙ্গিদের খতম করা গেলেও সেনার গুলিতে ক্ষতিগ্রস্ত হয় স্বর্ণমন্দির। এই ঘটনায় তীব্র প্রতিক্রিয়া হয় শিখদের মধ্যে। এই সেনা অভিযানের কয়েক মাসের মধ্যেই ৩১ অক্টোবর, নিজের দুই শিখ দেহরক্ষীর গুলিতে নিহত হন ইন্দিরা। ইন্দিরা-হত্যার পরে রাজধানী দিল্লি এবং লাগোয়া এলাকায় প্রবল শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় মৃত্যু হয় কয়েক হাজার মানুষের। এই দাঙ্গায় একাধিক কংগ্রেস নেতার জড়িত থাকার অভিযোগও ওঠে।

স্বর্ণমন্দিরে সেনা অভিযান এবং পরবর্তী সময়ে শিখ-বিরোধী দাঙ্গার ঘটনা আজও কংগ্রেসের কাছে প্রবল অস্বস্তির। সনিয়া গাঁধী এবং মনমোহন সিংহ আগেই প্রকাশ্যে এ নিয়ে ক্ষমা চেয়েছেন। তবু বিতর্ক পিছু ছাড়েনি। টেলিভিশনে প্রথম পূর্ণাঙ্গ সাক্ষাৎকারেও রাহুল গাঁধীকে এই প্রশ্নের সামনে যথেষ্ট বিব্রত দেখিয়েছে।

এই আবহেই ব্রিটিশ পার্লামেন্টে হেগ জানালেন, ব্রিটেন যে 'অপারেশন ব্লুস্টার' নিয়ে ভারতকে পরামর্শ দিয়েছিল, তা ঠিক। ভারতের সঙ্গে ভাল সম্পর্কের কথা ভেবেই ইন্দিরা গাঁধীর সরকারকে ওই ঘটনার সময় সাহায্যের সিদ্ধান্ত নেয় থ্যাচার-সরকার। তার ভিত্তিতেই ১৯৮৪ সালের ফেব্রুয়ারিতে এক ব্রিটিশ সামরিক পরামর্শদাতা ভারতে যান। সরকারি স্তরে আলোচনায় তিনি জানিয়েছিলেন, জঙ্গিদের সঙ্গে আলোচনা একেবারে ব্যর্থ হলে তবেই সামরিক অভিযানের কথা ভাবা যেতে পারে। একই সঙ্গে তাঁর পরামর্শ ছিল, জঙ্গিদের হতচকিত করে হঠাৎ হামলা চালাতে হবে। হেলিকপ্টারে বাহিনী পাঠানোও প্রয়োজন। হেগ জানিয়েছেন, ওই অফিসার ব্রিটেনে ফিরে যাওয়ার পরে জঙ্গিদের হটাতে সেনা অভিযানের পরিকল্পনা ও তা কার্যকর করার পুরো ভার হাতে তুলে নেয় ভারতীয় সেনা। ব্রিটিশ পরামর্শ খুব সীমিত প্রভাব ফেলেছিল। কারণ, ভারতীয় সেনা আচমকা হানা দেয়নি। হেলিকপ্টারে বাহিনীও পাঠানো হয়নি।


*

স্বর্ণমন্দির থেকে জঙ্গি নেতা জার্নেল সিংহ ভিন্দ্রানওয়ালেকে

হটাতে সেনা নামানোর সিদ্ধান্ত ইন্দিরা গাঁধীর। দায়িত্ব কে এস ব্রার-কে।

অপারেশন ব্লুস্টার ১৯৮৪


৩ জুন

পঞ্জাব জুড়ে কার্ফু। স্বর্ণমন্দিরে ঢোকা-বেরোনোর

সব পথ আটকে দিল সেনা।

৪ জুন

সেনা-জঙ্গি গুলির লড়াই শুরু।

৫ জুন

স্বর্ণমন্দির চত্বরে ঢুকতে গিয়ে জঙ্গিদের প্রতিরোধে

থমকাল সেনা। কৌশলে বদল। রাতভর যুদ্ধ।

৬ জুন

ভিতরে ঢুকল সেনা। ভিন্দ্রানওয়ালের দেহ উদ্ধার।

গোলায় বিধ্বস্ত অকাল তখ্ত।

৮ জুন

অভিযান শেষ।


হেগ এ-ও জানিয়েছেন যে, ব্রিটিশ হেলিকপ্টার বা অস্ত্র ভারতকে বিক্রির সঙ্গে এই পরামর্শ দেওয়ার যোগ খুঁজে পাওয়া যায়নি। ভারতীয় সেনাকে স্বর্ণমন্দির অভিযানের জন্য কোনও প্রশিক্ষণ দেয়নি ব্রিটেন। কোনও উপকরণও সরবরাহ করা হয়নি।

কিন্তু বিতর্কিত 'অপারেশন ব্লুস্টারে' ব্রিটিশ-যোগ প্রকাশ্যে আসার পরে ফের এক দফা ঝড়ের জন্যই তৈরি হচ্ছে নয়াদিল্লি ও লন্ডন। ইতিমধ্যেই টেলিভিশনে ১৯৮৪-র দাঙ্গায় কিছু কংগ্রেস নেতা-কর্মী জড়িত থাকার সম্ভাবনার কথা মেনে নিয়ে কংগ্রেসকে অস্বস্তিতে ফেলেছেন রাহুল।

গোধরা-পরবর্তী দাঙ্গার স্মৃতি নিয়ে বিব্রত মোদী তথা বিজেপি যাকে কাজে লাগিয়ে কংগ্রেসকে আক্রমণের সুযোগ পেয়ে গিয়েছে। এ কাজে এখনও তারা মূলত ব্যবহার করেছে এনডিএ-র শরিক অকালি দলকে। শিখ-বিরোধী দাঙ্গায় রাজীব গাঁধীর ভূমিকা নিয়ে তদন্তের দাবি তুলেছে পঞ্জাবের বর্তমান শাসক অকালি দল। অকালি-সহ কংগ্রেস-বিরোধী দলগুলির আক্রমণ আরও বাড়বে বলেই মনে করা হচ্ছে।

বিজেপি মুখপাত্র নির্মলা সীতারামনের কথায় তারই ইঙ্গিত, "ইন্দিরার সরকার দাবি করেছিল, আলোচনা ব্যর্থ হওয়ায় স্বর্ণমন্দিরে অভিযান চালিয়েছিল সেনা। কিন্তু ব্রিটেনের সঙ্গে আগে পরামর্শের কথা থেকেই বোঝা যাচ্ছে, আলোচনায় আদৌ আগ্রহী ছিল না সরকার।"

http://www.anandabazar.com/5desh1.html


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