Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Friday, June 15, 2012

Fwd: गढ़वळि भाषौ कवि श्री जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु" जी क भीष्म कुकरेती दगड छ्वीं



---------- Forwarded message ----------
From: Bhishma Kukreti <bckukreti@gmail.com>
Date: 2012/6/15
Subject: गढ़वळि भाषौ कवि श्री जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु" जी क भीष्म कुकरेती दगड छ्वीं
To: kumaoni garhwali <kumaoni-garhwali@yahoogroups.com>


गढ़वळि भाषौ कवि श्री जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु" जी क भीष्म कुकरेती दगड छ्वीं

भीष्म कुकरेती - आप साहित्यौ दुनिया मा कनै ऐन?


जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-कुकरेती जी, पहाड़ मन मा सदानि बस्युं रै मेरा, कसक बोला या प्रवास की पीड़ा का कारण, कलम उठाई अर लिखण लग्यौं मन का ऊमाळ, अपणि प्यारी गढ़वाळि भाषा मा,

यनु सोचिक, भाषा अर संस्कृति कू सम्मान करौं अर सृंगार भी.

भी.कु- वा क्या मनोविज्ञान छौ कि आप साहित्यौ तरफ ढळकेन ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-गढ़वाळि भाषा मा भौत सुन्दर सृजन कर्युं छ गढ़वाळि कवि अर लेखकु कू, मन मा कुतग्याळि सी लग्दि जब पढ्दा छौं उंकी रचना अर लेख. गढ़वाळि साहित्य का प्रति ढळकाव ये कारण सी स्वाभाविक छ.


भी.कु. आपौ साहित्य मा आणो पैथर आपौ बाळोपनs कथगा हाथ च ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-मेरी जिज्ञासा बाळापन बिटि गढ़वाळि भाषा का प्रति रै, नजीबाबाद रेडियो बिटि पहाड़ का प्यारा गीतू कू प्रसारण होंदु थौ, सुण्दु थौ टक्क लगैक. जब गौं का मनखि रामलीला देखण जांदा था, मै भी जरूर जांदु अर कलाकारू कू हास्य, करूणादायक अंदाज, गढ़वाळि मा संवाद भौत प्यारू लगदु थौ.


भी.कु- बाळपन मा क्या वातवरण छौ जु सै त च आप तै साहित्य मा लै ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-बाळापन मा भौत उलार रंदु छ मनखि का मा हर विषय का प्रति. दादा-दादी अर जाणकार मनखि का मुख सी पुराणि गढ़वाळि कथा, गीत सुणिक मन मा गढ़वाळि साहित्य का प्रति लगाव स्वाभाविक छ.


भी.कु. कुछ घटना जु आप तै लगद की य़ी आप तै साहित्य मा लैन !

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-मेरा एक प्रिय मित्र छन श्री जयप्रकाश पंवार "प्रकाश". एक बार पंवार जिन एक गढ़वाळि कविता "आवा जावा अपणा गौं" मैकु भेजी. कविता पढिक मेरा मन मा गढ़वाळि कविता लेखन की ख़ास जिज्ञासा पैदा ह्वै अर साहित्य सी जुड़ाव भी.
भी.कु. - क्या दरजा पांच तलक s किताबुं हथ बि च ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-दर्जा पांच तक की किताब मा सुन्दर कविता अर कथा होंदी थै. महादेवी वर्मा की एक कविता भौत सुन्दर लग्दी थै, "फूल हैं हम सरस कोमल, कंटकों में खिल रहे हम" बाळापन कू अहसास होंदु थौ अर साहित्य का प्रति आकर्षण.


भी.कु. दर्जा छै अर दर्जा बारा तलक की शिक्षा, स्कूल, कौलेज का वातावरण को आपौ साहित्य पर क्या प्रभाव च ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-दर्जा छै अर दर्जा बारा तक की शिक्षा का दौरान कथाकार प्रेमचंद जी की कहानी पढ़ण कू मौका मिली. प्रेमचंद जी कू भारत का ग्रामीण परिवेश कू सुन्दर चित्रण कर्युं छ अपणि कहानियों मा, ये कारण सी कुछ न कुछ प्रभाव हिंदी साहित्य कू भी छ.


भी.कु.- ये बगत आपन शिक्षा से भैराक कु कु पत्रिका, समाचार किताब पढीन जु आपक साहित्य मा काम ऐन ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"- गढ़वाळि भाषा की पत्रिकाओं अर समाचार पत्र सी काफी ज्ञान मिल्दु छ साहित्य का बारा मा. युगवाणी, पर्वतजन, निराला उत्तराखंड का माध्यम सी पहाड़ का बारा मा भौत सुन्दर साहित्यिक ज्ञान प्राप्त होंदु छ , जौंकु मैं समय समय फर अवलोकन करदु छौं.


भी.कु- बाळापन से लेकी अर आपकी पैलि रचना छपण तक कौं कौं साहित्यकारुं रचना आप तै प्रभावित करदी गेन?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"- घनश्याम सैलानी जी, चंद्रकुंवर बर्त्वाल जी, विद्यासागर नौटियाल जी की रचना मैन पढिन अर भौत सुन्दर लगिन.


भी.कु. आपक न्याड़ ध्वार, परिवार,का कुकु लोग छन जौंक आप तै परोक्ष अर अपरोक्ष रूप मा आप तै साहित्यकार बणान मा हाथ च ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-साहित्यिक बणौण मा मै फर परोक्ष अर अपरोक्ष रूप मा कैकु हाथ निछ. मैं फर माँ सरस्वती की कृपा अर गढ़वाळि भाषा प्रेम कू प्रभाव छ .


भी.कु- आप तै साहित्यकार बणान मा शिक्षकों कथगा मिळवाग च ?
जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-क्वी मिळवाग निछ.
भी .कु. ख़ास दगड्यों क्या हाथ च ?
जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"- ख़ास दगड्यों सी वातावरण मिल्दु छ.
भी.कु. कौं साहित्यकारून /सम्पादकु न व्यक्तिगत रूप से आप तै उकसाई की आप साहित्य मा आओ

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"- कै भी साहित्यकार/संपादक सी व्यक्तिगत सहयोग नि मिली.
भी.कु. साहित्य मा आणों परांत कु कु लोग छन जौन आपौ साहित्य तै निखारण मा मदद दे ?

जगमोहन जयाड़ा "जिज्ञासु"-निखारण मा मदद कै सी नि मिली पर मैन अपणि कलम सी गढ़वाळि कविता सृजन करि अर पछाण अपछाण शुभचिंतक मेरा कविमन मा उत्साह पैदा करदा छन. मेरु भी प्रयास छ मैं गढ़वाळि भाषा प्रेम पैदा करौं उत्तराखंडी लोगु का मन मा.
 
 
Copyright@ Bhishma kukreti 15/6/2012


--
 


Regards
B. C. Kukreti


No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors