जाति एवं भ्रष्टाचार
डॉ. उदित राज
गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक समाजशास्त्री आशीष नंदी ने जयपुर साहित्य उत्सव मंे बयान दिया कि ''ज्यादातर भ्रष्टाचार मंे दलित, आदिवासी एवं पिछड़े वर्ग के लोग शामिल होते हैं।'' इस बयान के कई पक्ष हैं। निर्विवाद रूप से यह इन वर्गों को कमतर रूप में दिखाता है और निंदनीय है लेकिन इसके और भी पक्ष हैं, यदि उन पर देश में बहस चलती है तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे को बल मिलेगा। इस देश मंे जाति से ज्यादा कोई और शास्वत एवं ताकतवर चीज नहीं है। मरते दम तक इंसान जाति से मुक्त नहीं हो पाता। देश छोड़कर किसी भी मुल्क में चला जाए तो जातीय भावना भी साथ जाती है। इस बयान पर तमाम तरह की टिप्पणियां आ रही हैं। कोई कह रहा है कि भ्रष्टाचार की जाति नहीं होती तो कुछ ने कहा कि इस वाक्य को पूरे संदर्भ मंे देखा जाना चाहिए। गिरतारी की भी मांग उठ रही है। जो इन्होंने बोला वह वापिस तो नहीं हो सकता लेकिन अगर भ्रष्टाचार पर उसी तरह से बहस देश में छिड़ जाए जैसे निर्भया के हत्या एवं बलात्कार के ऊपर हुआ तो कुछ मकसद हासिल हो सकता है।
दलित-आदिवासी औरों की तुलना में तो कम से कम भ्रष्ट है और यह बहुत विश्वास के साथ कहा जा सकता है। पिछले वर्ष भारत सरकार ने 17 लोगों के नंबर 2 विदेशी खाते का नाम सहित खुलासा किया उसमें से एक भी दलित और आदिवासी नहीं है। जैन हवाला कांड मंे भी ये नहीं थे। लाखों करोड़ों धन विदेश में है। बहुत संभव है कि उसमें ये ना शामिल हो। हर्षद मेहता, केतन पारिख, तेलगी आदि घोटालोंबाजों में से कोई दलित, आदिवासी नहीं है। कॉमनवेल्थ गेम्स में लगभग 70,000 करोड़ का घोटाला था। कावेरी गैस के मामले में सरकार को 44,000 करोड़ का चुना लगा। कोल आवंटन का बंदरबांट सभी जानते हैं। जी-2 स्पेक्ट्रम लाइसेंस लेने वाले मंे कोई भी इनमें से नहीं था। मंत्री जरूर दलित समाज का था। यह कहना गलत नहीं है कि दलित, आदिवासी अगर भ्रष्ट हैं तो अपवाद स्वरूप अर्थात दाल में नमक के बराबर। पिछड़े वर्ग के लोग कुछ अधिक हो सकते हैं लेकिन आबादी के अनुसार वह भी अपवाद ही होगा। आशीष नंदी ने जो कहा अगर उस बयान को उल्टा कर दिया जाए तो वह एक स्थापित सच्चाई होगी अर्थात् सवर्ण भ्रष्ट ज्यादा होते हैं।
जिस जाति के हाथ में हजारों वर्ष से धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक सत्ता रही है, वही तो और संस्थाओं को जन्म देता है। भ्रष्टाचार हमारे यहां एक संस्था का रूप ले चुका है। आजादी के बाद कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका की बागडोर ज्यादातर सवर्णों के हाथ मंे ही रही है इसलिए यह कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार की बुनियाद उसी समय में पड़ी। शासक वर्ग ही तमाम संस्थाओं, मान्यताओं एवं रीति-रिवाज का जन्मदाता होता है। सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार धर्म के नाम पर होता है। देवी-देवताओं को प्रसाद, पैसा, चादर, सोना-चंादी, मुर्गा एवं बकरा आदि चढ़ाकर के लाभ लेना क्या भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है ? निर्विवाद रूप से यह कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार की बुनियाद रखने का काम सवर्णों ने किया और कुछ एक दशक से दलित, आदिवासी और पिछड़े भी इस सामाजिक बुराई से प्रभावित हुए हैं। असली गुनहगार वही जाति है जिसने इस सामाजिक बुराई को जन्म दिया है। अतः आशीष नंदी अपने मंे फिर से टटोलंे कि जो उन्होंने कहा उसका विपरीत जरूर सच है। हमारे यहां के ज्यादातर बुद्धिजीवी बौद्धिक स्तर पर ईमानदार नहीं है और दूसरी तरफ समाज के सच्चाई का ज्ञान भी नहीं है। किताबी कीड़ा हो जाने से कोई बुद्धिजीवी नहीं हो जाता। यूरोप और अमेरिका से विपरीत हमारे यहां जब समाज में बदलाव आ जाता है तब बुद्धिजीवी संज्ञान लेते हैं उनमें कम ही क्षमता है कि वे अपनी लेखनी, वक्तव्य, कविता आदि से समाज को प्रभावित किए हैं। आखिर में आशीष नंदी इसी माहौल के पैदाईश हैं और उनसे कोई बड़ी उम्मीद तो की नहीं जा सकती।
आशीष नंदी ने यह भी कहा कि बंगाल मंे भ्रष्टाचार कम है उसका श्रेय उन्होंने वामपंथी सवर्ण नेताओं को दिया। उन्होंने यह भी कहा कि 100 वर्ष में कोई दलित, आदिवासी एवं पिछड़ा नेतृत्व में नहीं है। अर्थात् आर्थिक भ्रष्टाचार कम हुआ लेकिन सामाजिक का पलड़ा ज्यादा ही भारी है। दलितों, आदिवासियों एवं पिछड़ों के लिए अच्छा होता कि वहां भी उतना ही आर्थिक भ्रष्टाचार होता जितना और स्थानों पर है बशर्ते वे इस शर्त पर शासन-प्रशासन में भागीदार होते। ऐसा इसलिए कि इस माहौल में इनकी भागीदारी सुनिश्चित होती। इस देश में भागीदारी की समस्या कहीं आर्थिक भ्रष्टाचार से बड़ी है। वामपंथी भले इसको ना माने लेकिन यह एक कटू सत्य है। वामपंथियों द्वारा इस सच्चाई से रूबरू ना होने के कारण उनका सफाया हुआ नहीं तो भारत देश जैसे उर्वरा भूमि रूस की भी नहीं थी जहां पर मार्क्सवाद पनपा। अभी तक जो आरोप वामपंथियों पर लगाया जाता रहा कि वे सबसे ज्यादा ब्राह्मणवादी हैं, वह सच है। आशीष नंदी के बयान से इस सोच को समर्थन मिला। यह कैसे संभव है कि लगभग 80 प्रतिशत दलित, आदिवासी एवं पिछड़ों की आबादी हो और उसमें से नेतृत्व ना पैदा हो। क्या मान लिया जाए कि ये मूर्ख एवं अयोग्य होते हैं।
जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के संघर्ष पर देश में बहस छिड़ी उसी तरह से इस विषय पर देश में संवाद होना चाहिए कि कौन जाति ज्यादा भ्रष्ट है और कौन नहीं। बहस से स्पर्धा होगी और जो जातियां ज्यादा भ्रष्टाचार कर रही हैं उनके ऊपर मनोवैज्ञानिक और मानसिक दबाव पड़ेगा और इससे भ्रष्टाचार में कमी होगी। हमारे यहां शान एवं स्पर्धा से चीजें तेजी से भागती है। जिस जाति के शान पर बट्टा लगेगा वह भ्रष्टाचार से बचेगी। कुछ दिन पहले इसी मुद्दे पर एन डी तिवारी हॉल, नई दिल्ली में विचार गोष्ठी रखी गई थी। वहां पर अन्ना हजारे से मुलाकात हो गई और मैंने कहा कि विगत वर्ष की तुलना में इस वर्ष भ्रष्टाचार बढ़ा है तो उनके अनशन से क्या फायदा हुआ। उन्होंने जवाब में कहा कि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए भारत के गांव मंे जाना होगा। मैंने कहा कि 6 लाख से ज्यादा गांव भारत मंे है तो कैसे ये संभव होगा और कितने हजार साल लगेंगे क्यूंकि उन्होंने पूरा जीवन एक गांव को सुधारने में लगा दिया। ज्यादातर लोग नकार रहे हैं कि भ्रष्टाचार की जाति नहीं होती लेकिन यह सच नहीं है। जाति अथवा हमारी सामाजिक संरचना ही झूठ पर आधारित है। ऊंच-नीच भगवान की मर्जी है, इसी मान्यता पर समाज टिका हुआ है तो क्या यह सत्य है। असत्य बात अपने आप में भ्रष्टाचार है। आर्थिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई तब तक सफल नहीं होगी जब तक कि बौद्धिक भ्रष्टाचार को मान्यता ना मिले और उसको मिटाने के लिए लगातार संघर्ष हो। यह बात तो तय है कि यदि जाति और भ्रष्टाचार में बहस चले तो इसके परिणाम अच्छे निकलेंगे।
राश्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन जस्टिस पार्टी एवंराश्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन जस्टिस पार्टी एवं
रा. चेयरमैन, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघरा. चेयरमैन, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ
टी-22, अतुल ग्रोव रोड, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली-110001टी-22, अतुल ग्रोव रोड, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली-110001
फोनः 23354841.42, टेलीफैक्स: 23354843फोनः 23354841.42, टेलीफैक्स: 23354843
E-mail : dr.uditraj@gmail.com
Unique
My Blog List
HITS
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Followers
Blog Archive
-
▼
2013
(5509)
-
▼
February
(442)
- दिल्ली तक शरणार्थियों के लिए लड़ेंगे प्रफुल्ल पटेल!
- ममता दीदी की शुरु की हुई परियोजनाएं खटाई में!महंगा...
- Torture in police station & prison (correctional h...
- Rape of human rights,Human Rights defender getting...
- हम अंबेडकर विचारधारा के मुताबिक देश की उत्पादक व स...
- मोदीवादी छद्म धार्मिक राष्ट्रवाद
- जमीन अधिग्रहण खत्म हो मेधा पाटकर
- पेंशन बिल यानी कामगारों की तबाही पीयूष पंत
- एक मामूली ‘गालिब’ की कहानी, जो असदउल्ला खां नहीं ...
- रिहाई मंच ने शिंदे से पूछे सात सवाल
- सुरक्षा-सुविधा की गारंटी दीजिये रेलमंत्री
- मजदूरों को एक सिरे से देश का घाटा कराने और असुविधा...
- वर्धा विश्विद्यालय में यौन उत्पीड़न
- Fwd: New Biometric Face Recognition Attendance Tim...
- पूरे देश की अर्थव्यवस्था अब चिट फंड में तब्दील!
- Ex-IAF chief SP Tyagi named! Tough most task for C...
- বধ্যভূমিতে দাঁড়িয়ে শপথ,দ্বিতীয় মুক্তযুদ্ধের প্রথম ...
- THE CENTRE CANNOT HOLD - New Delhi’s dilemma over ...
- गुमशुदा बच्चों की फिक्र
- ममता, सिंगूर आंदोलन का उपहास उड़ाने के कारण फिल्म प...
- ऑस्कर: ‘आरगो’ और ‘लाइफ ऑफ पाई’ का धमाल, डे-लूइस सर...
- हिन्दू भी आतंकवादी होता है?
- बंगाल में हिन्दुओं का कत्लेआम !इस दुष्प्रचार के भय...
- बंगाल में हिंदुओं के नरसंहार का यह दुष्प्रचार!
- Threat to Indian Constitution is more serious from...
- সিরাজসিকদাররচনা জাতীয় মুক্তিযুদ্ধে কৃষকের ওপর নির্...
- এবার পশ্চিমবঙ্গ ? জামাত-রাজাকারদের শাস্তি নিয়ে যখন...
- बजट के खेल से हमें क्या? हमारी आंखें बंद हैं, श्रद...
- स्टालिन के असम्मान और सिंगुर की चर्चा के बहाने `का...
- শাহবাগের প্রজন্ম আন্দোলনে যে বাঙ্গালী জাতিসত্তার ন...
- रेल बजट: यात्री किराया व मालभाड़ा बढ़ाने को रेलवे मजबूर
- [Marxistindia] Sangharsh Sandesh Yatra flagged off
- दिल्ली के अधिकांश अख़बार कर रहे हैं भूमाफियाओं की ...
- पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक दंगा
- সেন্সরের কোপে `কাঙাল মালসাট`, ফ্যাতাড়ুদের মহাবিপদ...
- State’s monitoring of PDS unsatisfactory: Activists
- वे अचानक स्मृति शेष हो गए
- सोनी सोरी को रिहा करो!
- Fwd: PRESS CONFERENCE: Observations, Analysis of t...
- रेलबजट पर रेलमंत्री दगड़ मुखाभेंट
- Rail Budget: Will Railway Minister Pawan Bansal bi...
- Tata's old pillars suffer erosion in brand value, ...
- $8.8 bn missing link in exports figures: How gover...
- Are Muslim voters in Gujarat really supporting Nar...
- Budget 2013: Government’s strained finances will b...
- कश्मीर का इतिहास भूगोल फिर से लिखेगा ♦ हिमांशु कुमार
- ஆப்கான் உளவுத்துறை அலுவலகம் மீது இன்று காலை தலிபான...
- Workshop: UID, National Population Register (NPR) ...
- कचरे से रेडियोधर्मी तत्वों के रिसाव से एक बार फि...
- অবাধ পুঁজির খেলায় যে ছাড় প্রতিবছর দেওয়া হয় রাজস্ব...
- Fwd: RNI Exclusive in Hindi for free use: "Uttar P...
- Fwd: [গুরুচন্ডা৯ guruchandali] বাংলাদেশ সরকার বলে,...
- मजदूर महाबदं से खुलेंगे नये रास्ते
- आदिवासियों के लिए नहीं आकाशवाणी
- खामोश होतीं भारत की भाषाएं
- माओवाद का विकल्प नहीं बन पायी सरकार
- A NOVELIST IN THE ASHRAM - Between Gandhi and Ambe...
- Trinamul eye-opener on ear - Arrested suspects our...
- Sec 144 for Kejriwal protest? Court asks Delhi pol...
- आहत आस्थाओं का देश
- असुरक्षा बोध से पनपी सियासत
- यौन हिंसा की जड़ें
- आतंकवाद के नाम पर किसी तबके पर निशाना ठीक नही: अखिलेश
- क्या दीदी ने टाटा मोटर्स को हरी झंडी दे दी?
- লোক দেখানো হৈ হাঙ্গামা যাই হোক না, সংস্কার কর্মসুচ...
- My Daughter Attacked
- সব ধর্মের মৌলবাদের বিরুদ্ধে সক্রিয় হন বন্ধুরা: বাং...
- The Origins of Communalism Book Review by Aria Thaker
- Fwd: Rihai Manch statement on UPA govt intention t...
- Fwd: James Petras: Israel's Coming "Civil War": Th...
- Fwd: [भीमसागर] हम एक अनुसूचित जाति के रूप में संवै...
- HYDERABAD BLASTS Terror Returns Till more evidence...
- Terror Returns Till more evidence is forthcoming, ...
- What next, hand in boiling oil? Brutality in name ...
- “हाँ” और “ना” के हाशिये पर खड़ा है “बलात्कार का आर...
- जाति एवं भ्रष्टाचार
- JATI EVAM BHRASHTACHAR डॉ. उदित राज
- Dalits ‘barred’ from taking part in temple function
- No to begging yes to dignity By Vidya Bhushan Rawat
- More Questions for Sri Lanka to Answer about War C...
- TIED IN A KNOT- Cross-region Marriages in Haryana ...
- विश्लेषण : सोन्याचे मोल?
- NORTHEAST NEWS
- नागरिकता प्राप्तीमा कठिनाइ
- गोर्खाल्याण्ड राज्य गठनको मांगको समर्थनमा गोजमुमो ...
- ਮਾਂ-ਬੋਲੀ ਪੰਜਾਬੀ ਲਈ ਜਲੰਧਰ 'ਚ ਲਾਮਿਸਾਲ ਮਾਰਚ
- आनंद बल्लभ उप्रेती का आकस्मिक निधन
- Ultra vires regulations- does association with a b...
- ஹைதராபாத்தில் குண்டு வைத்தவர்கள் ‘ஸ்லீப்பர் செல்’ ...
- संकट में है कहने की आज़ादी और इंसान!महामहिम का भी ...
- অথ সিংহ কথা
- Fwd: [Right to Education] Appeal to join Demostrat...
- बुड्या मरणु बि नी!: याने एक अभिनव आन्दोलनs जड़नाश
- फिर बिगड़ेंगे प्रणव और दीदी के रिश्ते
- Only an impeachment may break the presidential imm...
- কপ্টার চুক্তির ফ্যাক্টশিটে ইতিমধ্যেই প্রণব মুখার্জ...
- ওপার বাংলাঃ প্রতিবাদে প্রজন্ম আন্দোলন, বাংলাদেশে প...
- Attack on CPI(M) MPs
- Fwd: Rihai Manch press note on IPS Singhal's arres...
- ਬਰਤਾਨੀਆ ਦੇ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਕੈਮਰੂਨ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਮੱ...
-
▼
February
(442)
No comments:
Post a Comment