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Wednesday, June 26, 2013

कोई भी बचाव टीम इन तक नहीं पहुंचती है


  • कोई भी बचाव टीम इन तक नहीं पहुंचती है

    आप इस प्रसंग को काल्पनिक मान सकते हैं. पर यह सच है और इसे बाहर रह रहे हमारे एक मित्र ने सुनाया था. सच्ची घटना के रूप में. 

    किसी देश के किसी शहर में नया सरकारी निर्माण होना था. निर्माण स्थल के बीच में एक पेड़ आ रहा था. नियमानुसार सरकार पेड़ को हटाने का मामला स्थानीय देशज समुदाय के पास ले गई. कहा गया राष्ट्रहित में निर्माण जरूरी है. पर पेड़ बाधा है. उसे हटाने के लि समुदाय की सहमति चाहिए. समुदाय के अगुआ ने मामला पारंपरिक स्वशासन इकाई में रखा. जहां लोगों ने सामूहिक रूप से समस्या पर विचार किया. पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था ने दो लोगों को जिम्मेदारी दी कि वे वस्तुस्थिति का आकलन कर अगली बैठक में रिपोर्ट दें कि क्या हो सकता है. राष्ट्रहित जरूरी है पर प्रकृति-समष्टि का कम से कम नुकसान हो.

    दोनों सामुदायिक प्रतिनिधि प्रस्तावित निर्माण स्थल पर गए. पेड़ बहुत पुराना और घना था. एक व्यक्ति पेड़ पर चढ़ा. उसने देखा पेड़ पर एक दुर्लभ प्रजाति के पंछी का घोंसला था. घोंसले में पंछी के अंडे थे.

    अगली बैठक में दोनों ने अपनी रिपोर्ट रखी. समुदाय ने सामूहिक रूप से वस्तुस्थिति का आकलन करते हुए निर्णय सुनाया. कम से कम जब तक पंछी के बच्चे अंडे से बाहर नहीं आ जाते और उड़ने लायक व आत्मनिर्भर नहीं हो जाते पेड़ को नहीं हटाया जाना चाहिए. पेड़ और पंछी के घोंसले को बिना कोई नुकसान पहुंचाए सरकार निर्माण कार्य जारी रख सकती है.

    सरकारी अधिकारियों ने निर्णय सुनने के बाद उनकी सलाह से असहमति जतायी. पर देश का संविधान-कानून देशज लोगों के स्वशासन का संरक्षक था. अधिकारी और सरकार संविधान के खिलाफ नहीं जा सकते थे. बिना किसी आंदोलन, लाठी-गोली चार्ज और झूठे मुकदमे के सरकार ने देशज समुदाय की बात मान ली और तब तक के लिए निर्माण कार्य रोक दिया जब तक कि पंछी के बच्चे खुद का घोंसला बनाने लायक नहीं हो जाते.

    भारत भी इसी ग्रह का हिस्सा है. पर अधिकांश को नहीं पता इस ग्रह पर उनका देश कहां है.
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