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Wednesday, July 31, 2013

तेलंगाना बनेगा 29वां राज्य, हैदराबाद दस साल के लिए साझा राजधानी

तेलंगाना बनेगा 29वां राज्य, हैदराबाद दस साल के लिए साझा राजधानी

Wednesday, 31 July 2013 09:34

प्रदीप श्रीवास्तव, नई दिल्ली। करीब 58 साल से चल रहे आंदोलन के बाद पृथक तेलंगाना राज्य बनाने का रास्ता साफ हो गया है। यूपीए और कांग्रेस ने मंगलवार को अलग-अलग बैठक में इस मुद्दे पर आमराय से अपनी मुहर लगा दी है।यूपीए समन्वय समिति में घटक दलों की राय जानने के बाद कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पास कर आनन फानन में इस पर फैसला कर लिया। इस प्रस्ताव के मुताबिक पृथक तेलंगाना में इस आंध्र प्रदेश के दस जिले शामिल होंगे। हैदराबाद दस साल तक दोनों राज्य की साझा राजधानी रहेगी। इस बीच रायलसीमा क्षेत्र के किसी स्थान को विकसित कर उसे आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाई जाएगी। कांग्रेस के मुताबिक अगले छह महीने में तेलंगाना राज्य के गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। 

 

यूपीए ने लगाई मुहर, आंध्र के दस जिले होंगे शामिल,


कांग्रेस कार्यसमिति अपने इस फैसले के तहत केंद्र सरकार से निश्चित समय सीमा के भीतर तेलंगाना राज्य बनाने की दिशा में आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करेगी। सूत्रों के मुताबिक कैबिनेट की एक विशेष बैठक बुधवार को बुलाई गई है। कार्यसमिति की बैठक के बाद पार्टी मीडिया प्रकोष्ठ के अध्यक्ष अजय माकन और आंध्र प्रदेश के पार्टी प्रभारी दिग्विजय सिंह ने प्रेस कांफ्रेस में इस फैसले की जानकारी देते हुए यह माना कि यह कठिन परिस्थितियों में और लंबे विचार विमर्श के बाद किया गया फैसला है। 
इस बंटवारे में आंध्र प्रदेश के दोनों हिस्सों में जो समस्याएं सामने आ सकती हैं, उसको ध्यान में रखा जाएगा। रायलसीमा क्षेत्र के लोगों से नदियों के पानी के बंटवारे, बिजली उत्पादन और वितरण, स्थानीय निवासियों की सुरक्षा की व्यवस्था और उनके मौलिक अधिकारों के संरक्षण से जुड़े सभी बिंदुओं को सुलझाने के लिए एक प्रणाली तैयार की जाएगी। इसके लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया जाएगा, जो निश्चित समय सीमा के भीतर अपनी सिफारिश देगा। 
कांग्रेस ने तेलंगाना को राज्य बनाने का फैसला राजनीतिक मजबूरियों के कारण किया है। इस मुद्दे पर उसे आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में अपने पार्टी के नेताओं के काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। पिछले एक हफ्ते से आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित केंद्रीय मंत्री और सांसद दिल्ली में प्रधानमंत्री से लेकर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिल कर पृथक तेलंगाना राज्य को लेकर अपना विरोध दर्ज करा चुके थे। मगर कांग्रेस नेतृत्व की निगाह 2014 के आम चुनाव पर है। पार्टी के केंद्रीय नेताओं को लग रहा था कि जगन रेड्डी की वजह से जहां रायलसीमा इलाके में पार्टी को नुकसान पहुंच सकता है, वहीं तेलंगाना में उसे भारी विरोध का सामना करना पड़ेगा। इस फैसले से तेलंगाना के तहत आने वाली 17 लोकसभा सीटों पर उसका दावा मजबूत हो जाएगा। हालांकि दिग्विजय सिंह ने इस बात से इनकार किया कि इस फैसले के पीछे राजनीतिक वजहें हैं। 
दिग्विजय सिंह ने 1956 से लेकर अभी तक के तेलंगाना आंदोलन के इतिहास का पूरा ब्योरा दिया। यह भी बताया कि 2002 में जब राजग सत्ता में थी तो तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पृथक तेलंगाना के प्रस्ताव का विरोध किया था। 
कांग्रेस ने प्रेस कांफ्रेंस में प्रस्ताव की जो प्रतियां बांटी हैं, उसमें भी 2004 से लेकर अभी तक इस मुद्दे पर जो भी चर्चा हुर्इं, उसका ब्योरा दिया है। यह पूछे जाने पर कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों में भी पृथक राज्य बनाने की मांग हो रही है, उस पर कांग्रेस बैठक में क्या चर्चा हुई, इस पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि यहां मामला केवल तेलंगाना का था। तेलंगाना राज्य की मांग ऐसी दूसरी मांगों से ऐतिहासिक, भौगौलिक और आर्थिक नजरिए से अलग है। 
कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के भाषण से हुई। उन्होंने पृथक तेलंगाना राज्य की जरूरत को बताया। बैठक में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे, पर वे इस पर कुछ नहीं बोले। 
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी इस मुद्दे को जरूरी बताते हुए कहा कि आंध्र के विकास के लिए तेलंगाना राज्य का गठन जरूरी है। जबकि यह माना जाता रहा कि प्रधानमंत्री छोटे राज्यों के हिमायती नहीं हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने अपने भाषण में यही बात कही थी। 
सूत्रों के मुताबिक केंद्र को खुफिया विभागों से जो रपट मिली थी, उसमें भी कहा गया था कि कानून व्यवस्था      बाकी पेज 8 पर  उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी ८
के लिहाज से, खासकर नक्सली हिंसा के नजरिए से तेलंगाना राज्य का गठन खतरनाक साबित हो सकता है। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के पहले यूपीए के घटक दलों के नेताओं में शरद पवार, अजित सिंह और फारूख अब्दुल्ला आदि सभी ने पृथक तेलंगाना पर अपनी सहमति जताई थी। 
मंगलवार की बैठकों के पहले पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का रोडमैप तैयार कर लिया गया था। इसके मुताबिक कैबिनेट की बैठक में इस मुद्दे पर फैसला किए जाने के बाद केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश विधानसभा को इस फैसले की सूचना देगी। राज्य विधानसभा इस फैसले पर प्रस्ताव पास कर इसे मंजूर या नामंजूर कर सकती है। यदि नामंजूर करती है तो उसकी इस अस्वीकृति की बाध्यता केंद्र सरकार पर संवैधानिक तौर पर नहीं बनती। 
केंद्रीय मंत्रिमंडल पृथक राज्य के गठन के संबंध में सभी बिंदुओं पर विचार करने के लिए मंत्रियों के समूह का गठन करेगा। मंत्री समूह हर बिंदुओं पर विचार कर सुझाव देगा। उसकी रपट के आधार पर कानून मंत्रालय विधेयक प्रारूप तैयार करेगा। इसे राज्य विधानसभा को भेजा जाएगा। वह चाहे तो इस पर अपने सुझाव दे सकता है, हालांकि केंद्र पर इन सुझावों को मानने की बाध्यता नहीं है। कैबिनेट विधेयक प्रारूप को पास कर राष्ट्रपति के पास भेजेगा। राष्ट्रपति इसे संसद में भेजेंगे। दोनों सदन इसे साधारण बहुमत से पास कर देते हैं, तो पृथक तेलंगाना राज्य बनाने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। 

दिग्विजय सिंह के मुताबिक चार से पांच महीने में यह सारी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। यानी संसद के अगले शीतकालीन सत्र में यह विधेयक आ जाएगा। 
विधेयक के भावी बिंदुओं को लेकर कांग्रेस कार्यसमिति में पास प्रस्ताव में बहुत कुछ कहा गया है। प्रस्ताव में केंद्र सरकार से यह अनुरोध किया गया है कि वह संविधान के आधार पर पृथक तेलंगाना राज्य बनाने के लिए कदम उठाए। साथ ही एक निश्चित समय सीमा के भीतर आंध्र, रायलसीमा के लोगों की बिजली, पानी और कानून व्यवस्था जैसी चीजों से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए एक प्रणाली विकसित करेगी।
प्रस्ताव में केंद्र से यह भी अनुरोध किया गया है कि दस साल तक हैदराबाद दोनों राज्यों की साझा राजधानी बनी रहे। ऐसे कानूनी और प्रशासनिक कदम उठाए, जिससे दोनों राज्य साझा राजधानी के जरिए ठीक तरह से काम कर सकें। आंध्र प्रदेश के बचे हुए हिस्से के लिए दस सालों के भीतर एक नई राजधानी बनाई जाए। पोलवरम सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए और इसे पूरा करने के लिए पर्याप्त राशि मुहैया की जाए। आंध्र प्रदेश के पिछड़े क्षेत्रों और जिलों के विकास के लिए पर्याप्त राशि दी जाए।

आंध्र प्रदेश में स्थिति शांतिपूर्ण: शिंदे
जनसत्ता ब्यूरो
नई दिल्ली, 30 जुलाई। तेलंगाना मुद्दे पर जल्द कोई फैसला किए जाने की संभावनाओं के बीच केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा है कि आंध्र प्रदेश में स्थिति शांतिपूर्ण है। तेलंगाना मुद्दे पर चर्चा के लिए बुधवार को कैबिनेट की विशेष बैठक बुलाई गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक के बाद उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि आंध्र प्रदेश में कानून व्यवस्था बिल्कुल ठीक है। बैठक में तेलंगाना मुद्दे पर विचार विमर्श किया गया। इस मुद्दे पर कोई फैसला घोषित करने के बाद पैदा होने वाली किसी स्थिति से निबटने के लिए केंद्र ने आंध्र प्रदेश में अर्द्धसैनिक बलों के एक हजार अतिरिक्त जवान भेजे हैं।
मौजूदा 1200 अर्द्धसैनिक जवानों के अलावा अतिरिक्त बलों को तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्रों में तैनात किए जाने की संभावना है क्योंकि अगर केंद्र सरकार पृथक तेलंगाना राज्य के गठन का फैसला करती है तो इन क्षेत्रों में विरोध                प्रदर्शन हो सकता है। केंद्रीय बलों के अलावा, कर्नाटक सैन्य पुलिस के 200 और तमिलनाडु सैन्य पुलिस के 100 जवानों को हैदराबाद और इसके आसपास के क्षेत्रों में तैनात किया गया है।
गृह मंत्रालय के अधिकारी राज्य सरकार के अधिकारियों से संपर्क में हैं और उनसे तेलंगाना मुद्दे पर कोई फैसला आने पर राज्य में शांति सुनिश्चित करने के लिए कहा है। पिछले सप्ताह,         बाकी पेज 8 पर  उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी ८
आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव पीके मोहंती और पुलिस महानिदेशक वी दिनेश रेड्डी को राजधानी बुलाया गया था जहां शिंदे और गृह सचिव अनिल गोस्वामी ने उनसे करीब एक घंटे तक बंद कमरे में बैठक की थी और वहां की स्थिति की समीक्षा की थी।
वहीं दूसरी ओर बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की विशेष बैठक बुलाई गई है जिसमें  पृथक तेलंगाना के मुद्दे पर चर्चा होगी। विशेष बैठक बुधवार की सुबह होगी लेकिन इसका एजंडा नहीं बताया गया है। कैबिनेट की नियमित बैठक गुरुवार को ही होगी।

अभी औपचारिकता पूरी होने में लगेगा छह महीने का वक्त
'केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में सिद्धांतत: इस संबंध में मंत्री समूह के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने की संभावना है।
'आंध्र प्रदेश राज्य विधायिका को भी अलग तेलंगाना राज्य के गठन को लेकर प्रस्ताव पारित करना होगा ।
'गृह मंत्रालय राज्य सरकार से मिले प्रस्ताव के आधार पर तेलंगाना के गठन के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल को नोट सौंपेगा। इस पूरी प्रक्रिया में कम से कम 40 दिन का समय लगेगा ।
'मंत्री समूह के सुझावों व सिफारिशों के आधार पर गृह मंत्रालय केंद्रीय मंत्रिमंडल के लिए एक अन्य नोट तैयार करेगा।
'इसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल से राज्य पुनर्गठन विधेयक पारित करने और राष्ट्रपति से इस विधेयक को राज्य विधायिका के लिए संदर्भित करने की सिफारिश करने का आग्रह किया जाएगा।
'इस बीच वित्त मंत्रालय एक विशेषज्ञ समिति का गठन करेगा, जो पुनर्गठित राज्य के लिए वित्तीय प्रबंधन व व्यावहारिकता को लेकर सुचारू  प्रक्रिया व उपाय सुझाएगा।
'दूसरी कैबिनेट बैठक के बाद प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफारिश करेंगे कि संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत मसौदा विधेयक को राज्य विधायिका के विचारार्थ भेजा जाए ताकि 30 दिन के भीतर उसका नजरिया आ सके।
'राज्य विधायिका की सिफारिशों को मसौदा विधेयक में शामिल किया जाएगा और इसकी समीक्षा कानून मंत्रालय करेगा। 
'फिर राज्य पुनर्गठन विधेयक के मसौदे को लेकर तीसरा नोट तैयार होगा और इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा ताकि विधेयक को संसद में पेश किया जा सके।
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/49689--29-

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