Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Monday, December 9, 2013

बाकी भारत में भी माकपा का सफाया,रज्जाक मोल्ला भी छुट्टी पर

बाकी भारत में भी माकपा का सफाया,रज्जाक मोल्ला भी छुट्टी पर


देश में संघ परिवार के क्या मुकाबला करें कामरेड,बंगाल में ही भाजपा का मुकाबला कर लें तो मानें!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास



हाल के विधानसभा चुनावों में माकपा के लिए बुरी खबर है कि बंगाल,केरल और असम के बाहर बाकी भारत में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए राजस्थान विधानसभा में उसके जो तीन विधायक थे,वे अब नहीं हैं। तीनों सीटें भाजपा से हारकर गवां दी माकपा ने।हालांकि माकपो को शर्म आयेगी नहीं।


हाल तो .यह है कि पश्चिम बंगाल में बुरा चुनाव परिणाम का सामना कर रही माकपा अन्य राज्यों भी सीट हासिल करने में असफल रही है। चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम में माकपा पूरी तरह से पस्त हो गयी है।  दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश में माकपा एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पायी है। इन राज्यों में कुल 51 सीटों पर माकपा ने उम्मीदवार खड़ा किया था.  इनमें से एक भी सीट पर माकपा जीत नहीं पायी है। कई सीटों पर माकपा उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गयी है। 2008 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में माकपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। माकपा ने राजस्थान के 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पायी। राजस्थान में चार बार के माकपा विधायक व माकपा केंद्रीय कमेटी के सदस्य आमरा राम भी इस चुनाव में पराजित हुए हैं। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में माकपा ने आठ सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन एक भी सीट नहीं जीत पायी। छत्तीसगढ़ में माकपा ने चार सीटों पर उम्मीदवार खड़ा किया था, लेकिन एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाये।


अपने आखिरी गढ़ हावड़ा में उसके मेयर ममता जायसवाल को भाजपा उम्मीदवार ने ही परास्त किया और हावड़ा नगर निगम चुनावों में भाजपा से माकपा आगे निकल नहीं पायी। बंगाल में माकपाई जनाधार की हालत यह है कि बहुत तेजी से भाजपा माकपा की जगह लेने लगी है।देश में संघ परिवार के क्या मुकाबला करें कामरेड,बंगाल में ही भाजपा का मुकाबला कर लें तो मानें।


गौरतलब है कि 2011 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद माकपा के शीर्ष नेतृत्व ने निर्णय किया था कि बंगाल के बाहर माकपा की शक्ति बढ़ानी होगी। राजस्थान व अन्य प्रदेशों में ज्यादा जोर दिया जायेगा,लेकिन परिणाम शून्य ही रहा है।


दिल्ली में माकपा ने तीन सीटों द्वारका, करावल नगर व शाहदरा से उम्मीदवार खड़ा किये थे, लेकिन इन तीनों सीटों पर माकपा की पराजय हुई है। सबसे निराशानजक बात यह है कि प्रत्येक सीट पर माकपा के उम्मीदवार प्रथम पांच उम्मीदवारों में भी स्थान नहीं बना पाये हैं, जबकि माकपा के महासचिव प्रकाश करात तथा पोलित ब्यूरो के सदस्य सीताराम येचुरी दोनों ही दिल्ली के वाशिंदा  हैं।


बंगाल के जिन मुसलमानों ने अपनी आंखों के तारा से ज्यादा मुहब्बत

और यकीन भारतीय वामपंथ पर न्यौच्छावर किया वे अब वाम संहारक ममता बनर्जी को नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए भारत का प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।


इससे बड़ी खबर तो यह है कि अब बंगाल में मोहम्मद सलीम के अलावा कोई दूसरा नेता अगर मुसलमान चेहरा बचा है तो वे बाकी बचे उलबेड़िया के पराजित सांसद हन्नान मोल्ला है।जिस हन्नान मोल्ला के साथ माकपा ने किसान सभा की कमान बंगाल के तेभागा मशहूर किसान नेता रेज्जाक अली मोल्ला को सौंपी थी,वे किनारे हो गये हैं।


गनीमत हैं कि रज्जाक ने औपचारिक तौर पर माकपा  छोड़ी नहीं है।बीमारी की वजह बताकर पार्टी से फिलहाल छुट्टी ले ली है।बीमार और बूढ़े कामरेडों को वामपंथ इतनी जल्दी छुट्टी पर नहीं भेजती।जिलों में अब भी अनेक बूढ़े और अतिशय बीमार कामरेड सचिव पद का कार्यभार ढोने के लिए मजबूर हैं क्योंकि उन्हें छुट्टी नहीं दी है पार्टी ने। याद करें कि कामरेड ज्योति बसु को प्रधानमंत्री न बनने देने वाली माकपा ने ही मुख्यमंत्रित्व से रिहाई के उनके अनुरोध को कितनी बार ठुकराया और अपनी आजादी के लिए कामरेड बसु को कितने पापड़ बेलने पड़े।


जाहिर है कि जबकि बंगाल समेत बाकी देश में मुसलमानों में माकपा की कोई साख बची नहीं है,ऐसे संगीन संकट काल में कामरेड रज्जाक अली मोल्ला को माकपा ने छुट्टी कैसे दे दी है।


वैसे कामरेड मोल्ला के बागी आईपीएस अफसर नजरुल इस्लाम के साथ मधुर संबंध बताये जाते हैं और दोनों के बीच लंबे समय से कुछ पक भी रहा है।वह खिचड़ी भी बहुत संभव है कि सलोकसभा चुनावों से पहले ही आम जनता को परोस दी जाने वाली है।सब्र कीजिये और इंतजार भी।


गौरतलब है कि कामरेड रज्जाक मोल्ला विधानसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद जनाधार वापसी के लिए सांगठनिक कवायद के तहत एकाधिकारवादी वर्चस्व तोड़ने और नेतृत्व में सभी समुदायों के नये चेहरों को सामने लाने की पेशकश की थी,जिसे पार्टी नेतृत्व ने पत्रपाठ खारिज कर दिया।अब पार्टी नेतृत्व और संगठन दोनों से मोहभंग के बाद मोल्ला नई राह बनाने के पिराक में हैं और इसीलिए य़ह अवकाश।


जाहिर है कि सरद्रद का सबब बन गये मोल्ला से छूटकारा पाने का इस नायाब मौके को कामरेडों ने यूं ही जाने नहीं दिया।


अब सवाल है कि ईमानदार कामरेडों से छूटकारा पाने वाली माकपा को आम जनता भी छूटकारा देने में कोई कोताही नहीं बरत रही।






No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors