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Tuesday, December 30, 2014

किसके अच्छे दिन! जिसके अच्छे दिन,वह मनायें जश्न! नीला आसमान से बहता लावा कि पकी हुई जमीन दहकने लगी,प्लीज हमसे ना कहें नया साल मुबारक! पलाश विश्वास


किसके अच्छे दिन!
जिसके अच्छे दिन,वह मनायें जश्न!
नीला आसमान से बहता लावा कि पकी हुई जमीन दहकने लगी,प्लीज हमसे ना कहें नया साल मुबारक!

पलाश विश्वास
भारत में अब अबाध विदेशी पूंजी के लिए,अबाध बिल्डर प्रोमोटर राज के लिए अब फिर वही 1884 के भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधान लागू करने का इंतजाम हो गया है।

नया साल शुरु होने से दो दिन पहले भारत में फिर ईस्ट इंडिया कंपनी का राजकाज शुरु हो गया है,एक मुश्त हजारों ईस्ट इंडिया कंपनियों की अरबों डालर के वर्चस्व मध्ये हवाओं,पानियों में भोपाल गैस त्रासदी दुहराया जाने लगा है।

और अब इसे अध्यादेश राज कहा जायेगा।कि नरसंहार जारी रहेगा।

कि मनुस्मृति का गीता महोत्सव और शत प्रतिशत हिंदुत्व का दुस्समय है यह अपना समय कि नया साल मुबारक कहने का मतलब हुआ,आपके चौतरफा सर्वनाश के लिए शुभकामनाएं।

कृपया किसी से न कहें नया साल मुबारक।
खत्म हो रही इंसानियत कि कयामत है
खत्म होने को कायनात कि कयामत है
फिजां में मौत की खुशबुओं
की बहार है कि कयामत है
लहूलुहान है जिस्म न सही
लहूलुहान है रुह हमारी

हमसे जिस्मानी मोहब्बत
की उम्मीद मत रख
कि हमारी मर्दानगी
मर्दों के राजकाज में
कत्लगाहों की मौज है

और खूबसूरतियां तमाम
बर्बर कातिलों के कब्जे में
दम तोड़ रही है

हम जी नहीं रहे हैं हरगिज
हमारी मुकम्मल खामोशी
हमारे जनाजे के इंतजार में है
बेहया वक्त के ताबूत में कैद हैं हम

नये कंपनी बंदोबस्त के अध्यादेश में खासोआम को खबर हो कि मुलाहिजा फरमाये हुक्म है शाही हिंदू साम्राज्यवादी केसरिया कहर का,जमीन डकैती के लिए किसी की न सुनवाई होगी न नियमागिरि के आदिवासियों को तरह किसी को राय बताने की छूट होगी।
कि जो है धर्मराज्य के हक में,उसका भी काम तमाम है
कि जो इस महाभारत में गीतोपदेश के मुताबिक निमित्तमात्र भारतीय धर्मोन्मादी जनगण है,उसका भी काम तमाम है

हर गैरनस्ली हिंदू कि गैर हिंदू,सवर्ण कि अछूत,बूझै हैं कि न बूझै,
सगरे मुलुक के लिए प्रजाजनों, मौत का पैगाम है
अश्वमेध के घोड़े हुए बेलगाम,सांढडों का राज है

त्वाडे नाल राज के वास्ते जिंदा जला देने का पैगाम है कि धर्म और धर्मस्थलकि मजहब और जात पांत नस्ल कातिल के बहाने हैं
त्वाड्डा साड्डा काम तमाम है

मुआवजा जरुर सरकारी हिसाब के मुताबिक दे दिया जायेगा।मुआवजा हर वक्त बांटा जाता है।हर विस्थापनका वायदा फिर मुआवजा है।कि हर बलात्कार का जश्न अब मुआवजा है और हर कत्ल का मुआवजा अब माफीनामा है।
कि अपने अपने घर खाली कर दो, दोस्तों
कि कातिलों को बसेरा चाहिए।

सीमेंट के जंगल में
अपना ठिकाना तलाशों दोस्तों
कि खेतों खलिहानों
रोजी रोटी की मौत का
चाकचौबंद बंदोबस्त है
कि मनुस्मृति राज बहाल है।

लूट के माल का हिस्सा उम्मीद है तो
बेशक खामोशी अख्तियार करो, दोस्तों
वरना चीख सको तो चीखो गला फाड़कर
कि फिर चीखने का मौका मिल न मिले

कयामत मुंह बाँए खड़ी है कि
अबकी तो मुलाकाते हैं
जश्न है,जलवा भी है
रोजी भी है,रोटी भी है
फिर अपना गांव रहे न रहे

फिर मुलाकात हो न हो
हो सके तो मिल लो गले
शायद आखिरीबार
कि किन हादसों के मंजर से
गुजरना पड़े,न जिंदगी का ठौर ठिकाना है

न हम अस्मत किसी की बचाने काबिल
न हमारा कोई फसाना है

उम्मीद फिर वही हरजाना है
खालिस हरजाना है
जीने का फिर वही बहाना है

मजहबी अंधे जो करें, न करें कम है
कब किस इमारत पर टोंके दावा
किसे फिर तबाह कर दे
कब किसे बांटे रेवड़ियां
और कब किस शहर में आग लगा दें

यह देश अब मजहबी आग के हवाले हैं
और हम सारे लोग जनाजे में शामिल है
मोहर्रम पर ईद मुबारक न कहें


बिल्कुल सही लिखा है अभिषेक श्रीवास्तव नेः

सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति हत्‍याकांड में अमित शाह बरी हो गए। तो? जब बरी नहीं हुए थे, अभियुक्‍त थे, तब भी कौन सी कीमत उन्‍होंने चुकायी थी? वे तो उलटे सियासी सीढि़यां चढ़ते गए, साहेब के साथ-साथ। यही दोनों क्‍यों, कुल 186 लोकसभा सांसदों के खिलाफ क्रिमिनल मुकदमे चल रहे हैं। अमित शाह भले जनप्रतिनिधि न हों, साहेब के मैनेजर हों, लेकिन बीजेपी के कुल सांसदों में से एक-तिहाई के खिलाफ़ तो आपराधिक मुकदमा दर्ज ही है। तो क्‍या हुआ? जनता ने उन्‍हें चुनकर भेजा है, अब चाहे जै फीसदी जनता हो। मतलब कि हत्‍या, लूट, सेंधमारी, बलात्‍कार, छिनैती, डकैती, दंगा, नरसंहार, धोखाधड़ी आदि से लोग अपने उम्‍मीदवार को नहीं तौलते।
ठीक है। अपना काम-वाम करवाने के मामले में पार्षद-विधायक को चुनने तक तो बात समझ में आती है, लेकिन आम चुनाव में लोग वोट क्‍यों देते हैं? एक अपराधी को सांसद बनने से रोककर लोग अपराधबोध से आसानी से बच सकते थे, खासकर इसलिए भी कि सांसद लोगों का काम सीधे नहीं करवाता। जिसकी कोई उपयोगिता ही नहीं, तिस पर वो अपराधी भी है, उसे वोट देकर अपने हाथ गंदे क्‍यों करना। लोकसभा चुनाव में लोगों ने मोदी को चुना, तभी तो बिना चुना हुआ शाह नाम का आदमी नत्‍थी होकर यहां तक आ गया और बरी हो गया!
मेरा सवाल है: आम चुनाव में लोग वोट क्‍यों देते हैं? क्‍या जनता का काम करने/करवाने के लिए वास्‍तव में किसी राष्‍ट्रीय सरकार की ज़रूरत है? इस पर कम से कम दो बार सोचिएगा।


भारत में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन से मुख्यमंत्री बनीं एकमात्र राजनेता ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ मोर्चा जरुर जमाया है और सुधारों की महागंगा कांग्रेस भी अब सुधार विरोधी उल्टी दिशा में बहने का दिखावा कर रही है।लेकिन जब तक धर्मोन्माद का यह तिलिस्म खत्म नहीं होता,लगता नहीं कि यह कायमत रुकने वाली है।

The Centre's recommendation for promulgation of an ordinance to amend the Land Acquisition Act came under a stinging attack today from West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee, who termed the decision as "black" and "unjust" and said her party would fight against it.
"We will fight against the 'black' and 'unjust' ordinance on land acquisition by burning symbolic copies of it," Banerjee, Trinamool Congress supremo, said addressing a party workers' meeting here.
"The central government has 'forcefully' brought an ordinance on land acquisition. The country is going through a dangerous phase due to the BJP government," she said. She also referred to the Centre's plan to stop '100 Days work' programme in a bid to sell the country by bringing in FDI in insurance and defence.


कारपोरेट वकील वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अधिनियम में बदलाव लाने के सरकार के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा, इस तरह की परियोजनाएं रक्षा के लिए तैयारी एवं रक्षा निर्माण सहित भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। सहमति संबंधी उपधारा के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा, अगर भूमि अधिग्रहण पांच उद्देश्यों के लिए किया जाता है तो सहमति की उपधारा से छूट मिल जाएगी। संप्रग के कार्यकाल में अमल में आए कानून के मुताबिक पीपीपी परियोजनाओं के लिए जिन लोगों की भूमि अधिग्रहित की जा रही है, उनमें 70 फीसदी लोगों की सहमति जरूरी है।
इस फैसले के साथ पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन तथा उचित मुआवजे का अधिकार और पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन अधिनियम-2013 में पारदर्शिता 13 मौजूदा केंद्रीय कानूनों के लिए भी लागू होगी। सरकार ने कहा कि जिन मुश्किलों की बात आ रही थी, उनको देखते हुए कैबिनेट ने कुछ संशोधनों को मंजूरी दी है।


जब मौत सर पर मंडरा रही हो तो कातिलों के लिए जश्न का मौका होता है,मारे जाने वालों की चीखें तक निषिद्ध हो जाती हैं।

अब इस केसरिया हिंदू साम्राज्य में चीखने,रोने और पुकारने की भी आजादी नहीं है।

नया साल इसके बावजूद मुबारक हो तो मनाइये जश्न बाशौक।

कृपया हमें न कहें,या हमरी दीवाल पर हरगिज न टांगें नया साल मुबारक।

किसके अच्छे दिन!

जिसके अच्छे दिन,वह मनायें जश्न!

बाकी देश के लिए तो मंजर कयामत है।

फिजां कयामत है।

जिंदगी का दूसरा नाम कयामत है।

नया साल फिर फिर कयामत का इंतहा है।

नीला आसमान से बहता लावा कि पकी हुई जमीन दहकने लगी,हमसे कोई न  कहें नया साल मुबारक!

मेरे बचपन से लेकर डीएसबी तक के सफर में शामिल दीप्ति के पांव हमारे डेरे में पहली दफा पड़ें।कल घर में संगीत सभा जैसी समां थी।

सविता के संगीत गिरोह नें दीप्ति और उसके बेटे द्विजेंद्र लाल को घरकर रवींद्र,नजरुल, द्विजेंद्र,लोक से लेकर सूफी संगीत की नदियां बहा दीं।

दीप्ति और हमारे दौरान किसी संवाद की गुंजाइश भी कायदे से बन नहीं सकी।करीब एक दशक बाद मिले हम।

मैं दिनभर अपने पीसी के सामने बैठे लिखता रहा और कानों में उनके संगीत को देखता रहा।

दीप्ति के साथ हमारी संगत के बारे में लिखा नहीं है अबतक ।

कोई संदर्भ नहीं मिला।

उसकी और हमारी दुनिया हमेशा अलहदा जुदा जुदा रही है।

वह हमेशा बचपन से संगीत में निष्णात है और उसका पूरा परिवार संगीतबद्ध है जबकि मैं हद दर्जे का बेसुरा हूं।

मेरे भाई सुभाष और मेरी दीदी मीरा,बहन वीणा और सविता सुर साधने वाले आस पास रहे हैं।घर में संगीत शिक्षक भी बचपन में ब्रजेन मास्टर थे,लेकिन मुझमें सरगम साधने का धीरज कभी नहीं बना।

कहीं कोई बिंदू होती अगल बगल तो हम भी भोलू बनने की शायद कोशिश भी कर लेते।

हम तो अब सविताबाबू के हवाले हैं,जिनके सुर ताल पर नाचखूबै नाच्यौ।अब अधबीच लेखन उठाकर ले गयी दुकान कि कंबल खरीदना है,हमें जो विदर्भ जाना है और सर्दियां सनसनाती हुई हैं।

अब पहले जैसा पोयटिक मामला जमेगा अब नहीं।अब विशुद्ध गद्य है।चस्मा और मफलर खोने के बाद अग्रिम चेतावनी मिली है कि कंबल कहीं छोड़ न आउं।

इस व्यवधान के लिए खेद है।यू समझ लीजिये कि कामर्शियल ब्रेक है।

बहरहाल किस्सा यह है कि दीप्ति हमेशा संगीतकारों के साथ तो मैं हमेशा बेसुरा लोगों की सोहबत में,जो गाते कम,चीखते ज्यादा हैं,उनमें से अकेले गिरदा ही विरले थे,जिनके सुर ताल बेहद सधे रहते थे,जिसकी समझ मुझे आज भी नहीं है।

अब तो सारे के सारे लोग सुर साधे दीखते हैं।सारे लोग जश्न में ताल पर ठुमके लगाये दीखे हैं।गिरदा गैंग तो शायद नैनीताल में भी न हो अब कहीं,पहाड़ में कुछ बचा खुचा है कि नहीं,केदार जलआपदा में वे भी कहीं डूब में शामिल हो गये या नहीं,पत्त नी।

बलि,चीखने चिल्लाने वाले लोग अब इस हिंदुस्तान मे मारे डर के पीके हो गये ठैरे।जी,वही सेंसर का झमेला।डीएक्टीवेट कर दिये जाने का सिलसिला कि बलि जिंदड़ी डिलीट ठैरी।

डीएसबी पहुंचने के बाद भी बंगाल होटल में  दीप्ति और हरेकृष्ण और कपिलेश भोज बारी बारी से मेरे रूम पार्टनर रहे हैं।सीनियर कालीपद मंडल भी हमारे साथ साल भर थे।लेकिन तब हम गिरदा के गैंग में शामिल हो गये और दीप्ति संगीत समारोहों,कार्यक्रमों में ही फंसा रहा और अब भी वह रूद्रपुर में संगीत शिक्षक है।उस जमाने में डा.डैंग का अता पता नहीं था।

जीआईसी में हमारे तमाम मित्र कामन थे।

हरीश मिश्रा,किरण अमरोही,निरंकार आल सेंटस,सेंटजोजफ्स लेकर नैनीताल की संगीत सभाओं से जुड़े लोग हमारा मित्रमंडल में थे तब।

दीप्ति अब भी उसी दुनिया में मस्त है।

हमारी दुनिया डीएसबी से जो बदल गयी,वह लेकिन फिर बदली नहीं है।न बदले,मरते दम यही कोशिश रहेगी।

ताराचंद्र त्रिपाठी,आनंदस्वरुप वर्मा,पंकज बिष्ट,वीरेन डंगवाल, शेखर ,गिरदा, राजीवदाज्यू, पवनराकेश, हरुआ दाढ़ी, विपिनचाचा, जागनाथज्यू, नवीन, कमल जोशी,राजीवनयन बहुगुणा,पीसी माइनस प्रदीप टमटा,कपिलेश भोज, बटरोही, फ्रेडरेक स्मेटचेक,शमशेरदाज्यू, निर्मल,जहूर, महेशदाज्यू,उमा भाभी, चंद्रेश शास्त्री से लेकर जो दिवंगत अब भी जीवित लोगों की टीम युगमंच पहाड़ और नैनीताल समाचार की है,आखिरतक मेरी पहचान वही है,वजूद भी वहीं।बाकी हमारी गुलामी की दास्तां है।

मुझे खुशी है कि  दीप्ति भी संगीतबद्ध बना हुआ है अब भी। बाकी किसी धंधे में है नहीं वह।वह उतना ही सरल सीधा है,जैसा बचपन में हुआ करता था।

बाईपास सर्जरी हो गयी।न्यूरोटिक प्राब्लम है,कदम कदम चलेने मेंतकलीफ है।घुटने की हड्डियां गायब है दुर्घटना के कारण।

फिर भी दिल वही बेकरार है।जवानी दीवानी अब भी उतनी ही। अब भी उतना ही जिंदादिल।जैसे बचपन में वह मेरी ऊर्जा का स्रोत था,ठीक वैसा ही साबूत है।हालांकि उसने कहा नहीं कि फिर वही दिल लाया हूं।

अपने दोस्त को मुश्किलों के पार आग की दरिया का सफर तय कर लेते देखना भारत रत्न पुरस्कार से बड़ी उपलब्धि है शायद।

दीप्ति से घोड़े पर सवार आते जाते बरसों से मुलाकात न होने के बाद हुई मुलाकात से जैसे कोई अनबंधी नदी, जैसे कोई पवित्र फल्गुधार स्वरग से पाताल तक बह निकली और इस नश्वर मर्त्य में फिर हम जात्रा में अभिनय करने मंच पर उतरने ही वाले हों।और तालियों की गड़गड़ाहट का बस इंतजार ही बाकी हो।

मुझे और खुशी है कि दीप्ति का बेटा द्विजेंद्र लाल,जो मशहूर बांग्ला गीतकार डीएल राय के नाम है,संगीत से एमए कर रहा है और बेहतरीन म्युजिक एरेंजमेंट का मास्टर है।

उसने मुझे हैरत में डाला ,जब उसने कहा कि वह मेरा फेसबुकिया मित्र भी है।

कल सूफी संगीत से वह सविता के सुरगिरोह को मंत्रमुग्ध कर गया।


नये साल से ठीक दो दिन पहले आर्डिनेंस राज बहाल हो गया है।यह कोई मुझ जैसे नाचीज का मंतव्य नहीं है।

तमाम विशेषज्ञ जिस इकोनामिक टाइम्स के पन्नों पर भारतीय अर्थव्यवश्ता में दौड़ते सांढ़ों की नब्ज टटोलते रहते हैं,उस अखबार की चीखती हुई सुर्खियां बता रही हैं कि दरअसल नया साल किस तबके के लिए बेहद बेहद मुबारक होने वाला है।
Ordinance Raj Begins, 2 Days Ahead of 2015
ईटी ब्यूरो की खबर पर गौर करेंः
Eager to prove it means business, Modi Sarkar rolls out a slew of ordinances to ensure doing business becomes a breeze. And FM Arun Jaitley seeks a helping hand in this quest from RBI Guv Raghuram Rajan
Land Acquisitions can Now be Accelerated
The Narendra Modi government made good on its pledge to amend the land acquisition law, often accused of having brought development to a grinding halt, by unveiling an ordinance that will drastically free up the process in areas such as defence, rural infrastructure and industrial corridors.
This was one of two ordinances proposed on Monday and follows such moves on coal and insurance last week, making it clear that the government is determined to push ahead with policy changes through emergency decrees and won't let the lack of numbers in the Rajya Sabha stand in its way. More such measures are expected, including one to alter legislation on mining. The ordinance to amend the Right to Fair Compensation and Transparency in Rehabilitation and Resettlement Act, 2013, which came into force on January 1, has to be approved by President Pranab Mukherjee.
लब्बोलुआब यह कि केंद्र सरकार ने आज भूमि अधिग्रहण संशोधन अध्यादेश को मंजूरी दे दी। इस अध्यादेश के तहत सरकार ने ज़मीन अधिग्रहण की मौजूदा शर्तों में ढील देते हुए काफी आसान बना दिया है।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आज बताया कि कैबिनेट ने इस अध्यादेश को मंज़ूरी दी है। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह लागू हो जाएगा।

इसके तहत किफ़ायती दरों पर घर बनाने, रक्षा परियोजनाओं के इस्तेमाल के लिए, औद्योगिक कॉरिडोर बनाने, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप और गांवों में बुनियादी ढांचे के विकास के मकसद से होने वाले भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बना दिया गया, जबकि मुआवजे की दर ऊंची रखी गई जाएगी, ताकि दूसरे पक्ष को आर्थिक नुकसान नहीं हो।
हमारे पाठकों को याद होगा कि भूमि अधिग्हण की इन तैयारियों के बारे में हमने पूरा ब्यौरा हस्तक्षेप पर कई दिनों पहले लगाया है,ईटी ने हमारी आशंकाओं पर मुहर ठोंक दिया है।हमने वह आलेख अंग्रेजी में लिखा था।

बहराहाल,वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बता दिया है  कि सरकार ने बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाने के उद्देश्य से भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन का अध्यादेश लाने का फैसला किया है।

वित्मंत्री गरीब गुरबों और बेगर लोगों को सब्जबाग यह दिखा रहें है कि जैसे लाकों करोड़ों के  प्लैटों की खैरात बंटने वाली है।उनके कहे मुताबिक इस निर्णय से दिल्ली में रहने वाले 60 लाख से अधिक लोगों को फायदा होगा। सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में अनधिकृत कालोनियों में सीलिंग पर तीन साल के लिए रोक लगाने से जुडे विधेयक को भी पारित कराया था। उन्होंने कहा कि किसानों को मुआवजे से जुडे प्रावधानों में कोई संशोधन नहीं किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में केंद्रीय कैबिनेट ने अधिनियम के दायरे में 13 केंद्रीय कानूनों को लाने के लिए संशोधन का फैसला किया है। जिन कानूनों में बदलाव की बात की गई, उनमें रक्षा एवं राष्ट्रीय सुरक्षा, किसानों को अधिक मुआवजा प्रदान करना और पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन से संबंधित कानून शामिल हैं।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि सरकार ने समाज की विकास संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अधिनियम के कुछ प्रावधानों में रियायत देने और कानून में धारा 10ए को शामिल करने का फैसला किया है।
उन्होंने कहा कि अगर भूमि का अधिग्रहण पांच उद्देश्यों सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना, औद्योगिक कोरिडोर और सामाजिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए होता है तो वहां अनिवार्य 'सहमति' की उपधारा और सामाजिक प्रभाव आकलन (एसआईए) लागू नहीं होगा।
बहरहाल, इन उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण करने की स्थिति में नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत मुआवजा और पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन पैकेज लागू होगा। अध्यादेश में जो बदलाव शामिल किए जाने हैं, उनके मुताबिक बहुफसली सिंचाई की भूमि भी इन उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित की जा सकती है।
बसंतीपुर की इतिकथा

दीप्ति का गांंव पंचानननपुर और उसके बगल का गांव उदयनगर के साथ बसंतीपुर का जन्म हुआ था।1956 में।हमारे सारे  लोग विजयनगर के शरणार्थी तंबुओं में त्रिशंकु हालात में थे।दिनेशपुर के बाकी तैतीस गांव 1952  और 1954 के बीच बस गये थे।

1956 में जिन शरणार्थियों का पुनर्वास नहीं हुआ,उनके पुनर्वास और स्कूल, अस्पताल, आईटीआई जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग लेकर शरणार्थियों का हुजूम जुलूस निकाल कर नौ मील पैदल चलकर बीच घनघोर तराई के जंगल रुद्रपुर जा पहुंचा।

तराई बंगाली उद्बास्तु कमिटी के तत्वाधान में उसके नेता अध्यक्ष पौंड्र क्षत्रिय समुदाय के सुंदरपुर गांव के राधाकांत बाबू और बिन गांव के नमोशूद्र पुलिनबाबू की अगुवाई में उनने ढिमरी ब्लाक से भी पहले तराई के जंगल में पहले जनांदोलन का अलख जलाया।

तब महिलाओं का नेतृत्व कर रही थीं फूलझूरी मंडल जिनके बेटे श्रीकृष्ण और रामकृष्ण मेरे सहपाठी रहे हैं।फूलझूरी भी दिवंगत हैं।

उन आंदोलनकारियों को उठाकर तब बाघों के जंगल किलाखेेड़ा में ट्रकों में ले जाकर फेंक दिया गया था,लेकिन आंदोलन की लहर रुकी नहीं और हमारे उन पुरखों की नियामत आज का दिनेशपुर है।

मेरे दीप्ति,हरेकृष्ण,टेक्का, सुधीर जैसे हमारे तमाम दोस्तों और हमारे जनम से पहले निकले उस जुलूस में तराई के तमाम स्त्री पुरुष,बच्चे बूढ़े शामिल थे,जिसके चश्मदीद अब बिरंची पद राय,कार्तिक साना,सुधाकांत राहा,पीयूष विश्वास,रोहिताश्व मल्लिक और शायद राधाकांत बाबू के भाई हेमनाथ जैसे इन गिने लोग ही जिंदा हैं।

आलम तो यह है कि अभी एमएलए रहे दो दो बार हमारे भाई प्रेमानंद महाजन,जिनके भाई नारायण महाजन दिनेशपुर हाईस्कूल से हमारे दोस्त रहे हैं हालतक।नारायण को रुद्रपुर में हमने फोन पर बुलाया उनकी छोटी बहन के घर से,वे न आये और न उनने दोबारा फोन किया।सविता साथ थी,उसे भी झटका लगा।

उनकी बहन और बहनोई पंचाननपुर के गांव के ही थे और बहनोई पुलिन गोलदार हमारे खासमखास रहे हैं जबकि उनके पिता मेरे पिता के खास दोस्त रहे हैं।

उनके घर में नदियां पार करके मेला देखने और दूसरे तमाम मामूली से मामूली वजह से हम बचपन में चले जाया करते थे।

एमएलए होने के बाद वे प्रेमानंद महाजन हमें पहचानने से इंकार कर रहे हैं।जबकि उत्तराखंड विधानसभा और मंत्रिमंडल में अनेक मंत्री हमारे पुरातन मित्र हैं।

एमएलए होने के बाद वे प्रेमानंद महाजन हमें पहचानने से इंकार कर रहे हैं।जबकि प्रदीप टमटा खास दोस्त हैं।काशी सिंह ऐरी भी।महेंद्र सिंह पाल दाज्यू सीनियर हैं,जबभी मिलते हैं बहुत ही प्यार से मिलते हैं। वयोवृद्ध नारायण दत्त तिवारी भी हमें पहचानने से इंकार नहीं करते हैं।केसी पंत की बात अलग थी।हम तो डूंगर सिंह बिष्ट,इंदिरा हरदयेश और प्रताप भैया को देखते रहे हैं।

मुख्यमंत्री हरीश रावत से हमारा कोी परिचय नहीं है और न किशोरी उपाध्याय हमें जान रहे थे।वे हमारे दाज्यू राजीवनयन बहुगुणा और शमशेर दाज्यू के मित्र हैं और मेरे दावे का उनने खंडन नहीं किया है।

इसलिए दीप्ति का मेरे घर इस तरह बरसना उस झटकेदार अनुभव से जिसके साथ दो परिवारों के करीब छह दशक की मित्रता कुर्बान हो गयी,बेहद सुखद है जैसे बेमौसम नैनीताल में हिमपात है।

हरेकृष्ण सुंदरपुर गांव के हैं और उस गांव के बच्चे बच्चे के साथ हमारी दोस्ती रही है सत्तर अस्सी के दशक में। तो बाकी तमाम गांवों का,बंगाली गांवों का ही नहीं,ढिमरी ब्लाक के तमाम सिखों,पहाड़ियों, बुक्सा,पूरबियों के गांवों के हर परिवार के परिजन की हैसियत से में उनमें शामिल रहा हूं मैं।

हमारे प्यार और वजूद का ,हमारे साझा चूल्हे का सिलसिला लेकिन उसी 1956 के आंदोलन के साथ शुरु हुआ।उस साझे चूल्हे की विरासत भूल रहे हैं लोग।जैसा बाकी देश में हो रहा है।

1956 के शरणार्थी आंदोलन और ढिमरी ब्लाक आंदोलन के वक्त भी बरेली के पीटीआई और पायोनियर के संवाददाता मुखर्जी दादा यानी एन एम मुखर्जी  के अलावा आस पास के जिलों में कोई पत्रकार थे नहीं।मुखर्जी दादा पिताजी के घनघोर मित्र थे जो तजिंदगी उनके साथ रहे। बरेली में अमरउजाला दौर में उनके परिजनों से भी हमारी मुलाकात हो गयी थी।नैनीताल के कामरेड हरीश ढौंढियाल और बरेली के एनएम मुखर्जी पिता के खास दोस्त रहे हैं।

हमारे घर सारे कागजात हमने पीटीआई के लिफाफे में देखे हैं,इतना घना रहा है वह रिश्ता।

पीटीआई से हमारा उम्रभर का साथ भी उसी रिश्ते की वजह से हुआ कि नहीं कहना मुश्किल है।

1956 के आंदोलन की वजह से बसंतीपुर,पंचाननपुर औक उदयनगर के गांव बने।स्कूल,अस्पताल,पशु चिकितच्सालय,आईटीआई बने।जिनमें से नारायण दत्त तिवारी ने अपने दिवंगत दर्जामंत्री चित्तरंजन राहा के नाम इंटर कालेज और अब हरीश रावत ने पिता पुलिनबाबू के नाम अस्पताल कर दिये।

शायद आगे राधाकांत बाबू और हरिपद विश्वास को भी याद करें लोग।जो हमारे पिता के कामरेड थे,जिनने तराई के किसानों की जमीन की लड़ाई लड़ी।

आज भूमि अधिग्रहण आर्डिनेंस से जो मेरे दिलोदिमाग में रक्तपात हो रहा है,उसमें मतुआ आंदोलन के जख्मी लहूलुहान हो जाने का अहसास जितना है,उससे ज्यादा तकलीफ हमारे आदिवासी परिजनों और पुरखों की हजारों साल की लड़ाइयां बेकार हो जाने की वजह से है।तमाम किसान आंदोलनों को गैरप्रासंगिक बना दिये जाने की वजह से है।1956 और 1958 की तराई की लड़ाइयां,ढठे और सातवें दशक के सारे जनांदोलनों के बेमतलब हो जाने का मातम मना रहा हूं मैं।

अब भूमि अधिग्रहण अबाध है।
अब विदेशी पूंजी और कालाधन अबाध है।यही है गीता महोत्सव।
यही है नये साल के जश्न का मतलब।

किसी की सुनवाई,किसी की सम्मति की कोई जरुरत नहीं है।

नियमागिरि की आदिवासी पंचायतों की राय अब बेमतलब है।

बेमतलब है,संविधान की पांचवीं और छठीं अनुसूचियां,वनाधिकार कानून,पंचायती राज कानून ,पर्यावरण कानून,समुद्र तट सुरक्षा कानून वगेैरह वगैरह।

1956 के बाद पुनर्वास के बावजूद बेदखल जमीन का दखल हासिल करने की  मेरे गांव के लोगों,मेरे पिता, बसंतीपुर में मेरे दोस्त कृष्णो के पिता गांव के शाश्वत प्रेसीडेंट मांदार बाबू,शाश्वत सेक्रेटरी अतुल शील और शाश्वत कैशियर शिशुवर मंडल की लड़ाई के बेमतलब हो जाने का दर्द है।
अब शायद,शायद बसंतीपुर को मैं बचा नहीं सकता।यह आशंका होने लगी है।

दिनेशपुर बेदखल है,तराई बेदखल है,उत्तराखंड बेदखल है।देश बेदखल हैं।

मैं असहाय देखता ही रहा।

अब मैं अपने गांव बसंतीपुर को बचा नहीं सकता।
शायद मेरा मिशन फेल हो गया है।
शायद मैं मर ही गया हूं।

दिल्ली में कड़कती सर्दियों में वे लोग खून जमा देने लवाली सर्दियों में श्मशान घाट में मुर्दों के साथ रात काटते हुए भी आखिरकार बसंतीपुर गांव मुकम्मल बसाने में कामयाब रहे। जिनमें मेरे पिता तो कमीज वगैरह भी नहीं पहनते थे।

सिर्फ गांधी की तरह धोती लपेटे पुलिन बाबू प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंच जाते थे और उसी तरह हमारे डीएसबी कालेज और हम जिन अखबारों में काम करते रहे,खासकर  आवाज, प्रभात खबर,जागरण और अमर उजाला संपादकीय में भी वे जब तब दाखिल होचाते थे।नैनीताल समाचार में तो मेरी गैरहाजिरी में भी तजिंदगी वे आते जाते रहे हैं।जनसत्ता तक हालांकि वे कभी नहीं पहुंचे।

बसंतीपुर सिर्फ गांव नहीं है,सिर्फ रूपक नहीं है,जमीन के हक हकूक की लड़ाई का जीता जागता दस्तावेज भी है बसंतीपुर,जिसमें साझा चूल्हे की गर्मी और रोशनी दोनों है।


फिरभी उम्मीद है। वह साझा चूल्हा सलामत रहा तो हमारी मौत के बावजूद जिंदा रहेगा बसंतीपुर,जैसे वरदाकांत मंडल,हरि ढाली,मांदार मंडल,ललित गुसाई,राामेश्वर ढाली,चेचान मंडल,भुवन चक्रवर्ती,विष्णुपद दास,दुर्गापद अधिकारी ,गौरांग मंडल,अतुल शील,निवारण विश्वास,भोलानाथ मंडल,गणेश मंडल,निबारण साना जेसे पुलिनबाबू के साथियों के निधन के बावजूद.उनके बाद की पूरी एक पीढ़ी में सिर्फ कार्तिक साना,विधू अधिकारी और पुलिन गायेन के बचे रहने और हमारी पीढ़ी के सभापति मेरे हमदम मेरे दोस्त कृष्णो के असवान के बावजूद भी बचा हुआ है बसंतीपुर।

दीप्ति सुंदर मल्लिक का नाम स्कूल कालेज में दीप्ति सुंदर रहा है सिर्फ और लोग इस नाम से उसे अक्सर लड़की समझते रहे हैं और हम बचपन से इसका मजा भी लेते रहे हैं।

जात्रा में वह नारी पात्रों के लिए अभिनय करता रहा है।मैं हीरो हुआ तो हिरोइन का रोल उसका होता रहा है।इस चमत्कार से तो जीआईसी में दाखिला के वक्त हमारे गुरुजी दिवंगत हरीशचंद्र सती भी चकमा खा गये।बोले,यहां लड़कियों का एडमिशन नहीं होता।

दीप्ति को उठकर खड़ा होकर स्पष्ट करना पड़ा कि वह लड़की नहीं है।

वह बेहतरीन बाल कलाकार रहा है।लोक उत्सवों में वह बचपन से तराई में मुख्य आकर्षण रहा है।

बसंतीपुर,पंचानन पुर और उदयनगर के संबंध गर्भनाल का संबंध रहा है।इन गांवों के हर परिवार से हर परिवार का रिश्ता रहा है।

इसे यूं समझिये कि विवाह के बाद परंपरागत द्विरागमन की रस्म सविता और मैंने दीप्ति के घर पंचाननपुर में निभाय़ी थी,उसके मायके बिजनौर में नहीं।

सर्दी इतनी कड़क हो गयी है कि सारा देश शुतूरमुर्ग है

सिनेमा कानून बदल रहा है।सारे बागी ईमेल आईडी डीएक्टिवेट कर दिये जायेंगे।फेसबुक दीवाल पर रोने चीखने से इस गैस चैंबर की दीवाले नहीं टूटने वाली है।सर्दी इतनी कड़क हो गयी है कि सारा देश शुतूरमुर्ग है और कोई कहीं अपने दड़बे से निकलकर सड़क पर नहीं उतरने वाला है।केसरिया उन्माद निरंकुश है।

पाकिस्तान से आये सिखों और हिंदुओं को महज नागरिकता,पूर्वी बंगाल के विभाजन पीड़ित हिंदू 15 अगस्त , 1947 से बेनागरिक लेकिन अपने ही देश में  विस्थापित कश्मीरी पंडितों को न सिर्फ  चालीस चालीस लाख के प्लेट बांटे जा रहे हैं,न सिर्फ उनके पुनर्वास के लिए पांच सौ करोड़ एक मुश्त ,कश्मीर घाटी में  तीन फीसद तक ठहरी मोदी सुनामी को कश्मीरी पंडितो की सरकार में बदलने के लिए कश्मीर को बांग्लादेश बनाने में लगी है भारत की शत प्रतिशत हिंदुत्व की सरकार।

ऐसे में पिछले दिनों कश्मीर पर बेहतरीन रपटे मेरे अखबार जनसत्ता के लिए लिखने वाले  हमारे सनातन परम मित्र उकर्मिलेश ने अपनी दीवाल पर लिखा हैः

किसके अच्छे दिन!
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'सुशासन और विकास के माडल-गुजरात' के अहमदाबाद सहित कई शहरों में जिस तरह भगवाधारियों की फौज ने 'पीके' दिखा रहे सिनेमा हालों पर धावा बोला, हिंसा और तोड़ फोड़ की, क्या यही सब है, 'अच्छे दिन' लाने की तैयारी? फिर तो वे 'बुरे दिन' ही ठीक हैं, भाई। यूपी में हर समय कहींं न कहीं दंगा-फसाद करने की तैयारी चल रही है। कभी 'धर्मांतरण' का बावेला, कभी 'लव-जिहाद' तो कभी लड़कियों के ड्रेस पर हंगामा। क्या 'अच्छे दिन' आ गए? किसके 'अच्छे दिन' हैं भाई?

उरिमिलेश की इस टिप्पणी पर भी गौर करेंः
महान शैक्षिक संस्थानों को बख्श दो, प्लीज!
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आईआईटी(दिल्ली) जैसे विश्व-स्तरीय प्रौद्योगिकी संस्थान में जिस तरह की ओछी राजनीति की जा रही है, वह हैरतंगेज है। क्या एक महान संस्थान की स्वायत्तता और उसकी प्रतिष्ठा को मटियामेट करने से ही 'गवर्नेंस' सुधरता है? सुना है, अागे जेएनयू की बारी है।

এখন থেকে অধিগ্রহণে আর জমিদাতার সম্মতি লাগবে না, নতুন অর্ডিন্যান্স পাস কেন্দ্রীয় মন্ত্রিসভায়


নয়াদিল্লি: জমি অধিগ্রহণে গতি আনতে নতুন অর্ডিন্যান্স আনল কেন্দ্র। নির্দিষ্ট করে দেওয়া হয়েছে প্রতিরক্ষা, গ্রামোন্নয়ন, শিল্প করিডর সহ পাঁচটি ক্ষেত্র। এই পাঁচটি ক্ষেত্রে জমিদাতাদের সায় এখন থেকে আর বাধ্যতামূলক নয়। তবে ক্ষতিপূরণ ও পুনর্বাসনের প্রশ্নে একই রয়েছে আইন।
সংসদের শীতকালীন অধিবেশন শেষ। উপায় নেই বিল আনার। তাই আপাতত অর্ডিন্যান্সই ভরসা মোদী সরকারের। কয়লা ও বিমা ক্ষেত্রের পর এবার জমি অধিগ্রহণেও এল নতুন অর্ডিনান্স। সোমবার তা পাস হয়েছে মন্ত্রিসভার বৈঠকে।
বেশ কিছু গুরুত্বপূর্ণ বদল ঘটানো হয়েছে নতুন এই অর্ডিনান্সে। যার মধ্যে অন্যতম জমিদাতাদের হ্যাঁ-না-এর বিষয়টি।
শিল্প করিডর, পিপিপি প্রকল্প, গ্রামোন্নয়ন, কম খরচে আবাসন এবং প্রতিরক্ষা। এই পাঁচটি ক্ষেত্রে এখন থেকে আর বাধ্যতামূলক রইল না জমিদাতাদের সায় দেওয়া।
এর আগে জমি অধিগ্রহণ আইন অনুযায়ী, যে কোনও পিপিপি প্রজেক্টে সত্তর শতাংশ জমিদাতার সম্মতি বাধ্যতামূলক ছিল।
বেসরকারি প্রকল্পের ক্ষেত্রে প্রয়োজন হত আশি শতাংশ জমিদাতার সম্মতি।    
নির্দিষ্ট করে দেওয়া পাঁচটি ক্ষেত্রে বহুফসলি জমিও অধিগ্রহণ করা যেতে পারে।
ছাড় দেওয়া হয়েছে স্যোশাল ইমপ্যাক্ট স্টাডি বা SIA-র ক্ষেত্রেও।
যদিও কোনও পরিবর্তন হয়নি জমিদাতাদের ক্ষতিপূরণ কিংবা পুনর্বাসনের প্রশ্নে।
গ্রামীণ এলাকায় বাজারমূল্যের চেয়ে চার গুণ এবং শহর এলাকায় দ্বিগুণ দামে জমি কিনতে হবে।
শিল্প করিডর গড়ার ক্ষেত্রে জমি নিলে চাকরি দেওয়া বাধ্যতামূলক।
জমি অধিগ্রহণ নিয়ে জটিলতায় প্রায় কুড়ি লক্ষ কোটি টাকার প্রকল্প আটকে রয়েছে। শিল্পমহলের এই অভিযোগ বহুদিনের। মোদী সরকারের আনা নতুন অর্ডিনান্সে খুশি বণিকসভাগুলি।
তবে অখুশি কংগ্রেস জানিয়ে দিয়েছে, ফেব্রুয়ারিতে সংসদে বাজেট অধিবেশনে এনিয়ে চ্যালেঞ্জের মুখে পড়বে কেন্দ্র। জমি অধিগ্রহণ বিলের প্রশ্নে বরাবর সরব তৃণমূল কংগ্রেস অবশ্য এযাত্রায় এখনও নীরব। দলের তরফে বলা হয়েছে, এ সম্পর্কে মন্তব্য করা হবে, তবে সবকিছু দেখেশুনে-যাচাই করে।

It is a AMBANI-ADANI Sarkaar- A Company Sarkaar-Amendments to Fulfill Corporate Agenda


Ordinance on Land Act Unconstitutional and Anti People
People's Movements to Organise Against its Passage in Parliament
Every Forced Acquisition on Ground Will Face Stiff Resistance
Today's Cabinet decision approving the Ordinance amending the Land Acquisition Act 2013, even before the law has been actually implemented on the ground is completely unacceptable and reminds us of the anti democratic and authoritarian streak of this government. In six months of its existence NDA government has already used the Ordinance route three times.
        We fail to understand what is the Emergency at this moment that, NDA government has to take the Ordinance route. This is only being done as a measure to benefit the Corporate Houses and nothing else. 20 Lakh Crore investments are not stuck because of the new land act, since the law has only been in existence for one year.
        The land acquisition act, 1894 was amended precisely to resolve the conflict due to forcible land acquisition, give farmers their due and meet the needs of the industrial development. Today's decision will only increase that conflict since large scale forcible land acquisition for the industrial corridors will be norm, Delhi Mumbai Industrial Corridor alone has plan for acquisition of 3,90,000 Hectares of land. Industrial Corridors, big infrastructure projects, dams etc cause the maximum displacement and environmental damage and the new land Act was to address situations arising out of that.
Amendments to Fulfill Corporate Agenda
           We strongly oppose this move and believe that this government is completely anti-poor and is only interested in pushing forward the corporate agenda. It is a Ambani-Adani Sarkaar – a Company Sarkaar, which is out to sell the democratic rights of the people and democratic traditions of law making in the Parliament in the name of business. The new Act was framed after consulting all the stake holders and over a period of seven years after going through two Parliamentary Standing committees (2007 & 2009), both headed by senior BJP leaders, Shri Kalyan Singh and Smt. Sumitra Mahajan.
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            Mr. Modi has displayed least patience for the parliamentary traditions and often remained silent on the key issues concerning the nation and blamed opposition for non-functioing of the Parliament. Matters concerning the lives of millions of the farmers in this country can't and shouldn't be decided by mere Ordinance. These are matters of grave importance and need thorough debate and discussion in this democracy. BJP when in opposition had opposed the Ordinances for law making and now they are doing exactly that, how shameful!
Section 105, Consent and SIA Clause
The government is claiming that the decision is not anti farmer since they are not touching the monetray compensation, but the issue was not only compensation. A piece of land has an interest from many sections workers, share croppers – other than the land owners and they all get affected by any acquisition. So, the changes in the consent clause for acquisition of the PPP and Private projects will impact everyone and not only the land owners. The explanation that an Ordinance became necessary to deal with matters arising out of the Section 105 of the Act is completely false. We believe, it is not only misleading but again obfuscating what the Act mandates. As per the Act, the government was to bring a Notification in the Parliament in year 2014 to extend the provisions of the compensation and R&R to the people affected by land acquisition carried through the 13 central acts, as mentioned in Fourth Schedule.
        The dilution of the need for the consent and conducting of the Social Impact Assessment for all the projects is completely uncalled for and will only make matters worse. These two provisions are central to addressing the issue of 'forced land acquisition' and 'resulting impoverishment" to the communities.  
Section 24, Retrospective Application of the new Act
        Even as we wait for the full details of the Ordinance, we would like to say that the 2013 Act provided relief to so many farmers where land was forcibly acquired or land was not utilised or adequate compensation not paid. The Ordinance is changing that which is completely anti farmer. We all know that there are nearly 10 Crore people displaced by various projects since independence and this government rather than providing any relief is only concerned about the needs of the industry.
We Will Oppose its Passage in the Parliament
        It remains a fact that intense struggles are going on in various states across the country around the issues related to land acquisition, displacement, development plans and projects. The farmers, fishworkers, labourers, artisans, facing uprootment from not just their socio-cultural environs but also livelihoods, are compelled to get united and raise their voices against unjust displacement pushed by Modi Sarkaar.  The resistance will only become much more vocal now. People's movements from across the country oppose this Ordinance and will organise demonstrations across the country this week and will ensure that resolutions are passed in the Gram Sabhas on the Republic Day that no forcible land acquisition will be allowed by the government for profit and private corporations.
Medha Patkar, Yogini Khanolkar, Meera - Narmada Bachao Andolan and the National Alliance of People's Movements (NAPM); Prafulla Samantara - Lok Shakti Abhiyan & Lingraj Azad – Niyamgiri Suraksha Samiti, NAPM, Odisha; Dr. Sunilam, Aradhna Bhargava - Kisan Sangharsh Samiti & Meera – Narmada Bachao Andolan, NAPM, MP; Suniti SR, Suhas Kolhekar, Prasad Bagwe - NAPM, Maharashtra; Gabriel Dietrich, Geetha Ramakrishnan – Unorganised Sector Workers Federation, NAPM, TN; C R Neelkandan – NAPM Kerala; P Chennaiah & Ramakrishnan Raju – NAPM Andhra Pradesh,Arundhati Dhuru, Richa Singh - NAPM, UP; Sister Celia - Domestic Workers Union & Rukmini V P, Garment Labour Union, NAPM, Karnataka; Vimal Bhai - Matu Jan sangathan & Jabar Singh, NAPM, Uttarakhand; Anand Mazgaonkar, Krishnakant - Paryavaran Suraksh Samiti, NAPM Gujarat; Kamayani Swami, Ashish Ranjan – Jan Jagran Shakti Sangathan & Mahendra Yadav – Kosi Navnirman Manch, NAPM Bihar; Faisal Khan , Khudai Khidmatgar, NAPM Haryana; Kailash Meena, NAPM Rajasthan; Amitava Mitra & Sujato Bhadra, NAPM West Bengal; B S Rawat – Jan Sangharsh Vahini & Rajendra Ravi, Madhuresh Kumar and Kanika Sharma – NAPM, Delhi

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