Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter
Follow palashbiswaskl on Twitter

Thursday, January 1, 2015

गढ़वाली साहित्यकार रोज मोदीविरुद्धे लेखन करें,इंटरनेट अर खासकर फेसबुक गढ़वळि -कुमाउनी , जौनसारी भाषौं बान बरदान सिद्ध हूणु च।

फेसबुकिया अभिव्यक्ति के बिनमुद्दा सेल्फी आत्मप्रचार के बाबत गढ़वाली का यह व्यंग्यबेहद प्रासंगिक है ,जिसमं पहाड़ों में आक्रामक केसरिया वर्चस्व की फेसबुकिया दुनिया खी झलक भी है,जो समूचा सोशल नेटवर्क परिदृश्य हैं।लोग मुद्दों को छोड़कर टाइम पास करने के हिसाब से फोटो और पोस्टर की सुनामियां रच देते हैं।भीष्म कुकरेती का यह मंतव्य बाकी लोगो पर कितना सटीक है आप खुद जांच ले कि कुंमाय़ूंनी और गढ़वाली साहित्यकारों में घनघोर फोटो चिपकाऊं प्रतियोगिता चल रही हैं जिन्हें पहाड़ और पहाड़े के लोगों की सेहत से कुछ लेना देना नहीं है।देवनागरी लिपि में यह अतिशय महत्वपूर्ण लेख संवाद में मुद्दों की गैरहाजिकरी की वजह से जनसंहारी संस्कृति के वर्चस्व का पर्दाफाश करता है।पढ़ना शुरु करें तो पूरा आलेख बूझने में देर नहीं लगेगी।आप इसे सर्कुलेट भी करें तो हमारे मित्र मंडल के आचरण में तनिक सुधार हो तो फेसबुक वैकल्पिक मीडिया का धरक वाहक भी बन सकता है।

करगेती जी जो अपेक्षा कर रहे हैं कि कुमांयूनी और गढ़वाली साहित्यकार रोज मोदीविरुद्धे लेखन करें,वह व्यंग्य है कि वक्त की जरुरत,यह आप तय करें।
लेकिन हमारे हिसाब से जनसंहारी नीतियों के खिलाफ ,कासरिया कारपोरेट मोनोपोली के खिलाफ लड़ाई की पहल इसतरह भी संभव है जो हर जनपद में शुरु हो तो कयामत मुंह बांए लोट जायेगी।
पलाश विश्वास

       गढ़वळि -कुमाउनी साहित्यकारूं  तैं नरेंद्र मोदी  विरुद्ध रोज लिखण चयेंद !
                                                                    खीर मा लूण  : भीष्म कुकरेती 

                                                             

                                     गढ़वळि -कुमाउनी साहित्यकारूं  कु    फेसबुक मा फोटो   दगड़ प्रतियोगिता च 

                                                   
                            इंटरनेट अर खासकर फेसबुक गढ़वळि -कुमाउनी , जौनसारी भाषौं बान बरदान सिद्ध हूणु च।  फेसबुक मा अजकाल लिख्वार अपण रचना पोस्ट करणा छन , बंचणा छन अर प्रतिक्रिया बि दीणा छन। लिख्वारुं तैं समण्या समिण पता लग जांद कि रचना का प्रति पाठकों की क्या राय च अर लिख्वार जाण जांद कि बंचनेरुं , पाठकुं , रीडरुं तैं क्या जादा पसंद च। 
                    सबसे पैल साहित्यकारुं तैं समजण चयेंद कि फेसबुक मा फेसबुक्या पढ़णो नी अयुं च अपितु अपणी अभिव्यक्ति करणो अयुं च।  याने कि हरेक फेसबुक्या तुमर साहित्य पढ़णो नी अयुं/अयीं  च अपितु अपण बात तुम तैं बताणो अयुं /अयीं च।. 
                         असल मा गढ़वळि -कुम्मय्या साहित्यकारुं समिण द्वी तीन मुख्य समस्या छन -
                          १-पाठकुं तैं गढ़वळि -कुमाउनी भाषा मा पढ़णो ढब दिलाण, बंचनेरुं तैं गढ़वळि -कुमाउनी भाषा मा पढ़णोमजबूर करण अर पाठकुं प्रतिक्रिया दीणो हुस्क्याण /उकसाण !
                          २-मानकीकृत भाषा का प्रयोग कि अधिक से अधिक बंचनेर आपकी रचना पौढ़न।  फेसबुक मा अनावश्यक बौद्धिक रचना की क्वी ख़ास जगा नी च। 
                          ३- फेसबुक माँ गढ़वळि -कुमाउँनी साहित्य की असली प्रतियोगिता फोटों दगड़ च। 
                            तो फेसबुक मा प्रतियोगिता या छौंपादौड़ का हिसाब से गढ़वळि -कुम्मय्या साहित्यौ निम्न प्रतियोगी छन -
                             १- फेसबुक सदस्यों अभिव्यक्ति की अप्रतिम इच्छा -  हरेक  फेसबुक्या चाँद कि वैकि अभिव्यक्ति तैं लोग बांचन , द्याखन अर प्रतिक्रिया द्यावन।  गुड मॉर्निंग , गुड इवनिंग पर बि फेसबुक्या प्रतिक्रिया चाँद। 
                           २- फोटो सर्वाधिक दिखे जांदन , फोटो सर्वाधिक Like हूँदन , फोटो सर्वाधिक प्रतिक्रिया पांदन। 
                          जख तलक फेसबुक्यौं अभिव्यक्ति कु सवाल च यांक एकी उपाय च कि लक्ष्यित पाठकों (Target Readers ) अभिव्यक्ति दगड़ सामंजस्य बिठाओ। साहित्यकारुं तैं हरेक फेसबुक्या तैं खुश करणो बान रचना कतै नि लिखण चयेंद अपितु कुछ ख़ास प्रकार का पाठकुं वास्ता हि रचना पोस्ट करण।  फेसबुक्यौं अभिव्यक्ति दगड़ प्रतियोगिता जितणो  एकी उपाय च अर वा च ---------एक सधे सब सध जाय। 
                          सबसे कठण कार्य च फेसबुक मा  फेसबुक सदस्यों द्वारा फोटो पोस्ट से छौंपादौड़ , प्रतियोगिता या कम्पीटीसन ।  अर यांक बान निम्न उपाय छन -
                          १- अधिसंख्य फ़ोटुं संघटक चरित्रुं  तैं समजिक वै रचना पोस्ट करण जु फोटो दगड़ प्रतियोगिता कर साक। 
                          २- फोटो पढ़ण मा कम समय लींद तो फेसबुक्या फ़ोटुं तैं अधिक दिखदन याने कि आपकी रचना फेसबुक माँ ''देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर'' वाळ हूण चयेंद। 
                           ३- फोटो भावना पैदा करदन तो आपका विषय अवश्य ही लक्ष्यित पाठकों भावना का नजिक हूण चयेंद। 
                            ४- शीर्षक प्रोवोकेटिव याने खचांग /घचांग लगाण वाळ हूण चयेंद। 
                            ५-   अलंकार नया हूण चयेंदन अर भाषा सरल हूणि चयेंद । 
                          ६- रचना कु काम च कि  पाठक कल्पना करण लग जावन । 
                        ७-  कुछ खलबली अवश्य मचाओ ---कन्फ्लिक्ट, कॉन्ट्रास्ट, घपरोळ   पैदा करो। दूध मा लिम्बु डाळो।   खीर मा लूण डाळो।  कुछ बि कारो पर फेसबुक की फोटोऊं  दगड़ छौंपादौड़ कारो। 
श्री बालकृष्ण ध्यानी जी अर जगमोहन जयाड़ा जी आदि कवि बढ़िया फोटो मा अपण कविता पोस्ट करदन अर अधिक पाठक पांदन।  यु एक अकलमंदी को काम च।  हरेक कवि तैं यु प्रयोग करण चयेंद। 
                 मि अपण अनुभव से बोल सकुद कि उत्तराखंडी फेसबुक मा भाजपा का कट्टर व सार्थक समर्थकुं भीड़ च।  यी कट्टर समर्थक कॉंग्रेस की आलोचना की प्रशंसा करदन किन्तु जरा नरेंद्र मोदी या सरकार की आलोचना कारो तो आस्मान  खड़ा कर दींदन।  गढ़वळि -कुमाउँनी भाषा का वास्ता यी भाजपाइ  काम का छन।  आप गढ़वळि -कुमाउँनी मा नरेंद्र मोदी की आलोचना कारो तो यी अवश्य ही पौढ़ल तो यूँ भाजपायुं तैं गढ़वळि-कुमाउँनी  पढ़णो ढब अवश्य पोड़ल।  इलै गढ़वळि -कुमाउँनी साहित्य विकास का वास्ता नरेंद्र मोदी की कटु आलोचना आवश्यक च।  
फिर निर्गुट पाठक , कॉंग्रेसी पाठक बि नरेंद्र मोदी का प्रति संवेदनशील छन तो वो बि नरेंद्र मोदी की आलोचना पढ़णो आतुर रौंदन।  याने गढ़वळि विकास का वास्ता नरेंद्र मोदी  एक कामगार माध्यम च , औजार च , चरित्र च। 
हाँ भाजपाई , स्वयं संघी, हिन्दुऊँ  ठेकेदार मरखुड्या बि हूंदन।  यूंन हरिशंकर परशाई जन साहित्यकारुं भट्यूड़ बि तुड़ी छन अर हसन सरीखा चित्रकार तैं दुबई मा मरणो बान मजबूर बि कार।  मि त मार खाणो तयार छौं बसर्ते यी भाजपाई गढ़वळि पढ़न लग जावन। 

31 /12 /14 ,  Bhishma Kukreti , Mumbai India 

   *लेख की   घटनाएँ ,  स्थान व नाम काल्पनिक हैं । लेख में  कथाएँ चरित्र , स्थान केवल व्यंग्य रचने  हेतु उपयोग किये गए हैं।

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

Welcome

Website counter

Followers

Blog Archive

Contributors