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Saturday, July 6, 2013

फिर फिर आने वाली है बारिश और फिर फिर नरकयंत्रणा से गुजरना है बंगाल के नगरवासियों को!

फिर फिर आने वाली है बारिश और फिर फिर नरकयंत्रणा से गुजरना है बंगाल के नगरवासियों को!


हड़प्पा और मोहनजो-दड़ो के प्रमुख शहरों के सभी घरों में पानी और नालियों की सुविधाएं थी. अपशिष्ट जल को ढकी हुई नालियों के माध्यम से निकाला जाता था, जो प्रमुख गलियों के साथ साथ बनी हुई थीं। पर अपने महानगरों और नगरों में ऐसा कुछ भी नहीं है।कोलकाता के मध्य व्यापार व कारोबार का केंद्र बड़ा बाजार तो जलनिकासी की समस्या के कारण बरसात भर महानरक बन जाता है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कमारहट्टी से मदन मित्र राज्य के विधायक और प्रभावशाली मंत्री हैं और उनकी शिकायत है कि पिछले चालीस साल से कमरहट्टी में जल निकासी का कोई इंजजाम नहीं है। कमोबेश कोलकाता, हावड़ा और चंदन नगर के नगर निगम इलाकों को छोड़ भी दे, तो हुगली के आर पार और कोलकाता उत्तर और कोलकाता दक्षिण की नगरपालिकाओं के लिए मदन मित्र का बयान ही भोगा हुआ यथार्थ है।हड़प्पा और मोहनजो-दड़ो के प्रमुख शहरों के सभी घरों में पानी और नालियों की सुविधाएं थी. अपशिष्ट जल को ढकी हुई नालियों के माध्यम से निकाला जाता था, जो प्रमुख गलियों के साथ साथ बनी हुई थीं। पर अपने महानगरों और नगरों में ऐसा कुछ भी नहीं है।कोलकाता के मध्य व्यापार व कारोबार का केंद्र बड़ा बाजार तो जलनिकासी की समस्या के कारण बरसात भर महानरक बन जाता है।जॉब चारनाक ने 1690 ई. में तीन गाँवों कोलिकाता, सुतानती तथा गोविन्‍दपुरी नामक जगह पर कोलकाता की नींव रखी थी। वही कोलकाता आज एक भव्‍य शहर का रूप ले चुका है। लेकिन इस भव्यता में जल निकासी का तनिक भी आयोजन नहीं है। यहाँ सैकड़ों बस्तियाँ या झोपड़पट्टियाँ हैं, जहाँ नगर की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या रहती है। कोलकाता नगर निगम का दावा है कि उसने पहले से ही जल जमाव की समस्या से निपटने की तैयारी कर रखी है। पर निगम के इस दावे पर स्वयं निगम के निकासी विभाग के अधिकारियों को ही यकीन नहीं है!


दमदम, बारानगर, कमरहट्टी, आगरपाड़ा और पानीहाटी आदि क्षेत्रों से जलनिकासी के लिए चौड़े निकासी नाले खोदे जाने की परियोजना का क्या हुआ, किसी को नहीं मालूम।


फिर फिर आने वाली है बारिश और फिर फिर नरकयंत्रणा से गुजरना है बंगाल के नगरवासियों को। क्योंकि जलनिकासी नामक कोई चीज नहीं रह गयी है।उत्तराखंड के जल प्रलय से हिमालय को फिरभी राहत मिल सकती है, लेकिन बंगाल की नागरिक भद्रलोक जीवन में जलनिकासी एक सतत जारी रहने वाली समस्या है। पंपिंग के सहारे है जलनिकासी क्योंकि पानी निकलने का कोई रास्ता ही कहीं नहीं बचा है।एक बागजोला खाल की मृत्यु से कल्याणी और बारासात से लेकर दमदम तक का पूरा इलाका बरसातभर जलमग्न रहने को अभिशप्त है। नगर निगमों, पालिकाओं और जनप्रतिनिधियों को फौरी तदर्थ व्यवस्था के जरिये ही जनसमस्या से राहत दतिलाने की आदत हो गयी है। दीर्घ कालीन जलनिकासी प्रणाली की कोई परिकल्पना फिलहाल असंभव है। कुछ पालिकाओं का कार्यकाल खत्म हो जाने से जैसे  बुरीतरह प्रभावित पानीहाटी, वहां प्रशासनिक तौर पर यह संभव ही नहीं है और बाकी जहां चालू स्थानीय निकाय है,उनकी आर्थिक हालत इतनी तंग है कि वे अपनी ओर से कोई पहल नहीं कर सकती और न राज्य सरकार उनकी मदद करने की हालत में है।


दो चार दिन धूप खिली खिली है तो राहत का आबोहवा है वरना महानगरों और नगरों में तो धान की रोपाई का जैसा आलम है और गलियों में नौकायन का वातावरण है। अभी मानसून लगातार बरस नहीं रहा है। लेकिन पखवाड़े एक रात और अगले दिन दोपहर की बारिश से कोलकाता और उपनगरों मे उत्तराखंड के जलप्रलय का स्पर्श मिल गया। कोलकाता की रामकहानी हर बरसात में एक जैसी है, उसमें सुधार हने के आसार बहुत कम है। लेकिन कोलकाता महानगर के उत्तरी और  दक्षिणी उपनगरों में नरक यंत्रणा की शुरुआत हो चुकी है। महानगर में फिरभी निकासी की व्यव्था देर सवेर हो जाती है।कोलकाता के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश से शहर में कई स्थानों पर जल भराव होने के कारण सामान्य जीवन प्रभावित हो जाता है और रेल सेवाएं भी बाधित हो जाती  हैं। सेंट्रल, नॉर्थ और साउथ कोलकाता के विभिन्न हिस्सों में जल भराव के कारण लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है।जाहिर है कि नरक यंत्रणा की शुरुआत है यह।


कोलकाता के महापौर शोभनदेव चटर्जी ने बताते रहते हैं कि कि कोलकाता नगर निगम के कर्मी जलभराव वाले इलाकों से पानी बाहर निकाल रहे हैं। भारी बारिश के कारण सियालदह खंड में रेल सेवाएं आंशिक रूप से बाधित हो गईं। दिन में रेल सेवापूरी तरह से बहाल हो गई।कोलकाता शहर बंगाल की खाड़ी के मुहाने से 154 किलोमीटर ऊपर को हुगली नदी के पूर्वी तट पर स्थित है, जो कभी गंगा नदी की मुख्य नहर थी। यहाँ पर जल से भूमि तक और नदी से समुद्र तक जहाज़ों की आवाज़ाही के केन्द्र के रूप में बंदरगाह शहर विकसित हुआ। मुख्य शहर का क्षेत्रफल लगभग 104 वर्ग किलोमीटर है, हालाँकि महानगरीय क्षेत्र काफ़ी बड़ा है और लगभग 1,380 किलोमीटर में फैला है। वाणिज्य, परिवहन और निर्माण का शहर कोलकाता पूर्वी भारत का प्रमुख शहरी केन्द्र है।


शहर की अवस्थिति वास्तव में शहर के स्थान के चयन अंशतः उसकी आसान रक्षात्मक स्थिति और अंशतः उसकी अनुकूल व्यापारिक स्थिति के कारण किया गया प्रतीत होता है। अन्यथा निम्न, दलदली, गर्म व आर्द्र नदी तट पर शहर बसाने की बहुत कम परिस्थितियाँ उपलब्ध हैं। इसकी अधिकतम ऊँचाई समुद्र की सतह से लगभग नौं मीटर ऊपर है। हुगली नदी से पूर्व की ओर भूमि कीचड़ वाले और दलदली क्षेत्र की ओर ढालू होती जाती है। इसी तरह की स्थलाकृति नदी के पश्चिमी तट पर है, जिससे नदी के दोनों किनारों पर तीन से आठ किलोमीटर चौड़ी पट्टी पर महानगरीय क्षेत्र परिसीमित है। शहर के पूर्वोत्तर किनारे पर स्थित साल्ट लेक क्षेत्र के विकास ने यह दर्शाया है कि शहर का विशेष विस्तार व्यवहारिक है और मध्य क्षेत्र के पूर्वी, दक्षिणी व पश्चिमी भाग में अन्य विकास परियोजनाएँ भी चलाई जा सकती हैं।


उपनगरों में अंधाधुंध र्माण की वजह से जल निकासी के तमाम रास्ते अवरुद्ध हो गये हैं। नालियां और नहरें, उपनदियां तो पाट दी गयी हैं। झीलों, पोखर और तालाब भी खत्म हो गये हैं।जरा कल्याणी हाईवे पर नजर डाले तो बिराटी से कल्याणी तक जलाशयों पर बन रहे प्रोमोटर राज से कल्याणी से लेकर बेलघरिया तक चारों तरफ लहराते समुंदर की असली वजह मालूम हो जायेगी। यहा हाल सोनारपुर से लेकर बारुईपुर तक की है। एक इंच जलाशय बाकी बचा नहीं है। साल्टलेक बन जाने के बाद कलकाता में प्राकृतिक झीलों की परिधि कम हो जाने से महानगर में जीर्ण शीर्ण निकासी व्यवस्था पर अभूतपूर्व दबाव है तो सोनारपुर बारुईरपुर से लेकर कल्याणी तक जमा जल बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं है। बैरकपुर से लेकर डनलप तक जलनिकासी के लिए परंपरागत निकासी प्रणाली बागजोला खाल का उपयोग अब अवैध शराब की आपूर्ति लाइन बतौर होती है।


महानगर की तीन प्रमुख सड़कें एजेसी बोस रोड, एपीसी रोड व बीडन स्ट्रीट के नीचे से गुजरनेवालीं निकासी लाइनों में जमे हुए कचड़े को हटाया गया था, पॉलीथिन को निकाला गया था। कई स्थानों पर लगभग 100 वर्ष पुरानी निकासी लाइन को बदल कर आधुनिक पाइप लगाय गये थे। जवाहरलाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के फंड से यह काम किया गया था। इनमें से कुछ काम तो उस वक्त ही पूरे हो गये थे। कुछ काम तृणमूल बोर्ड के समय पूरे हुए. इस पूरी परियोजना पर 85 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं। एजेसी बोस रोड, एपीसी रोड व बीडन स्ट्रीट से होकर गुजरनेवाली निकासी लाइन पामर बाजार आउटकट में आ कर गिरती है।जेएनएनयूआरएम अधिकारियों का कहना है कि 85 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद यह लापरवाही क्यों की गयी। निकासी लाइनों के मुंह को क्यों नहीं साफ किया गया। इस बारे में मेयर व विभागीय मेयर परिषद सदस्य कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं हैं।


रातभर की बारिश से बीटीरोड समुंदर में तब्दील हुआ जाता है। बेलघरिया और सोदपुर रेलवे ब्रिज के मुहाने तक पानी। सोदपुर मध्यम ग्राम मार्ग पर दिनभर यातायात बंद। बसें नही।


जैसोर रोड पर जलजमाव होने से बारासात से लेकर दमदम हवाई अड्डेतक यातायात ठप पड़ जाती है तो दमदम रोड पर नावें चलाने की हालत! पानीहाटी, खड़दह, टीटागढ़, बरानगर, कमारहट्टी, दमदम, विधाननगर, सोनारपुर, महेशतला, बैरकपुर, नैहाटी, कल्याणी नगरपालिकाओं में आम जनजीवन बरसात से ठप पड़ जाता है।


वहीं हुगली के उसपार ग्रांड ट्रंक रड के संकरे रास्ते पर हालत कुछ बेहतर नही ! मुंबई रोड से जुड़ने वाली बांकड़ा मार्ग हो या सलप से सालकिया रोड. या डनलप से सोदरपुर जाने वाली नीलगंज रोड सर्वत्र जलजला। हावड़ा नगरनिगम और चंदननगर नगर निगम में भी जलनिकासी  का इंतजाम कोलकाता से कोई बेहतर नहीं है, यह साबित हो गया। विडंबना है कि शहर नियोजन के लिए गठित लंबे-चौड़े सरकारी अमले पानी के बहाव में शहरों के ठहरने पर खुद को असहाय पाते हैं। सारा दोष नालों की सफाई ना होना, बढ़ती आबादी, घटते संसाधन और पर्यावरण से छेड़छाड़ को दे दिया जाता है। पर इस बात का जवाब कोई नहीं दे पाता है कि नालों की सफाई सालभर क्यों नहीं होती और इसके लिए मई-जून का ही इंतजार क्यों होता है?


थोड़ा पानी पड़ने से तो सियालदह दक्षिण और सियालदह उत्तर शाखाओं में ट्रेन सेवा भी ठप पड़ जाती है। गैरसरकारी दफ्तरों आपातकालीन सेवाओं में लगे लोगों के लिए कार्यस्थल तक पहुंचने और वापस घर लौटने के लिए मेटाडोर वाहन ही उपलब्ध!



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