सिमतोला इको पार्क: 'यहाँ अपने पदचिन्हों के अलावा कुछ मत छोडि़ये'
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 23 || 15 जुलाई से 31 जुलाई 2011:: वर्ष :: 34 :August 15, 2011 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/simtola-eco-park-almora-a-great-development/
सिमतोला इको पार्क: 'यहाँ अपने पदचिन्हों के अलावा कुछ मत छोडि़ये'
लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 23 || 15 जुलाई से 31 जुलाई 2011:: वर्ष :: 34 :August 15, 2011 पर प्रकाशित
कमल जोशी
सिमतोला के साथ पुराना रिश्ता है। इको पार्क बनने से पहले भी अल्मोड़ा शहर के समीप स्थित यह खूबसूरत पहाड़ी मेरे जैसे एकांतप्रिय व घुमक्कड़ स्वभाव के लोगों को आकर्षित करती रही है। चीड़, देवदार, बाँज और अकेशिया के पेड़ों के बीच पगडंडियों पर चलकर पपरसली से सिमतोला की पहाड़ी पर चढ़ना, चिडि़यों की मीठी चहचहाहट के बीच सूर्योदय या फिर सूर्यास्त के दृश्यों को देखना, हिमालयी शिखरों से साक्षात्कार और चारों तरफ शांत वातावरण! प्रकृति वसंत ऋतु में अकेशिया के पीले फूलों से स्वागत करती है, जबकि सितम्बर में कॉसमॉस के रंगबिरंगे फूलों से धरती खिल उठती है।
लेकिन पिछले कुछ सालों से सिमतोला के जंगल, जो कि एक रिजर्व फौरेस्ट है, में पेड़-पौधे कम हो रहे थे। लोग चारे-ईंधन के लिये चोरी छिपे हरे पेड़ों को काट-छाँट रहे थे और मवेशियों की मुक्त चराई के कारण नये पौधे नहीं उग पा रहे थे। अगस्त 2010 में तत्कालीन डी.एफ.ओ. ए.के. बनर्जी की पहल पर 26 हैक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र में सिमतोला इको पार्क की स्थापना की गयी। बनर्जी इससे पहले मसूरी के समीप धनौल्टी में इस तरह का प्रयास कर चुके थे, जिसे काफी सफलता मिली।
पपरसली से ऊपर स्थित सिमतोला के लिये जाने वाले करीब आधा किलोमीटर लंबे पैदल रास्ते को चौड़ा करके जीप कारों के लायक बनाया गया है और पार्किंग स्थल बनाया गया है। इससे कुछ कदमों की दूरी पर पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार और टिकट घर हैं। पार्क ग्रीष्मकाल में सुबह 9 बजे से शाम को 5 बजे तक तथा शीतकाल में सुबह 10 बजे से शाम को 5 बजे तक खुलता है। टिकट की दर वयस्कों के लिये 10 और बच्चों के लिये 5 रुपये है। अमेरिका में काफी समय रह चुके एक सज्जन ने मुझे बताया कि यह भी अमेरिकी शैली दिखती है।
इको पार्क में कदम रखते ही कदम-कदम पर लिखे गये पर्यावरण से सम्बन्धित संदेश व नारे, जो हिन्दी, अंग्रेजी और कुमाउंनी तीनों भाषाओं में हैं, ध्यान आकर्षित करते हैं। पगडण्डी के दोनों ही किनारों पर देवदार, चीड़ और बाँज के पेड़ लकड़ी की आकर्षक तख्ती के माध्यम से बच्चों व बड़ों को शिक्षा देते नज़र आते हैं। जैसे एक पेड़ पर लगी तख्ती में लिखा था वन है तो जल है। बायीं ओर किसी पेड़ पर वही संदेश अंगेजी में नज़र आया। चंद कदमों के बाद दूसरे पेड़ पर संदेश लिखा था- वन है तो वर्षा है। इसी तरह आगे वन है तो स्वच्छ वायु है, इसी तरह मिट्टी, नमी, भोजन, औषधी, रोजगार, तापमान नियंत्रण, पर्यटन इत्यादि। कहीं पर अंग्रेजी में लिखे संदेश, जैसे 'ही हू प्लान्ट्स अ ट्री प्लान्ट्स अ होप' या 'नेचर इज मदर आफ ऑल लाइफ: सेव नेचर' हैं तो कहीं पहाड़ी में लिखे संदेश- 'डाल्यूं नि छ त पाणि निछ, पाणि नि छ तो प्राणि काँ छ' भी ध्यान खींचते हैं। पहाड़ी में लिखे नारे व संदेशों के साथ 'सौजन्य से जीवन चन्द्र तिवारी निर्झर, वन बीट अधिकारी' भी लिखा गया है। यह अच्छा लगता है कि वन मकहमे में ऐसे संवेदनशील और सृजनशील कर्मचारी हैं तथा उनकी प्रतिभा का इको पार्क में उपयोग हुआ है। 'वृक्ष देते स्वच्छ वायु, सुखी जीवन लम्बी आयु', 'वृक्ष प्रदूषण के हैं नाशक, धर्म भावना के ये साधक' जैसे अनेक रोचक संदेश नज़र आते हैं। एक और अच्छी बात यह नजर आयी कि तख्तियों में दोनों तरफ संदेश लिखे गये हैं। इसके अलावा जहाँ-जहाँ 'कूड़ा नहीं फेंकने की बात लिखी है वहाँ पर एक कूड़ेदान भी अवश्य रखा गया है। अक्सर लोगों से कहा जाता है कि ऐसा मत करो, वैसा मत करो, लेकिन उन्हें विकल्प नहीं दिये जाते जिस कारण बुरी आदतें नहीं छूटतीं।
पार्क में आक्सीजन-चक्र, नाइट्रोजन-चक्र, कार्बन-चक्र, वृक्षों से होने वाले प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ इत्यादि को लकड़ी की आकर्षक तख्तियों पर चित्रों व रेखाचित्रों के माध्यम से समझाने की कोशिश की गयी है। इसके साथ ही पेड़-पौधों की जानकारी देने के लिये उन पर हिन्दी और वानस्पतिक नाम लिखे गये हैं।
इको पार्क में एक जड़ी-बूटी परिचय क्षेत्र है, जहाँ जिरेनियम, सालम मिश्री, सतावर, बज्रदन्ती, वन तुलसी, वन हल्दी, सालपर्णी, नीलकंठ, पाषाणभेद, घृतकुमारी आदि जड़ी-बूटियाँ उगायी गयी हैं। इको पार्क के अंदर जगह-जगह पर खूबसूरत ट्रैक रूट बनाये गये हैं। इसके साथ ही कई पिकनिक पॉइण्ट हैं, जहां पेड़ों की छाँव में हरी घास पर प्रकृति के मनमोहक नजा़रों का दिन भर मज़ा ले सकते हैं। बारिश के पानी का संरक्षण करने के लिये पार्क में खालें (तालाब) खोदी गयी हैं, जिनमें जुमलीखाल एक अच्छा पिकनिक पॉइन्ट है। बच्चों के लिये पार्क के अंदर जगह-जगह झूले लगे हैं, बड़ों के लिये भी झूले हैं। जंगल-जिम का बच्चों के लिये खास आकर्षण है। इसके अलावा पार्क में अंग्रेजों के समय का एक कुआँ भी है।
इको पार्क की लोहे की जाली से घेरबाड़ हो जाने से पेड़-पौधों की सुरक्षा हो रही है तथा नये पौधे भी उग पा रहे हैं। पार्क में देवदार के वृक्ष और फूल के पौधे भी लगाये गये हैं।
इको पार्क की देखभाल और संचालन का काम एक समिति के जिम्मे है जिसमें स्थानीय लोगों की भी भागीदारी है। पार्क की स्थापना के समय तत्कालीन डी.एफ.ओ. बनर्जी इसमें काफी रुचि ले रहे थे और इतवार के दिन भी अक्सर वहाँ भ्रमण करके आगंतुकों से फीडबैक लेते थे। ''क्या होगा जब आपका तबादला होगा ?'' मेरे इस सवाल के जवाब में उनका कहना था कि वे 'सीन' में हैं ही नहीं, क्योंकि इको पार्क की जिम्मेदारी समिति के ऊपर है। लेकिन मेरा पुराना अनुभव है कि यथार्थ में ऐसा होता नहीं, किसी उत्साही अफसर की पहल पर शुरू हुए ऐसे काम उसके तबादले के साथ ही सुस्त पड़ने लगते हैं, क्योंकि ये संस्थागत नहीं हो पाते। बनर्जी का महीनों पहले तबादला हो गया है।
''यहाँ अपने पद-चिन्हों के सिवाय कुछ मत छोडि़ये और फोटो के सिवाय कुछ मत लेकर जाइये''- ईको पार्क में लिखा यह संदेश पढ़ने के बावजूद सिमतोला से वापस लौटते हुए मन में विचारों और स्मृतियों के प्रवाह को रोक पाना संभव नहीं था।
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