एक बहस ने उन्हें जनूनी बना दिया…
लेखक : लक्ष्मण सिंह नेगी :: अंक: 23 || 15 जुलाई से 31 जुलाई 2011:: वर्ष :: 34 :August 15, 2011 पर प्रकाशित
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एक बहस ने उन्हें जनूनी बना दिया…
लेखक : लक्ष्मण सिंह नेगी :: अंक: 23 || 15 जुलाई से 31 जुलाई 2011:: वर्ष :: 34 :August 15, 2011 पर प्रकाशित
थराली विकास खंड जनपद चमोली के सीमान्त गाँव सणकोट में बंजर भूमि में जंगल उगाकर पर्यावरण संरक्षण के लिये विशेष कार्य करने वाले नारायण सिंह नेगी गढ़वाल के गौरव नाम से भी जाने जाते हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी प्रकृति प्रेम उन्हें नहीं छोड़ता।
सुभाष चन्द्र बोस के साथ एक वर्ष तक द्वितीय विश्वयुद्ध में आजाद हिन्द फौज के सिपाही के रूप में कार्य करने वाले नारायण सिंह नेगी ने 45 वर्ष पूर्व सणकोट गाँव की बंजर भूमि पर अपना काम शुरू किया। लोग उन्हें सनकी कहते थे। लोग रत्ती भर काम को ढेर सारा बता कर पुरस्कार पा जाते हैं, किन्तु नारायण सिंह ने कभी ऐसी लालसा नहीं रखी। अपने हाथ में फावड़ा और कुदाल, फुवारा लेकर जीवन बिताते रहे। 87 वर्ष की आयु में भी वृक्ष लगाना और उनके साथ उठना-बैठना उन्हें अच्छा लगता है। वे बताते हैं कि पौधे लगाने की प्रेरणा उन्हें 1968-70 में सणकोट के वन पंचायत के सरपंच रहते हुए मिली। वन पंचायत भूमि पर अतिक्रमण कर रहे लोगों के खिलाफ उपजिलाधिकारी कार्यालय कर्णप्रयाग में उन्होंने मुकदमा दर्ज करवाया। जमीन को छुड़ाने के लिये अपनी छः नाली नाप भूमि अपने गाँव वालों को बेच दी और मुकदमे की पेशी में जाते रहे। नेगी जी बताते हैं ''एक बार रोड बन्द होने के बावजूद मैं उपजिलाधिकारी कार्यालय पहुँचा। चकित उपजिलाधिकारी ने पूछा- इस भूमि का तुम क्या करने वाले हो ? मैंने जवाब दिया- हरियाली पैदा करूँगा। उन्होंने कहा कि तुम झूठ बोल रहे हो। मैंने उन्हीं की टेबल पर दो मुक्के मारे और मेरे आँखों से आँसू निकल गये। मैंने कहा अवश्य भारतमाता की जय के साथ मैं इस भूमि पर वृक्षारोपण करूँगा। इस घटना ने मुझे सनकी बना दिया और मैंने पौंधों का रोपण शुरू कर दिया। पहले मैंने 20 हजार पौधे वन विभाग की नर्सरी से 2 रुपये के हिसाब से खरीदे, पत्थरों की दीवार बनाकर वनीकरण तैयार किया। उसके बाद अपने ही खेतों में नर्सरी तैयार की और नर्सरी में बीज, रिंगाल, पांगर, अखरोट, रागा, सुरई, थुनेर के पेड़ तैयार किये और 27 हैक्टेयर क्षेत्र में सामूहिक वन तैयार किया।''
वे कहते हैं कि उपजिलाधिकारी दुर्गापाल की उस चुनौती ने मुझे मिट्टी, पानी, जंगल, जमीन को सँवारने का मौका दिया, जिससे मैं आने वाली पीढ़ी के लिये एक धरोहर के रूप में चार किमी. क्षेत्र में फैला जंगल तैयार कर सका हूँ। बगैर किसी सरकारी अनुदान के, उनके अपने संसाधनों से ही जंगल बना है।
27 हैक्टेअर भूमि में 5 लाख से अधिक वृक्षों के बीच में 14 से अधिक प्रजाति के पक्षी तथा हिरन, कांकड़, बन्दर, भालू, सेही आदि वन्यजीव रहते हैं। आज सणकोट के लोगों को चारा लेने दूर नहीं जाना पड़ता। नेगी जी को देशभक्ति का जज्बा सदैव खींचता रहा। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वन, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस वन, पंडित जवाहर लाल नेहरू वन, डॉ. भीमराव अम्बेडकर वन, इन्दिरा गांधी वन, गोविन्द बल्लभ पंत वन, वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली वन, गौरा देवी वन जैसे आठ महानायकों के नाम से वनों का नामकरण किया हुआ है। इन वनों के प्रवेश द्वार पर वन देवी एवं इन नायकों के नाम से मंदिर बनाये गये, जहाँ हर दिन पूजा होती है।
उन्हें द्वितीय महायुद्ध में सम्मिलित होने का सम्मान पत्र मई 1995 को दिया गया। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा किये काम के लिये तो उन्हें अनेक बार सम्मानित किया जा चुका है। अब तो दर्जनों अधिकारी, नेता और मंत्री भी उनके काम को देखने आते हैं। नेगी का कहना है कि सरकार को पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों एवं समुदाय की पहचान करनी चाहिये और उन्हें सम्मान देना चाहिये जिससे आने वाली पीढ़ी को इस कार्य के लिये प्रेरणा मिल सके। पर्यावरण संरक्षण पर्यावरण मित्रों को ग्रीन बोनस का लाभ दिया जाना चाहिये। सरकार को धरती पर काम करने वाले लोगों की याद बहुत देर से आती है। वर्तमान समय में चिपको नेत्री गौरा देवी, कॉमरेड गोविन्द सिंह जैसे महान नायकों को भुला दिया। पर्वतीय क्षेत्रों में जल, जंगल, जमीन, जानवरों के सरंक्षण के बिना जीवन नहीं जिया जा सकता। व्यावहारिक ज्ञान तो काम करने से ही मिलता है। हमारे वैज्ञानिकों एवं राजनेताओं को एक दिन धरातल पर ही जाना पड़ेगा।
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