थियेटर इंसान की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है | |
विष्णुचंद्र शर्मा http://www.aksharparv.com/punasmaran.asp?Details=24 जर्मनी में बर्तोल्त ब्रेख्त और ब्राजील में अगस्तो बाओल और भारत में हबीब तनवीर ने अपने-अपने देश में लाख विरोध के बावजूद इंसान की जिंदगी का थियेटर को अभिन्न हिस्सा बनाया। उस दिन जब ब्राजील से चला हुआ एयर-फ्रांस का जहाज 228 यात्रियों के साथ समुद्र में डूब गया था, मुझे ब्राजील के निर्देशक, संस्कृतिकर्मी और राजनीतिक विचारक अगस्तो बाओल की बहुत याद आयी थी। याद आने का एक कारण मेरा निजी था। मैं पेरिस और अमेरिका होते हुए इस बार अर्जेन्टीना और ब्राजील जाने का सपना देख रहा था। जिस दिन फ्रांस का वीजा मुझे मिला, ठीक उसी दिन 7 जून 2009 के जनसत्ता में यह लेख महेंद्र पाल का पढ़ा- हम एक थियेटर हैं। अगस्तो बाओल लंबे समय से बीमार थे। अगस्तो बाओल की याद में महेन्द्र पाल ने लिखा है: जो रंगमंच अभिजात्यता के कथित कुलीन शिकंजे में सिकुड़ा समाज के अघाए तबके के लिए मात्र मनोरंजन का जरिया बन गया था उसे ब्रेख्त जैसे तमाम संस्कृतिकर्मियों ने एक लंबे रचनात्मक संघर्ष द्वारा नुक्कड़ शैली के नाटकों के जरिए विकसित कर आम आदमी के हाथ का सशक्त हथियार बनाया और उसी हथियार को और पैना करते हुए अगस्तो बाओल ने उत्पीड़ितों की थियेटर शैली विकसित की। (जनसत्ता 7 जून 2009) दिल्ली का रंगमंच वाकई अघाए हुए तबकों का रंगमंच बन गया है। मेरे मित्र बा.वे.कारंत नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में बनारस से आकर पढ़े थे और थियेटर की एक नयी शैली विकसित करना चाहते थे। पर जिस व्यक्ति ने लगातार थियेटर को उत्पीड़ितों का एक पहलू यानि फोरम थियेटर बनाया वह था हबीब तनवीर। जब मैं कारंत पर अभी सोच रहा था, तभी दूरदर्शन पर एक खबर देखी- हबीब तनवीर नहींरहे। वह भी अगस्तो बाओल की तरह लंबे समय से बीमार थे। बाओल और तनवीर में कई समानताएं थीं। इस पर लेटिन अमेरिका और भारत के रंगनिर्देशक लंबे समय तक करेंगे या मैं काशी की रंगशैली पर बात करते हुए कुंवरजी अग्रवाल से बातचीत आगे बढ़ाऊंगा। भारतेंदु के समय के मानव रिश्ते, तुलसीदास की मानस की खुली रंगशाला हिन्दी दुनिया के लिए प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। मुझे याद है, वह लड़की लंदन से आयी थी और दुनिया की खुली रंगशाला (ओपन थियेटर) पर काम कर रही थी। मैंने उसे भिखारी ठाकुर और तुलसीदास की खुली रंगशाला दिखायी थी। पूरा भोजपुर क्षेत्र भिखारी ठाकुर की जनता का एक थियेटर बन जाता था। वह लड़की पूरे समय यह देखती रही, कैसे तुलसीदास ने खुली रंगशाला का निर्देशन और मंचन किया। हबीब तनवीर उसी रंगशाला के अनोखे रंगकर्मी थे। एक अंतर था शासन से विरोध या संवाद का, हबीब तनवीर, अगस्तो बाओल और बर्तोल्त ब्रेख्त का। |
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7 years ago
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