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Sunday, April 28, 2013

पास फेल के बिना कैसा शिक्षा का अधिकार!मियाद भी 31 मार्च को समाप्त हो गई,जमीन पर बहुत कुछ नहीं बदला।

 पास फेल के बिना कैसा शिक्षा का अधिकार!मियाद भी 31 मार्च को समाप्त हो गई,जमीन पर बहुत कुछ नहीं बदला।  


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

वाम मोर्चा सरकार ने जब प्राथमिक स्कूलों में और फिर आठवीं कक्षा तक पास फेल खत्म कर दिया, तब इसकी भारी आलोचना हुई थी लेकिल अब शिक्षा के अधिकार तक परिस्थिति वही बन रही है।चूँकि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है अत: इसे लागू करने में राज्यों की भूमिका महत्तवपूर्ण है, सभी राज्यों को इसे अमल में लाने की मियाद भी 31 मार्च 2013 को समाप्त हो गई है। लेकिन इसे पूर्णत: लागू करने की स्थिति कहीं से नजर नहीं आ रही है। जमीन पर बहुत कुछ नहीं बदला। छह से 14 साल के बच्चों को पढ़ाने वाले लगभग 12 लाख स्कूली शिक्षकों की कमी है। योग्य और प्रशिक्षित शिक्षकों का होना तो और बड़ी बात है। अब भी पीने का पानी, शौचालय और खेल का मैदान सभी स्कूलों मे उपलब्ध नहीं है। स्कूली पढ़ाई के प्रावधानों के पूरा न होने पर सोमवार से कोई भी अभिभावक कानूनी तौर अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।इसमें दो बड़ी बाधाएं नजर आती हैं पहली अधोसंरचना में कमी तथा दूसरी  शिक्षा  में गुणवत्ता का अभाव। लगभग 40 फीसदी स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक नहीं हैं,गौरतलब है कि स्कूलों में अभी 11 लाख शिक्षकों की कमी है। 34 फीसदी स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है। 30 फीसदी स्कूलों में निशक्त: बच्चों के लिए रेम्प का निर्माण नहीं हुआ है। और 80 लाख बच्चे अभी भी स्कूली शिक्षा प्रणाली से बाहर हैं।स्कूलों में खेल के मैदान और पेयजल जैसी बुनियादी बातों का अभाव अब भी बना हुआ है जहॉ तक गुणवत्ता की बात है तो बगैर शिक्षकों के यह संभव नहीं है।


संविधान (86वां) संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्‍यम से भारत के संविधान में अनुच्‍छेद 21-क शामिल किया गया है ताकि छह से चौदह वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्‍चों को विधि के माध्‍यम से राज्‍य द्वारा यथानिर्धारित मौलिक अधिकार के रूप में नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा सके। नि:शुल्‍क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जो अनुच्‍छेद 21-क के अंतर्गत परिकल्‍पित अनुवर्ती विधान का प्रतिनिधित्‍व करता है, का अर्थ है कि प्रत्‍येक बच्‍चे को कतिपय आवश्‍यक मानदंडों एवं मानकों को पूरा करने वाले औपचारिक विद्यालय में संतोषप्रद और साम्‍यपूर्ण गुणवत्‍ता की पूर्णकालिक प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।जहां शिक्षा के अधिकार के तहत  खिचड़ी स्कूल में आम बच्चे पढ़ रहे हैं वहीं सत्तावर्ग के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं।अनिवार्य शिक्षा में ​​शिक्षा का स्तर बनाये ऱकने का कोई कार्यक्रम नहीं है। इससे फिर वही मनुस्मृति व्यवस्था ही लागू होती है कि वंचित बहुसंख्यक बहुजनों के बच्चों को शिक्षा का अधिकार तो होगा , पास फेल के विना वे बारहवींका दर्जा पार कर लेंगे , लेकिन सत्तावर्ग के बच्चों के मुकाबले कहीं के नहीं रहेंगे।किसी भी प्रतिद्वंद्विता में खरे नहीं उतरेंगे और जीवन के हर क्षेत्र में नस्ली मनुस्मृति व्वस्था के मुताबिक सत्तावर्ग का वर्चस्व बना रहेगा। आरक्षण के ​​बावजूद आरक्षित पदों पर नियुक्ति के काबिल भी नहीं रहेंगे वे। हाल यह है कि देश में अभी भी शिक्षकों के 6. 96 लाख रिक्त पदों में आधे से अधिक बिहार एवं उत्तरप्रदेश में है।जहां ाम दारणा के मुताबिक बहुजनसमाज सबसे ज्यादा मुखर और शक्तिशाली है। बाकी प्रदेशों का हल समझ में आने वाली है। बंगाल जैसे संपूर्ण ब्राह्मणवादी राज्य में तो वंचितों के लिे भविष्य में कोई अवसर ही नहीं होगा।


अब इस कानून के मुताबिक वर्षभर की ंपढ़ाईके मुताबिक बोर्ड की परीक्षा तो हो जायेगी, लेकिन पास फेल नहीं होगा कोई।छात्रों की मेदा के मूल्यांकन के लिए ग्रेड प्रणाली लागू होगी।आठवीं तक पढ़ाई  के बाद छात्रों को डिप्लोमा मिल जायेगा।पढाई से छात्रों पर मानसिक दबाव न पड़े, इसके लिए यह बंदोबस्त है। किंतु इसका क्या नतीजा होगा. यह देखने लायक बात है।वैसे भी स्कूली शिक्षा का स्तर निम्नमुखी है।शिक्षक पठन पाठन को अब उतना महत्व देते नहीं हैं।ऐसी हालत में पास फेल खत्म करने के नतीजे और भयंकर होंगे, ऐसा समझा जाता है।


विडंबना तो यह है कि सत्तावर्ग के बच्चों के मुकाबले अपने बच्चों को तैयार करने की गरज से वंचित वर्गों के लोग बड़ी संख्या में ऐसे  निजी स्कूलों में मनचाही फीस ​भरकर अपना भविष्य सुरक्षित करने की अंधी दौड़ में शामिल हो गये हैं, जो गुणवत्ता के मामले में उनके लिए निर्धारित सरकारी स्कूलों से भी हर मामले में खराब हैं।शिक्षा के अधिकार अधिनियम के व्यापक फायदे के लिए हमें निजी स्कूलों के हालात की ओर भी गौर करना होगा। क्योंकि आज प्राथमिक शिक्षा का तेजी से निजीकरण हो रहा है। गॉवों और कस्बों में भी निजी स्कूलों की बहार है और सरकारी विद्यालयों की तुलना विद्यार्थी भी इनमें ज्यादा प्रवेशित हो रहें है। लेकिन एक दो कमरों में चलते ये निजी विद्यालय गुणवत्ता और अद्योसंरचना के मानकों पर कितने खरें हैं यह विचारणीय हैं। निश्चित रूप से अधोसंरचना के मानकों पर अधिकांश निजी विद्यालय फेल ही हैं।गुणवत्ता की बात करें तो सरकारी विद्यालयों में तो कुछ हद तक प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध है लेकिन निजी विद्यालयों में ऐसा कोई मापदण्ड ही नहीं हैं क्योंकि अधिकांश निजी स्कूल संचालकों के लिए कमाई का एक उपक्रम है अत: सस्ते शिक्षक रखना उनकी प्राथमिकता होती है, योग्यता और गुणवत्ता नहीं। जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम निजी स्कूलों के शिक्षकों की योग्यता को भी निर्धारित करता है। शिक्षा के अधिकार अधिनियम ने निजी स्कूलों 25 फीसदी स्थान गरीब बच्चों को रिक्त रखने के लिए निर्देशित किया है मगर स्कूल संचालक इससे भी बचना चाहते हैं क्योंकि इन विद्यार्थियों से उन्हें मनमानी फीस मिलने वाली नहीं है। वैसे भी ये बच्चे इन स्कूलों में प्रवेश के बाद ही बाहर हो जाते हैं क्योंकि इन स्कूलों में चलने वाली मॅहगी पुस्तकें और परिधान खरीदना इनके पालकों की हैसियत से बाहर है।वास्तव में निजी स्कूल  आम पालकों के लिए शोषण का माधयम बन चुके है। इनकी भारी भरकम फीस के साथ अत्याधिक महॅगीं किताबों और बच्चों की की कमर तोड़ते बस्ते पर किसी की नजर नहीं है।


शिक्षा के अधिकार कानून के मुताबिक हर स्कूल के लिए सुनिर्मित इमारखेल का मैदान, पुस्तकालय, छात्र छात्राओं के लिए अलग अलग ​​शौचालय, कला, स्वास्थ्य और खेलों के लिए अलग से शिक्षक शिक्षिकाओं का होना अनिवार्य हैं। ऐसे और भी जरुरी प्रावधान हैं।इसके लिए स्कूलों को ३१ मार्च, २०१३ तक का समय दिया गया था।तय था कि इसके बाद सरकारी निरीक्षक मौके पर जाकर देखेंगे कि कितनी प्रगति हुई।निरीक्षकों का आकलन अगर स्कूल के मौजूदा हालात के मद्देनजर प्रतिकूल हुआ तो संबंधित स्कूल की मान्यता रद्द करने काप्रवधान है।हकीकत यह है कि स्कूलों को जो सरकारी अनुदान मिलता है, उससे इतने सारी भारी काम पूरा करना अत्यंत कठिन है।ऐसी हालत में अधूरे काम की वजह से मान्यता रद्द होने की स्थिति में स्कूल का अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा।छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को ऐसी ही आशंका है।


देश में अभी भी शिक्षकों के 6. 96 लाख रिक्त पदों में आधे से अधिक बिहार एवं उत्तरप्रदेश में है। देश में शिक्षकों के कुल रिक्त पदों में बिहार और उत्तरप्रदेश का हिस्सा 52.29 प्रतिशत है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश भर में प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर शिक्षकों के तीन लाख पद रिक्त हैं।


बिहार में शिक्षकों के 2.05 लाख पद रिक्त हैं। छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत बिहार में शिक्षकों के 1,90,337 पद मंजूर किये गए। राज्य में अभी भी 49.14 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय नहीं हैं।


उत्तरप्रदेश में शिक्षकों के 1.59 लाख पद रिक्त है। शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत 3,94,960 पद मंजूर किये गए। राज्य में 81.07 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं जहां लड़के और लड़कियों के लिए अलग शौचालय की सुविधा उपलब्ध है।


सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में शिक्षकों के 61,623 पद रिक्त हैं, जबकि झारखंड में 38,422, मध्यप्रदेश में 79,110, महाराष्ट्र में 26,704 और गुजरात में 27,258 शिक्षक पद रिक्त हैं।


शिक्षा का अधिकार प्रदान करने की पहल के तहत पश्चिम बंगाल में शिक्षकों के 2,64,155 पद, झारखंड में 69,066 पद, मध्यप्रदेश में 1,86,210 पद और गुजरात में 1,75,196 पद मंजूर किये गए हैं।


सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के मार्ग में शिक्षकों की कमी के आड़े आने पर संसद की स्थायी समिति ने गंभीर चिंता व्यक्त की है।


शिक्षा के अधिकार के तहत स्कूली आधारभूत संरचना में शौचालयों का विकास महत्वपूर्ण मापदंड बताये गए हैं। पश्चिम बंगाल में 52.20 प्रतिशत स्कूल ही ऐसे हैं जहां लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय हैं।


असम में 52.13 प्रतिशत, दिल्ली में 98.67 प्रतिशत, हरियाणा में 87.43 प्रतिशत, कर्नाटक में 97.87 प्रतिशत स्कूल, ओडिशा में 38.54 प्रतिशत, राजस्थान में 75.38 प्रतिशत और तमिलनाडु में 64 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था है। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 35 प्रतिशत स्कूलों में लड़के और लड़कियों के लिए अलग अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है। हालांकि, 94.26 प्रतिशत स्कूलों में पेयजल सुविधा है।


शिक्षा के अधिकार कानून के तहत यह व्यवस्था बनायी गई है कि केवल उन लोगों की शिक्षकों के रूप में नियुक्ति की जायेगी जो शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण होते हैं।


मंत्रालय के प्राप्त जानकारी के मुताबिक, गोवा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में अभी तक शिक्षक पात्रता परीक्षा नहीं ली गई है। सीबीएसई ने तीन बार सीटीईटी परीक्षा ली और 25 राज्यों ने भी टीईटी आयोजित की है।


शिक्षक पात्रता परीक्षा जून 2011 में बैठने वालों में केवल 7.59 प्रतिशत पास हुए जबकि जनवरी 2012 में 6.43 प्रतिशत और नवंबर 2012 में 0.45 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए।


गौरतलब है कि देशभर में सरकार, स्थानीय निकाय एवं सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों के 45 लाख पद हैं। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत 2012.13 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत 19.82 लाख पद मंजूर किये गए हैं और 31 दिसंबर 2012 तक 12.86 लाख पद भरे गए।


कहने को तो सरकार ने अंतत: सभी विसंगतियों को दूर करते हुए इस वर्ष पहली अप्रैल से शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया है । शिक्षा का अधिकार अब 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए एक मौलिक अधिकार है । सरल शब्दों में इसका अर्थ यह है कि सरकार प्रत्येक बच्चे को आठवीं कक्षा तक की नि:शुल्क पढार्ऌ के लिए उत्तरदायी होगी, चाहे वह बालक हो अथवा बालिका अथवा किसी भी वर्ग का हो । इस प्रकार इस कानून देश के बच्चों को मजबूत, साक्षर और अधिकार संपन्न बनाने का मार्ग तैयार कर दिया है ।इस अधिनियम में सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण और अनिवार्य शिक्षा प्रदान का प्रावधान है, जिससे ज्ञान, कौशल और मूल्यों से लैस करके उन्हें भारत का प्रबुध्द नागरिक बनाया जा सके ।जैसा कि राष्ट्र को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा कि सबको साथ मिलकर काम करना होगा और राष्ट्रीय अभियान के रूप में चुनौती को पूरा करना होगा ।डॉ. सिंह ने देशवासियों के सामने अपने अंदाज में अपनी बात रखी कि वह आज जो कुछ भी हैं, केवल शिक्षा के कारण ही । उन्होंने बताया कि वह किस प्रकार लालटेन की मध्दिम रोशनी में पढार्ऌ करते थे और वाह स्थित अपने स्कूल तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी पैदल चलकर तय करते थे, जो अब पाकिस्तान में है । उन्होंने बताया कि उस दौर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने में भी काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था । वंचित वर्गों के लिए शिक्षा पाने की मांग के संदेश बेहतर रूप में पेश नहीं किए जा सके ।


इस अधिनियम में इस बात का प्रावधान किया गया है कि पहुंच के भीतर वाला कोई निकटवर्ती स्कूल किसी भी बच्चे को प्रवेश देने से इनकार नहीं करेगा । इसमें यह भी प्रावधान शामिल है कि प्रत्येक 30 छात्र के लिए एक शिक्षक के अनुपात को कायम रखते हए पर्याप्त संख्या में सुयोग्य शिक्षक स्कूलों में मौजूद होना चाहिए । स्कूलों को पांच वर्षों के भीतर अपने सभी शिक्षकों को प्रशिक्षित करना होगा । उन्हें तीन वर्षों के भीतर समुचित सुविधाएं भी सुनिश्चित करनी होगी, जिससे खेल का मैदान, पुस्तकालय, पर्याप्त संख्या में अध्ययन कक्ष, शौचालय, शारीरिक विकलांग बच्चों के लिए निर्बाध पहुंच तथा पेय जल सुविधाएं शामिल हैं । स्कूल प्रबंधन समितियों के 75 प्रतिशत सदस्य छात्रों की कार्यप्रणाली और अनुदानों के इस्तेमाल की देखरेख करेंगे । स्कूल प्रबंधन समितियां अथवा स्थानीय अधिकारी स्कूल से वंचित बच्चों की पहचान करेंगे और उन्हें समुचित प्रशिक्षण के बाद उनकी उम्र के अनुसार समुचित कक्षाओं में प्रवेश दिलाएंगे । सम्मिलित विकास को बढावा देने के उद्देश्य से अगले वर्ष से निजी स्कूल भी सबसे निचली कक्षा में समाज के गरीब और हाशिये पर रहने वाले वर्गों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करेंगे ।



मौजूदा स्थिति चौंकाने वाली है । लगभग 46 प्रतिशत स्कूलों में बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं हैं, जो माता-पिता द्वारा बच्चों को स्कूल नहीं भेजने का एक प्रमुख कारण है । देशभर में 12.6 लाख शिक्षकों के पद खाली हैं । देश के 12.9 लाख मान्यता प्राप्त प्रारंभिक स्कूलों में अप्रशिक्षित शिक्षकों की संख्या 7.72 लाख है, जो कुल शिक्षकों की संख्या का 40 प्रतिशत है । लगभग 53 प्रतिशत स्कूलों में अधिनियम के प्रावधान के अनुसार निर्धारित छात्र-शिक्षक अनुपात 1: 30 से अधिक है ।

इस अधिनियम के क्रियान्वयन में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी एक प्रमुख बाधा है । इन रिक्तियों को भरने के उद्देश्य से अगले छ: वर्षों में लगभग पांच लाख शिक्षकों को भर्ती करने की योजना है ।

जहां तक धन की कमी का प्रश्न है, इस अधिनियम में राज्यों के साथ हिस्सेदारी का प्रावधान है, जिसमें कुल व्यय मे केन्द्र सरकार का हिस्सा 55 प्रतिशत है । एक अनुमान के अनुसार इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए अगले पांच वर्ष में 1.71 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी और मौजूदा वर्ष में 34 हजार करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी । इनमें से केन्द्रीय बजट में 15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है । वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार द्वारा शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए पहले से राज्यों को दिए गए लगभग 10,000 करोड़ रुपये का व्यय नहीं हो पाया है । इस अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए वित्त आयोग ने राज्यों को 25,000 करोड़ रुपये आबंटित किए हैं । इसके बावजूद, बिहार, उत्तर प्रदेश और ओड़िशा जैसे राज्यों ने अतिरिक्त निधि की मांग की है । प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया है कि इस अधिनियम के क्रियान्वयन में धन की कमी नहीं होने दी जाएगी । इस परियोजना की सफलता के लिए सभी हितधारकों की ओर से एक ईमानदार पहल की आवश्यकता है । इस कानून के उल्लंघन पर नजर रखने के लिए एक बाल अधिकार आयोग गठित किया जाएगा ।


अनुच्‍छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी हुआ। आरटीई अधिनियम के शीर्षक में 'नि:शुल्‍क और अनिवार्य' शब्‍द सम्‍मिलित है। 'नि:शुल्‍क शिक्षा' का अर्थ है कि किसी बालक को यथास्‍थिति उसके माता-पिता, समुचित सरकार द्वारा स्‍थापित स्‍कूल से अलग स्‍कूल में दाखिल करते हैं तो प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने पर उपगत व्‍यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा। 'अनिवार्य शिक्षा'' पद से समुचित सरकार तथा स्‍थानीय प्राधिकरण की छह से चौदह वर्ष तक की आयु के प्रत्‍येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य प्रवेश, उपस्‍थिति और उसको पूरा करने को सुनिश्‍चित करने की बाध्‍यता अभिप्रेत है। इससे भारत अधिकार आधारित कार्यढांचे की ओर अग्रसर होता है जिससे केन्‍द्र और राज्‍य सरकारें आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्‍छेद 21-क में दिए गए अनुसार बच्‍चे के मौलिक अधिकार के रूप में कार्यान्‍वित करने के लिए अभिप्रेत है।


आरटीई अधिनियम, 2009 में निम्‍नलिखित के लिए प्रावधान है:


आसपास के स्‍कूल में प्रारंभिक शिक्षा के पूरा होने तक बच्‍चों को नि:शुल्‍क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।


यह स्‍पष्‍ट करता है कि 'प्रारंभिक शिक्षा का अभिप्राय 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्‍चों को नि:शुल्‍क प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने तथा अनिवार्य दाखिला, उपस्‍थिति एवं प्रारंभिक शिक्षा का पूरा होना सुनिश्‍चित करने के लिए उपयुक्‍त सरकार के दायित्‍व से है। ''नि:शुल्‍क'' का अभिप्राय यह है कि कोई भी बच्‍चा किसी भी प्रकार का शुल्‍क या प्रभार या व्‍यय अदा करने के लिए जिम्‍मेदार नहीं होगा जो उसे प्रारंभिक शिक्षा की पढ़ाई करने एवं पूरा करने से रोक सकता है।


यह गैर दाखिल बच्‍चे की आयु के अनुसार कक्षा में दाखिला के लिए प्रावधान करता है।


यह नि:शुल्‍क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने, तथा केन्‍द्र सरकार एवं राज्‍य सरकारों के बीच वित्‍तीय एवं अन्‍य जिम्‍मेदारियों की हिस्‍सेदारी में उपयुक्‍त सरकारों, स्‍थानीय प्राधिकरण एवं अभिभावकों के कर्तव्‍यों एवं जिम्‍मेदारियों को विनिर्दिष्‍ट करता है।


यह अन्‍य बातों के साथ शिक्षक छात्र अनुपात (पीटीआर), भवन एवं अवसंरचना, स्‍कूल के कार्य घंटों, शिक्षकों के कार्य घंटों से संबंधित मानक एवं मानदंड विहित करता है।


यह सुनिश्‍चित करता है कि निर्दिष्‍ट शिक्षक छात्र अनुपात प्रत्‍येक स्‍कूल के लिए अनुरक्षित किया जाए, न कि केवल राज्‍य या जिला या ब्‍लाक स्‍तर के पदों में कोई शहरी-ग्रामीण असंतुलन नहीं है, यह शिक्षकों की तर्कसंगत तैनाती का प्रावधान करता है। यह 10 वर्षीय जनगणना, स्‍थानीय प्राधिकरण, राज्‍य विधानमंडलों एवं संसद के चुनावों तथा आपदा राहत को छोड़कर गैर शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों की तैनाती का भी निषेध करता है।


यह उपयुक्‍त रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों अर्थात अपेक्षित प्रवेश एवं शैक्षिक अर्हता वाले शिक्षकों की नियुक्‍ति के लिए प्रावधान करता है।


यह 1.शारीरिक दंड एवं मानसिक उत्‍पीड़न,2.बच्‍चों के दाखिले के लिए स्‍क्रीनिंग प्रक्रिया,3.कैपिटेशन फीस,4.शिक्षकों द्वारा निजी शिक्षण,5.मान्‍यता के बिना स्‍कूलों के संचालन का निषेध करता है।


यह संविधान में अधिष्‍ठापित मूल्‍यों तथा ऐसे मूल्‍यों के अनुरूप पाठ्यचर्या के विकास का प्रावधान करता है जो बच्‍चे के ज्ञान, क्षमता एवं प्रतिभा का निर्माण करते हुए तथा बाल अनुकूलन एवं बाल केन्‍द्रित अध्‍ययन के माध्‍यम से डर, ट्रोमा एवं चिंता से मुक्‍त करते हुए बच्‍चों के चहुंमुखी विकास का सुनिश्‍चय करेंगे।


ये उद्देश्‍य विभाग के निम्‍नलिखित मुख्‍य कार्यक्रमों के माध्‍यम से पूरा किए जाने के लिए आशयित हैं:-


प्रारंभिक स्‍तर: सर्व शिक्षा अभियान और मध्‍याह्न भोजन


माध्‍यमिक स्‍तर: राष्‍ट्रीय अध्‍यापक शिक्षा अभियान, आदर्श विद्यालय।


व्‍यावसायिक शिक्षा, बालिका छात्रावास


नि:शक्‍त की सम्‍मिलित शिक्षा, आईसीटी@स्‍कूल।


प्रौढ़ शिक्षा: साक्षर भारत


अध्‍यापक शिक्षा: अध्‍यापक शिक्षा बढ़ाने के लिए योजना


महिला शिक्षा: महिला समाख्‍या।


अल्‍पसंख्‍यक शिक्षा: मदरसों में उत्‍तम शिक्षा प्रदान करने के लिए योजना।


अल्‍पसंख्‍यक संस्‍थानों का आधारिक विकास।



मिशन:


विभाग निम्‍नलिखित प्रयास करता है-


सभी बच्‍चों को प्रारंभिक स्‍तर पर नि:शुल्‍क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना।


शिक्षा का राष्‍ट्रीय और समाकलनात्‍मक स्‍वरूप लागू करने के लिए राज्‍यों और संघ राज्‍य क्षेत्रों के साथ भागीदार बनाना।


उत्‍तम स्‍कूल शिक्षा और साक्षरता की सहायता से संवैधानिक मूल्‍यों को समर्पित सोसाइटी बनाना।


उत्‍तम माध्‍यमिक शिक्षा के लिए अवसरों को सार्वभौमिक बनाना।



उद्देश्‍य


देश के प्रत्‍येक योग्‍य विद्यार्थी के लिए माध्‍यमिक शिक्षा के स्‍वप्‍न को साकार करने के लिए विभाग के उद्देश्‍य बिलकुल स्‍पष्‍ट हैं, इसे निम्‍नलिखित करना है-


नेटवर्क का विस्‍तार करके, उत्‍तम स्‍कूल शिक्षा के प्रति पहुंच बढ़ाना।


कमजोर वर्गों के अतिरिक्‍त वंचित ग्रुपों, जिन्‍हें अब तक वंचित रखा गया था, को शामिल करके माध्‍यमिक शिक्षा प्रणाली को समान बनाना।


वर्तमान संस्‍थानों की सहायता करके और नए संस्‍थानों को स्‍थापित करना सुविधाजनक बनाकर शिक्षा के उत्‍तम और समुन्‍नत स्‍तर सुनिश्‍चित करना।


संस्‍थागत और व्‍यवस्‍थित सुधारों के अनुसार नीति स्‍तरीय परिवर्तन प्रारंभ करना, जो आगे विश्‍व स्‍तर की माध्‍यमिक शिक्षा पाठ्यचर्या तैयार करें जो बच्‍चों में प्रतिभा पैदा करने योग्‍य हो।






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